कब्र का रहस्य
राजन-इक़बाल Reborn Series # 6
लेखक
शुभानन्द
सीबीआई की धुनाई
सीबीआई हैडक्वार्टर! नई दिल्ली!
शाम का वक्त था और सीनियर ऑफिसर विजित साहनी, फ़िलहाल अपनी डेस्क पर मौजूद था और कुर्सी पर सिर टिकाकर गहरी सोच में डूबा हुआ था.
अचानक फोन की घनघनाहट से उसकी विचार तन्द्रा भंग हुई. वह कुछ पल फोन को इस मंशा से घूरता रहा कि वह अपने आप कट जाए, पर आखिरी मौके पर उसने रिसीवर उठा लिया.
“विजित!”
“नमस्कार विजित सर!” एक बेचैन-सा स्वर उभरा.
“नमस्कार! कौन?”
“सर मैं ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ से दिनेश सिसोदिया बोल रहा हूँ.”
विजित ने बुरा-सा मुंह बनाया और बोला, “कौन दिनेश? किसने दिया मेरा नंबर- तुम लोगों को...”
“सर! आपको कष्ट देने का कोई इरादा नहीं है. पर आप जिस केस पर काम कर रहे हैं उसकी खास खबर है मेरे पास.”
“तुम्हें कैसे पता मैं किस केस पर काम कर रहा हूँ? और अपनी खास खबर अपने पेपर में छापो मैं कल पढ़ लूँगा.”
“वो तो पेपर में छपेगी ही, सर. पर आप इस बारे में जितनी जल्दी जान लें आपके लिए उतना लाभदायक होगा. कल सुबह तक का इंतज़ार करेंगे तो....” उसने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया.
विजित अब कुछ संजीदा हुआ- “ओह! ऐसी क्या खबर है?”
“आप से अच्छी तरह और कौन जान सकता है कि ऐसी बातें फोन पर नहीं हो सकतीं.”
“ठीक है! मैं तुम्हारे ऑफिस पहुँचता हूँ.”
“आप तकलीफ न करें. मैं पहले ही आपके ऑफिस की तरफ निकल चुका हूँ. इस वक्त मेट्रो में हूँ.”
“ओह! गुड! ठीक है, फिर तुम आ जाओ, तब बात करते हैं.”
शाम का वक्त था, अधिकतर लोग घर के लिए निकल रहे थे. कुछ ही लोग सीबीआई हैडक्वार्टर में मौजूद थे. विजित का फ़िलहाल घर जाने का वैसे भी कोई इरादा नहीं था. जबसे उसने चीनी घोटाले का केस संभाला था, उसके दिन और रात ऑफिस में ही गुजर रहे थे. घोटाले में एक से एक राजनीतिज्ञों का नाम था और किसी पर भी हाथ डालने से पहले उसे पचास बार सोचना पड़ता था.
करीब आधे घंटे में दिनेश सिसोदिया नामक जॉर्नालिस्ट वहां पहुंचा. विजित ने उसे अंदर आने की अनुमति दिलवाई.
दिनेश तीस वर्ष की आयु का एक फुर्तीला-सा नौजवान था. उसकी आँखों पर चश्मा और पीठ पर एक बैग था.
“बैठो!” विजित ने उसे बैठने का इशारा किया.
“थैंक्यू, सर!”
“अब बताओ- क्या खबर है तुम्हारे पास?”
“आप जिस केस पर काम कर रहे हैं...अब उस पर आपको ज्यादा हाथ-पाँव नहीं मारने पड़ेंगे.”
विजित मन ही मन हैरान था पर फिर भी लापरवाही के साथ बोला-
“बोल तो ऐसे रहे हो जैसे घोटाले के सारे सबूत मिल गए हों तुम्हें.”
“आप हल्के में ले रहे हो, मुझे. सारे सबूत न सही, पर ऐसा सबूत ज़रूर है कि आप अभी यहां से अरेस्ट वारंट लेकर निकलोगे.”
“ड्रामा नहीं, साफ़-साफ़ बताओ.”
“बताऊंगा नहीं दिखाऊंगा.” कहकर दिनेश ने बेहद सतर्कता के साथ, चारों तरफ देखते हुए अपने बैग से एक कपड़े की पोटली निकाली और मेज पर रख दी. उसके चेहरे पर असीमित उत्साह था.
“क्या है ये?” विजित ने पोटली को संदिग्ध निगाहों से देखा.
“पोटली खोल के देखिये.”
विजित ने पोटली उठाई और उसकी गाँठ खोल दी. जैसे ही उसने अंदर झाँका-
दिनेश किसी रबड़ के गुड्डे की भांति अपनी कुर्सी से उछला और मेज पारकर सीधे विजित के पास पहुंच गया.
इससे पहले कि विजित कुछ करता, दिनेश ने पोटली उसके मुंह पर लगा दी. पोटली में मोटी रुई थी जो कि किसी तरल पदार्थ से भीगी हुई थी.
विजित ने चिल्लाने की कोशिश करी, पर उसकी आवाज घुटकर रह गई. उसने हाथ-पाँव झटके, दिनेश को नोंचा-घसोटा पर उसकी पकड़ से छूट न सका.
पांच सेकेंड के अंदर विजित शांत होकर दिनेश की बांहों में झूल गया. दिनेश ने चारों तरफ देखा. दरवाजे की तरफ कोई भी दिखाई नहीं दिया. उसने आराम से विजित के बेहोश जिस्म को फर्श पर लेटा दिया.
उसके बाद उसने बैग से रबड़ के दस्ताने निकाले और हाथों में पहन लिए. फिर वह फुर्ती के साथ बगल वाले कमरे में पहुंचा. वहां एक चपरासी घूम रहा था. उसकी नज़र दिनेश पर पड़ी. दिनेश जल्दी से बोला-
“सुनो- विजित साहब तुम्हें बुला रहे हैं.”
चपरासी उसकी तरफ आया. पास आते ही दिनेश ने उसे दबोच लिया और उस पर भी रुई की पोटली का इस्तेमाल किया. वह बिना कोई प्रतिरोध करे ही बेहोशी के आलम में पहुंच गया.
उसे भी एक कोने में ठिकाने लगाने के बाद दिनेश बगल वाले कमरे में पहुंचा. वहां बहुत सारे केबिनेट थे, जिनमे कई फाइलें थीं. दिनेश को तुरंत समझ आ गया कि फाइलें तारीख के हिसाब से लगी हुई हैं. पांच मिनट के अंदर उसने एक केबिनेट से अपने काम की फ़ाइल हासिल कर ली. उसने फ़ाइल के सभी पन्नों की फोटो खीची और फिर पूर्वतः केबिनेट में रख दी. उसके बाद वह वापस विजित के केबिन में पहुंचा और पोटली, कैमरा और दस्ताने बैग में रखकर आराम से टहलते हुए सीबीआई हैडक्वार्टर से बाहर निकल गया.
†
सीक्रेट सर्विस में चोरी
भारतीय सीक्रेट सर्विस के हैडक्वार्टर में अफरा-तफरी का माहौल था. सभी हैरान-परेशान नज़र आ रहे थे.
एक केबिन में चारों तरफ विभिन्न फाइलें बिखरी हुई थीं. कई जासूस और फोरेंसिक एक्सपर्ट्स शिनाख्त में मशगूल थे.
कुछ देर में चीफ़ महोदय हैडक्वार्टर पहुंचे और उन्होने सभी जासूस और कर्मचारियों को अपने केबिन में तलब किया.
कमरे में राजन, इक़बाल, सलमा, शोभा के अलावा कई जासूस मौजूद थे. गिनती की कुर्सियों के कारण अधिकतर लोग खड़े थे.
चीफ़ के चेहरे पर परेशानी थी. उसने एक सिगार सुलगाया और फिर ढेर सारा धुंआ उगलते हुए कहा- “आज लगता है पहली बार हमारे हैडक्वार्टर में ही डाका पड़ गया है. पर सवाल ये है कि यहां पर किसी के चुराने लायक है क्या?”
कोई कुछ नहीं बोला. सभी सोच में डूबे हुए थे. कुछ लोग सिर झुकाए इस प्रकार खड़े थे जैसे उन्होंने ही ये जुर्म किया हो.
“बताओ- विकास!” चीफ़ ने उनमे से एक को संबोधित क्या. उसी की ड्यूटी थी रात को.
“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, सर.” विकास सफाई देते हुए बोला- “रात को क्या हुआ...म...मुझे याद ही नहीं.”
“याद कैसे होगा?” इक़बाल पलटकर बोला- “गधे बेचकर सो जो रहे थे जनाब.”
“न...नहीं! मैं सोया नहीं था. म...मतलब मुझे याद नहीं...”
“मुझे लगता है- इसे बेहोश किया गया था.” राजन गंभीर मुद्रा में बोला.
“पर कैसे?”
“हमने इसकी रात की पी हुई कॉफी जांच के लिए भिजवाई है.” शोभा बोली- “शायद उसमे नींद की दवा थी.”
“कॉफी कहाँ से आई थी?” चीफ़ ने विकास को घूरते हुए पूछा.
“आई नहीं, सर! मैंने कॉफी मशीन से खुद बनाई थी.”
“हम्म...यानि मिलावट कहीं और थी. दूध में... दूध कौन लाया था?”
विकास ने पलटकर एक चपरासी को देखा और बोल पड़ा-
“दूध तो ये बहादुर ही लाया होगा.”
“बहादुर?”
“ज..ज..जी शाबजी!” नाटा-सा बहादुर घबरा गया.
“तुमने दूध में क्या मिलाया था?”
“हमने कुछ नहीं मिलाया शाबजी. कसम से.”
“दूध कहाँ से लाए थे?”
“रोज की माफ़िक दूधवाला ही देने आया था, शाबजी!”
चीफ़ ने सिगार का कश भरा, फिर दो पल बाद बोले- “बहरहाल, चोरी किस चीज़ की हुई है?”
“अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है.” राजन बोला- “काफी फाइलें इधर-उधर बिखरी पड़ीं हैं. लगता है- उसे किसी फ़ाइल की तलाश थी. पता नहीं वो फ़ाइल ले गया है, या सिर्फ उसमे से कुछ जानकारी हासिल करके चला गया.”
“मुझे तो पक्का यकीन है कि ये किसी भ्रष्ट राजनीतिज्ञ का काम है.” इक़बाल बोला- “अभी हम लोग कई ऐसे केस पर काम कर रहे हैं जिनमे कुछ भ्रष्ट नेताओं की भागीदारी है. जैसे कि 3जे घोटाला, एशियाड घोटाला आदि. इन पर काम करके हमने जो सबूत जुटाए हैं, ज़रूर उन्हें नष्ट करने के लिए कोई आया होगा.”
“पर इक़बाल!” पवन नामक एक एजेन्ट बोला- “ऐसे सभी केस सीबीआई के पास ही जाते हैं.”
“मिस्टर पवन यानि कि हवा! तुम सिर्फ उड़ा करो.” इक़बाल ने दोनों हाथ फैलाकर कहा.
“ये क्या बदतमीजी है?” पवन गुस्सा हो गया.
“इक़बाल!” चीफ़ सख्त स्वर में बोले- “बकवास नहीं!”
“ओके, सर!”
“तुम दोनों की बातें कुछ सही और कुछ गलत हैं. क्यों राजन! मैंने ठीक कहा न?”
“जी! हमारी एजेंसी भी ऐसे केस पर उनकी मदद करती है.” राजन ने पवन को देखा, फिर इक़बाल की तरफ पलटा “पर...इन केस के सभी सबूत हम लोग सुरक्षित सीबीआई के हवाले कर देते हैं. अपने हैडक्वार्टर पर नहीं लाते.”
“अब मुझे कैसे मालूम होगा. मैंने तो कभी इतने बड़े घोटालों पर काम किया नहीं है.” कहते हुए इक़बाल ने रोनी सूरत बना ली. “मुझे हमेशा छोटे-मोटे केस ही करने को मिलते हैं.”
सलमा ने, जो उसके बगल में बैठी थी, चुपके से उसकी जांघ में चुटकी काट ली.
“आउच!” इक़बाल उछल पड़ा.
“क्या हुआ?” चीफ़ ने पूछा.
“कुछ नहीं! मच्छर ने काट लिया.”
“हम्म... इक़बाल, तुम चिंता मत करो. इस बार सबसे खतरनाक केस हम तुम्ही को देंगे.”
इक़बाल की आँखें निकल आईं.
“अरे! न...नहीं सर. मैं इस लायक कहाँ? मैं तो... मैं तो मजाक कर रहा था.”
राजन, सलमा और शोभा मुंह दबाकर हँसने लगे.
“पर...हम मजाक नहीं कर रहे.” चीफ़ ने गंभीर स्वर में कहा.
“लग गई बेटा इक़बाल...” इक़बाल बडबडाया- “अब भुगत ज्यादा बोलने का अंजाम.”
“खैर! हम मुद्दे की बात से भटक गए.” चीफ़ ने कहा- “तो निष्कर्ष ये निकला कि बड़े घोटालों के सबूत यहां होते नहीं, तो उन्हें चुराने का सवाल नहीं उठता. फिर आखिर कोई यहां किस मंसूबे से आया था?”
कोई कुछ नहीं बोला. वे एक दूसरे के चेहरे देख रहे थे.
“ठीक है! तुम लोग इन्वेस्टिगेट करो, और इक़बाल!”
“आं?” इक़बाल ने सकपकाकर चीफ़ को देखा.
“तुम्हारी जिम्मेदारी है कि पूरी रिपोर्ट पेश करो और उस चोर को पकड़ो. अब ये महत्वपूर्ण केस तुम्हारा हुआ.”
“अरे बापरे!” इक़बाल के मुंह से निकला.
“क्या हुआ?”
“क...कुछ नहीं! सर! अब आप देखिये उस नामाकूल को पकड़कर उसके दोनों कान न उमेठ दिए तो मेरा नाम इक़बाल नहीं.”
“गुड! अब आप लोग जा सकते हैं.”
सभी चीफ़ के केबिन से बाहर निकल आये. सब आपस में इसी बारे में बातें कर रहे थे.
सलमा इठलाते हुए इक़बाल के पास पहुंची और उसके गले में हाथ डालकर बोली-
“माई डियर इक्कोजी! कुछ मदद चाहिए हो तो ज़रूर बोलना.”
“हां देवर जी!” शोभा भी बोली- “मैं भी तुम्हारी पूरी मदद करूंगी.”
“बिलकुल-बिलकुल! देवियों! बस एक मदद कर दो.”
“बोलो.”
“उस घुसपैठी को पकडकर ले आओ.”
“अच्छा! और तुम क्या करोगे?” सलमा तुनककर बोली.
“मैं अपनी प्यारी भाभी के साथ बैठकर गोलगप्पे खाऊंगा.” इक़बाल शोभा का हाथ पकडकर बोला.
“हां!” तभी राजन वहां पहुंचा- “कामचोरो से और एक्सपेक्ट भी क्या किया जा सकता है?”
इक़बाल ढीठता के साथ मुस्कराया और गाने लगा-
“वो हम को कामचोर कहते हैं, उनकी ये इनायत है |
हम अपने घोड़े बेच सोते हैं, उन्हें क्यों शिकायत है ||”
“नहीं इक्को!” सलमा गंभीर थी- “झख सुनाने से काम नहीं चलेगा. तुम्हें अब ये सिद्ध करना होगा कि तुम भी एक अक्लमंद जासूस हो.”
“सल्लो जी! तुम तो सीरियस हो गईं.”
“हां! अब अगर तुम इस चोर को नहीं पकड़ पाओगे तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी.” कहकर सलमा ने मुंह फुला लिया.
इक़बाल बाल खुजाते हुए शोभा की तरफ पलटा.
“देवर जी! अब तो तुम्हें ये कारनामा करना ही होगा. इस चोर को पकड़ो और हमारा नाम रौशन करो.”
“अरे! मैं करने के लिए तैयार हूँ. पर आप लोग मेरा साथ देना. राजन, तुम भी... इक़बाल दी ग्रेट की इज्ज़त का सवाल है.”
“बिलकुल! मैं तुम्हारे साथ हूँ.” राजन ने सिर हिलाया.
उसके बाद इक़बाल पूरे जोश के साथ इन्वेस्टिगेशन में लग गया. वह उस कमरे में पहुंचा जहाँ सारी फाइलें तितर-बितर हुई पड़ी थीं. फोरेंसिक एक्सपर्ट्स सबूत ढूढने में लगे थे. इक़बाल उनके साथ लग गया. राजन, सलमा और शोभा भी साथ थे.
“तो भाई जामुनदास!” इक़बाल एक एक्सपर्ट से बोला.
“मेरा नाम जमुनादास है.” उसने सिर उठाकर क्रोध में कहा.
“सॉरी! साली रबड़ की जुबान है, फिसल जाती है. तो आपको कुछ फिंगर प्रिंट्स मिले क्या?”
“नहीं! अभी तक तो नहीं. निस्संदेह चोर ने हाथों में दस्ताने पहने होंगे.”
“आपने कॉफी मशीन, और कॉफी मग को भी चैक किया?”
“हां! वहां सिर्फ विकास और बहादुर के प्रिंट्स हैं.”
इक़बाल सोच में पड़ गया. राजन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- “एक सुझाव दूं?”
“नेकी और पूछ-पूछ? एक नहीं दो दे दो, भ्राताश्री!”
“चोर काफी चालाक लगता है. शायद उसने कोई भी सबूत नहीं छोड़ा. इसलिए अगर इस बात पर ध्यान केंद्रित करो कि वो यहां से क्या जानकारी हासिल करने आया था तो शायद आगे का रास्ता दिखाई दे.”
“सही कहते हो. उसने इन फाइल्स के साथ छेड़-छाड करी है, इनसे शायद कुछ पता चले.” कहकर इक़बाल कमरे में बिखरी फाइल्स को चैक करने लगा. वहां सैकड़ों फाइल्स थीं, इसलिए बाकी लोग भी उसकी मदद करने लगे.
करीब आधे घंटे बाद सलमा ने एक फ़ाइल इक़बाल को दिखाई. “इक्को, ये देखो- इस फ़ाइल का एक पेज फटा हुआ है.”
“अरे हां!” इक़बाल और राजन ने भी देखा. वह सलमा को ज़मीन पर से मिली थी. उसके अंदर एक पन्ना फटा हुआ था.
“सल्लोजी!” वह पुचकारते हुए बोला- “कमाल कर दित्ता तुस्सी. आँखों में कौन-सा काजल लगाती हो?”
“बरेली का.” सलमा आँखें मटकाकर बोली.
“ये कौन-से केस की फ़ाइल है?” शोभा ने पूछा.
सलमा ने जल्दी-जल्दी फ़ाइल के पन्ने पलटकर देखे.
“ये तो किसी पुलिस इंस्पेक्टर के मर्डर के केस की फ़ाइल है.” वह बोली.
राजन ने फ़ाइल ली और पढ़ने लगा.
“इंस्पेक्टर भास्कर राव के मर्डर की फ़ाइल है ये तो. मुझे याद है करीब दो महीने पहले ये न्यूज़ में था. कर्नाटक के सेलगाम नामक जगह पर हुई थी ये वारदात. उसकी लाश रेल ट्रैक्स पर मिली थी. उसके बाद से पुलिस इसकी छानबीन कर रही है, पर उनके हाथ कुछ नहीं लगा.”
“पर ये केस सीक्रेट सर्विस में कब आया और इस पर कौन काम कर रहा है?” इक़बाल ने पूछा.
“फ़ाइल यहीं मौजूद है तो शायद अभी किसी ने काम शुरू नहीं किया होगा. बाकी चीफ़ को मालूम होगा.”
“चलो चीफ़ के टकले पर मालिश करते हैं.” इक़बाल हाथ रगड़ते हुए बोला.
वे लोग चीफ़ के केबिन में पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई. चीफ़ ने फ़ाइल ली और ध्यान-से पढ़ने लगे. पढते हुए उनका हाथ स्वतः ही अपने गंजे सिर पर फेरने के लिए बार-बार उठ जाता. इकबाल मुंह खोलकर उन्हें देख रहा था.
“ये केस तो अभी दो-तीन दिन पहले ही हमारे पास आया था. अभी किसी ने इस पर काम शुरू नहीं किया है. पर लगता है ये केस काफी ऊंचे दर्जे का है, इसीलिए शायद कोई ये नहीं चाहता कि हम इस पर काम करें.”
“सर, मेरा एक ख्याल है.” शोभा बोली- “अगर वो ऐसा चाहता था तो फिर वो पूरी फ़ाइल ही लेकर क्यों नहीं चला गया.”
“बात तो ठीक है...”
“शायद उस पेज पर कोई बहुत महत्वपूर्ण जानकारी थी.” सलमा ने कहा.
“हो सकता है, पर वो जानकारी तो हमें फिर से पुलिस के रेकॉर्ड से मिल जायेगी.” चीफ़ अपनी कुर्सी पर पीछे झुकते हुए बोला.
“शायद चोर ने इतना नहीं सोचा होगा.” राजन ने कहा.
“हम्म!” चीफ़ ने हामी भरी फिर इक़बाल की तरफ देखकर बोला- “इक़बाल! अब आगे क्या करना है?”
“आ...आगे?”
“हां! चोर को पकड़ना नहीं है?” चीफ़ की भ्रकुटी तन गई.
“आ...अब हम पुलिस से इस केस की पूरी जानकारी फिर से प्राप्त करेंगे और इस केस पर काम करना शुरू करेंगे, तभी समझ में आएगा कि कौन है इस वारदात के पीछे. मुझे लगता है बहुत गहरा चक्कर है, इसलिए अपराधी ने सीक्रेट सर्विस में घुसने तक का रिस्क लिया.”
“गुड! फिर तुम लोग सारी जानकारी इकठ्ठा करके जल्द से जल्द सेलगाम के लिए रवाना हो जाओ.”
उसके बाद वे चारों वहां से रुख्सत हुए.