देह के दायरे
भाग - बत्तीस
गुरुदेव ने देव बाबू को संसार में लौटकर ज्ञान का प्रकाश फैलाने का आदेश दिया था मगर वह स्वयं को इन चार वार्षों में भी संसार के बन्धनों से मुक्त नहीं कर पाया था | उसका मन अब भी अपने उस संसार में भटक रहा था जहाँ पूजा थी, उसका घर था | आशा को अपने ह्रदय में छिपाए हुए वह शहर में ही लौटकर आ गया था |
अपने शहर में लौटकर देव बाबू ने विद्यालय के साथ वाले मन्दिर में अपना डेरा जमाया | धीरे-धीरे शहर के अनेक व्यक्ति उसके दर्शनों को आने लगे | चार वर्ष पूर्व वह भी इन्हीं व्यक्तियों में से एक था | इनमें से कितनों को ही वह निकट से जानता था मगर उसे उस वेश में कोई भी नहीं पहचान सकता था | वह उन्हें उनके भूतकाल की बातें बताकर चकित कर सकता था | जब वह उन्हें उनके चार-पाँच वर्ष विगत की बातें बताता तो वे चकित होकर उसकी महत्ता को स्वीकार कर लेते |
बात बढ़ते-बढ़ते सारे शहर में फैलने लगी | लोगों का एक भरी समूह नित्य ही उसके दर्शनों को आने लगा | लोगों के मुँह पर एक ही बात थी-“हिमालय से एक तपस्वी आया है, सब कुछ जानता है |”
भक्तों ने मिलकर तीन महीनों में ही मन्दिर की काया-पलट कर दी | टूटे-फूटे मन्दिर की कुछ मरम्मत भी कर दी गयी | बाहर से आने वाले अनेक यात्रियों के वहाँ ठहरने, भोजन तथा वस्त्रों का प्रबन्ध कर दिया गया | बहुत-से शिष्य वहाँ एकत्रित होने लगे |
जाने-अनजाने सभी आ रहे थे मगर वह अभी तक नहीं आयी थी, जिसकी देव बाबू को प्रतीक्षा थी | उसे उसका कोई समाचार भी नहीं मिला था | वह किसी से उसके विषय में पूछ भी तो नहीं सकता था | वह इस विषय को लेकर चिन्तित था कि पूजा को उसके आने की खबर कैसे हो | वह स्वयं को प्रकट भी तो नहीं कर सकता था |
अधिक प्रचार के लिए देव बाबू ने तीन दिन का मौनव्रत रखा | इस तीन दिनों में वह किसी से भी नहीं बोला था | चुपचाप अपने आसन पर बैठा वह आने वाले प्रत्येक नर-नारी को गहन दृष्टि से देख रहा था |
आखिर तीसरे दिन उसकी इच्छा पूर्ण हुई | पूजा हाथ में फल-फुल लिए उसके समक्ष उपस्थित थी | पूजा ने आगे बढ़कर उसके चरण छुए तो उसका मन काँप उठा | कम्पित ह्रदय वह उसे आशीर्वाद देना भी भूल गया | यह उसकी परीक्षा की घड़ी थी | उसका मन बोलने को व्याकुल हो रहा था मगर मौनव्रत का यह अन्तिम दिन था | शब्द ह्रदय से उठकर मुँह में घुल रहे थे लेकिन मौनव्रत की बंधी पट्टी उस शब्दों को बाहर नहीं आने दे रही थी | अब वह स्वयं पर पछता भी रहा था कि उसने यह मौनव्रत का आडम्बर क्यों किया |
हाथ से उसने पूजा को वहाँ बैठने का संकेत किया | पूजा स्त्रियों के साथ जाकर बैठ गयी | देव बाबू की दृष्टि अब हर तरफ से हटकर पूजा पर एकाग्र हो गयी थी | वह अपनी समस्या का कोई उपयुक्त समाधान सोच रहा था |
एक सेवक को संकेत से समझाकर उसने लिखने का सामान मँगवाया | कागज के पुर्जे पर उसने लिखा “
‘पूजा,
‘आप कल आकर अपनी समस्या का हल पूछें |’
लिखकर वह पर्ची उसने उसी सेवक के हाथ में दे दी | हाथ के संकेत से ही उसने उसे समझाया कि वह इस पर्ची को पूजा तक पहुँचा दे |
“आपमें से पूजा किसका नाम है?” सेवक ने स्त्रियों में आकर कहा |
“मेरा नाम पूजा है |” पूजा ने खड़ी होकर कहा |
“लो, बाबा ने आशीर्वाद दिया है |” सेवक ने वह पर्ची पूजा की ओर बढ़ा दी |
पूजा ने पर्ची को लेकर पढ़ा | पास आकर उसने पुनः तपस्वी के चरणों को छुआ और धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई वहाँ से लौट गयी |
तपस्वी देव बाबू दूर तक उसे जाते हुए देखता रहा | वह मौन बैठा उसके विषय में सोचता रहा |
‘कमजोर तो वह अवश्य हो गयी है लेकीन उसकी आँखों में एक गहरा विश्वास आ गया है | पहले जैसी उदासी तो उसके मुख पर नहीं थी | तो क्या उसने पंकज से शादी कर ली है?’ व्याकुल मन वह सोचता रहा |
पूजा वहाँ से वापस लौटी तो उसे इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि बाबा को उसके नाम का पता कैसे चला | वह सोच रही थी कि सचमुच ही यह कोई महान् तपस्वी है | शायद वह उसकी उलझन दूर कर सके | कल उन्होंने उसे बुलाया है...वह अवश्य जाएगी | सोचते-सोचते उसे तपस्वी के प्रति पूजा के मन में आस्था गहरी होती जा रही थी |
विचारों में खोई वह अपने कमरे पर पहुँच गयी | वहाँ पहुँचकर उसने देखा...कमरा खुला था मगर करुणा वहाँ नहीं थी | वह तो उसे वहीँ छोड़कर गयी थी, फिर वह कमरा खुला छोड़कर कहाँ चली गयी? ऊपर होगी, यह सोचकर उसने आवाज दी |
“करुणा...|”
“आयी भाभी!” आवाज के साथ ही भागती हुई करुणा नीचे आ गयी |
“कमरा खुला छोड़कर कहाँ चली गयी थी?”
“पंकज के सिर में दर्द था, चाय लेकर गयी थी |”
“सिर्फ चाय ही लेकर गयी थी?” पूजा ने गहरी दृष्टि से उसे देखते हुए कहा | करुणा ने दृष्टि झुका ली |
“सिर दर्द की टिकिया भी तो लेती जाती |” पूजा ने हँसते हुए कहा |
“ओह भाभी! मैं भूल गयी थी |”
“तो अब दे आ | और हाँ, सुन, स्कूल के पास वाले मन्दिर में एक बाबा आए हैं | उसके दर्शन कर आना, मन को बहुत शान्ति मिलती है |”
“आप वहीँ गयी थीं?”
“हाँ! अब तू जल्दी से टिकिया ले जा और आते हुए चाय का खाली प्याला और प्लेट उठा लाना |” पूजा ने कहा |
सुनकर एक पल को करुणा चौंकी | वह तो ऊपर चाय लेकर ही नहीं गयी थी | फिर भी उसने अपने झूठ को छिपाने के लिए पूजा से सिरदर्द की एक टिकिया ले ली और ऊपर चल दी |
वापस लौटी तो वह पूजा की दृष्टि बचाकर रसोईघर में घुस गयी मगर पूजा ने उसे खाली हाथ लौटते देख लिया था | कुछ सोचकर उसके मुख पर मुसकान गहरी होती चली गयी |
करुणा अन्दर रसोई में धुले हुए कप-प्लेटों को धोने का बहाना कर रही थी |