पिता को समर्पित
जिंदगी वह रेलगाड़ी है जो पटरी छोड़ देती है,
सफर के हमसफ़र अक्सर ही रिश्ते तोड़ देते हैं।
उंगलियां थाम कर जिनकी चले थे नन्हे पाँवों से,
हमें इतना भरोसा था गिरे गर थाम लेंगें वो ।।
जिंदगी वह रेलगाड़ी है जो पटरी छोड़ देती है-2
जो चेतक बन के बचपन का हमें कंधे बिठाता थे ,
भुजाएं लौह थीं जिनकी हृदय कोमल कली जैसा।।
जख्म गर हमको जाती ,हृदय उनका तड़प उठता।
हमारे ख़्वाबों के ख़ातिर , उन्होंने तन जला डाला।।।
जिंदगी वह रेलगाड़ी है जो पटरी छोड़ देती है-2
ह्रदय के बोल कहते हैं खुदा पत्थर नही होता,
खुदा होता है हर दिल में खुदा माता पिता में है ।
हाँ जिसनें भूख को पाला दिया हमको निवाला है ,
खुदा मेरा है गर कोई जन्म जिसने दिया मुझको ।।
जिंदगी वह रेलगाड़ी है जो पटरी छोड़ देती है-2
(नकसेबाजी)
भइया की जब भई शगाई , तिलक म पीली पल्सर आई ।
भइया पल्सर स्टार्ट किहिन जब ,पहिला गीयर डारि चले जब।
पहिले तौ उइ 20 चले , फिरि एक्सिलिटेर खींच चले ।।
आंधी का एक झोंका आवा , भइया का कुछ नही सुझावा ।
गाड़ी बिगड़ी खन्तिम घुसिगै , नकसेबाजी उही म घुसिगै ।।
गांठी ग्वाड़ फोरि सब डारिन , घरमा पहुंचे बप्पा मारिन ।।
भइया की जब भई शगाई , तिलक म पीली पल्सर आई ।
भदुइ दिन तक तौ सेकिन साकिन , बप्पा डॉट के घरमा राखिन।।
तिसरे दिन उर्राय गये उइ , बप्पा से गुर्राया गये उइ ।
कहिंन का अबहिउ है लरिकाई , गिरे रहन जौ आंधी आई ।।
पल्सर लइके निकरि गये उइ , अब तौ भइया बिगर गये उइ ।
अबकिल अस पल्सर दौड़ाये , देखिन नाही दाएँ बाँये ।।
लड़ा सांड दाहिने से आये , मुँह भल गिरे दांत बिखराये ।
अम्मा कहिंन इउ करम कमावा , जौ थूथुन फोरि के घरका आवा।।
( राम राज्य )
( इस काव्य रचना के माध्यम से मैं एक प्रश्न समाज के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ , कि जो गली , नुक्कड़ , और चौराहों पर मंदिर बनें हैं ।क्या वास्तव में उनमें कोई देवता निवास करता है ? या सिर्फ ये कमाई के लिए खोली गईं दुकानें हैं । ये मेरे स्वयं के विचार हैं । मेरा किसी भी ब्यक्ति धर्म या सम्प्रदाय को कोई ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य नही है ।)
जिनके पुरखे हनुमान बली वो दर दर ठोकर खाते हैं,
हर मंगल को लड्डू पेड़ा बजरंगी जी पाते हैं ।
बंदर को शिक्षा न मिली न उसका बुद्धि विकास हुआ,
जिनके पुरखे भगवान बनें ओ नाच के भोजन पाते हैं।।
जिनके पुरखे हनुमान बली वो दर दर ठोकर खाते हैं,
हर मंगल को लड्डू पेड़ा बजरंगी जी पाते हैं ।
नल-नील अगर जो होते न तो कैसे सेतु बना पाते।
होता न जटायू गिद्ध अगर तो कैसे पता लगा पाते।।
हनुमान कहो के सीता को तुम कैसे मुक्त करा पाते ।
सूरज को जिसने लीला उसके वंशज मारे जाते हैं ।।
जिनके पुरखे हनुमान बली वो दर दर ठोकर खाते हैं,
हर मंगल को लड्डू पेड़ा बजरंगी जी पाते हैं ।
राम राज्य से पहले वानर हष्ट पुष्ट और शिक्षित थे।
राम राज्य के बाद से ही बिन बुद्धि के देखे जाते हैं ।।
सुग्रीव के राज्य में गिद्ध जटायू विद्वान् बड़े कहलाते थे ।
क्या पन्ना अब किसी देश में गिद्ध पढ़ाये जाते हैं ।।
जिनके पुरखे हनुमान बली वो दर दर ठोकर खाते हैं,
हर मंगल को लड्डू पेड़ा बजरंगी जी पाते हैं ।
{ हिंदुस्तान हमारा }
क्या हाल हुआ है देश का मेरे,
नेता खा गए चारा ।
और कहते दिन रात यही,
ये हिंदुस्तान हमारा ।।-2
चोरी करके थाने म ,
सब कहते चोर पुकारा।
ये हिंदुस्तान हमारा ।।-2
आलू बोला बड़ी शान से ,
सुन लो दाम हमारा ।
ये हिंदुस्तान हमारा।।-2
गन्ने ने की खूब लड़ाई ,
प्रशासन भी हारा।
ये हिंदुस्तान हमारा।।-2
महंगाई की मार पड़ी तो,
आम आदमी हारा ।
ये हिंदुस्तान हमारा।।-3
( अपमान )
( यह काव्य नारी सम्मान और उसके समाज निर्माण में महत्त्व को स्प्ष्ट करती है ।
इसके कवि ने समाज की सोच को एक आइना दिखाने का काम किया है )
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें।
जो दान हैं करते कन्या का , हम कैसे उन्हें महान कहें।।
जो शास्त्र नर्क का द्वार बताकर , करते उसका अपमान सदा ।
ऐसे मनुवादी शास्त्रों का , अब कैसे हम सम्मान सहें।।
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें।
जो दान हैं करते कन्या का , हम कैसे उन्हें महान कहें।।
बीबी बनकर एक बेटी ने , जिसका घर गुलज़ार किया।
एक रोज उसी बहशी-ख़ूनी नें , उसका कत्ल-ए-आम किया ।।
जो धन का लोभी अत्याचारी , हम कैसे उसको इंशान कहें ।
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें ।।
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें।
जो दान हैं करते कन्या का , हम कैसे उन्हें महान कहें।।
बचपन में जिसकी किलकारी , जीवन संगीत सुनाती थी ।
बड़ी हुई तो माँ बनकर , नवजीवन है उपजाया जिसनें ।।
जिसनें दादी-नानी बनकर , नित लोरी नई सुनाई हैं ।
इतनी जिम्मेदार है नारी , क्यों न उसका सम्मान करें ।।
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें।
जो दान हैं करते कन्या का , हम कैसे उन्हें महान कहें।।
शूद्र दलित और नारी हैं , कहते हैं पुराण अछूत इन्हें ।
इनकी रचना करने वाला , क्यों मंदिर में विश्राम करे ।।
जिसके दर पर दलितों ने , है सदियों से अपमान सहा ।
उस पत्थर की मूरत को , अब कैसे हम भगवान् कहें ।।
बेटी है कोई वस्तु नही है , हम कैसे उसका अपमान सहें।
जो दान हैं करते कन्या का , हम कैसे उन्हें महान कहें।।
( भरस्टाचार )
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
हमारे दिल कि हर धड़कन सुनाती राग जो भी है ,
जुबां जो भी उगलती है वो भरस्टाचार ही तो है ।।
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
जड़ें जिसकी है जीवन ढूंढता फिरता ,
नही खुलता है जिसका भेद भरस्टाचार ही तो है ।
हाँ भृस्ताचारियों के बोल हमको भी मधुर लगते ,
निगल जाता जो निर्बल को वो भरस्टाचार ही तो है ।।
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
है जलता आशियाँ जिसका नही कोई ठिकाना है ,
जो आंशू बन के छलका है वो भरस्टाचार ही तो है ।
निवाला छीनकर मुंह से है भूखा कर दिया जिसने ,
हाँ जिसने छीन लीं साँसें वो भरस्टाचार ही तो है ।।
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
हाँ भृस्ताचारियों ने पाल रक्खे खूब दीमक हैं ,
चबा जाता जो दस्तावेज भरस्टाचार ही तो है ।
नही मिलता समय पर न्याय हाय दीन दुखियों को ,
जो न्यायालय का मुखिया है वो भरस्टाचार ही तो है ।।
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
गुरू जिसको है ईस्वर से भी ऊंचा कद दिया हमने ,
दबा कर ज्ञान बैठा है वो भरस्टाचार ही तो है ।
है द्रोणाचार्य बन बैठा खुदा जिसको कहा हमनें ,
बयां करते जो पन्ना आज भरस्टाचार ही तो है ।।
जो लहू बनकर रगों में बह रहा हर दिन ,
नही कुछ और हा यारों वो भरस्टाचार ही तो है ।
( शिकवा )
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
तारों से हो मुखातिब ,
मुझसे ख़्वाबों में बात करते हो ।।
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
उनसे मिलते हो हकीकत में ,
मुझको ख़्वाबों में सताते हो ।
और रातपन में जगा करके ,
ना जाने कहाँ जाते हो ।।
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
लुक छुप के बादलों में ,
मुझसे नजरें चुराते हो ।
कभी महीनों में आते हो कभी हफ्तों में आते हो ,
कभी आकरके यादों में न जाने क्यूँ रुलाते हो ।।
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
यादों में तेरे खामोश लब ,
दिल का चैन चुरा लेते हैं ।
लबों के जाम जाने जां ,
मुझको मैकश बना देते हैं ।।
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
है यकीन मेरे दिल को ,
करते हो मोहोब्बत हमसे इसीलिये आते हो ।
तारों को खबर होगी तो रुसवा करेंगे तुमको ,
इसीलिये ख़्वाबों में छुप छुप के मिलने आते हो ।।
ऐ शशी शिकवा है तुमसे ,
दूर हमसे रहते हो तारों से बात करते हो ।
.( हसीन ख्वाब )
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गई थी ,
मोहोब्बत का अक्स उसकी निंगहों में नजर आया ।
कैसे बयां करूँ उस वक्त का नजारा ,
उसके बदन की खुश्बू परवाना बना गई थी ।।
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गई थी -2
दूर से थ देखा मिलने कि तमन्ना थी ,
नजरें मिला के उससे नजदीकियां बढ़ाईं ।
मेरा होश खो गया था जब हाथ उसने थामा ,
दे हाथों में हाथ अपना मुझे अपना बना गई थी ।।
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गई थी -2
बाँहों में लिया उसको जब पास मेरे आई ,
मुझको अदा ये भाई जो दामन छुड़ा लिया था ।
जुल्फें सँवार अपनी वो मुस्करा रही थी ,
जादू भरी अदा दिल में चाहत जगा रही थी ।।
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गई थी -2
याद है अभी भी जब उसके लबों को चूमा ,
आकरके उसने मुझको आगोश में लिया था ।
अल्फ़ाज़ नही मिलते कि तारीफ करूँ उसकी ,
स्पर्स से वो मुझको मैकश बना गई थी ।।
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गई थी -2
सागर से गहरी आँखें प्यार से भरी थीं ,
बन प्यार की वो खुसबू साँसों में बस है ।
हर लम्हा उसके साथ का मैं भूल नही सकता ,
अब यादों के सिवा कुछ नही जब नींद खुल गई है ।।
वो ख्वाब में आके मुझे दीवाना बना गयी थी -2
(मोहब्बत का सॉफ्टवेयर)
( यह काव्य रचना आधुनिक परिवेश में प्रेम करने की विधियों और प्रयोग में आने वाली
प्रेम सामग्रियों का वर्णन करते हुए हास्य का अनुभव कराती है । )
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
बसा के अक्स तुम्हारा इन्हीं निंगहों ने ।-2
बिना प्रिंटर के ही पोस्टर तुम्हारा छाप लिया ।।-2
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
नही था 4G डाटा हमारे दिल में सनम । -2
बिना डाटा के ही यू-ट्यूब पे ख़्वाबों को है अपलोड किया ।।-2
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
तेरे दीदार की दरकार दूर दूर तलक ।-2
हूँ कदरदान तेरे हुस्न का ट्वीटर से भी है ट्वीट किया ।।-2
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
तलाश की है मेरी जान फेसबुक से तेरी ।।-2
बाद वर्षों के आज तुमनें है कन्फर्म किया ।।-2
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
मैं जाने जां हूँ मोहब्बत का एक सॉफ्टवेयर ।-2
आज तुमनें भी दिल के सी पी यू में मुझको इंस्टॉल किया ।।-2
कभी गलियों कभी राहों कभी सड़कों पे इंतज़ार किया ।
तुम्हारे इश्क में दर दर की ख़ाक छान लिया ।।
( नोट बंदी )
वाह रे दादा मोदी क्या कमाल कर दिया,
काले धन वालों को खस्ताहाल कर दिया ।
जेब में सबकी छेद हो गए नोट निकल के सफ़ेद हो गए ,
अब तो पँसौआ ने गंगा स्नान कर लिया,
और हजार ने वैतरणी पार कर लिया।।
वाह रे दादा मोदी क्या कमाल कर दिया।।।
दादा तुमरी महिमा न्यारी-2
लाइन लगाये सब नर नारी।
पिंकी भाभी को को बुलवाया -2
और सोनम गुप्ता को फर्जी बदनाम कर दिया ।।
वाह रे दादा मोदी क्या कमाल कर दिया।।।
नोटों को लग गयी बीमारी,
अब तो सिक्कों की है बारी ।
छीन ली तुमने मुंह से रोटी,
फाड़ के लम्बी चौड़ी धोती , छोटा सा रुमाल कर दिया ।।
वाह रे दादा मोदी क्या कमाल कर दिया।।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)