Aaina Sach nahi bolta - 21 in Hindi Fiction Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | # आइना सच नही बोलता - 21

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# आइना सच नही बोलता - 21

आइना सच नही बोलता

हिंदी कथाकड़ी

शोभा रस्तोगी

सूत्रधार नीलिमा शर्मा

- शोभा रस्तोगी

शिक्षा - एम. ए. [अंग्रेजी-हिंदी ], बी. एड.,शिक्षा विशारद, संगीत प्रभाकर [ तबला ]

सम्प्रति - निगम प्रतिभा विद्यालय, राज नगर, पालम, नई दिल्ली में अध्यापिका

ईमेल -

प्रकाशित कृति -- दिन अपने लिए -- लघुकथा संग्रह [ 2014 ] दिल्ली हिन्दी अकादमी से अनुदान प्राप्त |

प्रकाशित रचनाएँ- हंस, कथादेश, कादम्बिनी,आउट लुक, कल्पान्त, समाज कल्याण पत्रिका, संरचना, हिन्दी जगत, पुष्करिणी, पुष्पगंधा,अविराम, हिंदी चेतना --विश्वा (अमेरिका), इंदु संचेतना( चीन) आदि स्तरीय पत्रिकाओं मेंलघुकथा,कविता,कहानी,
लेख,समीक्षा, पत्र आदि प्रकाशित। 'खिडकियों पर टंगे लोग' लघुकथा संग्रह में लघुकथाएँ संकलित .
कविता अनवरत मे कविताएँ संकलित ।


मातृभारती और प्रतिलिपि पत्र लेखन प्रतियोगिता में
पत्र पुरस्कृत

संशय के जाले तोड़ एक नए विश्वास के साथ भोर जगमगाई थी । दिवित के उठने पर नंदिनी ने संभाल और प्यार से चूम लिया उसे । अब वह उसमे ही सहारा, आस, भरोसा सब कुछ देख रही थी । माँ जो बन गई थी अब । खुद भी तो अभी कच्ची कली ही थी किन्तु आंधी ने उसे इतना झिंझोड़ दिया था कि वह अब हौले हौले गम की चहारदीवारी से बाहर झाँकने लगी थी । अभी भी बार बार बीते दिनो के ताज़ा घाव उसे सिहरन और तकलीफ दे जाते । समरप्रताप का स्वास्थ्य भी सुधार पर था । छह माह की रफ्ता रफ्ता रफ़्तार ने उन्हें अब काफी सम्हाल लिया था ।

उनकी चुनावी बैठकें अब समय पकड़ती जा रही थीं । सुबह से शाम तक उनकी हाजिरी उनके नेता कमाल अरशद साहब जिनकी लोकतांत्रिक पार्टी के वे कर्मठ कार्यकर्ता थे, के कार्यालय में ही लगती । कभी कमाल साहब के साथ, कभी आलाकमान की मांग पर कमाल साहब के कार्यों की जानकारी देना, आदि आदि । कमाल साहब के वे दांये हाथ थे । कितने ही कार्य उन्होंने समरप्रताप पर ही छोड़ रखे थे । पार्टी के अलावा भी समरप्रताप के जन सेवा कार्यों की लम्बी सूची थी जिन्हें कमाल साहब अच्छी भुनाते थे । उनके दूसरे कार्यकर्ता कमाल साहब से अधिक समरप्रताप के आदेश की प्रतीक्षा में हाथ बांधे मिलते ।

हो भी क्यों न , कमाल साहब अपने मातहतों के हितों की अनदेखी कर देते किन्तु समरप्रताप सबके कार्यों को साधते । उनकी परेशानियों को सुन, सुलझाने का कोई रास्ता निकालने का प्रयास करते।

चुनाव कार्य अब गति पकड़ता जा रहा था।लगातार दो बार से विधायक रहे कमाल साहब को लोकतांत्रिक पार्टी हेतु टिकट मिलना लगभग तय ही था।

‘समर प्रताप जी, पार्टी के दस सूत्री एजेंडे का बैनर तो बन गया है न ?’ कमाल साहब की तफ़्तीश जोरों पर थी |

‘ जी, साहब ! बैनर, पोस्टर आदि सब मुकम्मल है |’ समरप्रताप भी कहाँ चूकने वाले थे |

‘और जनाब, मेरे घर के नीचे का हिस्सा भी चुनाव तक पार्टी कार्यों के लिए तैयार है |’

‘हाँ, ये वजा फ़रमाया तुमने | भई, आप तो हमारी पार्टी की शान हो |’ कमाल साहब खुश हो गए थे |

कमाल साहब, समरप्रताप, पूरी पार्टी टीम बाकायदा सभी तरह के पार्टी विकास के ब्योरों,फोटो, तथा पूरे एजेंडे के साथ मुस्तैद थी । पार्टी कार्यालय के साथ समरप्रताप के घर में भी चुनावी रौनक पसर गई थी । सुबह से ही चाय का जो सिलसिला चलता वह गई रात तक लगा रहता । छोटे बड़े लोगों का आना-जाना और अब तो मीटिंग भी उन्ही की घर में होने लगी। खातिरदारी में तो समरप्रताप पहले भी पीछे न थे, अब तो दिल खोल कर इस कार्य पर खर्च करने लगे। पार्टी के बैनर में कमाल साहब के साथ उनका नाम व फोटो भी चिन्हित था ।

क्षेत्र की जनता समरप्रताप के जन सेवा सम्बन्धी कार्यों से पहले भी भली भांति परिचित थी ।अनाथालय,स्कूल, मंदिर, मदरसे,अन्य स्थल, आश्रमों में समय समय पर उनके योगदान अपार थे।विकलांगों के स्कूल में जाकर वे उन बच्चों की विशेष सुविधाओं तथा विशेष शिक्षा का भी लेखाजोखा लेते थे।पार्टी के अलावा खुद भी बहुत दान देते थे।पार्टी भी उनके कार्यों की सराहना करती थी । पैतृक संपत्ति का खूब जतन से भले कार्यों में उपयोग करना उन्हें भलीभांति आता था ।उ

नकी दिनचर्या समाज और विशेष रूप से अब चुनावी हो गई थी । दिवित को भी अब वे कम समय दे पाते थे । किन्तु एक बार सुबह उठते ही उसे जरूर पुचकारते । नंदिनी यह सब बड़े अचरज से देखती । उसके मायके में रौबदार जमीदारी का माहौल था । जहाँ दबाना शब्द ही अपने पूरे अर्थ में मौजूद होता था । अनेक मनाहियों के बीच वह बड़ी हुई थी । यहाँ काफी खुला पाती थी । अमिता तो उसका खूब ध्यान रखती ।

समरप्रताप की कमालसाहब के साथ आलाकमान ऑफिस में मीटिंग थी । दल बलसहित वे पहुँचे और मीटिंग अटेंड की ।आलाकमान द्वारा मांगी रिपोर्ट और पूछे प्रश्नों को समरप्रताप ने पूरे आत्मविश्वास से सामने रखा।कमाल साहब दूसरे तरीकों से टिकट का जुगाड़ करने की लागलपेट में लगे रहे । कई बड़े पदाधिकारियों को अपने पक्ष में करवाने की तमाम जुगत लगाते रहे। पिछले दो बार से कमालसाहब की विधायकी चलरही थी। सो इस बार भी टिकट मिलने पर उनका पुख्ता यकीन था। फिर भीवे कोई कोर कसर छोड़नेकी गलती नहीं करना चाहते थे।सभी तरफ से पूरा दबाब बने ताकि टिकट उनकी पक्की हो ।अपना फ़ार्म भी भरकर समय से उन्होंने जमा करा दिया था। आलाकमान कार्यालय से बाहर आते वक़्त उनके चेहरे पर पसीने की बुँदे चुहचुहा रही थीं, जिन्हे देख समरप्रताप बोले,' कमालसाहब, परेशान न होइए।आप अपनी टिकट पक्की ही जानो।अपनी पार्टी के कार्यों का लेखाजोखा इतने बढ़िया तरीके से दिया है कि आलाकमान काफी प्रभावित लग रहे थे।आपकी टिकट पक्की ही समझो।' कमालसाहब ने पसीना पोंछलिया था ।

शाम तक टिकट परिणाम आना तय था।सबकी नज़र आलाकमान के आदेश की प्रतीक्षा में थी। जैसा कि प्रतीत हो रहा था, लोकतान्त्रिक पार्टी में कमाल साहब को ही टिकट मिलेगा। किन्तु घोर आश्चर्य ! इस दफ़ा हाईकमान ने समरप्रतापचौधरी को टिकट आवंटित किया । सब भौंचक्के थे। समर को दुःख था कि उनके नेता को न देकर टिकिट उन्हें दी। कमालसाहब तो बहुत रोष में थे।बाक़ी सब कार्यकर्ता अंदर ही अंदर ख़ुशी मना रहे थे।किन्तु समरप्रताप ने त्वरित मीटिंग बुलवाई जिसमे उन्होंने कमाल साहब के विरुद्ध न जाने की बात कही। कमाल साहब अबकुछ न कह सके। समरप्रताप ने अपने नेताकमाल साहब की जगह मिली टिकट पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, जबकि हाईकमान ने समरप्रताप को ही चुना।बड़ी विकट स्थिति बन गई। समरप्रताप पसोपेश में घिरे थे | कोई निर्णय लेते नहीं बन रहा था । इधर समरप्रताप खुद को अपराधी मान रहे थे ।उधर कमाल साहब चाहे कित्ताभी नाराज हो लें किन्तुटिकट तो अब उनके हाथसे जा चुकी थी । खूब दौड़धूप की उन्होने । आलाअफसरों को फोन पे फोन लगाए । बड़े नेताओं सेबात की । खुद समरप्रतापसे कहलवाया कि टिकटउन्हें नहीं बल्कि उनकेनेता कमाल साहब को हीदिया जाए । लेकिननिर्णय तो लिया जा चुकाथा । खूब देख भाल कर,जांच परख कर समरप्रताप की जन सेवासम्बन्धी रिपोर्ट पर हीआलाकमान ने अपनाफैसला उनके हक़ में दियाथा । अब गेंद समरप्रतापके पाले में थी जिसे वे खेलना नही चाहते थे किन्तु खेलनी उन्हें ही थी।

खूब मंथन हुआ । सभीपार्टी कार्यकर्ताओं ने हाईकमान के चयन को सर्वमान्य करार दिया,''जैसा कि हाईकमान ने कमाल साहब को टिकट न देकर समरप्रताप को दिया है तो उनकी बात रखी जाए । विधायक की इस टिकट पर समर भाई चुनाव लड़ें । ये हमारा आतंरिक मामला है ।पार्टी तो वही है न । बाहर इसकी बू भी गई तो नुकसान पार्टी का ही होगा।हमारी विरोधी पार्टी इसका फायदा उठासकती है । हम सब समरप्रताप चौधरी के साथ हैं। अपनी पार्टी के साथ हैं। कमाल साहब आपसे गुजारिश है कि पार्टी केहित में आप क्रोध त्याग दें। इस सब में पार्टी की हीभलाई है । हमारी आपसे यही इल्तिजा है ।‘ कमालके सामने पार्टी वर्कर्स की बात मानने के सिवाय कोई चारा न रहा । किन्तु वे अंदर ही अंदर बहुतअपमानित महसूस कररहे थे । समर को तो कुछ नहीं कह सकते थे । समर ने तो कमाल के लिए टिकट और पार्टी दोनोंछोड़ने की बात रख दी थी। मजबूरीवश या यूँ कहेंकि भाग्यवश टिकट परअब समर प्रताप काचुनाव लड़ना तय था ।

रात अमिता और नंदिनी से इसी सब का जिक्र कररहे थे समर प्रताप। नंदिनीको अचरज हो रहा था। उसके पिता ने माँ को कभी इस तरह बाहर की बातों में शामिल न किया ।वे तो पिता के लिए बस घर की देहरी के अंदर की सेविका थीं ।

'क्या सोच रही हो, नंदिनीबिटिया ?'

नंदिनी मायके की सोच में लिपटी थी । ससुर के इसतरह पूछने पर ख़याल का एक टुकड़ा उमड़ आया कि इसी पिता के बेटे नेकभी उसके दर्द की एक चिलक को सहलाने की कोशिश भी न की । और झरझर अश्रुओंका झरना टूट पड़ा उसकी आँखों से । कितने ही ग़मज़दा पल पलकों के नीचे छुपा लो, मन की तहपर नेह के दो बोल उनखुश्क पलों को उघाड़ ही देते हैं । और फिर वह जमीं रेशमी हो जाती हैअपनेपन की मिटटी से ।

'आप लड़िये न चुनाव,पापाजी ।'

' लो अब तो आपकीबिटिया ने भी अपनीमंजूरी दे दी ।' अमिता भी नंदिनी के आंसुओं से भीग गई थी । तीनों के चेहरों पर तनावरहित खिलखिलाहट थी ।

'ठीक है बिटिया जैसी तुम्हारी मर्जी । तुमने तो हमें हर तरह जीत लिया। जहाँ जीतना था वहां से तो बुरी तरह हार बैठा हूँ।' पुन: बेटे की

बेवफाई का दर्द रिस ही गया ।

' पापा, आप बस मुझेआदेश दें ।' अमिता अपलक निहार रही थी नंदिनी को । कितने पुण्यकिये होंगे जो ऐसी बहू पाई । उन घरों की बातें याद आईं जहां सब कुछ हाथ में रखने पर भी बहूको ढेर शिक़वे बने ही रहतेहैं । दोनों हाथो को घुमाते बलैंया ली अमिता ने ।फिर निर्मल हँसी का फव्वारा फूट पड़ा ।

घर मे चुनाव की सरगर्मियां बढ़ गईं । समर ने अब सारा कार्य पार्टीऑफिस के बजाय घर में ही करना शुरू कर दियाथा । पार्टी ऑफिस में वे खुद को कमाल का अपराधी महसूस करतेजबकि उनके समाज सेवा व पार्टी से किए गए जनसेवा के अधिकाधिक कार्यों के मद्देनज़र हीहाईकमान ने उन्हें टिकटदिया था । इन कार्यों मेंकमाल साहब कीअत्यधिक गैरमौजूदगीआलाकमान को रास नआई थी ।

घर के नीचे की मन्जिल पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सुनिश्चित की गई जबकि ऊपरी मंजिल में परिवार - रिश्तेदार आदि थे | इस सबके लिए अधिक टेपेस्ट्री[चादर, कुशन आदि] की आवश्यकता महसूस हुई तो समर ने बाज़ार से लाने का आदेश दिया |

नन्दिनी बोल उठी, ‘पापा,मेरे हाथ का बना इतना सामान यूँ ही तो रखा है | मैं वह सब निकाल लेती हूँ |बाज़ार से खरीदने की कोई जरुरत नहीं |’

उसने सुन्दर, मनभावन,रंगबिरंगी चादरें, कुशन कवर, नाना तरह के तौलिएआदि अन्य इसी तरह की घर में उपयोग होने वाली, अपने हाथ से बनाई सामग्री का पिटारा खोल दिया | कितने समय से छुपी नन्दिनी के हाथ की कलाकारी आज उजागर हो रही थी |नन्दिनी के हाथों से फ़िसलकर जादू बेड्शीट,कुशन, कलात्मक पेंटिंग्स पर छा गया था | अभी तक सब कुछ बन्द था बक्से मे |अमिता ने बहू की एक चीज भी न निकाली थी | सभी हैरत में थे |

‘वाह, नन्दिनि भाभी !कितना बढिया काम किया है, तुमने |’

छोटी ननद नीतू ने हुलसते हुए कहा

‘ भई वाह, नन्दिनी ! कमाल है | घर की ऊपरी मंजिल में तो इन सब से ही काम चल जाएगा | नीचे के लिए टेन्ट वाले को पापा ने ऑर्डर कर ही रखा है |’

बड़ी ननद मीतू के स्वर में भी नन्दिनी के लिए विश्वास झलक रहा था |

सब के प्यार से नन्दिनि फ़ूली न समा रही थी | सब उसके हुनर को नेह दुलार दे रहे थे|

आमोद जी भी वहीं थे |बोल उठे,’ बिटिया, आपके हाथों के हुनर ने कमाल कर दिया । इतनी सुन्दर चादरें….और अब एक और कमाल हो जाए | आपके कुशल हाथों की बढ़िया सी चाय का अरमान है |’

‘अरे वाह अंकल जी ! अभी लाती हूँ |’ कहकर रसोई की ओर लौट पड़ी नंदिनी । नंदिनी को चहकता देख समर और अमिता भी चहक रहे थे | उनकी आँखों का पानी रुका नहीं और बस फिसल पड़ा ।

‘काहे दुखी होते हो चौधरी साब, बिटिया बहुत होनहार है | सब संभाल लेगी |’

‘यही तो आमोद, ऐसे बच्चे की मेरे ही हाथों तकदीर बिगड़नी थी । उसके साथ मेरे ही घर में नाइंसाफी होनी थी | खुद को ताउम्र खतावार मानता रहूँगा |’

‘ न न न चौधरी साब, ये सब तो ऊपरवाले के खेले हैं । आप कोई कमी रखो उसके लाड में और ये भाभीजी, कहीं से न लगती कि इसकी माँ न हैं । चलो अब मन भारी न करो । आंसू पोंछ लो । बिटिया आती होगी । आपने यूँ उदास देखेगी तो चोट खा जाएगी ।

' सही कहते हो आमोद,बहुत भाग्यशाली हूँ ऐसी बेटी पाके ।

चाय बनाती नंदिनी को आज अपार सुख मिल रहा था । उसके हुनर को, बनाए चित्र को इतनी तवज्जो । कभी उसके अपने घर में भी न मिली । उसकी कला को परवान न चढ़ने दिया । कभी पेंटिंग बनाती और कोई देख लेता तो डाँट पड़ती| ‘ ये भले घर की छोरियों के काम न हैं ।‘ ... चाय खौल गई थी | टी पैन से बाहर गिरने लगी । उसने संभाला चाय को और खुद को ।

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हिंदी कथाकड़ी

शोभा रस्तोगी

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया