Mukti ki Moh katha in Hindi Short Stories by Meenakshi Dikshit books and stories PDF | मुक्ति कि मोह कथा

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मुक्ति कि मोह कथा

मुक्ति की मोह कथा

इस कहानी के पात्र ऐसी जगह पर मिलते हैं जहाँ, भाषा का नहीं अक्षरों का महत्व है. जो भी कहना है, निश्चित अक्षरों में कहना है इसलिए आप एक या अधिक भाषाओँ को भी मिला सकते हैं, और कभी कभी तो अंकों को भी. प्रयास ये होना चाहिए कि कम से कम अक्षरों में अधिक से अधिक बात हो जाये. पात्रों की स्थिति के कारण कहानी की भाषा भी वैसे ही अलग अलग भाषाओं के मिले जुले शब्दों की भाषा है. मैं कहानी सुनाने वाला हूँ, कहानी का पात्र नहीं. प्रयास रहेगा कि मैं इसे सुनाने में पूरी तरह निरपेक्ष रहूँ.

सोशल मीडिया पर ट्विटर के महासागर में एक तरह का “ब्राउनियन मोशन” चलता रहता है. तैरते हुए ट्वीट्स लाइक, रि-ट्वीट, कोट- ट्वीट, टैग- हैश टैग जैसे तमाम तरीकों से एक क्षण के भी बहुत छोटे हिस्से के लिए आपस में टकराकर आगे बढ़ जाते है. इन टकराहटों के पीछे कुछ जाने -अनजाने, परिचित-अपरिचित ट्विटर हैंडल होते हैं. इस बात को यूँ भी कह कह सकते हैं कि वास्तव में यहाँ तमाम “ट्विटर हैंडल” “ब्राउनियन मोशन” में रहते हैं, आपस में टकराते और नई दिशाओं में चलते हुए. इनमे से ही कोई दो परस्पर अपरिचित ट्विटर हैंडल इस कहानी के पात्र हैं. दोनों में से एक पात्र जो स्त्री है उसका नाम हम कहानी की दृष्टि से “मुक्ति” रख लेते हैं और दूसरा पात्र जो पुरुष है उसका नाम “मोह” रख लेते हैं.

मुक्ति और मोह अपने अपने रूचि के विषयों पर ट्वीट करते, लाइक करते, रि- ट्वीट करते जब तब “ब्राउनियन मोशन” में टकराते और अपनी अपनी दिशाओं में बढ़ जाते, ऐसी ही कुछ टकराहटों के बाद वे एक दूसरे को “फॉलो” करने लगे, अब उनके सारे ट्वीट् एक दूसरे को दिखाई देते थे और ट्विटर के सामान्य व्यवहार की तरह वे एक दूसरे के उन विचारों को आगे बढ़ा देते थे जिनसे वो सहमत होते थे. इसमें कुछ भी विशेष नहीं था क्योंकि ये जगह ऐसी ही है और सब यहाँ ऐसा ही करते हैं.

कहानी यहाँ से आगे बढ़ाने से पहले बता दूं, ये कहानी मुझे मुक्ति ने बतायी थी, मोह ने नहीं इसलिए हो सकता है कुछ बातें एकतरफा हों. लेकिन यहाँ मेरा आग्रह होगा कि किसी बात के एकतरफा होने की जटिलता की जगह भावों के सहज प्रवाह पर ध्यान रखें और कहानी का आनंद लें.

ट्विटर के सामान्य व्यवहार को जीते हुए मुक्ति को न जाने क्यों, ऐसा लगता था कि कई या अधिकांश विषयों पर वे एक जैसा सोचते हैं, लेकिन ऐसे तो बहुत सारे लोग हैं. हम ट्विटर पर जाते ही इसलिए हैं कि अपने जैसी विचारधारा वालों के साथ समय बिता सकें. छोड़ो -दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं डालना किसी एक हैंडल को लेकर.

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री गंभीर रूप से अस्वस्थ थीं, लगभग अंतिम अवस्था. सब कुछ अनिश्चित. मुक्ति इस खबर को ध्यान से फॉलो कर रही थी, शायद मोह भी. मुक्ति ने कार्यालय में काम करते हुए भी एक न्यूज़ चैनल खोल कर मिनी माईज़ कर रखा था और बार-बार अपने डॉक्यूमेंट से नज़र हटाकर उसको देख रही थी. पता नहीं क्यों उसे जयललिता से थोड़ा लगाव सा था. अचानक एक ट्वीट सामने आया, मोह का, उसने मुक्ति को टैग किया था – जयललिता नहीं रहीं. मुक्ति ने उस डॉक्यूमेंट को बंद किया जिस पर काम कर रही थी और एक के बाद एक कई सारे न्यूज़ चैनल देखने लगी. जयललिता की मृत्यु का खंडन आ रहा था. उसे लगा मोह के ट्वीट को कोट करके लिख दे – “समाचार गलत है, कृपया अफवाहों पर ध्यान न दें” लेकिन इतने दिनों से चल रही ब्राउनियन टकराहटों से शायद कुछ अपनापन हो गया था. उसके मन में आया – पता नहीं कौन है – कहीं पत्रकार या ऐसे किसी व्यवसाय से जुड़ा व्यक्ति न हो की इससे उसे परेशानी हो जाये – सीधा सन्देश भेज देती हूँ. मुक्ति ने मोह को पहला सीधा सन्देश भेज दिया – “समाचार पक्का नहीं है, जिन्होंने भी ऐसा कहा है वो माफ़ी मांग रहे हैं”, इसके बाद दोनों के बीच जयललिता और उनकी राजनीति को लेकर काफी सारे सीधे संदेशों का आदान प्रदान हुआ.

जयललिता के वस्तुतः न रहने पर भी दोनों ने सीधे संदेशों में बात की. दोनों उदास थे. मोह को जयललिता से इसलिए लगाव था क्योंकि वो ब्राह्मण थीं जबकि मुक्ति के कारण अलग थे, लेकिन जब उनकी पार्टी ने उन्हें हिन्दू और परम्पराओं का पालन करने वाली अयंगर ब्राह्मण होने के बाद भी अग्नि संस्कार करने के बजाय दफनाने का निर्णय लिया तो दोनों का क्षोभ और गुस्सा एक जैसा था. ऐसे ही किसी सन्देश में मोह ने शायद जयललिता के सन्दर्भ में ही कहा था – “लगाव तो हो ही जाता है”. मोह की ये संवेदनशीलता न जाने क्यों मुक्ति को अच्छी लगी थी.

इसके बाद जब भी वो एक साथ ट्वीटर पर होते सारे सामान्य व्यवहारों के बीच छोटे मोटे सीधे सन्देश भेज कर कुछ न कुछ बात कर लेते. मुक्ति को याद नहीं पड़ता शुरूआती दौर में उसने मोह से कभी, मोह से कोई नितांत व्यक्तिगत प्रश्न किया होगा. हाँ मोह के प्रश्नों का उत्तर वो सरलता से दे देती थी, उसकी जाति क्या है, किस शहर की है और ये भी कि वो खाती क्या है. एक सहज सी दोस्ती जन्म ले रही थी और ये तो दोस्ती के पहले सवाल जवाब और साझीदारियां हैं.

-मैंने आपका शहर देखा है, कुछ दिन पहले आया था - अच्छा है.

-आप ने वो शहर देखा क्या – शाकाहारियों के लिए जन्नत है?

-ओह आप वहां पहले ही जा चुकी हैं. यूँ ही हर दिन कुछ कुछ सन्देश आते जाते रहते थे.

यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि मुक्ति अपने जीवन के बहुत बड़े झंझावत से जूझ रही थी, लगभग दो महीनों से उसने अपने आपको पूरी दुनिया से अलग कर रखा था. बहुत मुश्किलों से नोटबंदी के बाद उसने ट्विटर पर आना शुरू किया था. जिम्मेदारी सा लगता था. राष्ट्र निर्माण का सबसे बड़ा यज्ञ शुरू हो चुका था, उसमे योगदान देना था, मोदी जी के साथ खड़ा होना था लेकिन मन नहीं लगता था. बहुत मुश्किलों से उसने अपने आंसू अपनी पलकों पर जमा लिए थे. वो किसी से भी बात नहीं करती थी. उसे बोलना अच्छा नहीं लगता था वो भीतर ही भीतर हर पल अपने से लड़ती रहती थी ऐसे में बिना बोले सिर्फ छोटे छोटे लिखित संदेशों में होने वाली हल्की फुलकी सहज आत्मीयता और दोस्ती से भरी बातें उसे अच्छी लगने लगी थीं. कुछ नहीं तो “गुड मॉर्निंग’ ही. शायद वो अपने अवसाद से बाहर आकर जीवन से जुड़ने की कोशिश करने लगी थी.

“इंटरनेशनल टी डे” पर मुक्ति ने मोह को चाय की पूरी केतली भेज दी थी – सन्देश में, और क्या. जवाब मिला – “चाय किसी के साथ पीने में मज़ा आता है”,

उत्तर तैयार था – साथ के लिए -बिस्किट, सैंड विच, समोसा, पकौड़े कुछ भी आर्डर कर दो और वो खुद से मंगाना पड़ेगा हम नहीं देंगे.

“यू ब्रैट”.

ब्रैट क्या मलतब?

मतलब बदमाश – किसी के साथ का मतलब होता है किसी इंसान के साथ, और यही वो सन्देश थे जब शायद दोनों को लिखे शब्दों के साथ साथ दो मस्त दोस्तों की शरारत भी दिखाई देने साथ साथ मधुर सी हँसी भी सुनाई थी और शायद वो सच में दोस्त बन गए थे.

वो एक दूसरे के विषय में कुछ भी नहीं जानते थे फिर भी बात करते थे, एक दूसरे को चिढ़ाते थे, झगड़ते थे और जब भी लगता था कुछ गलत हो गया तो माफ़ी मांग लेते थे. इन बातों में बस छोटी मोटी बातें होती थीं जैसे - दोनों में कौन ट्यूबलाइट है और कौन एल.ई.डी – शाकाहार- मांसाहार, ख़बरों का पहले और बाद में जानना , ट्वीट करने में आगे रहना और कुछ नहीं. मुक्ति को तो मोह का नाम तक पता नहीं था.

एक दिन शाकाहार का समर्थन करते करते बात थोड़ी बिगड़ सी गई.

मुक्ति ने गुस्से में कहा – “आई डोंट वांट टू बी पर्सनल”,

उत्तर मिला – वी कान्ट – वी हार्डली नो ईच अदर,

यस – इवेन “आई डोंट नो योर नेम”. और फिर मोह ने तुरंत अपने नाम के साथ साथ शहर भी बता दिया था. कुछ और बातें भी. मुक्ति को कई बार लगता कि मोह कुछ ज्यादा ही बोल देता है –

“आ जाओ – साथ में चाय पीते हैं”,

“अपना चेहरा तो दिखाओ” – पंडिताइन,

“डी पी तक नहीं लगाई है”,

“फेसलेस फीमेल”,

लेकिन मुक्ति इस सबसे असहज होने के बजाय बात को हंस के दूसरी तरफ मोड़ देती नए मजाक के साथ. अपने बड़े और परिपक्व होने की दुहाई देकर.

पता नहीं क्यों और कैसे -एक दिन संदेशों का ये आदान -प्रदान कुछ ज्यादा ही हो गया- उस दिन मुक्ति को शायद ऑफिस में काम कम रहा होगा. परिहास बढ़ते बढ़ते ठीक-ठाक झगड़े में बदल गया. बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे एक दूसरे को चिढ़ाने का खेल खेलते हैं और अंत में मार -पीट पर उतर आते हैं. उसमें बहुत कुछ कड़वा था. तय हुआ -बस सब ख़त्म. अब कोई बात नहीं होगी. लेकिन उस झगड़े में शायद मुक्ति ने ये भाव कहीं मोह के पास छोड़ दिया था कि कुछ तो है जो मुक्ति को उदास रखता है.

दो दिन बीत गए. मुक्ति को लगा – ये ठीक नहीं. मुझे कुछ बुरा लगा तो उसे भी लगा होगा. किसी अजनबी को अपने कारण ठेस क्यों पहुंचाई जाये? उन संदेशों के बिना कुछ खालीपन भी लग रहा था. क्या करे? सॉरी बोलना ही ठीक होगा. किसी अजनबी को नाराज़ होकर कुछ भी कहने का उसे क्या अधिकार है? शुरूआती असमंजस और आत्मसम्मान का हिसाब भूल कर उसने फिर एक सीधा सन्देश भेज दिया - सरल सा “सॉरी”.

पता चला -मोह अस्पताल में है. बुखार कुछ ज्यादा हो गया था. जिस समय सन्देश आया, रात के उस समय तक मुक्ति सोने की कोशिश में रहती थी. पता नहीं ये सच था या नहीं लेकिन मुक्ति को लगा, मोह बीमार है, उसे देर रात तक जागने की आदत है और वो अकेला है, उसे किसी के साथ की, किसी से बात करने की ज़रुरत है. वो उठ गयी. ढेर सारी बातों के साथ – क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ, ये हुआ -ये नहीं हुआ, ये करो ये मत करो. मोह की तरफ से आया एक सन्देश थोड़ा अजीब था – बुखार ही तो है, क्या हुआ? मौत तो खांसी से भी हो जाती है.

-मतलब ?

-कुछ नहीं.

छोटे से सन्नाटे के बाद मोह सहज हो गया. फिर शुरू हमेशा की तरह परिहास,

-मास्टरनी की तरह सवाल पूंछ रही हो, यहीं क्यों नहीं आ जातीं -मेरे सिरहाने?

-यू आर अ नाईस परसन,

-आई लाइक यू. बट आई वांट टू सी यू?

-आई वांट टू सी फेस बिहाइंड दिस नाईस नेम

– आई एम अ सोल नॉट अ फेस. मुक्ति ने हमेशा की तरह अपना जवाब दोहराया.

उस समय भी मोह का बुखार 102 फारेनहाइट था.

अगले दिन उसकी ब्लड रिपोर्ट आनी थी. मुक्ति पता नहीं क्यों कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गयी थी- शायद अपने पिछले अनुभवों के कारण. कार्यालय पहुँचते ही एक-एक कर उसने ढेर सारे सन्देश भेज दिए थे – क्या हुआ? रिपोर्ट आयी? बुखार उतरा? क्या खाया? क्या खाओ? क्या मत खाओ – एकदम किसी डिक्टेटर की तरह बिना सोचे समझे -कि वो मोह के बारे में कुछ भी नहीं जानती और मोह ट्विटर के ब्राउनियन मोशन में उससे टकराने वाला एक ट्विटर हैंडल भर है जिसे शायद उसकी इस अनावश्यक पहरेदारी से दिक्कत हो रही होगी.

सोचती भी कैसे, ऐसा तो कभी मोह ने जाहिर ही नहीं किया था उल्टा और शरारती बातें करता रहता था.

-रिपोर्ट नार्मल है, मैं शाम तक घर चला जाऊंगा.

-थैंक गॉड- इतने ज़रा से बुखार के लिए अस्पताल में भरती हो गए- सुन्दर नर्सेज के साथ समय बिताने के लिए,

फिर बात बढ़ी और शायद अब तक की सबसे गलत दिशा में चली गयी...........

तुम्हारे दर्द की वज़ह क्या है? मुझे अपना दोस्त समझकर बता सकती हो....मुक्ति चाहती तो इस बार भी हंसकर -परिहास करके आगे बढ़ जाती ...लेकिन पता नहीं क्या हुआ .....उसकी पलकें अपने ऊपर ठिठके हुए आंसुओं का सैलाब उठाकर थक चुकी थीं या मोह के सन्देश में इतना अपनापन था कि वो संभल नहीं सकी......सब कुछ बताती चली गई ...बिना रुके.....

ये ठीक नहीं हुआ. ये ठीक नहीं था.

ये सच है कि मुक्ति बहुत रोना चाहती थी- एक नीरव- निरपेक्ष जगह पर, जहाँ कोई उसके मज़बूत वजूद के दूसरे पक्ष को देखने वाला न हो, लेकिन ये जगह गलत हो गयी.

मुक्ति कैसे किसी अजनबी पर अपने दर्द को ढोने का बोझ डाल सकती थी. अपने को समझदार और परिपक्व कहने वाली, चट्टान सी इस लड़की ने गजब की बेवकूफी करी थी और अपनी दर्द की पोटली में आगे कुछ और जोड़ने का प्रबंध कर लिया था.

अगले दिन से उसे अपने संदेशों के जवाब मिलने बंद हो गये थे. उसे समझ जाना चाहिए था. लेकिन उसकी समझदारी ने उसका साथ नहीं दिया और एक उलाहने के बाद जो सन्देश वापस आया – उसने मुक्ति को धरती पर ला पटका था.

आप जानना चाहते होंगे क्या था उस सन्देश में लेकिन नहीं, कहानी सुनाने वाले के तौर पर मैं वो सन्देश आपको नहीं सुना सकता. वो मुक्ति का बेहद निजी है. उसे रात -रात भर जाग कर मुक्ति कई-कई तरीकों से विश्लेषित करती रहती है लेकिन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाती, वास्तव में उसका मतलब क्या था -ये तो केवल मोह ही बता सकता था.

कई अधजगी रातों में मुक्ति ने मोह के नए सन्देश की प्रतीक्षा की थी, खुले और दर्द भरे मन से...लेकिन कुछ आया नहीं....सिवाय उदासी के.

दोनों ट्वीटर हैंडल आज भी ट्वीटर के महासागर में ब्राउनियन मोशन में रहते हैं. दिख जाते हैं एक दूसरे को, मुक्ति आज भी टकराकर निकलती है, पहले की तरह सहज भाव से लेकिन मोह इस टकराहट से बच कर निकलता है और मोह के साथ खोई हर टकराहट मुक्ति को एक चोट दे जाती है.

किसी किताब में एक बार पढ़ा था, इस ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाली सभी आत्माओं की कुछ साथी आत्माएं होती हैं और किसी न किसी कारण से किसी खास बिंदु पर एक दूसरे से टकराती हैं, कुछ पूर्वजन्मो के सम्बन्धों के कारण.