Deh ke dayre - 24 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | देह के दायरे - 24

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देह के दायरे - 24

देह के दायरे

भाग - चौबीस

एकाएक पूजा चीखकर उठ बैठी | रात-भर जागने के कारण प्रातः ही कुर्सी पर बैठे-बैठे उसकी आँख लग गयी थी |

“क्या हुआ पूजा?” पास बैठे पंकज ने पूछा |

बहुत बुरा स्वपन था पंकज |” पूजा की आँखें खिड़की की राह आते सूर्य के प्रकाश को ताकने लगीं |

“क्या स्वप्न था?”

“चारों ओर गहरा अन्धकार था पंकज | तेज हवाएँ चल रही थीं | मैं अपने हाथ में दीपक लिए सुनसान राह पर बढ़ी जा रही थी | दीपक की लौ तेज हवा में थरथरा रही थी | मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की मगर तेज हवा के एक झोंके ने उसे बुझा दिया | मेरी राह अन्धकार से भर गयी | मैं घबराकर भागने लगी परन्तु पाँव में कुछ उलझने से गिर पड़ी और भय से मेरी चीख निकल गयी |” स्वप्न का भय अब भी पूजा के मुख पर विधमान था |

“दुःख और चिन्ता में आदमी को बुरे सपने आते ही हैं | मैं तुम्हारे लिए बाहर से चाय लेकर आता हूँ |” पंकज ने कहा |

“करुणा कहाँ गयी?” पूजा ने पूछा |

“वह अभी-अभी उठकर गयी है | कह रही थी कि शीघ्र ही लौट आऊँगी |”

पूजा की दृष्टि सामने पड़ी | घड़ी में ग्यारह बज रहे थे | उसने फिर अपनी पीठ कुर्सी के सहारे टिका ली |

“चिट्ठी...|” तभी डाकिए ने दो लिफाफे फेंकते हुए कहा |

पंकज ने आगे बढ़कर दोनों पत्रों को उठाया | एक पत्र पूजा के और दूसरा उसके नाम था | लिखावट देखकर ही वह पहचान गया कि दोनों पत्र देव बाबू के हैं | उसने पूजा का पत्र चुपचाप उसकी ओर बढ़ा दिया |

“किसके हैं?”

“देव बाबू के हैं |”

“उनके पत्र हैं?” आश्चर्य से पूजा ने कहा और तेजी से हाथ बढ़ाकर पत्र ले लिया |

“पढ़ो...शायद कुछ समाचार मिले |” पंकज ने कहा मगर पूजा इससे पहले ही लिफाफा फाड़कर पत्र पढ़ने लगी थी |

“पूजा,

शायद तुन मुझे कभी क्षमा नहीं करोगी | मैंने तुम्हें बहुत प्रताड़ना दी है, तुम्हारा अपमान भी किया है | मेरा अपराध बहुत बड़ा है | मैंने तुम्हें बहुत यातनाएँ दी हैं | पंकज तुमसे बहुत प्यार करता है | मेरे घर छोड़ने का यह कारण नहीं है कि पंकज तुम्हें चाहता है अपितु यह तो घर छोड़ते हुए मेरी निशिचन्तता का कारण है | शायद तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो परन्तु मैं अपुरुष हो चुका था पूजा | उस दिन जब मैं मित्र के विवाह में गया तो वहीँ एक दुर्घटना में सब कुछ घटित हो गया |

अब शायद तुम मेरे उस सारे व्यवहार का कारण समझ सको जो पिछ्ले कई महीनों से मैं तुम्हारे साथ करता आया हूँ | मैं तुम्हारे योग्य नहीं रह गया था पूजा, और चाहता था कि मेरे व्यवहार से तुम मुझसे घृणा करने लगो | मेरा तो जीवन ही व्यर्थ हो गया था पूजा |

अन्तिम समय एक माँग कर रहा हूँ | एक और उपकार मुझपर करना-मुझे तलाश करने में अपना समय नष्ट न करना | मैं लौटने के लिए नहीं जा रहा हूँ | मैं किसी शहर या कस्बे में नहीं अपितु दूर कहीं हिमालय की तराइयों में खो जाना चाहता हूँ | तुम पंकज को अपना लेना पूजा, इससे मुझे चैन मिलेगा |

अन्तिम बार फिर तुम्हारे भावी जीवन की लिए शुभकामनाएँ करता हूँ |

एक अभागा,

देव बाबू”

इधर पंकज भी साँस रोके अपना पत्र पढ़ रहा था |

“भाई पंकज,

मैं जा रहा हूँ | मैं जानता हूँ कि तुम पूजा को बहुत अधिक प्यार करते हो मैं उसके योग्य नहीं रह गया हूँ पंकज, इसीलिए उसे तुम्हारे हाथों में सौंपकर जा रहा हूँ | उसे दिन स्टूडियो में पूजा का अधुरा चित्र देखकर मैंने अनुमान लगा लिया था कि तुम पूजा को बहुत चाहते हो | उसी समय मैंने एक निश्चय कर लिया था | तुम्हें अपने यहाँ बुलाकर ठहराने का भी मेरा यही उद्देश्य था कि तुम और पूजा एक-दुसरे के और निकट आ सको | आज की घटना से मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे चले जाने पर पूजा तुम्हें अवश्य अपना लेगी |

मैंने उसे बहुत दुःख दिए हैं पंकज | तुम उसे इतनी खुशी देना मेरे भाई, कि वह उसे दुखों को भूल जाए | मैं कई जन्मों तक तुम्हारा ऋणी रहूँगा | उठो, सम्भाल लो पूजा को...संकोच न करो |

तुम्हारा,

देव बाबू”

“पूजा...|” पत्र से दृष्टि हटाकर पंकज ने पूजा के मुँह की ओर देखा |

पूजा ने चीखकर हथेलियों में अपना मुँह छुपा लिया और फूट-फूटकर रोने लगी | पंकज से यह सब नहीं देखा गया और वह उठकर भरी कदमों से अपने कमरे में चला गया |

अभी निकट सम्बन्धियों और जान-पहचान वालों को तार देकर देव बाबू के विषय में पूछा गया मगर कहीं से कोई उत्तर न आया | अनेक रिश्तेदार सूचना पाकर वहाँ आने लगे |

पुलिस स्टेशन पर भी रिपोर्ट लिखवाई गयी मगर व्यर्थ | सभी अपना अनुमान लगा रहे थे मगर कोई एक-दूसरे के अनुमान से सन्तुष्ट नहीं हो रहा था | अभी देव बाबू के घर छोड़ने का कारण जानना चाहते थे मगर पूजा और पंकज के सिवाय कोई कुछ नहीं जानता था | वे दोनों ही खामोश हो गए थे |

माँ से लिपटकर पूजा बहुत देर तक रोती रही थी | सभी उससे अनेकों प्रश्न पूछना चाह रहे थे मगर वह तो जैसे पत्थर हो गयी थी | वह किसी के प्रश्न को कोई उत्तर न दे सकी |

तीन दिन से पूजा से कुछ नहीं खाया था | आज माँ ने आग्रह करके थोड़ा-सा गर्म दूध उसे पिला दिया |

एक-एक करके सभी वापस लौट गए | माँ ने उसे पास बैठाकर कहा, “बेटी, अब तू हमारे साथ चल | हम कब तक यहाँ रहेंगे?”

“नहीं माँ, आप जाओ | मैं यहीं रहूँगी |” पूजा का उत्तर था |

“यहाँ अकेली कैसे रहोगी बेटी? क्या करोगी यहाँ?” माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिरते हुए कहा |

“मैं यहाँ रहकर उनकी प्रतीक्षा करूँगी माँ “

“न जाने वह कब लौटें?”

“जब भी लौटें! मैं पढ़ी-लिखी हूँ, नौकरी मिल ही जाएगी |”

“जिद न करो बेटी |”

“माँ, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करने दो |”

“जैसी तेरी इच्छा!” माँ को उसके हठ के समक्ष झुकना ही पड़ा |

अगले दिन पूजा स्कूल के मैनेजर से मिली | उन्होंने उसकी सारी कहानी सुनकर उसे देव बाबू के स्थान पर अध्यापिका नियुक्त कर लिया |

पूजा ने स्कूल जाना आरम्भ कर दिया | माँ-बाप अपने घर चले गए थे | जीवन धीरे-धीरे सामान्य गति से चलने लगा | पंकज के साथ ही साथ अब करुणा भी उसके पास रहने लगी थी |