Sur - 5 in Hindi Fiction Stories by Jhanvi chopda books and stories PDF | सुर - 5

Featured Books
  • किट्टी पार्टी

    "सुनो, तुम आज खाना जल्दी खा लेना, आज घर में किट्टी पार्टी है...

  • Thursty Crow

     यह एक गर्म गर्मी का दिन था। एक प्यासा कौआ पानी की तलाश में...

  • राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 14

    उसी समय विभीषण दरबार मे चले आये"यह दूत है।औऱ दूत की हत्या नि...

  • आई कैन सी यू - 36

    अब तक हम ने पढ़ा के लूसी और रोवन की शादी की पहली रात थी और क...

  • Love Contract - 24

    अगले दिन अदिति किचेन का सारा काम समेट कर .... सोचा आज रिवान...

Categories
Share

सुर - 5

"सुर"

CHAPTER-05

A Story By

JHANVI CHOPDA

Disclaimer

ALL CHARECTERS AND EVENT DEPICTED IN THIS STORY IS FICTITIOUS.

ANY SIMILARITY ANY PERSON LIVING OR DEAD IS MEARLY COINCIDENCE.

इस वार्ता के सभी पात्र काल्पनिक है,और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई संबध नहीं है | हमारा मुख्य उदेश्य हमारे वांचनमित्रो को मनोंरजन करना है |

*

आगे आपने देखा,

परवेज़ तारा को किडनैप कर के शतक बनाता है। तारा के बारे में बात कर रहे जुबेर, अमोल और अयान को सुन कर उसे याद आता है, कि ये वही लड़की थी जिसकी गाली उसने पहले सुनी थी। परवेज़ को तारा की ओर भागता हुआ देख कर सबको लगा की, इसी लड़की के लिए कविता लिखी जा रही थी। पर बात कुछ ओर ही निकली...

अब आगे,

'मुझे कोई कुछ बताएगा कि, यहाँ हो क्या रहा है !' _जुबेर ने अदब से पूछा।

'बस, एक बार ये होश में आ जाए...फिर तुजे सब कुछ बताता हूँ।' _परवेज़ ने बेचेन हो कर कहा।

'लेकिन गाली इसने दी, और तू ढूंढ किसी ओर को रहा है...मेरे दिमाग की पटरियाँ ना, फट चुकी है ! अब इसपे विचारों की ट्रेन नहीं चल सकती...चक्कर क्या है, ये !?'

'ये चक्कर है उन "सुरों" का ! जब हम इसका लोकेशन जानने पनवेल गए थे, पुलिस की वजह से हमें भागना पड़ा। उस वख्त हम सब गाड़ी में बैठे थे। पीछे से किसीके चिल्लाने की आवाज़ आई, "हरामखोरो...!" मैंने पीछे मुड़ कर देखा लेकिन उस भगदड़ में मुझे कुछ साफ साफ दिखाई नहीं दिया...पर मैंने जो सुर सुने उसे मैं सुनता ही रह गया...!'

'सुर...सुर...सुर...हद हो गई इस सुर की ! इसकी माँ की तो.....! है किसके ये सुर !?'

'घुँघरू के...!'

'क्या !!! तो तेरा दिल इस घुँघरू के सुर पे आ गया !?'

'नहीं, उसे पहनने वाली पे...'

'तो उसका इससे क्या वास्ता ?' _जुबेर ने तारा की ओर इशारा करते हुए पूछा।

'वो लड़की इसीका हाथ पकड़ कर भाग रही थी...!'

'मुग़ले-आज़म देख कर आया है, क्या ! कैसी बेहूदा बाते कर रहा है ! और घुँघरू के साथ माइक लगा रखा था क्या, उस छम्मक-छल्लो ने ! जो उतनी भीड़ में भी तुजे उसकी आवाज सुनाई दी !'

'यार, जुबेर ! वो आवाज़ आम नहीं है। वो सुर मैंने कई बार सुने है...और हर बार ऐसा लगा की, कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ हूँ मैं इनसे... कुछ तो ऐसा है जो मुझे खिंच रहा है, अपनी ओर !'

जुबेर ने परवेज़ का हाथ पकड़ा और उसे घसीट कर घर के गार्डन में ले गया। उसने परवेज़ के हाथ में बन्दुक रखते हुए कहा_

'जिस उम्र में बच्चो को ये नहीं पता होता कि, इसे तमंचा कहते है, उस उम्र में दादू ने तुजे ये थामना सिखाया। देख रहा है, इस घर को ! एक एक ईंट दादू ने अपने हाथों से जोड़ी है। और मकान चाहे कितनी भी मज़बूती से बनाया गया हो, उसकी नीव हिलते ही, वो गिर पड़ता है। ये लड़की एक भूकंप बन कर आई है, इस घर की नींव यानि की तुजे हिलाने ! तेरा एक गलत कदम इस घर को तोड़ देंगा। अब भी वख्त है, लौट आ !'

'आगे बढ़ने वाले कदम पीछे मुड़ कर नहीं देखा करते, जुबेर !'

'लेकिन इतना अँधा होकर भी मत चल की तू गड्ढे में गिर जाए।'

'गिर कर संभलने की ताकत मैं खुद रखता हूँ, मेरे दोस्त !'

'लेकिन क्या जरूरत है, ऐसे प्यार की ? जब की हम एक छत के नीचे इतने प्यार से रह रहे है।'

'इंशान एक छत के नीचे साथ रहते जरूर है, लेकिन जीते अकेले ही है। तुम सब भी इतने ही अकेले हो लेकिन तुम्हारे लिए दादू का डर इस तन्हाई से कई ज्यादा खतरनाक है !'

जुबेर आगे कुछ नहीं बोल पाया...शायद वो समज गया था, कि परवेज़ को अब उसकी दोस्ती भी नहीं रोक पाएगी। रात हो चुकी थी लेकिन परवेज़ फिर भी घर के बाहर बैठ कर ये सोच रहा था कि आखिर क्या रिश्ता है उसका इन सुरों से ! उतने में घर में टूट-फुट होने की आवाज आई...और धीरे धीरे वो गोलियों की आवाज में बदल गई ! परवेज़ दौड़ कर घर के मेईन गेट की ओर गया। उसने देखा की राका के आदमी घर में घुस चुके थे। मारामारी के बीच में परवेज़ को आता देखकर सब खड़े के खड़े रह गए।

'अमोल, फ़ोन कर के तीन- चार एम्बुलेंस मंगवाओ भई !'

'क्यों, भाई ?'

'अतिथि देवो भवः, ये संस्कृति है ! और फिर ये महेमान तो बिन बुलाए दादू के घर पधारे है, खातेरदारी तो पूरी होनी चाहिए !'

परवेज़ की ये बात सुनते ही फिर से मारामारी सुरु हो गई...बिच में से कोई बोला,

'हमें मार कर क्या होगा, साले ! बचा सकता है तो अपने १००वे शिकार को बचा !'

ये सुनते ही परवेज़ जुबेर के कमरे की ओर भागा... वहाँ तारा नहीं थी, उसने पुरे घर में छान मारा लेकिन वो नहीं मिली। वो रफ़्तार से घर के पीछे वाले गेट की ओर गया...उसने देखा की कोई तारा को छुड़ा कर ले जा रहा था। बड़ी ही तेज़ी से उसने तारा को गेट के बाहर खड़ी कार में बिठाया और परवेज़ उसे रोक नहीं पाया लेकिन वो पीछे से उस आदमी को पकड़ने में कामयाब रहा। परवेज़ ने उसकी पीठ पे जोर का मुक्का मारा,

'बोल, कमीने कौन है तू ?'

'बॉडीगॉर्ड हूँ, तारा का ! दिख नहीं रहा, भेड़िये !' _इतना बोलते तो उसने परवेज़ के पेट पर जोर की लात मारी।

'भेड़िया कौन ?'

'तू ! भेड़िये ही पीछे से वार करते है।'

दोनों के बीच में पुरे तीन मिनट तक ये जंग चली, परवेज़ ने इस बार उसके मुंह पर मुक्का मार कर उसे जमीन पर गिराया।

जैसे ही वो गिरा की उसकी कैप निकल कर कहिं दूर जा गिरी...और परवेज़ उसे देख कर दंग रह गया। क्योंकि वो कोई लड़का नहीं, लड़की थी।

हवाओं में लहराते वो काले बाल...परवेज़ की ओर इतरा कर देखने वाली आँखे...मुँह पर पड़ी थप्पड़ से लाल हुए वो गाल...दर्द से कराह रही वो जुबान...खूबसूरत होठों से गिरने वाली खून की बूंद !!!

परवेज़ पुरे पांच मिनट तक इस खूबसूरती को निहारता रहा...।

'ऐसे कौन मारता है, हाथ है कि हथौड़ा !' _खून को पोछते हुए उसने कहा।

'कलेक्टर ने अपने तारे को सँभालने के लिए चाँद ढूंढ निकाला !!!' _परवेज़ बड़बड़ाया।

'क्या...!?'

'कुछ नहीं, कलेक्टर को कोई और बॉडीगार्ड नहीं मिला क्या ? जो एक लड़की को भेज दिया !'

'तुम लड़कियों को समझते क्या हो, हम सब कुछ कर सकती है !'

'एक थप्पड़ तो संभाल नहीँ पाई और आई बड़ी कुछ भी करने वाली।'

'सँभालने को तो मैं कलेक्टर की बेटी को संभाल लूँ, तो फिर तुम क्या चीज़ हो !' _उसने परवेज़ का शर्ट पकड़ कर कहा।

'देखो, तुम दूर रहो मुझसे ! मैं लड़कियों पे हाथ नहीं उठाता, ये कानून है हमारा।'

'सारे कानूनों को तोड़ कर तुम लोग गैंगस्टर बनते हो, तुम्हें कौनसे कानून लागू पड़ते है ! किसने बनाए ? उस बुड्ढे ने !?'

'दादू नाम है, उनका ! तमीज़ से...!'

'हाँ, वही। दिमाग की बत्ती गुल हो गई है, उनकी ! भजन-कीर्तन करने की उम्र में तमंचे का ज्ञान देते है।'

'बस, एकदम चुप ! दादू के खिलाफ एक लब्ज़ नहीं सुनूँगा मैं ! चल निकल यहाँ से...और हाँ, आज के बाद कभी मेरे सामने मत आना...वार्ना मार डालूँगा..!'

'हाँ, जा रही हूँ। वैसे भी यहाँ रुकने का शोख किसे है !'

To be continued....

Guys, according to ur demands, I can't released whole story at a time. And extremely sorry for late release of chapter 5. Next time definitely ur requirements are going to fulfilled. Thanks for your response. Keep reading, rating and reviewing.

Email id : janvichopda8369@gmail.com

Facebook page : jhanvi chopda (writingessence)

Instagram id : jhanvi_chopda