Deh ke dayre -21 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | देह के दायरे - 21

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देह के दायरे - 21

देह के दायरे

भाग - इक्कीस

आज प्रातः से ही तेज वर्षा हो रही थी | दोपहर हो चुकी थी मगर बाहर झाँकने से समय का पता नहीं चलता था | गहरे काले बादलों के बीच चमकती दामिनी, तेज हवा...जैसे आसमान फट पड़ेगा | यह मौसम की सबसे तेज वर्षा थी |

कुछ देर तो देव बाबू ने वर्षा रुकने की प्रतीक्षा की मगर फिर छाता उठाकर स्कूल की तरफ चल दिए | पूजा कमरे में बैठी खिड़की की राह बाहर की ओर दृष्टि जमाए वर्षा की बूँदों को देख रही थी |

पंकज ने नीचे उतरकर आने से उसका ध्यान टूटा |

“आज स्टूडियो नहीं जाओगे क्या?” पूजा ने पूछा |

“ऐसे मौसम में कौन ग्राहक आएगा?”

“ग्राहक और मौत बेवक्त भी आ जाते हैं |”

“हम कलाकार अपनी मर्जी के मालिक होते हैं पूजा | किसी की नौकरी तो है नहीं जो जाना ही पड़े |” कहते हुए पंकज ने एक सिगरेट अपने होंठों में दबाकर सुलगा ली और वहाँ पड़ी कुर्सी में धँस गया |

“शतरंज खेलोगे?” पूजा ने प्रस्ताव रखा |

“मन नहीं है |”

“तो क्या इच्छा है?”

“मानोगी?”

“बताओ तो |”

“नहीं, तुम्हें कष्ट होगा |” अप्रत्यक्ष रूप से पंकज ने पूजा को तैयार करने के लिए कहा |

“कष्ट की क्या बात है, तुम कहो तो |”

“मैं तुम्हारी एक तसवीर बनाना-चाहता हूँ | वर्षा की बौछारों में भीगती पूजा की तसवीर, जिसकी जुल्फों से निकलकर मोतियों की लड़ियाँ-सी पानी की बूँदें गालों पर बह रही हों | सच, बहुत ही सुन्दर चित्र बनेगा | मैं इस चित्र में उस दिन वाले चेहरे की उदासी खत्म कर देना चाहता हूँ |”

“मुझे क्या करना होगा?”

“जब तक चित्र बने, स्टूल लेकर छत पर बारिश में बैठना होगा |”

“कहीं बीमार पड़ गयी तो?” मुसकराते हुए पूजा ने कहा |

“इसका उत्तरदायित्व मेरा रहा |”

“तो ठीक है, चलो |” पूजा उठकर पंकज के पीछे-पीछे छत पर आ गयी | पंकज के कमरे के सामने वह खुली छत पर स्टूल लेकर बैठ गयी और पंकज ने कमरे में स्टैंड पर कैनवास लगा लिया |

कैनवास पर लगे कागज पर पंकज का ब्रुश चलने लगा और उभरने लगी वर्षा में भीगती पूजा की तसवीर |

वर्षा की बूँदों ने पूजा को पूरी तरह भिगो दिया था | बारीक़ रेशमी साड़ी शरीर से चिपक गयी थी जिससे उसके अंगों का सौंदर्य उभर आया था | वह ठण्ड से कभी-कभी सिहर उठती थी और उसके शरीर में कंपकंपी-सी छुट जाती थी |

पंकज पूजा को देखे जा रहा था | उसकी दृष्टि उसपर से हट ही नहीं रही थी | ऐसे मौसम में भी उसके माथे पर पसीना छलक आया था | उसका हाथ कागज पर ब्रुश नहीं चला पा रहा था | उसे लग रहा था जैसे आज वह चित्र नहीं बना पाएगा | परन्तु फिर भी वह स्टैंड के पास खड़ा कागज पर ब्रुश फिराने का नाटक कर रहा था | वह नहीं चाहता था कि पूजा का सौंदर्य उसकी आँखों से विमुख हो जाए |

“कितनी देर और लगेगी पंकज?” पूजा ने पूछा |

“इतनी ही देर और बैठना होगा |” पंकज ने कहा |

वहाँ बैठी पूजा थक गयी थी | वह तुनककर खड़ी हो गयी और बोली, “शेष फिर बना लेना पंकज, मुझसे और नहीं बैठा जाता |”

पंकज भी ब्रुश को वहीँ स्टैंड पर टिका बाहर बरसती बूँदों में आ गया |

“ठीक है, तसवीर मैं फिर बना लूँगा | लेकिन तुम यहाँ सिर्फ दो मिनट को और रुक जाओ |”

“क्यों?”

“एक फोटो ले लेने दो, बाद में उसीके सहारे चित्र बना लूँगा |”

“जल्दी करो, मुझे ठण्ड लग रही है |” पूजा ने कहा तो पंकज कमरे में आ गया |

पंकज ने कैमरे में फ्लैश लगायी और वहीँ खड़ा होकर पूजा को ठीक मुद्रा में बैठने का निर्देश देने लगा |

“बस थोड़ा-सा मूँह ऊपर, गर्दन दायीं ओर, हाँ...हाँ..., थोड़ा मुसकराओ...बस...बस...ठीक है...रेडी...वन...टू...थ्री...| बस...|” flfdsfdsfdsfjjksfjkdsfsjkdfsफ्लैश की तेज रोशनी के साथ ही पंकज ने कहा |

पूजा कमरे में आकर अपने भीगे बालों को निचोड़ने लगी |

“पूजा, तुम्हारा यह फोटो बहुत ही सुन्दर आएगा |”

“हाँ पंकज, झूठी मुसकान का फोटो |” पूजा ने कुछ सोचते हुए कहा |

“तुम बहुत उदास रहती हो पूजा, यह मुझसे सहन नहीं होता |”

“और उपाय भी क्या है?” एक गहरी साँस छोड़ते हुए पूजा ने कहा |

“एक बात तो मैं बहुत दिनों से अपने दिल में दबाए हुए हूँ मगर वह बात अब और अधिक मुझसे नहीं छिपाई जाती |”

“कौन-सी बात?” पूजा का सारा ध्यान पंकज पर केन्द्रित हो गया |

“तुम्हारी शादी से पहले मैंने तुम्हें बहुत चाहा था पूजा | तुम्हारे साथ जीने का सपना भी देखा था |” किसी तरह पंकज कह ही गया |

पूजा की गर्दन झुक गयी थी, “तुमने कभी प्रकट नहीं किया |”

“अपने संकोची स्वभाव के कारण मैं कुछ भी तो नहीं कह सका | कई बार मैंने तुम्हें संकेत भी देना चाहा मगर तुम देव बाबू के प्यार में खो चकी थीं | देव बाबू से तुम्हारी शादी की बात सुनकर दिल में विद्रोह भी हुआ मगर मैं उसे किसी तरह दबाकर यहाँ से दूर चला गया, इसीलिए मैं चाहकर भी अपनी आँखों से नहीं देख सकता था |”

“काश, तुम मेरी उसे खुशी में बन गए होते, मगर अब तो ऐसा सोचना भी पाप है |”

“नहीं पूजा | मैं पाप और पुण्य की बात नहीं सोचता | मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ |” कहते हुए वह एक झटके से आगे बढ़ा और न जाने किस भावना के वशीभूत हो उसने पूजा को अपनी बाँहों में कस लिया |

पूजा उसकी बाँहों में काँपकर रह गयी | वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि पंकज ऐसा कर सकता है | उसकी दृष्टि पंकज की आँखों की तरफ गयी तो वहाँ लाल-लाल डोरे तैर रहे थे | उसके इरादे को भाँपकर उसके सारे शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ गयी | तभी उसके विवेक ने बल दिया तो वह कह उठी |

“छोड़ दो पंकज! न जाने तुममें यह पशु कैसे जाग गया है | यह ठीक नहीं है |”

“मुझे मत तोको पूजा |”

सुनकर पूजा स्वयं पर संयम न रख सकी | क्रोध से काँपते हुए उसने कहा, “मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम ऐसी बेहूदा हरकत करोगे |” और एक झटके के साथ स्वयं को छुड़ाकर वह तेजी से नीचे की ओर भाग गयी |

उसकी आँखों में आँसू भर आए थे | बिस्तर में गिर, वह फूट-फूटकर रो उठी | आँसू बहाकर दिल हल्का हुआ तो वह काफी देर वहाँ पड़ी सोचती रही |

एक विचार उसके मन में आया कि देव बाबू के आने पर वह उन्हें सारी घटना बताकर पंकज को यहाँ से निकलवा दे | जो हरकत पंकज ने की थी उसे वह किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकती थी | तभी एक दूसरा विचार उसके मस्तिष्क में आया | देव बाबू आग्रह से पंकज को यहाँ बुलाकर लाए थे | हो सकता है कि यह घटना बताने से उनपर उल्टा असर पड़े | वैसे भी पंकज के आने से उनका व्यहार काफी बदल गया है | वे अब उसका अपमान नहीं करते | हो सकता है कि पंकज के जाने से उनका व्यवहार फिर बदल जाए | इससे तो इच्छा है कि वह स्वयं ही पंकज को विवेक से समझाकर आज की घटना के लिए शर्मिन्दा करे | कई बार भावावेश में मनुष्य जो कुछ कर जाता है बाद में उसे उसके लिए काफी पछतावा होता है |

सब कुछ विचारकर वह इसी निश्चय पर पहुँची कि वह आज की घटना के विषय में पति को कुछ नहीं बताएगी | यह उसकी परीक्षा की घड़ी थी और उसे इसमें खरा उतरना था |

इधर पंकज भी भावावेश में वह सब कुछ कर तो गया था मगर अब गिले कपड़ों सहित बिस्तर में पड़ा पश्चाताप के आँसू बहा रहा था | वह स्वयं भी नहीं समझ पा रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया | कैसे वह अपनी भावनाओं में बह गया! वह पूजा से प्यार तो अवश्य करता था मगर उसकी देह तो भोगने का विचार उसने कभी नहीं किया था | वह चाह रहा था कि इसी पल कमरा छोड़कर वहाँ से भाग जाए और फिर कभी वापस न लौटे | वह पूजा से क्षमा माँगना चाहता था मगर उसके सामने जाने का उसमें साहस नहीं था |

नीचे से आती देव बाबू की आवाज सुनकर वह काँप उठा | वह सोच रहा था कि अब पूजा आज की सारी घटना उनसे कहेगी | जब देव बाबू उससे पूछेंगे तो वह क्या उत्तर देगा? उसके कान नीचे से आती देव बाबू और पूजा की बातों पर ही लगे थे |

“चाय बनाओ पूजा, आज कुछ ठण्ड है |” देव बाबू के कहने पर पूजा चाय बनाने के लिए उठकर रसोई में चली गयी |

देव बाबू उठकर दरवाजें में आकर खड़े हो गए | ऊपर पंकज के कमरे का दरवाजा खुला देख उन्होंने उसे आवाज लगायी मगर पंकज बिना कुछ उत्तर दिए यों ही चुपचाप पड़ा रहा |

पूजा चाय बनाकर ले आयी | चाय को प्याले में डालकर उसने देव बाबू की ओर बढ़ा दिया |

“पंकज आज स्टूडियो नहीं गया क्या?” देव बाबू ने पूछा |

“नहीं!” पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी |

“तो उसके लिए चाय क्यों नहीं बनायी?”

“शायद सो रहा है |” पूजा ने बहाना किया |

“नहीं पूजा, उठकर उसे चाय दे आओ | मौसम खराब है, कहीं बीमार न हो गया हो |”

“मुझसे ऊपर नहीं जाया जाता |” पूजा के सब्दों की रुखाई देव बाबू से छिपी न रह सकी |

“क्या बात है पूजा, तुम्हें आज यह क्या हो गया है?”

“कुछ नहीं |”

“कहीं पंकज से...|”

“नहीं...नहीं...|” पूजा कह उठी, “आप चाय पिओ, मैं उसे चाय देकर आती हूँ |” कहते हुए पूजा चाय का एक और प्याला बना पंकज के कमरे की ओर चल दी |

सीढियाँ चढ़ने की आवाज पंकज के कानों में पड़ रही थी | वह पूजा से आँखें मिलाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था | पूजा को दरवाजे के समीप आयी जानकर उसने अपना मुँह दूसरी ओर फिरा लिया |

“उन्होंने चाय भिजवाई है |” चाय के प्याले को हाथ में पकड़े पूजा लड़खड़ाती आवाज में इतना ही कह सकी |

“क्या मैं इतना बुरा हो गया हूँ पूजा!”

“इसका प्रमाण तो आज तुमने दे दिया है |”

“मुझे इसका बहुत दुःख है पूजा | मैं नहीं जानता कि वह सब मुझसे क्या हो गया | क्या भावनाओं के अन्धे व्यक्ति को क्षमा नहीं किया जा सकता?” कहकर पंकज ने पूजा की ओर करवट बदल ली |

“यदि आज की घटना पर तुम्हें अफसोस है तो तुम्हारा अपराध स्वयं ही समाप्त हो गया है |”

“मैं कल प्रातः ही यह घर छोड़ दूँगा | हो सके तो तुम मुझे माफ कर दो |”

“क्यों...?”

“अपने कलंकित मुख को लिए मैं अब यहाँ नहीं रह सकता |”

“तुम्हें यहीं रहना है |” पूजा के स्वर में आदेश था |

“क्यों?” आश्चर्य से पंकज ने कहा |

“मेरी खुशी के लिए |”

“तुम्हारी खुशी के लिए?”

“हाँ...| तुम्हारे यहाँ आने से उनका व्यवहार बदल रहा है | मुझे आशा है कि मैं उन्हें फिर से पा लूँगी |” पूजा की आँखों में भी दर्द उमड़ आया | उसका क्रोध तो आँसुओं में ढलकर पहले ही बह चुका था | आगे बढ़कर उसने चाय मेज पर रख दी |

“ठीक है पूजा! यदि मेरे यहाँ रहने से यह सम्भव हो सकता है तो मैं यहाँ रह लूँगा मगर तुम्हें मुझे माफ करना होगा |”

“व्यर्थ की बातें न करो पंकज | अब तुम अपनी गलती पर पश्चाताप कर रहे हो तो तुम्हारा अपराध स्वयं ही समाप्त हो गया है | अब तुम्हारा मन साफ है | उठो, चाय ठण्डी हो रही है | हाँ, चाय पीकर नीचे आ जाना, एक बाजी शतरंज की जमेगी |” कहते हुए वह उसके बिस्तर पर ही बैठ गयी |

पंकज उठकर चाय पीने लगा | चाय समाप्त कर जब उसने प्याला पूजा के हाथ में दिया तो उसका हाथ पूजा के हाथ से टकरा गया | पूजा ने महसूस किया...उसका हाथ बुखार से तप रहा था |

“अरे! तुम्हें तो तेज बुखार है!”

पंकज कुछ न कह सका | पूजा का ध्यान उसके गीले कपड़ों की ओर गया तो उसने अटैची से उसके लिए दुसरे कपड़े निकाल दिए |

“तुम कपड़े बदलो, मैं उनको भेजकर डॉक्टर बुलवाती हूँ |” कहती हुई पूजा वहाँ से उठकर नीचे कमरे में आ गयी | पंकज ने उसे डॉक्टर बुलाने से मन किया मगर वह इसे सुनने के लिए वहाँ नहीं रुकी |

“सुनो, पंकज तो तेज बुखार है |” देव बाबू के समक्ष आते हुए पूजा ने कहा |

“मैंने पहले ही कहा था कि मौसम खराब है |”

“किसी डॉक्टर को बुला लें?”

“ठीक है, मुझे अभी बाहर जाना है | जाते हुए मैं डॉक्टर को भेज दूँगा | रात मैं शायद देर से आऊँ...तुम पंकज की अच्छी तरह से देखभाल करना | वह इस घर का ही सदस्य है |” कहते हुए उन्होंने कुर्सी छोड़ दी |

“डॉक्टर को याद करके भेज देना |” पूजा ने कहा |

“अच्छा |” कहकर वे कमरे से बाहर निकल गए |

डॉक्टर आया तथा इन्जेक्शन और कुछ गोलियाँ देकर चला गया | पूजा दिन की बातों को भुलाकर पंकज की देख-भाल कर रही थी |

रात देव बाबू काफी देर से घर लौटे |