निकाह
RK Agrawal
घर में शादी वाला माहौल...लड़कियों की चहल पहल....ढोलक की थाप और हंसी-मखौल की आवाज़. रेहान को सब कुछ बड़ा ही नया और रोमांचक लग रहा था. रुखसाना को एक ही बार में देखकर पसंद कर लिया था उसने. आखिर ज़िन्दगी में किसी चीज की कमी भी तो न थी. लंबी चौड़ी कद काठी, उजला रंग, भरा पूरा परिवार और सरकारी नौकरी. बस कमी थी तो एक सुन्दर सी बीवी की..जो अपनी खाला की बेटी रुखसाना से निकाह करके पूरी हो जाएगी. रेहान की ख़ुशी का ठिकाना न था. रुखसाना उसके लिए कोई अनजान न थी, बचपन से जानता था उसे. साथ खेले थे, साथ पढ़े थे और जवानी की दहलीज़ पर भी साथ कदम रखा था. मन ही मन उसे जाने कब से पसंद करता था पर कभी कह नही पाया. इसी बीच उसका चयन देहरादून में एक बड़ी कंपनी में अफसर के पद पर हो गया और वह चला गया. इस दौरान उसकी रुखसाना से कोई बात नही हुई, न ही कोई मुलाक़ात, पर मन में उसकी चाहत पहले की तरह ही पलती रही. हाँ, कभी उसने अपने प्यार का ज़िक्र रुखसाना से किया नहीं पर क्या फर्क पड़ता है. उसे भरोसा था की वो भी उसे पसंद करती है. तभी तो इतना हंस हंस कर बातें करती है. उसे छुप छुप कर देखा करती है. अभी पिछले महीने की ही तो बात है. जब वह अम्मी की तबियत ख़राब होने पर उन्हें देखने चार दिन की छुट्टी लेकर देहरादून से आया था. वह आंगन में अपने फुफेरे भाई के साथ खड़ा था और रुखसाना...छत पर कपडे सुखाते वक़्त, महीन दुपट्टे को सुखाने के बहाने, उसकी आड़ में उसे तक रही थी. रेहान की नजर जैसे ही उस पर पड़ी, वह शर्मा कर भाग गयी पर उसके रुखसारों (गालों) की सुर्खी रेहान की नजरों से बच नही पाई थी.
उस रात, रेहान की आँखों से नींद कोसों दूर थी. रह रहकर उसे रुखसाना का उसे छिपकर देखने का अंदाज और उसके चेहरे पर लाज की सुर्खी याद आ रही थी. अगली सुबह पहली गाडी से उसे देहरादून वापस जाना था. अम्मी की तबियत अब ठीक हो गयी थी. उसके जाते जाते चची जान ने कह दिया था, 'बेटा अब बुढ़ापे की मारी तेरी अम्मी कहाँ तक जर्जर शरीर का बोझ ढोएगी. अच्छी सी लड़की देखकर शादी कर ले.' रेहान कुछ कहता उसके पहले ही उसकी अम्मी पीछे से आकर बोल पड़ी, 'अरे, अब इसे मेरी फ़िक्र करने की कोई जरुरत नहीं है. न ही इसके लिए कोई लड़की देखने की जरुरत है. मैंने इसके वास्ते लड़की देख रखी है'. अम्मी की आवाज़ में ख़ुशी की खनक थी. रेहान सन्न रह गया. उसकी आँखों के सामने एकाएक रुखसाना का चेहरा घूम गया. ये क्या, अम्मी ने मेरी मर्ज़ी जाने बगैर मेरे निकाह के लिए कोई लड़की देख रखी है. रेहान के शरीर का जैसे सारा खून सूख गया. उसके हलक़ से बोल नही फूट रहे थे.
'पूछेगा नहीं, कौन है वो लड़की' अम्मी जान ने उसके चेहरे की तरफ देखकर आँखें नचाते हुए कहा.
'क..क..कौन है अम्मी?' बमुश्किल हिम्मत करके बस इतना ही कह पाया था.
'अरे बेटा, रुखसाना, तेरी खाला जान की बेटी..बड़ी प्यारी बच्ची है. तुझे पसंद है न' रेहान मन ही मन ख़ुशी से झूम उठा. उसका मन हुआ अम्मी जान को गोद में उठा ले और जी भर कर नाच ले मगर खुद को काबू किया और मुस्कुरा कर अपना सूटकेस उठा कर चल दिया. उसकी मुस्कराहट में अम्मी जान को अपने सवाल का जवाब मिल गया था.
बस एक हफ्ते बाद ही तार पहुँच गया था कि आने वाले महीने की 5 तारीख को दोनों का निकाह पक्का करवा दिया है. सगाई की रस्म भी एक दिन पहले शाम को होगी. रेहान को तो जैसे दोनों जहां मिल गए थे. वह ऊपरवाले का लाख लाख शुक्र मनाता था कि उसे उसकी मांगी हुई हर चीज दी. तयशुदा कार्यक्रम की बिनाह पर निकाह की सभी रस्मों के लिए रेहान लगभग 1 हफ्ते पहले घर पहुंचा. घर में काफी मेहमान आये हुए थे. हर कोने में चहल पहल मची हुई थी. सब उसे लेकर बहुत चुटकियां लेते. उसका नाम ले लेकर मजाक करते और उसे छेड़ते. वह एक पल भी फुरसत न बैठ पाता था. इस बीच रुखसाना से बात करने, मुलाक़ात करने का कोई मौका न मिला पर वह हैरान था, खुद रुखसाना ने भी उस से एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की. उसे इस बात का अंदाजा तो था कि वह उस से मोहब्बत करती है, पर कभी भी उस से बात करने की कोशिश क्यों नही करती? शायद शर्माती होगी.
उस रोज़ उसकी सहेली सफ़ीना घर आई थी. उसका अंदाज रेहान को कुछ बदला हुआ लगा. हालाँकि, वह पहले भी उसके घर आती जाती रही है और बड़ी बेतकल्लुफी से उस से बात करती रही है पर पता नही क्यों इस बार उसका मिजाज कुछ बदला हुआ है. जैसे उसे रेहान से कोई शिकायत हो. क्या शादी पक्की होने पर रिश्ते बदल जाते हैं क्या उसकी सहेली रुखसाना से निकाह पक्का होने पर वह उस से 'जीजा' सरीखा रिश्ता मानकर संजीदगी निभाना चाहती है या फिर रुखसाना का भेजा हुआ कोई पैगाम सुनाना चाहती है.
इसी उहापोह में रेहान को याद आया कि उसे अपने ऑफिस में जरुरी मेल करना है तो वो अपने कमरे में आ गया. पीछे पीछे सफ़ीना भी चली आई थी.
'अरे सफ़ीना तुम, तो तुम्हे भी मुझसे मुलाक़ात करने का वक़्त मिल ही गया' रेहान ने फॉर्मेलिटी के लिए पूछा.
'मुलाक़ात का मौका तो तुम्हे नही मिला रेहान. रुखसाना से निकाह तय करने से पहले एक बार मुझसे पूछ तो लेते' सफ़ीना के मन में जैसे टूटे हुए सपनो कि किरचे चुभ रही थी. दरअसल वह मन ही मन रेहान से मोहब्बत करती थी पर मौका न मिलने कि वजह से कभी कह नही पाई थी. उसने सोचा था वक़्त आने पर रेहान को अपनी मोहब्बत के बारे में बता देगी. उसे नही पता था कि इतने जल्दी ये सब हो जायेगा और बात उसके हाथसे निकल जाएगी.
'तुमसे पूछ लेता..क्या पूछ लेता सफ़ीना?' रेहान थोड़ा ठिठका और हैरानी के साथ पीछे मुड़ा.
सफ़ीना को अपनी भूल का एहसास हो गया था. इसमें रेहान कि क्या गलती. उसने जब कभी उस से अपनी मोहब्बत का ज़िक्र नही किया था तो वह रेहान पर बेवफा होने का इलज़ाम कैसे लगा सकती थी. अपनी भूल का एहसास होते ही सफ़ीना सम्हाल गयी. आँखों में ढलक आये अश्कों को रेहान से छुपाने के लिए झट से पीछे मुड़ गयी. रेहान कि तरफ पीठ करके बोली 'यही पूछ लेते कि निकाह कि तुम्हारी तारीख मुझे सूट करती है या नही. अरे, रुखसाना मेरी पक्की सहेली है. कितने अरमान थे..उसके निकाह में अपने लिए सब्ज़ रंग का शरारा सिलवाकर उस पर सुर्ख रंग कि कशीदाकारी करवाउंगी. पर तुमने इतने जल्दी निकाह कि तारीख निकली कि मेरे अरमानो पर पानी फिर गया' इस दौरान सफ़ीना ने चुपके से अपने अश्क दुपट्टे कि कोर से पोंछ लिए थे.
'ओह, मुझे माफ़ कर दो प्लीज. दरअसल सब कुछ इतनी जल्दी में हुआ कि मुझे भी कुछ समझ नही आया. तुम टेंशन मत लो. चलो मेरे साथ अभी बाजार से वैसा ही शरारा दिलवा देता हूँ जैसा तुम रुखसाना के निकाह में पहनना चाहती हो'
रेहान ने बाइक की चाभी उठा ली. सफ़ीना को कुछ बोलने का मौका न मिला. फिर सोचा, रेहान के साथ बाजार जाकर कुछ पल तो उसके करीब रह पायेगी. इस तरह उसके लिए वे कीमती पल ज़िन्दगी भर कि सौगात बनकर रह जायेंगे. वह उसके पीछे हो ली.
रेहान कि बाइक में पीछे बैठकर कई बार उसका मन हुआ कि उसके कंधे पर सर रखकर फफक फफक कर रो ले पर खुद को सम्हालते हुए सारे रास्ते बुत बनी बैठी रही. शहर की सबसे बड़ी फैंसी कपड़ो कि दुकान के सामने रेहान ने गाडी रोकी. दुकान के अंदर जाकर बोला,'ये लो, यहाँ तुम्हे अपनी पसंद का कैसा भी लिबास मिल जायेगा. ढूंढ लो अपने लिए सब्ज़ रंग का सुर्ख कशीदाकारी वाला शरारा' रेहान ने हाथ हिलाते हुए फिल्मय अंदाज़ में कहा. सफ़ीना का दिल नहीं लग रहा था लिबास का चयन करने में. रेहान ने घडी कि ओर देखा. शाम की रस्मों का वक़्त हो चला था. वह और देर बाजार में नही रुक सकता था. आखिर रेहान ने कहा, 'मैं कुछ मदद करूँ?' सफ़ीना ने उसकी तरफ देखकर सहमति में सर हिलाया. रेहान ने एक बड़ा ही खूबसूरत शरारा और मोती जड़ दुपट्टा दिखाकर कहा, 'तुम उसमे खूबसूरत नही लगोगी..वो तुम पर बहुत खूबसूरत लगेगा. तुम उसे पहनोगी तो तो उसकी खूबसूरती बढ़ जाएगी' रेहान के इन रूहानी लफ़्ज़ों के आगे सफ़ीना कुछ न बोल पाई. और वह लिबास लेकर घर आ गयी.
घर वापस आने पर उन्होंने देखा सभी जोर शोर से निकाह कि तैयारियों में व्यस्त थे. तभी अम्मी जान आती दिखाई दी.
'अरे रेहान, कहाँ चला गया था. सब तेरा कबसे इंतजार कर रहे हैं. जा जल्दी से नह ले. निकाह के लिए तुझे तैयार करने का वक़्त हो चला है. अब देर की तो बारात वक़्त पर नही निकल पायेगी'. सफ़ीना अपने घर कि तरफ चल पड़ी. तैयार होकर उसे रुखसाना के घर पहुंचना था.
आखिर वह खूबसूरत पल आ ही गया जब रेहान, रुखसाना को ब्याह कर लाने के लिए सेहरा सर पर सजाये खड़ा था. माँ, चची और घर कि दूसरी बुजुर्ग औरतें उसकी तारीफ़ करते नही थक रही थीं. बार बार उसकी बलाएं लेतीं, नजरें उतरती. बारात रुखसाना के दरवाजे जा पहुंची. निकाह होने को आया. रेहान के दिल में उमंग और ख़ुशी कि लहरें दौड़ रही थी. रेहान ने देखा सामने से रुखसाना उसी सब रंग के शरारे में लिपटी चली आ रही है जो शाम को उसने सफ़ीना को खरीदवाया था. वही मोतियों ज्यादा दुपट्टा घूंघट बनकर उसके सर पर, उसकी रेशमी ज़ुल्फ़ों और खूबसूरत चेहरे को ढंके हुए था. रेहान सोच में पड़ गया. रुखसाना ने ये लिबास क्यों पहना है, ये तो सफ़ीना को पहनना था. शायद उसके लिबास में ऐन वक़्त पर कोई परेशानी आ गयी होगी तो सफ़ीना ने उसे ये पहनने को दे दिया होगा. सफ़ीना कहीं दिखाई भी नही दे रही है. वह बेशक अपने लिए किसी दूसरे लिबास कि व्यवस्था कर रही होगी. इन्ही सब ख्यालों में खोया हुआ वह जैसे नींद से जाएगा जब उसके कानों में मौलवी जी के लफ्ज़ सुनाई दिए, 'आपका निकाह ज़नाब शमीम अहमद कि वालिद रुखसाना बी से किया जाता है, आपको कबूल है'
'जी कबूल है' वह जैसे इन्ही शब्दों को कहने का इंतज़ार कर रहा था.
'आपका निकाह ज़नाब मुस्ताक अली के वालिद रेहान अली से किया जाता है, आपको क़बूल है?' इस बार मौलवी जी का सवाल रुखसाना से था.
दुल्हन कि तरफ से कोई आवाज़ न आई. 'आपको क़बूल है?' मौलवीजी ने दुबारा सवाल किया. इस बार सहेलियों में से किसी ने रुखसाना की बांह पर हौले से चिउंटी काटी. 'क़ुबूल है' महीन सी आवाज़ में जवाब आया.
निकाह हो गया. रेहान रुखसाना को लेकर अपने घर आ गया. निकाह के बाद कि तमाम रस्मों के ख़त्म होते होते रात हो गयी और मुंहदिखाई की रस्म न हो पाई. इस दौरान रुखसाना का घूँघट भी नही उठाया गया था. आखिर दूल्हा दुल्हन की थकान और तकलीफों को देखते हुए मुंहदिखाई की रस्म को दूसरे दिन के लिए टाल दिया गया.
'हाय अल्ला, आज मुंहदिखाई नहीं हो पायेगी तो सुहागरात की रस्म कैसे होगी' औरतों में से किसी कि आवाज़ आई.
'ऐसी कोई बात नही है. ऐसी कोई बंदिश नही है जी कि मुंहदिखाई कि रस्म न हो तब तक सुहागरात को रोक कर रखा जाये. रेहान, रुखसाना का पति है और मुंहदिखाई न भी हो तो वो उसका चेहरा देख सकता है. सुहागरात कि रस्म आज हो होगी, पर मुंहदिखाई की रस्म कल होगी' अम्मी जान ने फैसला सुनाया, तो सभी औरतों ने सहमति दे दी.
आखिर वह रात भी आ ही गयी जिसका रेहान को बेसब्री से इंतज़ार था. रेहान ने कमरे का दरवाजा खोल और भीतर कदम रखा तो चारों और बिखरी गुलाबों और रजनीगंधाकी खुशबु से उसका तन मन महक उठा. उसने देखा फूलों से सजी सेज में बीचोबीच गठरी कि तरह दुबकी हुई उसकी दुल्हन बैठी है. कमरे में कोई नही था उन दोनों के सिवा. सन्नाटा इतना गहरा कि दोनों दस कदम दूर से भी एक दूसरे की सांसों की आवाज़ सुन सकते थे. रेहान हौले हौले कदम रखता हुआ सेज कि तरफ बढा. दुल्हन के पास पहुंचकर सम्हल कर बैठते हुए उसने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया. वह थोड़ा सकपकाई और उसके हाथ कांपने लगे. इस पर रेहान ने उसके दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया.
'घबराओ मत रुखसाना, इतना परेशान होने कि क्या बात है? हम कोई अजनबी तो हैं नहीं. हाँ, हम पहले इस तरह नही मिले, पर अब हम पति-पत्नी हैं. और हमारे बीच कोई पर्दा नही होना चाहिए. वैसे मुझे सुहागरात की ऐसी कोई जल्दी नही थी कि तुम्हारी मुंहदिखाई कि रस्म का इन्तेजार नही कर सकता था पर अम्मी का फैसला मुझे मुनासिब ही लगा. मैंने सोचा तुम भी थक गयी होगी और आराम करना चाहती होगी. मैं चाहता हूँ तुम जब भी मेरे क़रीब आओ, कंफ़र्टेबल फील करो. जरुरी नही कि हम ये सुहागरात आज ही मनाएं. तुम्हारा मुझे दिल से अपनाना जरुरी है. तुम्हारा मुझे पूरी तरह समझ लेना और मेरी छुअन को दिल से महसूस करना उतना ही जरुरी है जितना हमारा एक दूसरे को मोहब्बत करना' रेहान कहता चला गया. फिर उसने झुककर रुखसाना के माथे को चुम लेना चाहा तो रुखसाना ने अपना हाथ उसके होठों पर रख दिया. हौले से उसके चेहरे को अपने से दूर करते हुए बोली, 'तुम सही कह रहे हो. इसलिए मैं भी चाहती हूँ की तुम्हारे कोई भी कदम बढ़ाने से पहले तुम सच्चाई जान लो.' इतना कहते हुए उसने घूंघट उठाया और ये क्या.....रेहान ने जो देखा वह उसका ख्वाब में भी ख्याल नही कर सकता था. सामने रुखसाना न होकर दुल्हन के वेश में सफ़ीना थी. रेहान के ज़िस्म का सारा खून पानी बन गया. दिल बर्फ का हो गया और शब्द गले से बाहर नही निकल रहे थे. कुछ कहना भी चाहता था पर नहीं कह पाया. पूरी ताकत के साथ चिल्ला ले या जी भर कर रो ले, सफ़ीना पर गुस्सा हो या घर छोड़कर कही चला जाये, उसे कुछ समझ नही आ रहा था. पगड़ी उतार कर हारे हुए बाजीगर की तरह टूटकर ज़मीन पर बैठ गया.
'क्यों सफ़ीना क्यों..क्यों किया तुमने ऐसा. मेरी दुनिया उजाड़ दी, मेरे अरमानो को दफ़न कर दिया. क्यों' उसकी आवाज़ में दर्द था, सूनापन था.
सफ़ीना उसकी दशा समझ गयी थी. धीरे से उसके पास आकर उसके बगल में बैठते हुए बोली, 'तुम यकीन नहीं करोगे पर तुम्हारे जितना बुरा ही मुझे भी लग रहा है. सोचो उस लड़की पर क्या गुजरी होगी जो अपनी सहेली की शादी में आई हो और उसे कह दिया जाये की दुल्हन बनकर तुम्हे ही बैठना है.'
'क्या' रेहान के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. वह अपने सुने पर यकीन नही कर पा रहा था.
'किसने कहा तुमसे ऐसा और क्यों' रेहान अपने सवाल का जवाब जानने बेताब था. उसकी आँखों में चिंगारियां उतर आई थीं.
'खुद रुखसाना ने' सफ़ीना एकटक सामने आईने में देखती रही. सीधे रेहान के चेहरे की तरफ देखकर बात करने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी वह.
'मगर क्यों' रेहान से सब्र नही हो रहा था. 'एक ही सांस में कह डालो सफ़ीना, मुझसे अब काबू नही हो रहा है. किसे मेरी मोहब्बत की दुनिया से ऐतराज था क्या मजबूरी थी रुखसाना की.'
'उसे किसी और से मोहब्बत थी' सफ़ीना ने नजरें झुकाते हुए कहा.
'क्या कह रही हो सफ़ीना, होश में तो हो' रेहान खुद को काबू में नही रख पाया. सफ़ीना के दोनों कंधे पकड़कर उसे बुरी तरह झकझोर दिया.
'मुझे तो तुम्हारी ये बेरहम, पुरजोर पकड़ भी रेशमी एहसास ही लग रही है रेहान, तुमसे मोहब्बत जो करती हूँ मैं' सफ़ीना ने आँखें भींचकर बंद कर लीं और दर्द सह गयी. उसकी आँखों की कोरों से दो अश्क बह निकले थे.
'क्या, ये क्या कह रही हो तुम, कही तुमने ही तो रुखसाना को मजबूर...' सफ़ीना को दूर झटककर रेहान ने कहा. एक के बाद एक राज़ उस पर इस तरह ज़ाहिर हो रहे थे की वह बौखला गया था.
सफ़ीना ने आगे बढ़कर उसके होठों पर ऊँगली रख दी.
'नहीं रेहान, मेरी मोहब्बत को इल्ज़ाम मत दो. मुझे दगा ही देना होता तो इतने दिनों तक इस राज को अपने सीने में दफ़न न रखती. रुखसाना को तुम्हारे फुफेरे भाई, अनीश से मोहब्बत है. घरवालों के कहने पर वह तुमसे निक़ाह के लिए इंकार न कर पाई और अनीश को भूल भी न पाई. निकाह के लिए तैयार होते वक़्त उसे एहसास हुआ की वह सिर्फ और सिर्फ अनीश की दुल्हन बनना चाहती है. वह घर छोड़कर, अपना निक़ाह छोड़कर भाग गयी और जाने से पहले मुझसे ये वादा लिया की उसकी जगह दुल्हन बनकर मैं जाउंगी. वह मुझे वास्ता दे गयी कि उसकी और तुम्हारे घर की इज्जत अब मेरे हाथ में है. तुम्ही बताओ, मैं क्या करती?'
'अनीश से मोहब्बत'... रेहान के दिमाग में वो सारे लम्हे किसी फिल्म कि तरह घूम गए. रुखसाना का उसकी ओर शर्मा कर देखना, उसे छुप छुप कर निहारा करना. उसके पास आने के बहाने ढूंढना. शायद वह अनीश को देखा करती थी क्योंकि अपने घर आने पर रेहान अक्सर अनीश के साथ ही घुमा करता था.
'ओह, कितनी बड़ी ग़लतफहमी में जी रहा था मैं', ये सोचकर रेहान ने टूटे हुए पत्ते की तरह अपने ज़िस्म को फूलों सजी सेज पर धड़ाम से पटक दिया. सेज पर पड़े बेला, चमेली, गुलाब और रजनीगंधा के फूल यहाँ वहां दूर छिटक गए. वह निढाल हो गया.
सफ़ीना बिलख बिलख कर रो पड़ी. वह रेहान से मोहब्बत करती थी, उस से निक़ाह भी करना चाहती थी पर इस तरह नहीं. रोते हुए उसने अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से छुपा लिया. ज़मीन पर बैठी हुई पलंग की किनार से सर टिका कर बैठी बहुत देर तक अपने आने वाले कल के बारे में सोचती रही.
क्या रेहान उसे अपनाएगा, कही वह उसे तलाक़ तो नही दे देगा. हाय अल्ला, ये सब क्या हो गया. वह कैसे जियेगी. ये सब सोचते हुए न जाने कब उसकी आँख लग गयी.
सवेरे अपने हाथों पर किसी की कोमल उँगलियों की छुअन महसूस की. आँख खुली तो देखा, सामने रेहान बैठा था. चौंककर खुद को समेटते हुए, दुपट्टा सम्हालने लगी.
'उठो सफ़ीना, फ्रेश हो जाओ' रेहान कि आवाज़ में तूफ़ान के बाद कि शांति थी.
सफ़ीना कश्मकश में थी. पता नही आगे क्या सुनने को मिलेगा. रेहान ने क्या फैसला किया होगा.
तभी दरवाजे पर किसी के खटखटाने कि आवाज़ हुई. बाहर अम्मी जान थी. रेहान ने दरवाजा खोला.
'रेहान चलो, मुंहदिखाई की रस्म के लिए तैयार हो जाओ तुम दोनों, एक घंटे बाद सभी मेहमान आने वाले हैं' अम्मी जान के इतना कहते तक सफ़ीना वाशरूम से बाहर आ गयी थी.
उसे देखकर अम्मी जान कि आँखें फटी रह गयीं. सफ़ीना घबराहट में जहाँ कि तहाँ खड़ी रह गयी.
अम्मी जान कुछ कह पाती उस से पहले ही रेहान बोला, 'मुंहदिखाई नही अम्मी जान, निकाह..'
सफ़ीना के चेहरे का रंग उड़ गया. रेहान उसे तलाक़ देकर किसी और से (शायद रुखसाना से ही) निकाह करना चाहते हैं. अपने अँधेरे भरे भविष्य के एहसास से उसके चेहरे पर चिंता कि लकीरें खिंच गयीं.
'आज मुंहदिखाई नही, निक़ाह कि रस्म होगी. मैं सफ़ीना से उसके नाम के साथ निकाह करना चाहता हूँ. कल मैंने सफ़ीना से, रुखसाना के नाम के साथ निकाह कर गलती कर दी थी' रेहान की आवाज़ में संजीदगी थी. उसने बहुत जल्दी सच्चाई को अपनाकर सही फैसला किया था.
'लेकिन बेटा, सफ़ीना यहाँ, कैसे..निकाह, रुखसाना यहाँ नही..क्या है ये सब. मुझे कुछ समझ नही आ रहा' अम्मी जान का दिमाग घूम गया.
'कुछ नही अम्मी जान, आप निष्फिक्र रहें, ये सब वही है जो नसीब में लिखा था. वैसे भी किसी बड़े शायर ने कहा है कि निक़ाह उस से करो जो तुमसे मोहब्बत करता है, न कि उस से जिस से तुम मोहब्बत करते हो'
इतना कह कर रेहान सफ़ीना की और मुड़ गया और बोला, 'तुम निक़ाह के लिए तैयार हो जाओ. किसी चीज की जरुरत हो तो मुझे बता देना' सफ़ीना को दिल की गहराई तक तसल्ली हुई..अब सब सही हो जायेगा. उसे उसकी मोहब्बत मिल गयी थी.