Aaina Sach Nahi Bolta - 17 in Hindi Fiction Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | आइना सच नही बोलता - 17

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आइना सच नही बोलता - 17

आइना सच नही बोलता - १७

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

लेखिका अंजू शर्मा

प्रकृति ने केवल स्त्री को ही इस आशीष से नवाज़ा है कि वह एक नए जीवन की जीवनदायिनी होती है, माँ होती है! प्रसव पीड़ा से उबर कर स्त्री एक नया जन्म पाती है! न केवल शिशु अपितु माँ का भी एक नया जन्म होता है! एक स्त्री प्रसव पीड़ा से गुज़रकर सबसे पहले अपने शिशु का मुख देखती है, फिर किसे अपने समीप देखना चाहती है? दुनिया भर की भीड़ में किसका चेहरा देखना चाहती है? किसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू और चमक एक साथ देखना चाहती है? किसके चेहरे पर गर्व, स्नेह और चिंता के मिले-जुले भाव पढ़ना चाहती है? अपने माथे पर किसका स्पर्श पाना चाहती है जो उसे छूकर धीमे से उसके चेहरे के करीब आकर पूछे, तुम ठीक तो हो न? इन सभी प्रश्नों का जवाब एक ही है! वह पुरुष जिसे अपना सर्वस्व सौंपकर उसने मातृत्व पाया है! वही जो उसकी देह और मन दोनों का स्वामी है! जिसने उसके मन को जीतकर देह पर अधिकार पाया है!

एक पल के लिए भी नंदिनी के मन से दीपक का ध्यान हटा नहीं! उसे हर आहट पर लगता जैसे दीपक आया है! ये कैसे संभव था कि अपने अंश के लिए दीपक न आये! चलो वह उसके मन में जगह नहीं बना पाई पर बेटा तो उसी का था न! किसी एक पल को तो उसने उसे अपनाया था न! उसने सोचा था बेटे के जन्म की खबर मिलते ही वह सारे गिले शिकवे भूलकर दौड़ा चला आएगा और कहेगा चलो नंदिनी अपने घर चलो मैं अपने बेटे के बिना एक पल नहीं रह सकता! चाहती तो थी दौड़कर चली जाए दीपक के पास और उसकी गोद में बेटे को देकर कहे, देखो, इसकी ऑंखें बिल्कुल तुम जैसी बड़ी और नशीली! और ये नाक मानो अभी इस पर गुस्सा आ बैठेगा, हू-ब-हू तुम जैसी सी! और ये होंठ देखो, जैसे कुछ न कहने की कसम खाए, बस चुप रहना ही जानते हों! देखो दीपक, ये हमारा बेटा है, प्रेम के उन पलों की निशानी जब हम करीब आने लगे थे!

उन पलों की याद में नंदिनी ने ये पहाड़ से दिन, महीने इस आस पर बिता दिए कि जब उनकी संतान इस दुनिया में आयेगी तो उनके बीच की हर दूरी मिट जाएगी! दीपक के सारे बहाने खत्म हो जायेंगे कि उन्हें प्रेम के अटूट बंधन में बांधने वाला आ गया है किन्तु दीपक की अनुपस्थिति उसे शूल सी चुभ रही थी! कैसे सब्र रखती, कैसे अपने मन को मनाती? मन में तो आशंकाओं के पहाड़ टूट-बन रहे थे! सुमित्रा और महावीर जी के चेहरे पर भी मायूसियत छा गई थी सास-ससुर को अकेले आया देख! साक्षी और अमर के चेहरे पर कितने प्रश्न नृत्यरत थे दीपक के न आने को लेकर, ये नंदिनी से छिपा न था! नंदिनी की सास अमिता ने कुछ झिझकते हुए बताया कि दीपक को ऑफिस के काम से कहीं बाहर जाना पड़ा पर वह जल्दी ही आयेगा! जाने क्यों नंदिनी को लगा उनके शब्द उनके चेहरे का साथ नहीं दे पा रहे थे! वे झूठ बोलने में बुरी तरह असफल हो रही थीं! बेबसी और शर्मिंदगी के भावों ने उनकी ख़ुशी को ऐसे ढक लिया था जैसे घनघोर रात्रि में काले बादलों की ओट में चाँद छिप जाता है! उन्हें देखकर लग रहा था कि अभी रो पड़ेगी! झूठी मुस्कान ओढने की कोशिश उन्हें दयनीय बना रही थी! नंदिनी का कलेजा धक से रह गया! उसे लगने लगा था कि वे कुछ छिपा रही हैं पर क्या यह नंदिनी की सोच का विषय था!

माँ तो माँ होती है! इतने दिनों से दीपक का विचित्र व्यवहार, उसकी उदासीनता सुमित्रा को बेचैन किये हुए थी! दूरी और व्यस्तता के बहाने ने उन्हें शांत किया हुआ था! इतने दिन कभी वे नंदिनी को दिलासा देतीं और कभी नंदिनी उन्हें! सच तो ये था भीतर ही भीतर दोनों जानती थीं कि कहीं कुछ है जो ठीक नहीं! जो माँ-बेटी दुनिया भर की खुशियों और पीडा की साझेदार रहीं वे इस एक प्रश्न को हमेशा बीच से ठेलती रहीं थीं पर आज उनसे रहा न गया! दीपक ठीक तो है न? सुमित्रा ने एक बार फिर से अमिता को कोने में ले जाकर पूछा भी था! पर वे कोई संतोषजनक उत्तर न दे सकीं! बस बुझे चेहरे और टूटे-फूटे शब्दों में यही दोहराती रहीं कि वो जल्दी आयेगा कहीं फंस गया है! समरप्रताप जी का कठोर, भावहीन चेहरा देखकर किसी की हिम्मत न हुई उनसे सवाल-जवाब करने की! उनके चेहरे पर पत्थर की सी दृढ़ता थी मानों कोई फैसला लेने मे वक़्त काटकर आये हों जिसने उन्हें बहुत दुःख दिया हो! इतना जरूर था कि नंदिनी समेत सभी के मन में पड़े शक के बीज में जान पड़ गई! तभी नंदिनी के कुछ रिश्तेदार वहां गए! फिर सब एक दूसरे को मिठाई खिलाकर ख़ुशी का इज़हार करने लगे! आखिर दुनिया के सामने दुःख पर झूठी ख़ुशी का पर्दा डालने की रस्म भी तो अदा करनी थी! सबको हंसता मुस्कुराता देख नंदिनी भी कुछ समय के लिए बच्चे में खो गई!

नंदिनी के सास-ससुर उसे और बच्चे को हॉस्पिटल से ही अपने घर ले जाने की बात कर रहे थे पर सुमित्रा ने हवन की बात सामने रखी! जिस घर में बच्चा हुआ वहां दसवे दिन हवन इत्यादि कराना होता है! फिर सवा महीने तो कम से कम वे नंदिनी को रखना ही चाहती थीं! सच तो ये था कि वे अपने बेटी के दर्द की आंच में लम्हा-लम्हा झुलस रही थीं और उस पर अपने ममत्व का मरहम लगाना चाहती थीं! वे जानती थी वहां वह किसी से अपने मन की न कह सुन पायेगी और घुटकर रह जाएगी! तय ये हुआ कि एक महीने के बाद नंदिनी अपने ससुराल चली जाएगी ताकि वे लोग भी अपने तरीके से अपनी ख़ुशी मना सकें! अपने अपनों को ख़ुशी में शरीक कर सकें! तब तक नंदिनी और बच्चे की सेहत भी कुछ दुरुस्त हो जाएगी!

नार्मल डिलीवरी थी तो एक दिन बाद नंदिनी को छुट्टी मिल गई और पता चला उसके सास-ससुर हॉस्पिटल का सारा बिल चुका गए थे! और वह सुमित्रा और साक्षी के साथ घर आ गई! घर विचित्र-सी सौंधी खुशबू से महक रहा था! बालकोनी में छोटेछोटे कपडे सूखने लगे थे! बेबी पाउडर, बेबी आयल और नन्हे शिशु की महक ने उसे और उसके कमरे को अपने वजूद में ले लिया था! हरीरा खाने का बिल्कुल मन नहीं करता था पर माँ के आगे उसकी एक न चलती! माँ ने उसकी और बच्चे की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी! भाभी थी कि एक पांव पर नाच रही थीं! भतीजा तो एक पल नन्हे से अलग नहीं होना चाहता था! नानाजी, मामा सब नन्हे-मुन्ने को खिलाना चाहते थे! घर पर उसे खुश रखने के सारे जतन किये जा रहे थे बावजूद इसके एक नामालूम-सी उदासी की छाया ने सबको जकड़ रखा था! वे कभी कभी जरूरत से ज्यादा बोलते थे पर बुझे शब्दों में, अकारण हँसते थे पर नकली हंसी मानो ये किसी विस्फोट से पहले की शांति हो! सब मिलकर उस लम्हे को ठेल रहे थे जिसका आना लगभग तय था!

“.....देखो सुमित्रा, मैं कह देता हूँ तुम इस मामले को बिगाड़ो मत, हो जाता है ऐसा भी! कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ा है! अरे, घर जाएगी तो सब ठीक हो जायेगा! फिर वे लोग उसे कभी दुखी नहीं होने देंगे!......”

कल रात नंदिनी मुन्ने को दूध पिला रही थी तो माँ-पापा के कमरे से दोनों की बहस की आवाजे आ रही थीं! इसके बाद आवाज़ धीमी हो गई! दूर से कुछ खास तो नंदिनी सुन-समझ नहीं पाई पर इतना अनुमान जरूर लगा लिया था कि इस बहस का केंद्र वही थी! देर रात मुन्ना खेलकर सो गया था पर उसकी आँखों में नींद कहाँ! रात का राही चाँद अपना सफर तय करता रहा और वह रात भर करवटें बदलती रही! नींद नहीं आई तो खिड़की से चाँद को देखने लगी! उसे लगा लाखों करोड़ों तारों की भीड़ में चाँद निपट अकेला है जैसे यहाँ अपनों के बीच वह अकेली है, बेहद अकेली! ऐसे क्षणों में उसे दीपक की बहुत याद आती! फोन करती तो नंबर एक्सिस्ट न होने की कृत्रिम आवाज़ उसे इस दुनिया की सबसे मनहूस आवाज़ लगती!

अगली सुबह उससे रहा नहीं गया तो साक्षी से बार-बार रात के विवाद के विषय में पूछती रही! वह हर हाल में जानना चाहती थी कि रात को क्या हो रहा था! सुमित्रा ने तो टाल दिया था पर उसने कसम दे दी तो साक्षी को बताना पड़ा! ये माँ की चिंताएं थीं जो किसी न किसी रूप में बार-बार बाहर आ ही जाती थीं! अपनी बेटी के भविष्य को लेकर उन्हें चिंता होने लगी थी और महावीर जी को लगता था कि वे तिल का ताड़ बना रही हैं, एक बार नंदिनी अपने घर पहुंची तो सब ठीक हो जाएगा! वैसे भी गुज़ारा तो उसका वहीँ है जहाँ उसका विवाह हुआ है! एक बार विवाह हुआ तो अब वह हमारी नहीं, अपने सास-ससुर की जिम्मेदारी है! साक्षी भी उसकी चिंता में घुल रही थीं पर भैया अमर इस सब को लेकर बहुत तटस्थ नज़र आ रहे थे जैसे किसी बात से कोई मतलब ही न हो पर यदि उनसे पूछा जाता तो वे भी पिता के पक्ष में खड़े होने में एक सेकंड न लगाते ये उस घर की सब औरतें जानती थीं! नंदिनी को लगा उसके भीतर कुछ दरक रहा रहा है! उसने रुलाई को रोक लिया जाने क्यों उसे लगने लगा था उसे इन आंसुओं की बहुत जरूरत पड़ने वाली है!

वक़्त का पहिया कब रुका है, अनवरत चलते रहना ही उसकी नियति है! दसवें दिन शुद्धि के लिए हवन के लिए पंडित जी आये! हवन में ससुराल से अमिता और बड़ी ननद नीतू मिठाई लेकर आई थीं! बच्चे को खूब प्यार कर, नंदिनी को दिलासा दे वे लौट गईं! उन्होंने बताया घर में कुआं पूजन की तैयारियां चल रही हैं! पूरी रिश्तेदारी को न्योता भेजा जा रहा है! बहुत बड़ा फंक्शन होने वाला है उनके यहाँ!

ये एक महीना भी बीत गया! आज नंदिनी अपने ससुराल जा रही है! इस बीच एक दिन दीपक का फोन तो आया था पर वही रटी-रटाई बात, टाइम नहीं है, टूर पर रहता हूँ! विदेश गया हुआ था! जल्द ही घर आऊंगा! हमेशा इनसे की तरह दीपक की आवाज़ पर इतना बोझ था वह कभी नंदिनी के मन को छू नहीं पाती थी! मजबूरी ही सही पर एक बार इतनी कृत्रिमता और ले आता कि एक बार नंदिनी से पूछ लेता कि मेरा बेटा कैसा है? तुम कैसी हो? मेरी याद आती है तुम्हे नंदू? पर नहीं ये फोन नहीं रस्मअदायगी भर थी! जो किसी दबाव में निभाई जा रही थी!

सुमित्रा ने कितने सामान से पूरा कमरा भर दिया था! नंदिनी के लिए गोंद के लड्डू, घी का कनस्तर, बच्चे के कुछ कपडे-खिलौने बाकी सामान वे लोग फंक्शन पर लाने वाले थे! भैया-भाभी के संग नंदिनी अपने ससुराल पहुँच गई! ससुराल में रौनक लगी हुई थी! वाकई फंक्शन की तैयारियां जोर शोर से चल रही थीं! नंदिनी की ननद नीतू ने उसे गले से लगा लिया और मुन्ने को गोद में ले लिया! सब वहां घेरा बनाकर खड़े हो गए!

“इनसे मिलो छोटे, ये तुम्हारे फूफाजी हैं, चलो नमस्ते करो.....अरे देखो तो, दोनों हाथ मिले हुए हैं....भई नमस्ते कर रहा है....देख लो अभी से कितना समझदार है! कितना इंटेलीजेंट है, सेम टू सेम बुआ पर गया है....हाहाहा” नई बनी बुआ की हंसी पूरे घर में गूंज रही थी जिसमें ‘फूफाजी’ की भी आवाज़ शामिल हो गई! घर भर ले लोग इस ठिठोली में शामिल हो गए!

“हाय-हाय....बुआ ही सारा नेग ले लेगी कि हमें भी हमारा हिस्सा मिलेगा! कहाँ है मुन्ने का पापा? बुलाओ मुन्ने की दादी को? अरे, कहाँ छुपा बैठा है मुन्ने का दादा? अरे कहीं जेब तो नहीं संभाल रहा? आज तो जेब ढीली करनी पड़ेगी! पच्चीस हज़ार से नीचे एक पैसा कम नहीं लूंगी! ”

तालियों और ढोलक की आवाज़ से पूरा आँगन चहकने लगा था! बहू के आने का ही तो इंतज़ार था! खबर मिलते ही हिजड़े भी ढोलक बजाते आ गए! उन्हें भी अपना नेग चाहिए था! थोड़ी ही देर में सारे पडोसी भी इकट्ठे हो गए! हिजड़े खूब नाचे, खुद ही नहीं घर-भर को बारी-बारी नचाया! दो घंटे खूब हंगामा किया उन्होंने! सास-ससुर-ननद-ननदोई सबने खूब न्यौछावर की! सबकी खुशियाँ झलकी पड़ रही थीं! इतने नोट वारे कि हिजड़ों का मुंह नोटों से भर दिया! अपनी पसंद के गानों पर नचाया, खूब रौनक मेला हुआ! मनचाही बधाई लेकर मुन्ने को खूब आशीष देकर वे चले गए और सब वापिस अपने काम में लग गए! अगले दिन फंक्शन जो था!

लेखिका अंजू शर्मा

परिचय

दिल्ली निवासी अंजू शर्मा एक कवियत्री और कहानीकार हैं उनकी एक कविता " चालीस साला ओउराते " बहुत मशहूर रही हैं उनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हैं बोधि प्रकाशन से . देश की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओ में उनकी कहानियाँ कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं