Hastlikhit Bhitti patra aev patrikae in Hindi Magazine by saksham dwivedi books and stories PDF | हस्तलिखित भित्ति पत्र एवं पत्रिकाएँ

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हस्तलिखित भित्ति पत्र एवं पत्रिकाएँ

अभिव्यक्ति की एक अलग परंपरा ‘हस्तलिखित भित्ति पत्र एवं पत्रिकाएँ’

सक्षम द्विवेदी

‘‘ तुम जो बोलते हो मैं उसका समर्थन कभी नहीं करूंगा लेकिन तुम्हारे बोलने के अधिकार का समर्थन मैं मरते दम तक करूंगा ’’ वॉल्टेयर के द्वारा कहा गया यह वाक्य एक स्वस्थ समाज में अभिव्यक्ति व विरोध की उपस्थिती की अनिवार्यता को दर्शाता है।
आज जबकि सोशल नेटवर्किंग का दौर है लोगों के हाथों में टैबलेट्स,मोबाईल,गैजेट्स,लैपटॉप सहित अन्य आधुनिक उपकरणों ने संचार की गति को अत्यधिक तीव्रता प्रदान की है। मीडिया कर्न्वजेंस ने आज दैनिक समाचार पत्र जैसे पारंपरिक मुद्रित माध्यम के किसी भी क्षेत्रीय अंक को भी लोगों के एनराइड सेट्स तक पंहुचा दिया मोबाईल में उपलब्ध एफ0एम0 व विविध भारती ने रेडियो को स्मृति चिन्ह के रूप में तब्दील कर दिया। माध्यम के साथ अभिव्यक्ति का स्वरूप और भाष बदलने लगी। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति या समूह बहुत पुराने परंपरागत माध्यम द्वारा हाथ से लिखकर,पृष्ठसज्जा कर,कार्टून व कैरिकेचर बनाकर शिद्दत के साथ अलग-अलग दीवारों पर जाकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करे तो निश्चित ही एक उत्सुकता का विषय बनता है। आखिर ये युवा ऐसा कर क्यों रहें हैं ? तमाम अत्याधुनिक संचार माध्यमों को छोड़कर इस प्रकार से विचारों की अभिव्यति का क्या उद्देश्य हो सकता है ?
ऐसे तमाम सवाल जेहन में बरबस ही उमड़ पड़तें है जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय,पुस्कालय,छात्रावासों सहित तमाम अन्य शैक्षणिक संस्थाओं की दीवारों पर लोगों की नजर जाती है यहां पर कुछ पाक्षिक,मासिक व अन्य समयावधि के पत्र-पत्रिकाएं दिखाईं देतीं हैं। जहां एक बड़ा हिस्सा इनको नजरअंदाज करता हुआ आगे बढ़ जाता है वहीं कुछ लोग अपनी आंखे कुछ देर इस पर टिकाकर कुछ समझते नजर आते हैं। इलाहाबाद में ‘इत्यादि’,‘संवेग’,‘प्रतिरोध’,‘वयम’,‘प्रवाह’,‘आरोही’ सहित कुछ अन्य हस्तलिखित भित्ति पत्र-पत्रिकाएं प्रमुख हैं।
छात्रों के समूह भगत सिंह विचार मंच द्वारा प्रारंभ की गयी ‘संवेग’ राजनैतिक,सामाजिक व शिक्षा पर आधारित एक पत्रिका है,यह कई बार विवादित विषय वस्तु व इनकी प्रतियां फाड़े जाने के कारण चर्चा मे रहती है। वहीं प्रतिरोध स्त्रीयों की दशा-दिशा को बयां करती नजर आती है। ‘इत्यादि’ का प्रथम अंक वर्ष 2001में आया। प्रवाह एवम आरोही अपनी अभिव्यक्ति अधिकांशतः काव्य रूप में करती है। वयम् इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के छात्रों द्वारा संपादित की जाने वाली एक पत्रिका है।
लोग इन पत्र-पत्रिकाओं के प्रति अलग-अलग प्रकार की धारणा रखते हैं। हिन्दी के प्रवक्ता रामामयण राम मानते हैं कि यह एक सकारात्मक कदम है। यह छात्र-छात्राओं सहित तमाम लोगों को अभिव्यक्ति का मंच प्रदान करता है तथा उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा देता है। उनका कहना है कि जब वह इलाहाबाद आये थे तब यह गिनी चुनी ही थी परन्तु इनकी संख्या मे उत्तरोत्तर वृद्धी हो रही है जो कि एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है। छात्र संदीप का कहना है कि आज के समय में जब लोगों के पास फेसबुक,ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स व ब्लॉग हैं,ऐसे में इस प्रकार की पत्र-पत्रिकाएं श्रम व समय की बर्बादी ही कही जा सकती हैं क्यों कि ज्यादातर लोग इन्हे रूककर पढ़ने की जहमत नहीं उठाना चाहते हैं।
वहीं ‘वयम्’ पत्रिका की संपादिका साक्षी कहती हैं कि जिस प्रकार तमाम न्यूज चैनल्स आने के बावजूद मु़द्रत माध्यमों का महत्व कम नही हुआ बल्की समाचार पत्र-पत्रिकाओं की संख्या व पाठक वर्ग मे इजाफा हुआ उसी प्रकार से हस्तलिखित भित्ती पत्र-पत्रिकाओं का अपना महत्व बना हुआ है। क्योंकि कि हम लोग यह कार्य बिना किसी व्यावसायिक लाभ की दृष्टी से एक मिशन के तौर पर करते हैं इसलिए हम पर उनकी तरह सर्कुलेशन व टी0आर0पी0 बढ़ाने जैसा दबाव नहीं रहता है। हमारा उद्देश्य तो बस बेबाकी से बिना पहचान छुपाए अपनी बात लोगों तक पंहुचाना है जिसमें हम सफल हो रहें हैं।
‘संवेग’ की संपादकीय टीम का कहना है कि यह काफी व सृजनशीलता का कार्य होता है। इसकी लंबाई व चौड़ाई एक दैनिक समाचार पत्र के फुल पेज के बराबर होती है। हम लोग इसे हाथ से लिखते हैं तथा शहर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सभी विभागों शहर के सभी शैक्षणिक संस्थाओं,पुस्तकालयों,छात्रावासों व अन्य प्रमुख स्थानें पर रातभर जागकर चिपकाने जातें हैं। विषय वस्तु तैयार करने के लिए हम लोग दिन मे एक बैठक आयोजित करते हैं तथा विषय का चुनाव करते हैं । स्थान ,परिस्थिति तथा प्रासंगिकता के अनुरूप ही विषय का चयन किया जाता है। जैसे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की जयंती या पुण्यतिथि आने पर हम लोग उस पर एक विशेष आलेख तैयार करने का प्रयास करते हैं । इसी प्रकार वर्तमान में समाज को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर भी हम अपने दृष्टिकोण से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं । जब हमारे कार्य की सराहना होती है तब हममे नयी ऊर्जा व उत्साह का संचार होता है और जब कुछ अराजक लोग इसकी प्रतियां फाड़ते है या विरोध करते है,तब भी हमें खुशी होती है क्यों कि इससे हमें पता चलता है कि हमारे कार्य का कहीं न कहीं प्रभाव पड़ रहा है।
दीवारों को प्राक्एतिहासिक काल से ही अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में देखा जाता रहा है। प्राक एटिहासिक काल में लोगों ने शिकार करने, आग जलाने व अन्य अपनी गतिविधियों को संरक्षित करने का प्रयास किया जिससे आज हमे तत्कालीन समाज की जानकारी प्राप्त होती है। अर्जुन अप्पदुराई के अनुसार “लोग संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित करने के लिए शब्द माध्यम, दृश्य माध्यम तथा दृश्य-श्रव्य माध्यम का सहारा लेते हैं” इस प्रक्रिया को उन्होने ‘मीडिया स्केप’ के रूप मे दर्शाया अजंता,एलोरा,एलीफेण्टा,भीमबैठका सहित अनेक स्थानों पर हमें भित्ती चित्र व लेख प्राप्त हुए हैं, सम्राट अशोक के काल की अधिकतर सूचनाएं भी हमें शिलालेखों व भित्ती लेखें से ही मिली हैं। वर्तमान में दीवारों पर पोस्टर और स्टीकर आदि लगाना यह दर्शाता है कि आज भी दीवारें अभिव्यक्ति के लिए उपयोगी हैं। ऐसे में इन हस्तलिखित भित्ती पत्र-पत्रिकाओं के महत्व को नकारा नहीं जा सकता तथा आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा व अन्य कई शिक्षण एवं अन्य संस्थाओं मे अस्तित्व मेँ है । हां इसे सफल बनाने के लिए न्यू मीडिया के वर्तमान समय में इनकी विषयवस्तु को प्रभावशाली , प्रासंगिक तथा लोचनीय रखना व पृष्ठसज्जा को सृजनशीलता द्वारा आकर्षक बनाये रखना एक बड़ी चुनौती कही जा सकती है ।

सक्षम द्विवेदी
रिसर्च ऑन इंडियन डायस्पोरा,महात्मा गांधी इंटरनेशनल हिन्दी यूनीवर्सिटी,वर्धा,महाराष्ट्र।
निवास - 20 दिलकुशा पार्क,न्यू कटरा,इलाहाबाद।
मो0 7588107164