काले धन के खिलाफ क्या हों दूसरे कदम
विगत कुछ वर्षों से हमारा देश अनेक आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं से गुजर रहा है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था के समानांतर एक और अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है। यह व्यवस्था काले धन की है। जिसका उपयोग मादक पदार्थों के अवैध व्यापार और आतंकवाद जैसी ध्वंसकारी गतिविधियों में किया जा रहा है। जिससे कि देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को घातक नुकसान हो रहा है। काले धन या समानांतर अर्थव्यवस्था की समस्या; सामान्य समस्याओं से अलग प्रकार की समस्या है क्योंकि जब हम सामान्य आर्थिक समस्याओं, यथा गरीबी, मुद्रास्फीति या बेरोजगारी के संबंध में विचार करते हैं तब हमारा ध्यान गरीब, निर्धन एवं बेरोजगार लोगों के समूह पर स्वत: केंद्रित हो जाता है। परंतु, जब काले धन या समानांतर अर्थव्यवस्था पर दृष्टिपात करते हैं तब एक नकारात्मक विशेषता दृष्टिगत होती है, क्योंकि इसमें वह व्यक्ति या व्यक्ति समूह प्रभावित नहीं होता, जो इस काले धन को रखता है बल्कि इससे वे व्यक्ति प्रभावित होते हैं, जो इससे वंचित रह गए हैं और साथ-ही-साथ इस देश की सरकार भी। यही तथ्य काले धन की समस्या को ध्वंसकारी साबित करती है।
सामान्य शब्दों में ‘काले धन’ का प्रयोग बिना हिसाब-किताबवाले या छिपाई हुई आय अथवा अप्रकट धन या उस धन के लिए किया जाता है, जो पूर्णतया अथवा अंशतया प्रतिबंधित सौदों में लगा हुआ है। काला धन काली आय’ अथवा ‘काली संपदा’ के रूप में भी हो सकता है। काली आय से तात्पर्य उन समस्त अवैध प्राप्तियों और लाभों से है जो करों की चोरी, गुप्त कोषों तथा अवैध कार्यो के करने से एक वर्ष में प्राप्त हुई हों। इसी प्रकार काली संपदा से तात्पर्य वह काली आय, जो वर्तमान में खर्च की जाती है और बचा ली जाती है या विनियोजित कर दी जाती है अर्थात् अपनी काली आय को व्यक्ति सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरातों, बहुमूल्य पत्थरों, भूमि, मकान, व्यापारिक परिसंपत्तियों आदि के रूप में रखता है। इस काले धन को आयकर अधिकारियों या सरकार की करारोपण दृष्टि से बचाकर रखने हेतु उपर्युक्त प्रक्रिया प्रयोग में लाई जाती है।
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष, दोनों प्रकार के करों के संबंध में चोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे अर्थव्यवस्था में काला धन बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि वर्तमान या पिछली सरकारों द्वारा इस पर कई प्रतिबंध लगाए गए है। जैसे, वर्तमान सरकार द्वारा आईडीएस जैसी योजनायें के तहत काले धनधारियों से यह अपेक्षा करना कि वे स्वत: तथा स्वेच्छापूर्वक अपने काले धन को प्रकट कर दें। करदाताओं के साथ ऐसे समझौता करना जिसमें यह आश्वास्ति हो कि समझौते न्यायपूर्ण, शीघ्र तथा स्वतंत्र रूप में होंगे। सरकार द्वारा दीर्घकालीन बॉण्ड जारी किया जाना। रियल एस्टेट तथा जीएसटी कानून लागू करना। अन्य उपायों में शामिल है तस्करी की रोकथाम, रोकथाम एवं गुप्तचर शाखा को सुदृढ़ बनाना, विदेशी विनिमय अधिनियम के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करना तथा पड़ोसी राष्ट्रों से द्विपक्षीय समझौते इत्यादि शामिल है।
इसी कड़ी में सरकार द्वारा बीते 8 नवंबर को घोषित विमुद्रीकरण या नोटबंदी की नीति, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, कालाधन, जाली नोटों से निपटने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि काला धन आमतौर पर इन्हीं नोटों के माध्यम से संचालित होता है। हालांकि इसकी घोषणा के लगभग आधा माह से अधिक बीत जाने के बाद, आमजन के मन में एक सवाल उभर रहा है कि क्या काले धन से निपटने हेतु यही एकमात्र कदम है या इससे जुड़े और भी कदम हो सकते हैं। तो इसका जवाब स्वत: आता है, विमुद्रीकरण अघोषित नकदी भ्रष्टाचार का एक पक्ष तो हो सकती है, लेकिन सिर्फ इसे ही भ्रष्टाचार का जड़ नहीं माना जा सकता। अत: भ्रष्टाचार की जड़ को काटने हेतु सरकार को और भी साहसिक कदम उठाने होंगे। आर्थिक विश्लेषकों के मुताबिक काले धन से निपटने हेतु निम्न उपायों पर जोर देने होंगे, जिसको अगर ईमानदारीपूर्वक लागू किया जाए तो ये व्यवस्था में सुधार हेतु दूरगामी साबित होंगे।
1. सोना - भारतवर्ष में सोना को काले धन को सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 1991 में सोने के आयात पर प्रतिबंध हटाने से इसकी खरीदारी में काले धन की कमी आई थीं। पर 2013 में कस्टम ड्यूटी को फिर से लागू कर दिया गया। वर्तमान में लगभग हर ग्राहक छूट के लालच में नकदी का इस्तेमाल करता है। इससे काले धन को बढ़ावा मिलता है। कस्टम ड्यूटी को हटाकर इस समस्या को जड़ से काटा जा सकता है। ज्वैलर्स पर निगरानी बढ़ाने का विकल्प भी एक उपाय है। हालांकि सरकार ने पिछले दिनों इस दिशा में कार्रवाई की प्रारंभ की थी। जिसका विरोध ज्वैलर्सों ने किया था।
2. रियल एस्टेट भी काले धन का एक प्रमुख स्रोत है। इसमें भारी नकदी का इस्तेमाल होता है। विशेष रूप से स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए इसमें नकदी का इस्तेमाल किया जाता है। जरूरत है, बिल्डरों एवं इसके नियामकों पर कठोर कार्रवाई हेतु लागू किए गए सख्त कानून पर शीघ्रता से अमल करने की। कस्टम ड्यूटी की तरह स्टांप ड्यूटी भी गलत है। सरकार को इसे बंद करना चाहिए। जीएसटी के दायरे में लाने से यह काफी हद तक यह नियंत्रित हो सकता है। इसके अतिरिक्त, भूमि खरीद एवं हस्तांतरण प्रणाली में भी सुधार होना चाहिए। और सबसे जरूरी है कि भूमि और संपत्ति के ब्यौरे का डिजीटलीकरण अनिवार्य बनाना और इसे पैन और आधार संख्या से जोड़ना।
3. हवाला – काले धन के लिए ‘हवाला’ एक चर्चित शब्द है। हवाला के जरिए मध्यपूर्व व पाकिस्तान जैसे देशों में पैसा भेजने के लिए कानूनी नियमों से बचने हेतु हवाला को अपनाया जाता है। आतंकवाद और ड्र्ग्स माफिया इसका ज्यादा इस्तेमाल करते है। पूंजी नियंत्रण कानूनों में सुधार से इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
4. कर प्रणाली – वर्तमान में जटिल कर प्रणाली भ्रष्टाचार को जन्म देती है। जीएसटी के जरिए हमें एक समान दर की जरूरत है। नए कर प्रशासन को अधिनियम की भी जरूरत है। जोत के आधार पर कृषि आय पर कर लगाना तथा छोटे और सीमांत किसानों को इससे दूर रखना।
5. प्लास्टिक मनी – प्लास्टिक मनी लेनदेन में पारदर्शिता को जन्म देती है। इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। नकद लेनदेन में भी शुल्क लगाया जाना चाहिए। अभी कई कारोबारी संस्थान/इकाई क्रेडिट कार्ड से भुगतान के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलते है। क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर शुल्क को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
6. प्रशासन – अधिकारियों को नियम बदलने की शक्ति, लाइसेंस देना, जांच कराना या सजा देने का अधिकार में सावधानी बरतनी होगी। जस्टिस श्रीकृष्णा के भारतीय वित्तीय अधिनियम के मसौदे के मुताबिक भारत में 120 ऐसे कानून हैं, जिन्हें हटाने की जरूरत होगी।
7. चुनाव में कालाधन – राजनीति में कालाधन का इस्तेमाल कोई राज नहीं रह गया है। दलों के कई परिवारों के पास बड़ी मात्रा में बेनामी संपत्ति पाई जाती है। राजनीति से काले धन को हटाने के लिए बड़े पैमाने पर आधारभूत सुधार करने होंगे। सबसे जरूरी है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले फंडिंग को सूचना के अधिकार और आय कर विभाग के दायरे में लाया जाए। राजनीतिक दलों को अपनी फंडिंग का ब्यौरा आय कर विभाग को देना चाहिए और इसका मिलान चुनाव अभियान में हुए खर्च के साथ किया जाए। भविष्य में देश को ऐसी व्यवस्था की तरफ बढ़ना चाहिए जहां राजनीतिक दल सरकारी खर्चे पर चुनाव लड़ें।
8. बैंकिंग सुधार – बैंकिंग सुधार समय की मांग है। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ ही निजी क्षेत्र के बैंकों की भी नकेल कसनी होगी। क्योंकि बैंक एवं सरकार से जुड़े लोग भी नियमों में कमी के जरिए काले धन को बढ़ावा देने में सहयोग करते है।
प्रॉक्सी फर्म स्टेकहोल्डर्स एम्पावरमेंट सर्विसेज (एसईएस) ने विमुद्रीकरण पर ‘नोटबंदी - भारत का ब्लैक्सिट’ शीर्षक से जारी अपनी रिपोर्ट में सरकार को भ्रष्टाचार से निपटने हेतु वर्तमान व्यवस्था में मौजूद खामियों को दूर करने हेतु कुछ सुझाव दिए है जिसमें से काफी कुछ ऊपर की पंक्तियों में उद्धृत किए गए हैं, जिनसे आने वाले में काफी फायदा होगा। इन सुझावों में प्रमुख है- भूमि और संपत्ति के ब्यौरे का डिजीटलीकरण अनिवार्य बनाना और इसे पैन और आधार संख्या से जोड़ना। छोटे और सीमांत किसानों को एकमुश्त सहायता प्रदान करना ताकि वे साहूकारों से मोटे ब्याज पर लिए गए कर्ज को वापस कर सकें। बैंकों के अलावा किसी को भी जमीन गिरवी रखने का अधिकार नहीं होगा। बैंक भी केवल फसल ऋण के लिए जमीन को गिरवी रख सकते हैं। रिपोर्ट में साहूकारी व्यवस्था को जड़ से समाप्त करना एवं चुनाव सुधार जैसे सुझाव भी शामिल है।
अंत में, हमारे देश यदि काला धन खूब फल-फूल रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण है दोषी लोगों के विरुद्ध जैसी कार्रवाई होनी चाहिए नहीं हो पाती। इसका मूल कारण हमारे नैतिक स्तर और सामाजिक मूल्यों में आई गिरावट है। अत: नैतिकता का प्रशिक्षण और व्यवहार प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित है। इस दृष्टि में वर्तमान सरकार को नोटबंदी के अलावा इन सुझाओं को भी लागू करना होगा। तभी प्रधानमंत्री श्री मोदी के शब्दों में ‘शुद्धिकरण’ जिसे उन्होंने नोटबंदी लागू करने के समय कहा था, वास्तविक रूप में हो पाएगा। क्योंकि शुद्धीकरण तभी होगा जब आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में शुचिता का समावेश होगा। और इसके लिए सरकार के साथ ही आम जन को भी सहभागिता करनी होगी। तभी काला धन नहीं हो पाएगा और समाज में उजियाले की किरण फैलेगी।
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मैं, साकेत कुमार सहाय, यह प्रमाणित करता हूं कि मेरी यह रचना मौलिक व अप्रकाशित है। ‘