ईश्वर का जन्म
छग्गन आठ दस बालकों के साथ गुल्ली डंडा खेल रहा था। वह अपने सभी मित्रों में सबसे लम्बा एवं असाधारण तगड़ा था। उसकी गुल्ली सभी बच्चों से चार पांच गुनी तक दूर तक जाती थी। वह जिस तरफ से खेलता था, वह दल विजयी होता था। उसकी उम्र के सभी बालक उसे बहुत चाहते थे। ज्यादातर पलों में वह अपने सहचरों को कंधे पर बिठा कर यहां वहां घूमता रहता था, इससे सभी बालकों ने उसे अपना प्रिय और चहेता बनाया हुआ था।
काफी पहले उनके जनक और उनके सहचर, सभी लोग पहाड़ी के खोह में रहा करते थे। ऋतुएं बदलने के साथ-साथ इधर-उधर अनेक जगहों पर भटक कर बेहद कष्टदयाक जीवन जीते थे। सर्दी के चार माह शामली पहाड़ी की खोह में बीताते थे।
उन लोगों में से एक वयोवृद्व व्यक्ति थे, जिसे सभी प्रथम मनीषी कहते थे। वे बहुत ही बुद्विमान और अनुभवी थे। उनके समझाये पर चलकर ही सभी जनों ने मड़ैया बनाना सीख लिया। आज लगभग सभी के पास अपना मड़ैया था। सर्दी के दिन जो पहले बहुत ही कठिनाई भरे होते थे, वे अब उतने कठीन नहीं रहे। काफी पहले तो लोग शिकार और कंदमूल पर आश्रित थे। पर अब लोग मनीषी के समझाये अनुसार कादो की फसल उगाने लगे थे।
धीरे -धीरे दल में एक-एक कर, चार मनीषी हो गए। सभी मनीषी आपस में मंत्रणा और मनन् करते रहते थे। प्रथम मनीषी भोजपत्र पर कुछ-कुछ लिख कर इकठ्ठा भी करते रहते थे। मनीषियांे का कहना अधिकांशतः सही साबित होता था। इसलिए लोग हमेशा मनीषियों से राय लेकर ही कोई नया काम करते थे।
झूमरी का मड़ैया का छप्पर उपर चढ़ाया जा रहा था। अनेक लोगों के सामूहिक प्रयास से भी छप्पर तीकाने तक नहीं पहुंच पा रहा था। लोग पसीने से लथपथ व निराश हो चले थे। उसी समय छग्गन कहीं से वहां आया। उसका तगड़ा शरीर देखकर किसी ने उसे छप्पर चढाने के लिए उसे इशारा किया। फिर छग्गन ने एक तरफ से छप्पर पकड़ कर बड़े आराम से उपर उठा दिया। बाकि लोग दूसरी ओर से लग गए और छप्पर आराम से तिकोना पर चढ गया। छग्गन की असाधारण ताकत देखकर उसमें से कुछ लोग सहम गए।
सभी बालकों के साथ छग्गन खेल रहा था। उसने अपनी बारी में गुल्ली पूरी का ताकत से ठोक दिया। गुल्ली बहुत दूर पहाड़ी की ओर चली गई। किसी बच्चे ने गुल्ली वापस लाने की जिम्मेवारी नहीं ली। मजबूरन छग्गन को गुल्ली लाने स्वंय ही जाना पड़ा। शाम होने वाली थी। अस्ताचल सूरज आकाश में लाल किरणें फैला कर प्रकाश की अंतिम रश्मि भी समेटने के तैयारी मे जूटा था।
झूमरी कंदमूल समेट कर घर को लौटने की तैयारी में थी। उसकी नजर छग्गन पर पड़ी, जो वहां गुल्ली ढूंढने वहां आया था। झूमरी उसके पास पंहुची और एक मादक नजर उस पर डाली। झूमरी दो कोड़ी और तीन वय की थी। छग्गन की उम्र एक कोड़ी और आठ साल थी। उसे झूमरी के मादक मुस्कान का कोई भाव समझ नहीं आया। वह रतिक्रिया और सहवास जैसी सभी बातों से बिलकुल अनजान था। झूमरी उसके बिल्कुल पास आयी और मादक स्वर में बोली -क्या चाहिए छग्गन ?
मेरी गुल्ली उड़कर इघर आ गई है। उसे ही ढूंढ रहा हूं।
मुझे लगा कि तुम मेरे लिए इधर आए हो।
मैं कुछ समझा नहीं।
कुछ नहीं, तुम उस दिन मेरे मड़ैया को एक तरफ से उठा कर अकेले तिकाने के उपर चढा दिए थे, तब से मैं तुम्हारे ही बारे में सोच रही थी।
छग्गन को फिर भी कुछ समझ में नहीं आया।
वह आगे बढ़ने को हुआ तो झूमरी ने उसे एक अच्छा सा कंद खाने को दिया, और इसी बहाने अपने शरीर से उसके शरीर को चिपकाने का प्रयास किया।
छग्गन इन सब से बेपरवाह होकर वहीं रूक कर कंद खाने लगा।
और दूं ?
नहीं ।
झूमरी उसके बिल्कुल पास चिपक कर खड़ी हो गई। झूमरी के उन्नत बक्ष छग्गन के चैड़ी छाती से टकरा रहा था। उसे अजीब सा महसूस हो रहा था।
वह कंदमूल की गठरी नीचे रखकर अपना अधोवस्त्र उपर उठाकर छग्गन से बोली -देख तो ए क्या है। छग्गन कुछ समझ नहीं पाया। तत्पश्चात झूमरी ने अपना दोनो बक्ष उसके हाथ में डालकर उसे अपने बहुपाश में बांध ली। छग्गन को यह सब कुछ अजीब सा लेकिन उसे यह कुछ नया और अच्छा लग सा महसूस हुआ। नैसर्गिक रूप से काम वासना उत्पन्न हुआ, और दोनो मदोन्नमत होने लगे। झूमरी के इशारे पर छग्गन अपना जनांग झूमरी के जनांग पर रखकर जोर से दबा दिया। दोनो के तरफ से रक्त के कुछ कण निकले और वहीं पाषाण पर गिर कर नीचे तक टपक गए जैसे रक्तांजलि अर्पित की गई हो। दोनो पसीने से लथपथ रति क्रिया में काफी देर तक रत रहे। फिर दोनो अलग हुए और बसेरे की ओर चल दिए।
झूमरी अपने घर महूआ से मीठा तैयार कर रही थी। उसने अपनी माता से पूछा - मां क्या थोड़ा सा मीठा छग्गन को दे दंू ?
क्यों - छग्गन को क्यों ?
तुम्हें याद है उसने अपनी मड़ैया का छप्पर एक तरफ से अकेले तिकाने पर चढा दिया था। झूमरी की मां मान गई। झूमरी छग्गन को बुलाने मैदान पहुंच गई। छग्गन खेलने में मस्त था। उसे झूमरी से मिलने के बाद एक दो दिन खेल में ना तो मन लगा और ना ही उसका ख्याल मन से गया। फिर कुछ दिन बाद वह उसे लगभग -लगभग उसे भूलने लगा था। झूमरी उसे आवाज दे रही थी।
वह बिना कुछ बोले झूमरी के संग हो लिया। जब झूमरी वापस घर लौटी तो उसकी मां कुछ लेने कहीं बाहर चली गई थी। घर खाली था। वह भूल गई कि वह छग्गन को कुछ खाने को देने लायी है।
वह घर के अन्दर आते ही छग्गन को अपने बाजुओं में कस ली। वह वही सब दोहराने लगी,जो उसने झाड़ी की ओट में किया था। छग्गन आज उस दिन से ज्यादा समझ के साथ झूमरी के साथ रति क्रिया में लग गया। इसके बाद झूमरी को जब भी मौका मिलता वह छग्गन को अपने मडै़या में लिवा ले जाती थी।
छग्गन अपने साथियों से साथ खेल रहा था। तभी ढ़मन की बहन उसे बुलाने आयी। वह एक कोड़ी और तीन वय की थी। शरीर में उभार आने शुरू हुए थे। छग्गन उसके शरीर के उभारों को निहारता रहा।
दो दिन बाद ढ़मन की बहन रूपो उसे राह में मिल गयी। छग्गन उसे कंद देने के नाम पर उसी पहाड़ी पर ले गया, जहां झूमरी से पहली बार मिली थी। छग्गन ने रूपो को दो बड़े बड़े कंद ढूंढ कर दिए और बातों बातों में उसके बस्त्र शरीर से अलग कर दिए। रूपो हैरान हो रही थी। छग्गन धीरे - धीरे उसके कोमल शरीर पर हाथ फेरने लगा। रूपो को कुछ समझ नहीं आ रहा था, मगर वह चुप रही। फिर एकाएक छग्गन से टीले पर लिटाकर उसके जननांग पर पर अपना जननांग रखकर दबाने लगा। छग्गन के अनेक प्रयास से उसका जननांग तो अन्दर समा गया, साथ ही फिजा में एक दर्द भरी चीख भी गुंज गई। शुरू में रूपो रोती रही, और थोड़ी देर बाद चुप हो गयी। कुछ देर बाद दोनो अलग अलग हो कर बैठ गये। छग्गन को यह खेल बहुत मजेदार लगा। कुछ समय बीतने के बाद छग्गन ने उसे दो मीठे कंद और ढूंढ कर दिए और बसेरे की ओर वापस चल पड़ा।
छग्गन बसेरे में रहने वाली लगभग अनेक बालिकाओं को पहाड़ी पर ले गया और उसके साथ जबरन यौनाचार का खेल खेलता रहा। कुछ बालिकाएं तो कष्ट सहकर भी अगली बार उसके साथ खुशी-खुशी चल पड़ती थी, तो कुछ बालिकाएं छग्गन को आते देखकर अपने अपने घरों में दुबक जाती थी।
आज चारो मनीषी एक साथ इकठ्ठा होकर एक बड़ी समस्या पर मंथन कर रहे थे। वे छग्गन के कुत्सित कार्यो से चिन्तित थे। उसे भी राषक की तरह ही बसेरे से हटाना चाहते थे। दो मनीषी का कहना था कि छग्गन समाज के बड़े काम आता है। कठिन परिस्थिति में वह वैसा भी कार्य किया जिसे अनेक दिमाग व ताकत वाले नहीं कर सकते थे। भादो के महीने में जब भदैया बारिश से पानी का सैलाब एकाएक जब बसेरे में भर गया था और जीतन व उसकी सहचरी पानी के बहाव बह कर झील के मुहाने पर जा पहुंची थी। उस समय उनकी मौत सबको निश्चित दिख रही थी, तब छग्गन के पटरा लेकर उस तेज बहाव का सामना करते हुए वहां तक पहुंचा था। बिना किसी के कहे ही दोनो को बचा लाया था। उसने अपनी जान की जरा भी परवाह नहीं की थी। इस तरह के और भी कई मुसिबतों में वह बसेरे वालों का काम आया था।
राषक की वय जब पूरी दोे कोरी का भी नहीं हुयी थी तब से वह अनेक तरह की कुत्सित हरकतें करने लगा। वह सबसे पहले एक जंगली बकरी को पकड़ कर दो पेड़ों के शाखा में आगे से फसा दिया और फिर उसके जनानांग में अपना जनानांग डालने का अथक प्रयास करने लगा। उसके बाद तो वह श्वान, भेड़ जैसे अनेक पशुओं के साथ एैसा कुत्सित व्यवहार किया। धीरे -धीरे बसेरे के बालक और बालिकाओं से उसने जबरन प्राकृतिक और अप्राकृतिक यौनाचार करने लगा था।
उस समय बेसेरे में केवल दो मनीषी थे। राषक की हरकत के बारे में अनेक शिकायत उनके पास तक पहंुच रही थी। मनीषी ने राषक को अनेक बार जीवन जीने के तौर तरीके व कुछ जिम्मेवारी बतायी, मगर राशक पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह सदा की तरह अपनी कुत्सित कार्यो में लगा रहा। अनेक शिकायतों के पश्चात दोनो मनीषियों ने एक कठिन फैसला लिया। उसने राषक को शाम में अपने पास बुलाया और कुछ बातें करते हुए अजगेवा की उंची पहाड़ी पर ले गए। अजगेवा पहाड़ी की सबसे उंची चोटी पर प्रथम मनीषी ने नीचे झांका और एक अद्भुत नजारा का जिक्र द्वितीय मनीषी से किया। राषक ने भी उस नजारे को देखने के लिए झुका ही था कि प्रथम मनीषी ने उसे एक धक्का दे दिया और शांत भाव से दोनो पहाड़ी से उतर कर वापस बसेरे में आ गए।
चारो मनीषी राषक जैसा उपचार पर सहमत भी नहीं थे। छग्गन हमेशा बसेरे में सबके काम भी आ रहा था। वह असाधारण शक्तिशाली भी था। चारो मनीषियों द्वारा छग्गन को झिड़की देना या पटकनी संभव भी नहीं था। बसेरे के किसी ताकतवर जन मदद लेने पर बात बाहर जाने और बसेरे का विरोघ का खतरा था। वैसे तो बसेरे वाले यह मानते थे कि चारो मनीषी केवल और केवल बसेरे की भले के लिए ही जीते हैं, मगर फिर भी विरोध और अविश्वास का खतरा तो था ही। पटकनी और झिड़की आसान भी नहीं था।
छग्गन और राषक में काफी अंतर था। छग्गन को झूमरी ने गलत रास्ते पर डाला था, जबकि राषक जन्मजात कुत्सित मार्ग पर चल पड़ा था। छग्गन केवल बालिकाओं के साथ ही यौनाचार कर रहा था, जबकि राषक ने क्या इंसान क्या पशु किसी को भी नहीं छोड़ता था।
लम्बे समय तक मनन करने के बाद भी चारो मनीषियों के विचार किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच रहे थे। उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा था कि छग्गन को कैसे डराया जाए, जिससे वह समाज के प्रति जिम्मवार बने। किसी को वह तंग ना कर सके। बसेरे में उससे ज्यादा ताकत कोई नहीं था।
बूढ़े प्रथम मनीषी के मन में एक हल आया, और सबने उस हल को अजमाने का निर्णय लिया।
बसेरे के सभी निवासियों को बुलाया गया था। मनिषियों के निवास के आगे एक एक सुन्दर आकर्षक और गोलाकार पत्थर रखा गया था। उसके चारो ओर सभी प्रकार के फूल से सजाए गए थे। मनीषी के आदेश पर सभी निवासीगण पत्थर के आगे मस्तक टेक रहे थे। एक मनीषी मस्तक टेकने वाले को गेरू का टिका लगा रहा था। इससे पहले इस तरह का आयोजन कभी नहीं हुआ था। और ना ही इससे पहले वहां कोई पत्थर और फूल रखे गए थे।
बसेरे के सभी जनों ने बारी बारी से मस्तक टेक लिए। अब बारी छग्गन की थी। जब छग्गन ने माथा टेका तो प्रथम मनीषी ने बड़े प्यार और स्नेह से टीका लगाया। फिर उस आकर्षक पत्थर की ओर इशारा करतक हुए सवाल सवाल किया कि यह क्या है।
छग्गन ने अनभिज्ञता प्रकट कर दी। तब प्रथम मनीषी उसे वहां से बाहर ले आए। फिर समझाते हुए - रात मेरे सपने में सर्वशक्तिमान भगवान आये थे, उन्होंने मेरे से पुछा कि मेरा निवास तूने कहां बनबाया है बता मेरे पास उनके प्रश्न का जवाब नहीं था। फिर उन्होंने कहा इस बसेरे मेे पाप होने लगा है। अज्ञानी युवक अनेक युवतियों से सहवास कर रहें है। मैं उसका समूल नाश कर दूंगा। समूल मतलब -छग्गन ने जल्दी में पूछा।
स्मूल मतलब माता पिता भाई बहन समेत नाश।
नाश वो कैसे
एक आग आकाश से आयेगी और उसके मड़ैया समेत सभी रहने वाले राख में बदल जायेंगे
मतलब
देखो भगवान जी ने मुझे जो सपने में बताया उसका खुलासा यह है कि पाप करने वाले के लिए भयानक सजा और पुण्य करने वाले के लिए राजयोग की बतायें है।
और जो पाप हो गया हो उसका
उसका प्रायश्चित से उसकी मुक्ति हो सकती है।
प्रायश्चित किस प्रकार से
जिसने पाप किया हो वो एक नारी से विवाह करे और जबतक जीवित रहे मंदिर नित्य प्रतिदिन सुर्योदय से पहले मंदिर को पूरी सफाई करे उसके पाप धूल जायेंगे
यह सुनकर छग्गन के दिल में बड़ा संतोष हुआ और वो प्रथम मनीषी के चरणों में बैठ गया।
भगवान का जन्म हो चुका था।