Jinn ka Tohfa - 3 in Hindi Horror Stories by Khushi Saifi books and stories PDF | जीन का तोहफा - 3

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जीन का तोहफा - 3

जिन्न का तोहफा – पार्ट 3

वक़्त के गुजरने के साथ उनके घर जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए एक लड़का और एक लड़की। उस वक़्त उसे वो जादुई संदूकची का ख्याल आया कि क्यों ना आज ख़ुशी के मौके पर उसमें कुछ लिख कर रखा जाये। ये सोचना था और उसने संदूकची में एक कागज पर “लड्डू का टोकरा” लिख कर रख दिया और इंतज़ार करने लगा कि क्या होता है। पूरा दिन गुज़र गया और कुछ नही हुआ, वो आदमी कुछ मायूस सा हो कर सो गया पर जब सुबह फ़ज़िर में आंख खुली तो क्या देखता है कि ताज़े मोती चूर के लड्डू से भरा एक टोकरा उसकी जायनमाज़ के पास रखा है, उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा और उसने ख़ुशी ख़ुशी सब लड्डू ले जा कर अपनी बीवी के सामने रख दिए।

“अरे ये इतने सारे लड्डू कहाँ से आये जी” उसकी बीवी ने ताज्जुब और ख़ुशी के मिले जुले लहज़े में पूछा।

“तुम्हें इससे क्या मतलब है, लड्डू खाओ तुम बस.. हमारी औलाद के आने की ख़ुशी में हैं ये लड्डू” उसने एक लड्डू मुँह में डालते हुए कहा।

“लगता है कल दिहाड़ी ले कर आये हो, जब ही इतने लड्डू साथ ले आये” बीवी भी खुश हो गयी।

“हाँ, ऐसा ही कुछ समझ लो, अब तुम्हे और अम्मा को जो चाहिए मुझे बता दिया करो.. मैं ले आया करूँगा”

ये कह कर वो दूसरे कमरे में आ गया जहाँ उसने जादुई संदूकची छुपा रखी थी, सोचा कुछ और मंगाया जाये और कागज़ पर “5 सोने के सिक्के” लिख कर रख दिया, संदूकची को छुपा कर रोज़ की तरह काम पर चला गया। उसे यकीन था जब आयेगा तो सोने के सिक्के संदूकची में रखे होंगे।

घर में इतने सारे लड्डू देख कर सास बहू ने सोचा “इतने लड्डू हम 3 जन नही खा पाएंगे, क्यों ना गांव में बाँट दिए जाये”

सास बहू की सहमती से घर में कुछ लड्डू रोक कर बाकि गांव में बाँट दिए कि “हमारे घर ख़ुशी आयी है सब मुँह मीठा करो”

पड़ोसियों ने मुबाकरबाद देने के साथ ख़ुशी ख़ुशी लड्डू रख लिए।

लेकिन किसी को नही मालूम था कि कितनी बड़ी गलती होने जा रही है जिसका हर्जाना उन सब को भुगतना था।

वो आदमी काम पर पुहंच कर अपने काम से लग गया और संदूकची का सोच सोच कर खुश होता रहा कि अब किसी चीज़ की परेशानी नही आएगी, जिस चीज़ की ज़रूरत होगी उस जादुई संदूकची के जिन्न से माँग सकता है। ख़ुशी ऐसी थी बीवी को बताना भूल गया “ये लड्डू सिर्फ हम घर के लोगो के लिए हैं, हम 3 जन की अलावा किसी और को नही खिलाना और ना ही बताना”

इसी ख़ुशी में काम से लगे आधा दिन गुज़र गया तभी अचानक उसे जिन्न के कहे अल्फ़ाज़ याद आये। जिन्न ने कहा था “किसी तीसरे को पता न चले और अपनी जरूरत से ज़्यादा न मांगना”

ये बात याद आते ही किसी अनहोनी के डर से उलटे पाऊँ घर भागा। जब तक घर पहुँचता देर हो गयी थी, जंगल के रास्ते में ही एक खोफनाक आवाज़ ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया।

“रुक जा यहीं” एक सफ़ेद कपडे पहने बहुत लम्बा आदमी उसके सामने आ गया जिसकी आवाज़ पर उसे रुकना पड़ा।

“कौन हो तुम” आदमी ने डरते डरते पूछा।

“मैं वही जिन्न हूँ जिसने तुझे संदूकची दी थी, मैंने तुझसे कहा था मैं सिर्फ तुझ पर मेहरबान हुआ था पुरे गांव पर नही, तेरी बीवी ने सारे गांव में मेरे दिए लड्डू बाँट दिए, अब जो होगा उसका ज़िम्मेदार तू खुद होगा” उस जिन्न ने आदमी से कहा।

सफ़ेद कपड़ों में सफ़ेद दाड़ी पर गुस्से से हिलते लब.. आँखे जैसे आँखे नही.. दो दहकते अंगारे, जिन से आग टपक रही थी, पूरा जिस्म सफ़ेद चोगे से ढका हुआ, इंसान से लम्बा कद जैसे एक पल में पैर रख कर कुचल देगा ऐसा ख़ौफ़नाक मंज़र सामने देख कर आदमी अपने हवास खोने लगा।

“न नही, मुझे माफ़ कर दो, मु मुझ से गलती हो गयी” आदमी ने आने वाले वक़्त से डरते हुए कहा।

“अब कुछ नही हो सकता, तेरी गलती का तुझे और तेरे घर वालो को भुगतना पड़ेगा, मैं तेरे बेटे को अपने साथ ले जा रहा हूँ हमेशा के लिए.. आज के बाद तेरे घर में कोई बेटा जिन्दा नही रहेगा” जिन्न के कहे लफ्ज़ सीसे की तरह पिगल कर उस आदमी के कानों में जा रहे था, वो माफ़ी मांगता, रोता, गिड़गिड़ाता रहा पर कुछ हासिल नही हुआ, वो ख़ौफ़ और दुःख में घिरा खड़ा रह गया और सामने खड़ा लम्बा सफ़ेद साया धुंवा बनता गायब हो गया।

डूबे दिल और ख़ौफ़ के साए में घिरा घर पुहंचा तो बीवी और माँ को बेतहाशा रोते पाया..

“मेरा बेटा न जाने कहाँ चला गया, मेरे पास में लेटा था, मैं बस एक पल को अम्मा के पास गई थी वापिस आयी तो यहाँ नही था, घर में भी कोई नही आया.. मेरे बेटे को लाओ, ढूंढो उसे कहीं” उस आदमी की बीवी ज़ोर ज़ोर से रो रही थी, अपने शोहर से फरयाद कर रह थी।

आदमी की आँखों से बस नमकीन पानी बहता रहा, वो समझ गया था जिन्न अपना कहा पूरा कर गया और उसके बेटे को हमेशा के लिए ले गया। जो होना था वो हो गया उसे अब वापिस नही किया जा सकता था। अपनी गलती पर उसे अब ज़िन्दगी भर पछताना था।

गांव में जिस जिस के घर लड्डू गये सब गायब हो गए और पड़ोसियों में तरह तरह की अफवाह उड़ने लगी.. कोई भूत कहता तो कोई जादू बोलता।

उस आदमी ने जादुई संदूकची खोल कर देखी जिसमे “5 सोने के सिक्के” लिख कर रखा था। जैसे ही उसने संदूकची खोली तो दहशत से पीछे हट गया, उसमे 5 सोने के सिक्के की जगह 5 ज़हरीले काले बिच्छु थे, संदूकची खुलते ही बिच्छु निकल कर भाग गये। उस आदमी ने संदूकची में ताला लगा दिया, ताले की चाबी और संदूकची को हमेशा के लिए छुपा दिया जहाँ कोई उसे नही देख पाए।

इस वाकिये के कुछ साल बाद अल्लाह ने उसे फिर एक बेटे से नवाजा पर वो भी बीमार हो कर मर गया, उसे समझ आ गया था ये भी उसी गलती की सजा है।

इतना कह कर नाना जान चुप हो गए, नाना जान ने कहानी पूरी की तो मैंने पूछा “उस जादुई संदूकची का क्या हुआ”

“वो संदूकची उस आदमी ने कही छुपा दी, वो अब बस एक लकड़ी की संदूकची रह गयी थी, कोई जादू नही रह गया था उसमें” नाना जान ने बताया।

“नाना जान क्या ये सच्ची कहानी है, क्या ये किस्सा सच में किसी के साथ हुआ था” मैंने नाना जान से पूछा।

“बेटा कहानियां भी ज़िन्दगी का ही हिस्सा होती है, ज़िन्दगी के किसी न किसी हिस्से को निकाल कर कहानियों का रूप दे दिया जाता है” नाना जान ने मुझे समझाया।

नाना जान कहानी पूरी होने पर कुछ उदास से हो गए, उदास तो मैं भी हो गया था.. कितनी दुःख भरी कहानी थी उस आदमी की।

हर साल गर्मी की छुट्टियों में हम तीनों भाई बहन अपनी अम्मी के साथ नानी के घर जाते, पर जैसे जैसे हम बड़े हुए ऐसे ऐसे हमारा जाना भी कम होता गया.. स्कूल और कॉलेज की पढाई से वक़्त ही नही मिलता लेकिन मेरी अम्मी पाबन्दी से हर साल अपने अम्मी अब्बू के घर जाती क्योंकि नाना और नानी अकेले रहते थे, मेरी अम्मी उनके इकलौती औलाद है, मेरे पापा भी उन्हें कभी जाने से नही रोकते.. दोनों में माशा अल्लाह बहुत अच्छी understanding है।

कोई साल सवा साल पहले मेरे नाना जान का इंतकाल (death) हो गया, जब मैं उनकी ताज़ियत (दुःख जताने) के लिए उनके घर गया था।

अम्मी और नानी अम्मी, नाना जान के पुराने कपडे और सामान गरीबो में बाँटने के लिए निकाल रही थी, उन्ही सामानों में से एक चीज़ पर मेरी नज़र ठहर गयी और मैं सकते में आ गया.. मेरे सामने एक छोटी सी लकड़ी की संदूकची पड़ी थी जिसमे ताला लगा हुआ था, मैंने उसे उठा लिया और नानी अम्मी से पूछा “इस की चाबी कहाँ है नानी अम्मी”

“मुझे नही मालूम बेटा, तुम्हारे नाना जान ने ही कहीं रखी होगी.. पता नही कब कौन सा सामान ला कर कहाँ रख देते थे, अब से पहले मैंने ये संदूकची कभी नही देखी” नानी अम्मी ने बताया।

“क्या ये संदूकची मैं रख सकता हूँ आने पास” मैंने नानी अम्मी से इल्तिज़ा (request) की।

“हाँ बेटा, रख लो” नानी अम्मी ये कह कर अपने काम में लग गयी और वो ताला लगी संदूकची मैं अपने साथ अपने घर ले आया।

अब जब भी मैं उस संदूकची को देखता हूँ.. मुझे एहसास होता है कि कहानी सुनाने के बाद नाना जान उदास क्यों हो गए थे, क्योंकि वो कहानी वाला आदमी कोई और नही बल्कि मेरे नाना जान थे, जिनके साथ ये सारा वाक़िया पेश आया था।

-Khushi Saifi