कार वाला करोड़पति एम.आर.
लेखकः प्रेम अरोड़ा
पुस्तक के बारे मे:
कार वाला करोड़पति एक बिजनेस फिक्शन है इसमें एक एमआर.की कहानी है कि वह किस तरह से संघर्ष करता है और फिर एक दिन उसको मेडीसिन के सही बिजनेस की समझ आ जाती है और वह मानवता की सेवा में लग जाता है और तीन साल में ही वह कार वाला करोड़पति एम.आर. कहलाता है और अपने जीवन में आगे बढ़ता जाता है और दूसरों को भी आगे बढ़ाता है। शानदार प्रेरणादायक बिजनेस फिक्शन है जिसको पढ़ कर आपको एम.आर. को समझने का मौका मिलेगा और इस फिक्शन से उन युवक युवतियों को प्रेरणा मिलेगी जो जीवन में सफल होना चाहते हैं।
सादर समर्पित
कार वाला करोड़पति एम.आर. मेरी यह पुस्तक समर्पित है उन करोड़ों एम.आर. मेडीक्ल रीप्रजन्टेटिव को जो सुबह से ही निकल पड़ते हैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना दवाईयों से भरा सैंपल बैग उठा कर व उनके बैग में होती हैं अनेक पर्सेनेलिटी डेवलपमेंट बुक्स। डाक्टर साहिब से अपाइंटमेंट लेना व टार्गेट पूरा करना रिपोर्ट बनाना। कंपनी चेंज करना और उसका टार्गेट पूरा करना। इन सभी खुशदिल व नेक एमआर को यह पुस्तक उनके जीवन में आगे बढ़ने की शुभकामनाओं का प्रतीक चिन्ह व नववर्ष की सप्रेम भेंट है।
स्कूल के दिनों से ही वह खोया खोया सा रहता था और मेरी ही क्लास में सबसे पीछे की बैंच पर बैठा रहता था सुनील नाम था उसका हम सब उसको डाक्टर साहिब डाक्टर साहिब कहते थे क्योंकि पीछे की बैंच में अपने शांत स्वभाव से वह अपनी किसी भी कापी पर कभी स्टेथनोस्कोप की फोटो बनाता तो कभी डाक्टर की। गांव के उस स्कूल में ज्यादा सुविधायें भी नहीं थी। टूटी हुयी छत के क्लासरूम में हम सब टाट पर ही बैठते थे वो तो भला हो उसका जिसने कनेडा से इस स्कूल के सभी क्लासरूम के लिए बैंच भेज दिये थे वर्ना हमारे तो पूरे जिले के किसी स्कूल में बैंच थे ही नहीं। एक दिन प्रार्थना के समय पीटी मास्टर साहिब ने बताया कि हमारी क्लासरूम में बैंच जिसने भेजें हैं वह कनेडा में डाक्टर है और वो इसी स्कूल का ही छात्र रहा है। यह सुनते ही सुनील का चेहरा खुशी के मारे जगमगा उठा था मानो वही कनेडा में डाक्टर हो और उसने ही यह बैंच भिजवायें हैं। बस उस दिन से सुनील की पेन्सिल और पैन से ड्राईंग और बढ़ गयी और जैसे ही स्कूल की छुट्टी होती तो हमारे गांव के सबसे पिछली गली वाले डाक्टर मंडल की दुकान पर जाता और उसको मरीज़ चैक करते टकटकी बांध कर देखता रहता। मुझे साईंस वाले मास्टर साहिब सबकी कॉपी चैक करने को कहते तो मॉनीटर होने के नाते मैं जब भी सुनील की कॉपी चैक करता तो उस पर डाक्टर मरीज़ दवाइयों को फोटो कैप्सूल गोलियों के फोटो बने होते या फिर तरह तरह की सिरिंज की फोटो उसमें बनी हुयी मिलती। मैं मास्टर साहिब को झूठ ही बोलता था कि सुनील ने सारा होम वर्क कर लिया है और इसके बदले में मुझे इन्टरवल में भी सुनील को होमवर्क करने में लगाना पड़ता। मैं काफी कोशिश करता कि सुनील हंसे बोले पर वह खोया खोया सा रहता और बस डाक्टर मरीज़ गोलियों कैप्सूल के चित्रों में ही खोया रहता। एक दिन स्कूल की जल्दी छुटटी हो गयी तो मैं स्कूल में नये आने वाले हेड मास्टर साहिब के कमरे को ठीक करने में लग गया। 2 घंटे बाद जब मैं घर की ओर जाने लगा तो मैंने स्कूल के एक कोने में सुनील को बैठे देखा वह अपनी ड्राईंग करने में मस्त था और आज वह अजीबो गरीब ड्राईंग कर रहा था उसके सामने खाली दवाईयों के अनेक डिब्बे थे और खाली इंजेक्शन उसके आगे रखे थे। ‘‘सुनील, तुम अभी घर नहीं गये?’’ मेरी आवाज़ सुन कर वह चौंका। नहीं भईया, बस जा रहा हूं। यह कहते हुये उसने कॉपी को अपने बस्ते में रख लिया और हरे लाल नीले सभी रंगों के पैनों को अपने जोमैक्टरी बॉक्स में समेटने लगा और दवाईयों के खाली डिब्बों और इंजेक्शन की खाली शीशियों को वहीं पर ही ईटों के पीछे छुपा दिया। ‘‘ चल सुनील हम घर चलते हैं यार, वर्ना तेरी मम्मी मुझे बहुत डांटेंगीं’’ तू इतनी देर से क्या कर रहा है घर क्यों नहीं गया। सुनील को मानो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था और वह अपनी ही धुन में था। अंदर अंदर ही मुस्करा रहा था और मेरे साथ चला जा रहा था मानो उसको वह मिल गया जो उसको चाहिए था।
जनवरी के महीने में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी स्कूल की हाजिरी तो वैसे ही कम थी पर ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि सुनील क्लास में न आया हो क्योंकि उसके घर में एक ही कमरे में पूरा परिवार था और शायद क्लासरूम का बैंच ही था यहां बैठ कर वह खुल कर अपनी ड्राईंग करता रहता था। मुझे भी अजीब सा लगा और मैं सीधा सुनील के घर पहुंच गया। ‘‘मम्मी जी सुनील कहां है?’’ मैंने सुनील की मम्मी से पूछा। पता चला कि सुनील को रात से तेज़ बुखार है और सुनील के पापा अभी शहर से लौटे नहीं है मैंने देखा सुनील सोया हुआ था उसके माथे पर हाथ लगाया तो उसका माथा ठंड में भी तवे की तरह तप रहा था। ‘‘अरे तुम्हे तो तेज़ बुखार है’’ ‘‘हां भैया’’ सुनील ने कहा। मैंने उसे डाक्टर के पास चलने को कहा तो उसने मना कर दिया और अपने तकिये के नीचे से दवाई निकाली और मुझे दिखाने लगा। ‘‘यह कौन से डाक्टर से लाया है’’ मैंने पूछा तो उसने तपाक से जवाब दिया ‘‘परशुराम के मेडीकल से लाया हूं’’। सुनील तू डाक्टर के पास नहीं गया मैंने पूछा। उसने जवाब दिया ‘‘डाक्टर साहिब भी तो यही पेरासिटामोल, ब्रूफिन, न्यूमोसलाइड ही देंगे न और साथ में एसीलॉक’’, मैं इतनी सारी दवाईयों के नाम सुन कर हैरान रह गया और चल डाक्टर के पास एक बार इंजैक्शन तो लगवा लेते हैं’’ सुनील ने कहा अभी नहीं अभी मुझे 104 बुखार है जब बुखार कम होगा तो इंजेक्शन लगवा लूंगा’’ सुनील तू भी न जिददी है खुद ही डाक्टर बना हुआ है तूं। मैं जिद करके उसको डाक्टर के पास ले गया। डाक्टर मंडल ने उसको चैक किया तो कुछ दवाई लिख कर दी और मेडीकल से लेने को कहा तो वह तीन चार तरह की दवाई थी। ‘‘देखा डाक्टर साहिब ने चार तरह की दवाई दी है’’ और तू एक तरह की ही खा रहा था’’ मैंने ऐसे कहा मानो मैं सुनील की जानकारी को अधकच्चा ठहराना चाहता था। ‘‘भैया यह चारों दवाई एक ही हैं।’’ उसके बाद सुनील ने जब सब दवाईयों के नाम बताये और उनके स्पैलिंग मिलाये गये तो मुझे आभास हुआ कि सुनील अपनी जगह सही है।
वक्त किसी का गुलाम नहीं होता और जो व्यक्ति वक्त की कदर नहीं करता वह हमेशा परिस्थितियों का गुलाम बना रहता है। वक्त कब बीत गया पता ही नहीं चला और हाईस्कूल में सुनील के जो नंबर आये वह हैरान करने वाले थे उसके साईंस, मैथस और अंग्रेजी में बहुत अधिक नंबर थे हिन्दी में पास होने लायक ही नंबर थे इसलिए मेरिट में आने से रह गया। हाई स्कूल पास करने के बाद हमारे गांव में कोई मौका ही नहीं था कि हम 12वीं कर पायें। मेरे मम्मी ने दो साल के लिए मुझे अपने सूरज मामा के पास दिल्ली भेज दिया तांकि मैं आगे की पढ़ाई कर पाउं। दिल्ली के बुराड़ी में मेरा एक स्कूल में एडमिशन हो गया क्योंकि मेरे नंबर अच्छे थे परन्तु रह रह कर गांव बहुत याद आता सभी दोस्त व क्लासमेट याद आते परन्तु सुनील का चेहरा कभी भी आंखों से ओझल नहीं हो पाता। मेरे मामा का दिल्ली में एम्स अस्पताल के सामने बहुत बड़ा मेडीकल स्टोर था। कभी कभी मैं अपने मामा के लड़के किटकैट के साथ मेडीकल स्टोर पर भी चला जाता जैसे ही मैं मेडीकल स्टोर पर पहुंचता तो मुझे अपने दोस्त सुनील की बहुत याद आती और जब भी कोई दवाई का डिब्बा खाली होता तो उसके स्पैलिंग देखता तो मुझे सुनील की वह कॉपी दिखाई देती जिसमें वह दवाईयों के फोटो बनाता रहता था। सूरज मामा के मेडीकल पर दो लड़के काम करते थे जैसे ही बाहर कोई डाक्टर साहिब का पर्चा लेकर आता तो वहीं लड़के पढ़ते और फटाफट भाग कर काउंटर पर दवाईयों को ढेर लगा देते और मेरे मामा कैलकूलेटर से बिल जोड़ कर ग्राहकों को दवाई देते। दोपहर में थोड़ी सी भीड़ कम होती तो मामा मुझसे बात करते कि जैनरिक दवाई क्या है और इथीकल मेडीसिन किसको कहते हैं परन्तु मेरा मन तो कम्प्यूटर सीखने का था मैंने मामा को अपने दिल की बात बता दी तो मामा जी ने भी बिना किसी देरी के बुराड़ी में ही एक कम्प्यूटर सेंटर में मेरा एडमिशन करवा दिया। मैं कप्यूटर में माहिर होता गया और हिन्दी अंग्रेजी में मेरी टाईपिंग स्पीड 40 हो गयी थी और मैं एमएस वर्ल्ड चलाने लग गया था। मुझे क्योंकि रंगों से बहुत प्यार था मुझे उसी अनुसार डीटीपी को कोर्स करने को मिला और मैं पढ़ाई के साथ साथ रंगों को खिलाड़ी बनता चला गया। इधर मेरी 11वीं पार हो गयी तो इन्टर में एडमिशन मिला इधर कम्पयूटर सेंटर पर नेट कनेक्शन लग गया तो मुझे ईमेल सिखाया जाने लगा फेसबुक भी बताया गया तो मैंने फेसबुक में अपना अकाउंट बना लिया। कुछ दिनों में मुझे फ्रेंड ढूंढने का पता चला तो मैंने सुनील का नाम डाल कर सर्च किया तो अनेक सारे सुनील सामने आये और इनमें से एक चेहरा जाना पहचाना सा लगा तो उस पर क्लिक किया तो यह तो वही सुनील है मेरा दोस्त सुनील मैं खुशी के मारे चिल्ला पड़ा। कम्प्यूटर क्लास में मेरे साथ भी और कई बैंठें हैं यह मैं भूल ही गया था। मैंने सुनील को फ्रैण्ड रिक्वेस्ट भेजी और इंतजार करने लगा। कोई रिप्लाई नहीं आया। संडे की छुटटी थी। सोमवार को स्कूल जाने के बाद मैं कम्प्यूटर सेंटर पर आया तो सबसे पहले फेसबुक ही खोला तो देखा सुनील के बहुत सारे मैसेज मेरे इनबाक्स में थे अनेक सारे फोटो उसने शेयर कर रखे थे। मैंने भी लिखा अबे सुनील डेढ़ साल से तू कहां था बे। सुनील ऑनलाइन था मैं नैनीताल में हूं अपनी बुआ के पास आ गया था। मेरे फूफा जी यहां पर सरकारी नौकरी में हैं और डीएसबी कैंपस के पास ही मैं रहता हूं। अबे तूने पहले बताया होता अभी तो स्कूल का टूर नैनीताल ही तो गया था मैं तेरे से मिल लेता। मैंने जैसे शिकायत की। कोई बात नहीं अब आ जाओ। काफी बातें इधर उधर की और फिर मैंने बताया कि मैं आज कल डिजाईनिंग का काम कर रहा हूं और बहुत सारे डाक्टर्स का काम भी कर रहा हूं अस्पतालों के डिजाईन कर रहा हूं तूं क्या कर रहा है डाक्टर साहिब। मैंने वहीं स्कूल वाले अंदाज में कहा। सुनील ने अपना सपना जाहिर किया कि मैं तो हर हाल में डाक्टर बनना चाहता हूं और इसके लिए मैं पीएमटी की तैयारी भी करूंगा। मैंने सुझाव दिया कि लक्ष्मीनगर दिल्ली में आ जाओ यहीं पर काफी सारे कोचिंग हैं यहां से तैयारी कर लेना और मेरे मामा जी के घर पर ही रह लेना। बस अब रोज़ाना चैटिंग होती और इतनी देर तक होती कि टाईम का पता ही नहीं चलता। जब मैं घर जाता तो किटकैट का मोबाइल उठाता तो उसमें अपना फेसबुक अकाउंट लॉगिन करके चैटिंग पर लगा रहता। एक दिन मामी ने डांटा और इन्टर के पेपरों की याद दिलाई तो तीन चार दिन चैटिंग बंद रही पर मन कहां मानने वाला था। रात को किटकैट और मैं टीवी रूम में जाते तो मैं भईया-भईया करके किटकैट से मोबाइल ले लेता और सुनील से चैट करता रहता।
समय और गुजर गया और मेरे पेपर भी हो गये और रिजल्ट भी ठीक ठाक आया और सुनील के भी। हमने अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर एक डिग्री कॉलेज में साथ एडमिशन लेने की बात कही तांकि हम साथ साथ कॉलेज की स्टडी कर सकें। कॉलेज की पढ़ाई अपनी मस्ती की थी और कोई हमें रोकने टोकने वाला नहीं था। मेरा बीए और सुनील का बीएससी फर्स्ट ईयर पास हो गया था कॉलेज के छात्रसंघ चुनावों में भी हम चमक रहे थे और प्रेसीडेंट किसको बनाना है इस पर भी काफी देर तक बहस करते। बस फर्क सिर्फ इतना था कि यहां बाकी लोग मस्ती करते हम लायबरेरी में देर तक पढ़ते और अपने नोट्स तैयार करते। मैंने डिग्री कॉलेज के पास ही एक पब्लिशर के ऑफिस में डाटा एण्टी ऑपरेटर की नौकरी कर ली और लेखकों की पुस्तकों को टाईप करता रहता और उनकी किताबों के डिजाइन बनाता रहता।
अब हमारी गेजुऐशन भी पूरी हो गयी तो मैंने पूरी तरह से अपने आप को नौकरी में डुबो दिया । सुनील को अभी कोई काम नहीं सूझ रहा था तो मेरे यहां एक मेडीकल स्टोर वाले गुप्ता जी आते थे। मैंने अपने दोस्त सुनील के बारे में बताया। ‘‘बीएससी है तुम्हारा दोस्त तो एमआर बन जाये।’’ ओह! मुझे एक ओर तो डाक्टर सुनील दिखाई दे रहा था तो दूसरी ओर सुनील को पैसे की जरूरत। मैं शाम को सुनील के पास रूम पर गया वह मेडीकल की ही पढ़ाई कर रहा था। मैंने सुनील को एमआर की जॉब के बारे में बताया तो उसने झट से हां कर दी। उसने कहा देखो भईया एक ओर तो मुझे दवाइयों की नॉलेज ज्यादा हो जायेगी दूसरा मुझे अपने घर से पैसे नहीं मंगवाने पड़ेंगे और फिर देखते ही देखते वह शर्मीला सुनील एक हंसमुख एमआर बन गया और अपने कपड़ों को प्रेस करके रखता अपने एमआर बैग में दवाईयों के सैंपल रखता और सुबह ही 6 वाली टेन से अपने काम पर चला जाता और देर रात को जब आता तो बहुत खुश दिखाई देता और अपने एमआर बैग में से पेपर निकालता और रिपोर्ट बनाता साथ में ही बहुत सारी किताबें भी निकाल कर बुकसेल्फ में रख देता।
धीरे धीरे वह एमआार की जॉब में रमने लगा और अपने आप को डाक्टर साहिब बनाने का सपना जैसे भूल गया था और अपनी कंपनी के साथ अनेक और भी कंपनियों के ब्राउछर बगैराह लेकर आता जब कभी मैं उससे पूछता कि दूसरी कंपनियों की स्टडी इतनी क्यों तो मुस्कराते हुये यही उतर देता कि आप नहीं समझोगे भईया। वक्त आने दो पता चल जायेगा। इस तरह से हर रोज़ जीवन की ट्रेन आगे बढ़ रही थी और सेकैण्ड मिनट व घंटों को पीछे ही छोड़ती जा रही थी। मेरी सेलरी भी काफी बढ़ गयी थी तो कुछ पार्ट टाईम काम मैं रूम पर भी करने लग गया था।
एक दिन सुनील लेट आया और कुछ झूमता हुआ लगा मुझे। क्या पार्टी वार्टी थी आज साथ वालों के साथ। नहीं यार तू जाने दे। वह डाक्टर समझता क्या है अपने आप को। क्या हुआ सुनील मैंने फिर पूछा बात क्या है। कुछ नहीं बस। फिर संभलते हुए बोला। तुम आराम करो भईया। वो डाक्टर! वो डाक्टर! मुझे समझ में यही आया कि किसी डाक्टर साहिब ने या तो अपाइंटमेंट नहीं दिया या फिर आर्डर नहीं हुआ या टार्गेट कम हुआ या कुछ और मैं सोचता ही रहा और सुनील बिना खाना खाये ही समेत जूते अपने बिस्तर पर लेट गया। मैंने उसके जूते निकाले और उसके बिस्तर पर फिट कर उसके उपर कंबल डाल फिर से अपनी डिजाईनिंग में लग गया। मुझे भी झपकी लगी तो मैं भी लेट गया।
सुबह के 7 बज चुके थे परन्तु सुनील आज सोकर नहीं उठा था। मैंने चाय बना ली और सुनील को जगाया उठो सुनील चाय पी लो। सुनील उठा और उसने चाय पी ली। पर वो बात नहीं कर रहा था क्या हुआ था सुनील रात। सुनील ने कोई जवाब नहीं दिया। आधे घंटे बाद अपने आप ही कहने लगा भईया मैं दवाईयों की ऐसी कम्पनी ज्वाइंन करूंगा जिसमें सब इथीकल दवाईयां हो। मैंने सुनील से पूछा यह इथीकल क्या होता है तो सुनील ने दार्शदिन अंदाज से जवाब दिया जिसका रिजल्ट बढ़िया हो और मरीज़ को एकदम फायदा दे। मैंने पूछा फिर यह जैनरिक जैनरिक को शोर चारों और क्यों है। वह कुछ नहीं बोला और 2-3 दिन बाद उसने वह कंपनी छोड़ दी और कहीं से नयी कंपनी के पेपर दवाईयों के सेंपल लेकर आया। हफते भर में सुनील ने जैसे एलान कर दिया। मैं अब दूसरी कंपनी की दवाई का होलसेल का काम करूंगा और करोड़पति बन जाउंगा। पता नहीं कौन सी बात सुनील को क्लिक हो गयी और रात भर बुदबदाता रहता देखना एक दिन लोग कहेंगे कि वो करोड़पति एमआर जा रहा है। मुझे लगा कि सुनील अब दवाईयों के काम में रम गया है इसलिए ऐसी ऐसी कल्पनायें कर रहा होगा।
सुनील का रवैया अचानक बदल गया था और वह सुबह 5 बजे ही उठ जाता बुक्स पढ़ने लगता तो कभी अपने रजिस्टर पर शहरों के नाम लिखने लगता तो कभी सड़कें बनाने लगता तो कभी ट्रेन के रूट और अब वह लैपटॉप पर भी अपनी कल्पनाओं को पंख देने लगा। जून का महीना था और गर्मी अपने जोरों पर थी। सुनील ने आते ही मुझसे कहा मैं दस दिन के लिए दिल्ली जा रहा हूं और ट्रेनिंग करने के बाद ही आउंगा। मैंने कहा कि मामा जी से भी मिल लेना और मैंने मामा जी का नंबर डायरी से उतार कर सुनील को दे दिया। मैं भी पन्द्रह दिन के लिए अपने गांव चला गया और अपने नये बन रहे दो कमरों के घर को देखने लगा और भविष्य में क्या करना है यही सोचने लगा। अपनी प्रिटिंग यूनिट हो या सर्विसेज़। पन्द्रह दिन बाद जब मैं वापिस शहर में अपने रूम पर गया तो सुनील वहीं था और आज वह पूरी तरह से अपडेट था आज रूम में सभी जगह पर अनेक डिब्बे थे जिसमें दवाईयां थीं। सुनील से मैं पूछता उससे पहले ही उसने बोलना शुरू कर दिया दवाईयों के काम की असली जानकारी तो अब मुझे मिली है। मैं मामा जी से भी दिल्ली मिला था मामा जी घर ले गये थे। सेंपल दिये थे पास हो गये हैं और दिल्ली से ही बीस लाख का पहला आर्डर मिल गया है। बीस लाख का आर्डर मैं चौंक गया! क्या हुआ बीस लाख का आर्डर कोई एक दिन में ही देना नहीं महीने भर में सप्लाई करनी है। तो तू क्या दिल्ली रोज जायेगा सुनील। नहीं न इतनी दूर नहीं जा सकता पर रास्ते के और भी कई स्टेशन देखूंगा। पहले ही दिन दो बैग में सुनील दवाईयां भर रहा था और अपना नया सफर शुरू करने जा रहा था मैंने भी शुभ कामनाएं दीं और ट्रेन तक छोड़ कर आया। मैंने बुक्स को देखा तो पर्सनेलिटी डेवलपमेंट की अनेक बुक्स सेल्फ में रखीं थी। कुछ छोटी थीं तो कुछ बड़ी और कुछ न्यूज़ पेपरों में छपे एक प्रसिद्ध लेखक के लेख थे। मैंने पढ़े तो मुझे अपने अंदर एक नयी शक्ति का संचार नजर आया। कुछ ही दिनों में मैं अनेक सारी पुस्तकें पढ़ गया तो मुझे जीवन के वास्तव मायने पता चले और फेसबुक को त्याग कर मैं इन बुक्स में रमने लगा था और सुनील इतना खुश क्यों है मुझे महसूस होने लगा।
उस दिन शनिवार था और मैं भी जलदी रूम पर आ गया था क्योंकि संडे की छुट्टी थी और हल्की हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। मैं सोच रहा कि संडे कहीं घूम कर आअंगा। मैं लैपटॉप पर कुछ ई-बुक्स को पढ़ रहा था कि बाहर से सुनील ने आवाज़ दी। मैंने दरवाज़ा खोला अबे सुनील इतने दिन बाद वापसी। कहां रह गया था मेरे भाई। बस भाई यहीं था दिल्ली में और वहां से गाजियाबाद चला गया फिर लखनउ और फिर मेरठ आया। बीच में एक बार लुधियाना गया तो दो दिन कोलकत्ता रहा। मैंने हैरानी से कहा पन्द्रह दिन में इतनी जगह?। हां भाई! काम ही ऐसा है कि जाना पड़ेगा और अब तुम भी मेरे साथ चला करोगे। मैंने मना कर दिया मुझे नौकरी करनी है। कोई बात नहीं नौकरी करो पर एक दिन तो साथ चलो एक काम करते हैं कल एक मीटिंग है उसमें चलते हैं। संडे की छुट्टी को भी इंजाय नहीं करने देगा क्या। भाई सोते ही तो हो पूरा दिन क्या मिलता है सोने से। यदि आप हिम्मत का पहला कदम आगे बढ़ायेंगे तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद मिल जायेगी। अबे क्या तुम फिलासफर हो गये हो। नहीं भाई! जो सदा प्रसन्न रहता है उसके अन्दर आलस्य नहीं हो सकता इस लिए खुश रहना सीखो। देखो भाई कल संडे है और यह संडे आपकी लाईफ बदल सकता है। एक दिन की मीटिंग है दिल्ली के लक्ष्मीनगर में रात वाली ट्रेन से वापिस आ जायेंगे। किसी ने सच ही कहा है कि कभी कभी हम दूसरों को बदलने के लिए बाध्य कर देते हैं क्योंकि हम चाहते हैं वे वैसे ही बनें जैसा हम चाहते हैं। मैंने कहा ठीक है यार जैसा तू कहे। और हम रात को अपना खाना पैक कर ट्रेन में बैठ गये और कब आंख लगी पता नहीं चला दिल्ली आ गयी तो काफी सुबह थी और सुनील एक दम चुस्त दुरस्त था और काफी प्रसन्न था। मैंने कहा, अबे यार तू हंस रहा है और मुझे कल डयूटी पर जाना है। सुनील ओर जोर से हंसा और चालू हो गया वर्तमान समय जो कुछ आपके हाथ में है, यदि उसको महत्व नहीं देते तो जो भविष्य में आपको मिलने वाला है उसका सम्मान कैसे करेंगे।
अबे तेरी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रहीं और यह अपनी भाषणबाजी बंद कर और कहां है मीटिंग वहीं चलते हैं रूक पहले एक एक कप काफी तो पी लें। स्टेशन के बाहर आकर हमने कॉफी पी और सुनील ने अपने मोबाइल से एक नंबर मिलाया तो फट से एक टैक्सी वहीं पर आ गयी। हम एक होटल में पहुंच गये थे। होटल काफी ऑलीशान था दिल्ली में मैंने भी 2 साल बिताये थे परन्तु ऐसे आलीशान होटल में जाने को कभी नहीं मिला था। टीवी लगा हुआ था सोफा पड़ा हुआ था मैगज़ीन और न्यूज़ पेपर रखे थे। सुनील ने इंटरकॉम से कॉल किया तो चाय फिर से रूम में आ गयी थी। नींद तो ट्रेन में पूरी हो ही चुकी थी। सो मैं कुछ मैगज़ीन को पढ़ने लगा। बिजनेस से रिलेटड मैगज़ीन थी और उसमें जो कुछ भी था अंग्रेजी में था और उसमें जो भी आंकड़े थे करोड़ों में थे। यानि पहली बार मुझे लगा कि सुनील करोड़ों की बात हवा में नहीं करता उसके पीछे कुछ तो बात होगी। उसके बाद नहाना हुआ तो सुनील ने अपने बैग से मेरे लिए नये कपड़े निकाले और टाई आदि लगा दी। यह टाई क्यों लगा रहे हो भाई? मैंने पूछा तो सुनील ने कहा कि यह टाई ही सब कुछ करेगी और एक लम्बा चौड़ा भाषण टाई पर ही दे डाला। जैसे ही सात बजे तो सुनील के मोबाइल की घंटी घनघनाई। यस सर! आई एम रैडी कमिंग विदइन फिफटीन मिनटस् फार मीटिंग। भाई मैं मीटिंग में जा रहा हूं ठीक नौ बजे आ जाउंगा और इसी होटल के कान्फ्रेन्स रूम में ही अपना सेमीनार है। तुम तब तक टीवी देखो। कई दिनों के बाद टीवी देखा तो चैनल बदलने लगा। बाप रे बाप इतने टीवी चैनल हो गये हैं। फिर कुछ समाचार देखे तो एक चैनल पर बिजनेस समाचार आ रहे थे जिसमें कारों के बारे में डिटेल से बताया जा रहा था। चालीस लाख की कार, एक करोड़ की कार, साठ लाख की कार। थोड़ी देर बाद इसी चैनल पर महंगे महंगे मोबाइलों को बारे में बताया जा रहा था यानि जो मोबाइल सुनील के पास है वह पचास हजार का है। बाप रे बाप! टीवी चैनल पर कीमत और मॉडल पता चल ही गया था कारों के अनेक मॉडल भी पता चले गये। इधर टेबल पर ऑटोव्हील नामक मैगज़ीन पड़ी थी। उसमें कारों के मॉडल थे। इसी मैगज़ीन में एक कार को पैन से टिक किया हुआ था और उसके नीचे सुनील के साइन थे और आगे डेट लिखी हुयी थी 5 दिसम्बर 2017 मेरी निगाह कलैण्डर पर गयी। आज 5 दिसम्बर 2017 ही तो थी दिन देखा तो मंगलवार था। मुझे लगा कि कोई सरप्राईज़ मुझे मिलने वाला है आज वर्ना सुनील कभी भी इतनी जिद नहीं करता साथ लाने की। मैं टीवी देखता तो कभी उस मैगज़ीन को और मैगज़ीन में सबसे नीचे एक और मोटी सी किताब रखी थी जिसमें विभिन्न मेडीसिन बनाने वाली कंपनियों के नाम थे। मैंने बुक को उठाया तो उसमें 500 से भी अधिक कंपनियों के बारे में लिखा हुआ था। एक जगह बुक में टैग डाल कर रखा गया था जब मैंने पेज को खोल कर देखा तो यह वहीं कम्पनी थी जिसके साथ सुनील काम कर रहा था।
ठीक नौं बजे होटल रूम की डोरबैल बोली तो मैंने उठ कर दरवाज़ा खोल दिया। सुनील ही था। उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था। भाई देखो समय पर आ गया है और मैं समय का ही ध्यान रखता हूं आज कल सबसे ज्यादा। चल एक एक चाय और सिप करते हैं और सेमीनार हॉल में पहुंचते हैं। चाय खत्म होते ही बालों में कंघी करते हुए सुनील व्हिसल बजाने लगा था और यह किसी भी गाने की धुन नहीं थी शायद उसकी अपनी ही कम्पोज़िग हो मस्ती में कुछ भी करता है। मुझे बस इनता फर्क नजर आया वह हाई स्कूल वाला शर्मीला सुनील और आज का सुनील बहुत अंतर था।
सेमीनार में हम पहुंचे तो वहां पर सभी लोग सुनील जैसी ड्रेस से ही लैस थे और एक सी ही टाई थी तो मुझे हार्मोनी की बात समझ में आयी। जो व्हिसल सुनील बजा रहा था वही थीम सौंग धीमी धीमी आवाज़ में बज रहा था। सभी सुनील को विश कर रहे थे और बार बार बधाई दे रहे थे।
आगे की सोफे पर सुनील शान से बैठा हुआ था और मंच पर अनाउंसर अनाउंस कर रहा था। अचानक सुनील का नाम बोला गया और चारो और तालियों और सीटियों की गड़गड़ाहट थी और आवाज़ आ रही थी यह हैं मिस्टर सुनील जिन्होंने सिर्फ एक साल में ही एमआर से अपनी स्वयं का दवाईयों का कारोबार किया और एक साल में सभी रिकार्ड तोड़ते हुए सेल को अपने सहयोगियों के माध्यम से पचास करोड़ पर पहुंचाया और इसके लिए आज इन्होंने जीती है एक शानदार ओडी-3 कार और 1 करोड़ का बिजनेस चैक। हमें उम्मीद है कि यह अपना ही करोड़पति बनने का रिकार्ड जरूर जल्दी तोड़ेंगे...सभी खड़े होकर ताली बजाने लगे और सुनील भागता हुआ मंच पर गया और उसको कार की बड़ी सारी चाबी भेंट की गयी। यह तो मैं समझ गया था कि टारगेट पूरा करने पर सुनील को कार मिली है परन्तु इतनी बड़ी चाबी। बाद में उसी बड़ी चाबी में से एक जगह से छोटी चाबी को उठाया गया तो एक पर्दे को हटाते ही चम चम करती लाल रंग की ओडी-3 लग्जरी कार सामने खड़ी थी। सीटियों व तालियों की आवाज़ और तेज़ हो गयी और सब मस्त होकर नाच भी रहे थे। काफी देर तक यह सेमीनार चलता रहा और मुझे काफी कुछ पता चल चुका था। आज हम अपनी कार में बैठ कर वापिस गांव जा रहे हैं और एम.आर. वाले दोनो बैग भी उसी कार में रखे थे। कैसा लग रहा है भाई? मैं ख्यालों में खोया हुआ था अचानक चौंका। बहुत अच्छा सुनील डाक्टर साहिब! क्या अब भी यह एम.आर. वाले बैग लेकर साथ घूमोगे। मेरी थोड़ी सी ईष्या प्रकट हो गयी थी जो मनुष्य के प्राकृतिक स्वभाव में होती है। यह बैग एम.आर. बैग। अरे यही तो सुनली की पहचान है और इसी एम.आर. वाले बैग ने तो मुझे सब कुछ दिया है। यह एम.आर. का बैग नहीं बल्कि नोटों से भरा हुआ करोड़ा रुपये का बैग है। और जब तक यह बैग मेरे साथ रहेगा न तब तक मुझे अहसास होता रहेगा कि टारगेट क्या होता है और उसको पूरा कैसे किया जाता है। मुझे अहसास हो गया कि जो मेरा दोस्त है और मेरे साथ ही पढ़ा हुआ है जब यह कार ले सकता है तो मैं क्यां नहीं। इतना सोचते ही हम गाजियाबाद पहुंच गये और एक जगह पर सुनील ने गाड़ी रोकी यहां पर बड़े बड़े फलैट बने हुये थे। सुनील ने कहा भाई वह उपर वाले फलैट देख रहे हो न। हां! मैंने जवाब दिया। इनमें से चार अपने होने वाले हैं। मैं समझ चुका था कि सुनील क्या कहना चाहता है। सुनील मेरे दोस्त क्या मैं भी इसमें फलैट ले सकता हूं क्यों नहीं जो सफर मैंने आधा तय किया है तुम आज शुरू कर दो और थोड़ी देर ही तो लगेगी तुम भी उसी मंजिल पर पहुंच जाओगे यहां पर मैं पहुंचा हूं और तेरे साथ तो मैं हूं न, मेरे साथ तो कोई भी नहीं था बस यह बुक्स ही थी मेरी मार्गदर्शक के रूप में और तेरे हाथ की चाय और नाश्ता। हम हंसने लगे। एक जगह मुंगफली बिक रही थी गर्मागर्म सुनील ने गाड़ी रोकी और मुंगफली ली। मैंने कहा इतनी महंगी गाड़ी में छिल्के फैंकेगा क्या। सुनील ने तपाक से कहा आदमी कितना बड़ा हो जाये अपने पुराने दिन नहीं भूलने चाहिए।
और फिर हम साथ साथ मीटिंग में जाने लगे सेमीनार करने लगे मुझे काफी देर लग रही थी तो मैंने कहा सुनील मैं प्रयत्न तो कर रहा हूं परन्तु सफलता हाथ नहीं आ रही है। सुनील ने कहा जब तक सफलता हाथ न लगे प्रयास करते रहो। मैंने कहा मैं प्रयास कर रहा हूं परन्तु क्या मैं सफलता हासिल कर सकता हूं। आज दो साल बाद मैं अपनी कार में कहीं मीटिंग में जा रहा था तो मुझे वह क्षण याद आये जब मैं एक बार थक कर घर जाने वाला था और मैंने सुनील से पूछा था कि मैं प्रयत्न तो कर रहा हूं क्या सफलता मुझे मिलेगी तब सुनील ने जो बात मुझे कही थी वह बात आज भी मेरे कानों में गूंज रही है।
‘‘जब तक आप प्रयत्न करना बंद न करे दें अंतिम परिणाम घोषित नहीं किया जा सकता’’
समाप्त
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