रुश्दी
स्त्री समस्या पर आधारित कहानी
पारसी धर्म में रक्त की पवित्रता पर बहुत ध्यान देते हैं यहां तक की वो शुद्ध रक्त ना मिलने पर रक्तदान अस्वीकार करके मौत तक चुन लेते हैं मगर रुश्दी इस से भी ज्यादा महत्व भावना की पवित्रता पर देती थी इसीलिए उसने अर्पण से विवाह किया था.परिवार की इच्छा के विपरीत विवाह हमेशा से संबंधों को चलाने का एक मानसिक दबाव बनाये रहता है लेकिन यहां पर ऐसी कोई समस्या नहीं थी क्योंकि जहां रुश्दी ऍम.टेक. की गोल्ड मेडलिस्ट थी वहीं अर्पण का भी मानसिक स्तर उच्च था.मतभेद की स्थिति में दोनों ही एक दूसरे के सामने झुकने के लिए तैयार रहते थे.
अर्पण स्काइ लाइन कंपनी मे असिस्टेंट मैनेगर था वनही रुशदी शादी के इस फैसले के कारण अर्पण तथा अपने परिवार से बिलकुल अलग हो गयी थी। उसने परिस्थितियों को देखते हुये किसी प्रोफेशन से जुडने के बजाए नए परिवार की सफलता के लिए एक हाउस वाइफ बनाना जादा बेहतर समझा रुश्दी रोज़ सुबह अर्पण के जाने से पहले टिफिन देती और फिर शाम 6 बजे तक बजे तक उसके आने का इंतजार दिल्ली जैसे रश और जाम से भरे यायायात वाले शहर मे अर्पण अक्सर 7 बजे के आस-पास ही घर पहुँच पता था ।
अर्पण हमेशा ही शाम को उसके लिए कुछ लाया करता था .मेट्रो शहर की ये एक खासियत होती है की यहां पड़ोसियों से सम्बन्ध रखना स्टेटस सिम्बल के खिलाफ होता है इसलिए रुश्दी अकेले ही रहती थी इस स्थिति से वो संतुष्ट तो नहीं थी पर वो कभी कुछ कहती नहीं थी.वो अर्पण से इस विषय पर बात करने ही वाली थी की तभी अर्ध्य ने उसके जीवन में एक नया उत्साह भर दिया अब उसका समय अपने बेटे अर्ध्य के साथ काफी खुशनुमा बीत रहा था वो अब उसके साथ ऊपर चिड़ियों को दाना खिलाती यहां तक की दोनों मिलकर चिड़ियों का नाम भी रखते थे.दोपहर को नीचे से निकलने फेरीवालो की आवाज़ दोनों के लिए एक खेल जैसी होती थी.अर्ध्य सब्जी वाले की नक़ल उतारकर उसे बुलाता ये देख कर रुश्दी हंसती फिर सब्जी लेती.कभी कभी रुश्दी जब आटा गूथती तो उसका बाल उसके चेहरे पर आ जाते जिसको वो अपने निचले होंठ के दांयी तरफ के हिस्से से फूंक कर हटा देती जब उसके सामने बैठा अर्ध्य यही दोहराता तो वो हंसती और उसे गले लगा लेती.जीरो वाट के नीले बल्ब से चमकते उसके बेडरूम में भी अर्ध्य के दिनभर की प्रगति रिपोर्ट ही सुनाई पड़ती थी क्योंकि रुश्दी को ये अर्पण के डेली ऑफिस अचीवमेंट से ज्यादा अच्छी लगती थी फिर भी वो मन रखने के लिए उसकी बातों में हामी भरती रहती थी.
लेकिन धीरे धीरे अर्ध्य का स्कूल जाने का समय आने लगा रुश्दी ने उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल में कराया. अर्ध्य को लोवर K G ग्रुप सी मे एडमिशन मिला। आज वो पहला दिन था जब रुश्दी ने अर्पण और अर्ध्य का टिफिन साथ साथ लगाया उसने अर्ध्य के टिफिन में उसकी मन पसंद कुछ टॉफी रखी.शाम को लौटने पर उसे रोज़ की तरह अर्पण के गिफ्ट की तो उम्मीद थी पर आज अर्ध्य भी उसके लिए कुछ लाया था,अर्ध्य ने रुशदी से गिफ्ट देने के लिए आंखे बंद करने को बोला रुशदी ने आँखें बंद कर ली फिर उसने अपने हाथ आगे करने को कहा रुशदी ने ऐसा ही किया, अर्ध्य ने रुशदी के हथेली मे एक टॉफी रख दी। दरअसल व उसे अपने टिफिन से बचाकर रुशदी के लिए लाया था। टॉफी लेते ही रुशदी की आँख से खुशी के आँसू गिरने लगे। टॉफी खाकर उसे उतना ही अच्छा महसूस हुआ जितना की पहली बार अर्पण के साथ डिनर पर हुआ था.
इधर अर्पण को एक नए सेक्टर का काम मिल गया। अर्पण को अब कंपनी के लिए अब इवेंट मैंगमेंट का काम भी करना था इसलिए अब उसे लौटने मे और देर होने लगी और उधर अर्ध्य भी नए दोस्तों,वातावरण और नयी दुनिया को समझने में लग गया। अर्ध्य का मन भी अब घर मे कम लगता था वह स्कूल से लौटने के बाद पार्क मे खेलने चला जाता था लौटकर होमवर्क करने के बाद T V देखकर सो जाया करता था। संडे भी उसका अपने फ्रेंड्स के साथ ही बीतता था । लेकिन विचित्र बात ये थी कि दोनों नयी दुनिया अनजाने लोगों में ख़ुशी देख रहे थे। और उन्हें मिल भी रही थी.पर रुश्दी फिर अकेली हो रही थी वो अपने पास के जाने पहचाने लोगों में ख़ुशी तलाश रही थी पर उसे मिल नहीं रही थी.वो मानसिक रूप से अस्वस्थ हो रही थी पर किसी से कुछ नहीं कहती वो हर शाम 7 बजे एक मुस्कुराते चेहरे के साथ ही दिखती.इधर बीच वो कुछ ज्यादा कमजोरी और बीमारी महसूस कर रही थी। उसे कभी-कभी आँखों के सामने अंधेरा छा जाने और चक्कर आने जैसी शिकायते होने लगीं थीं । उसने कई बार इस बात का जिक्र अर्पण से किया। एक बार तो अर्पण ने भी अपने बिज़ी शेड्यूल से समय निकालकर और ऑफिस के वर्क लोड के बावजूद छुट्टी लेकर एक पूरा दिन रुशदी के ट्रीटमेंट के लिए निकाला पर कुछ ताकत की दवाइयों को सजेस्ट करने के अलावा डॉक्टर रुशदी के लिए कुछ खास नहीं कर पा रहे थे ।वो असल समस्या से अभी भी बहुत दूर थे। अर्पण भी रुशदी की इस समस्या को सुनकर एरिटेट होने लगा था क्योंकि डॉक्टर रुशदी को चेक अप के बाद शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ बताते थे। पर उसकी समस्या वैसे ही बनी हुई थी।हाँ पर अब उसने इसका अर्पण से जिक्र करना बंद कर दिया था। उसने बड़ी हिम्मत के साथ एक दिन ये बात अर्ध्य से कही और बोला की कुछ दिन स्कूल मत जाओ पर उसने कहा की ”क्या फालतू का मजाक कर रही हो आप ” इतना सुनते ही उसको अचानक रोना सा आने वाला था लेकिन वो रोई नहीं और गले से थूक गटकते हुए मुस्कुरायी टिफिन लगायी और बोली मैं तो मजाक कर रही थी.फिर बजे शाम के 7 घर पर अर्पण आया,अर्ध्य आया पर रुश्दी नज़र नहीं आरही थी अब रुश्दी नहीं थी,चिड़िया थी फेरी वाले थे,सब्जी वाला था पर रुश्दी नहीं थी कहीं नहीं थी..
SAKSHAM DWIVEDI. Research on indian dispora. mahatma gandhi internataional university.wardha. Mob.7588107164