जिन्न का तोहफा – पार्ट 2
जैसे तैसे वो आदमी उस ख़ौफ़नाक बकरी के बच्चे से बच कर घर तक पहुंचा और अपनी ऊपर नीचे हुई साँसों को ठीक किया। घर में दाखिल हुआ तो अपनी बीवी को अपने इंतज़ार में पाया।
“आज आपको इतनी देर क्यों हो गयी जी, मैं और अम्मा कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे, पड़ोस के रफ़ीक़ भाई भी पुहंच गये काफी देर पहले” उसकी बीवी ने कुछ शिकायती अंदाज़ में परेशानी जताई।
“हाँ, कुछ नही.. बस ऐसे ही रास्ता भटक गया था” उस आदमी ने रास्ते के वाक़िये में खोये जवाब दिया।
“या अल्लाह! रास्ता भूल गए थे, आप अकेले क्यों आये जी..” सवाल बड़ी फिक्रमंदि से पूछा गया था पर उस आदमी ने जवाब देना जरूरी नही समझा बस अपनी बीवी पर एक नज़र डाली थी जवाब में।
“अच्छा आप हाथ मुँह धो लें मैं खाना लगा देती हूँ.. आपकी पसंद की उरद की दाल बनायी है” बीवी ने फिर कहा।
“नही, मुझे भूक नही.. कुछ देर आराम करना चाहता हूँ” इतना कह कर वो कमरे की तरफ चल दिया, उस आदमी के ज़हन से वो नज़ारा हट ही नही रहा था। बीवी ने उस वक़्त चुप रहना सही समझा और अपनी सास को बेटे के आने खबर दे कर कमरे में आ गयी।
उसने ये बात घर में किसी को नही बतायी और अगले ही रात जब वो सोने लेटा तो उसे एहसास हुआ कि कोई उसके पीछे है और उसके कान में कुछ फुसफुसाया हो जैसे ही वो पीछे मुडा कुछ नही था। उसने ज़ोर से पूछा “कौन है, कौन है” लेकिन कोई कुछ नही बोला। अब हर रोज़ एसा होने लगा, कभी कोई साया दिखता तो कभी कोई आवाज़ सुनाई देती। कभी एसा लगता कोई ज़ोर से उसके पास हँसा.. पर दिखता कोई नही।
पहले उसने सोचा अपनी बीवी से इन हो रहे वाकियों के बारे में बात करे पर कुछ सोच कर रुक गया, अभी उसकी शादी के कुछ ही माह गुज़रे थे और अभी से इन सब परेशानियों में नही डालना चाहता था अपनी नयी नवेली दुल्हन को। बीवी के बाद बूढ़ी माँ थी घर में, जो अपने एकलौते बेटे के बारे में ये सब सुन कर घबरा जाती इसलिए उसने जंगल और ख़ौफ़नाक बकरी के बच्चे वाली बात अपने दिल ने रखी और किसी से कुछ नही कहा।
इसी उधेड़ बुन में एक दो दिन और गुज़र गये। एक सुबह वो फ़ज़िर की नमाज़ पढ़ने उठा तो अपने कमरे में जायनमाज़ (जिस पर नमाज़ पढ़ी जाती है) के पास एक छोटी सी संदूकची रखी मिली जिसे पहले तो उसने खोलना सही नही समझा लेकिन फिर सोचा खोल कर देख लेता हूँ हर्ज़ ही क्या है, जैसे ही उसने छोटी सी संदूकची को खोला तो हैरान रह गया.. उसमे सोने के दो सिक्के पड़े थे। ये यहाँ कहाँ से आयी और किसने रखी। इसी कशमाकश में उसके हाथों ने सिक्कों को छुआ तो पास से किसी आदमी की ज़ोरदार हँसने की आवाज़ आयी “हा हा हा”
“क क कौन है” उसने फ़ौरन हाथ सिक्कों से पीछे खींच लिया और इधर उधर देखता घबराई आवाज़ में बोला।
“मैं तेरे पीछे हूँ” फिर तेज़ मर्दाना आवाज़ आयी।
वो एक झटके से पीछे मुड़ा तो कोई नही था, चेहरे से डर पसीनों की शक़्ल में टपकने लगा।
“डर मत, तेरा नुकसान नही करूँगा” एक बार फिर कमरे में वही आवाज़ गुंजी।
“क कौन हो, मु मुझसे क्या चाहहहते हो” टूटे फूटे लफ़्ज़ों में दबी दबी दहशतज़दा आवाज़ निकली।
“कुछ नही चाहता, मेरा दिल तुझ पर मेहरबान हो गया है.. उस बकरी के बच्चे पर तू मेहरबान हुआ तो मेरा दिल तुझ पर मेहरबान हो गया.. हा हा हा” अनदेखे आदमी के लफ्ज़ फिर फ़िज़ा में गुंजें।
“व्व्वो बकरी का बच्चा..पर तुम हो कौन, दिख क्यों नही रहे” फिर से वही सब वाकिया नज़रों के आगे घूम गया।
“मैं जिन्न हूँ, वो मेरा बेटा है जिसे तूने अपने कंधे पर बैठाया था” इस बार आवाज़ ने जो कहा उसे सुन कर आदमी के रोंगटें खड़े हो गए और मुँह खोलने पर भी लफ्ज़ बाहर नही निकल पाये, शायद कहीं अंदर ही कैद हो कर रह गए।
फ़िज़ा में फिर आवाज़ गुंजी “तुझे मुझसे डरने की ज़रूरत नही, तूने मेरे बेटे को अपने कंधे की सवारी करायी है, तुझे जब जो चाहिए इस संदूकची में लिख कर रख दिया कर, तुझे वो मिल जायेगा”
“पर त तुम मेरी मदद क्यों करना चाहते हो” उस आदमी ने हिम्मत कर के इधर उधर देखते हुए पूछा जैसे तलाशने की कोशिश कर रहा हो कि आवाज़ कहाँ से आ रही है।
“मेरा दिल तुझ पर मेहरबान हो गया है... लेकिन सुन, एक बात का खास ख्याल रखना, ये बात तू किसी को बतायेगा नही, और कभी ज़रूरत से ज़्यादा की ख्वाहिश मत करना वरना जो होगा उसका ज़िम्मेदार तू खुद होगा”
इन लफ़्ज़ों के बाद वो आवाज़ फिर नही आयी.. कई दिन गुज़र गये, उस संदूकची में सिक्के यूँ ही पड़े रहे, उस आदमी को अपने साथ हुए वाकिये पर यकीन ही नही आ पा रहा था, सब एक ख्वाब सा लग रहा था उसे पर थी वो एक हकीकत.. जिसका जीता जागता सबूत वो छोटी सी संदूकची थी।
इस वाक़िये को हुए कुछ ही दिन गुज़रे थे कि उसकी बूढ़ी माँ की तबियत खराब हो गयी और उन्हें गॉव में ही एक छोटे से हॉस्पताल में ले जाना पड़ा.. जब पैसों की ज़रूरत पड़ी तो उस आदमी को संदूकची में पडे सोने के सिक्के याद आये.. ज़रूरत का वक़्त था उसने वो सिक्के निकाल लिए और उन्हें बेच कर आये पैसों से माँ का इलाज करा लिया।
वक़्त गुज़रता गया और यूँ ही गुज़रते गुज़रते 6 माह गुज़र गये, उस संदूकची को छुपा कर रखे 6 माह हो गए। न उसने अपनी माँ को बताया, न कभी अपनी बीवी से ज़िक्र किया पर उसके ज़हन से एक पल के लिए भी वो जिन्न, बकरी का बच्चा और संदूकची कभी नही निकले।
मैं आप लोगो को बताता चलूँ कि जिन्न का दुनिया में होना क़ुरान और हदीस से साबित है, इंसानों की तरह ये भी अल्लाह की मख्लूक है जो हमारे ही तरह हमारे बीच इस दुनिया में रहते हैं। ये हमारे बीच इस तरह रहते हैं कि हम नही जान सकते ये जिन्न है बल्कि हम इन्हें इंसान ही समझेंगे। इनमे शक्ल और रूप बदलने की ताकत होती है, जिन्न में भी अच्छे और बुरे सब तरह के होते हैं.. हम इंसान इन्हें नही देख सकते जब तक की ये खुद न चाहें। इनके सारे तरीके भी इंसानो की तरह ही होते हैं जैसे शादी बियाह, पढाई लिखाई, काम काज सब.. कुछ अच्छे होते हैं जो इंसानो को परेशान नही करते और कुछ बुरे होते हैं जो इंसान के जिस्म में आ कर उन्हें तकलीफ देते हैं। चलें अब आगे कहानी सुनाता हूँ कि फिर क्या हुआ।
वक़्त के गुजरने के साथ उनके घर जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए एक लड़का और एक लड़की। उस वक़्त उसे वो जादुई संदूकची का ख्याल आया कि क्यों न आज ख़ुशी के मौके पर उसमें कुछ लिख कर रखा जाये। ये सोचना था और उसने संदूकची में एक कागज पर “लड्डू का टोकरा” लिख कर रख दिया और इंतज़ार करने लगा कि क्या होता है....
आगे जानने के लिए पढ़िए तीसरा और आखरी पार्ट “जिन्न का तोहफा – पार्ट 3