आज़ादी
रघु जेल की कोठरी की छोटी सी खिड़की से उडती चिडियाँ ...तो कभी दूर उड रहे हवाई जहाज को देखता | वही तो हिस्सा था जिसे बहार की दुनिया को देख पाता | नहीं तो वही कोठरी के केदीओ की भयानक चहेरे ..
रघु ने इस छोटी सी खिड़की से कई साल देखे है | हमें कभी-कभी 1 धंटा गुजारना मुश्किल हो जाता है वहा रघु ने अपने 12 साल गुजार दिए है | ये 12 साल उसने केलेन्डर के पन्ने उलट-पलट के नहीं गुजारे ! उसने तो वही छोटी खिड़की से बडे-बडे सालों को गुजरते हुए देखा है |
जब रात को ओढने के कम्मल मिलते थे तब लगता शर्दी आ गई है और बारिश की एक दो बुंदे खिड़की से चहेरे पर महेसुस होती है तब लगता था बारिश का मौसम ! जब बाहर पटाके की गुंज सुनाई देती तब दिवाली और जब अच्छा खाना मिलता तो कोई तिज त्योहार !
रघु को सब से ज्यादा 15 अगस्त का इन्तजार रहता | इसलिए नहीं कि अच्छा खाना मिलेगा या कोई स्वादिष्ठ मिठाई ! वो तो इसलिए इन्तजार करता था कि जिस दिन उसे लाया गया था उस दिन 15 अगस्त ही थी | वह 15 अगस्त का इस तरह इन्तजार करता था जैसे किसान बारिश इन्तजार करता है | जैसे देश 15 अगस्त को आजाद हुआ था वैसे अब की आने वाली 15 अगस्त रघु की भी आजादी लेके आने वाली थी | इन 12 सालों में कितने कैदीओ के बदलते चहेरे देखे, कितने बदलते जेलर देखे, पर वो ना बदला, ना वो किसीसे मिलता ना कोई उसे मिलने आता |
जेल में 15 अगस्त की तैयारी शरु हो रही है | जेल मे साफ्-सफाई हो रही है | परेड की तैयारी हो रही है | जेल की दिवारो पर कलर पौता जा रहा है | दिवारे फिर से चमक रही है और वैसी ही चमक रघु के चहेरे पर भी दिखाई दे रही है |
कोठरी का दरवाजा खोलने कि आवाज आई |
जेलर थे |
'चलो रघुवीर कल तुम्हारा आखिरी दिन है | कल तुम भी आजाद हो रहे हो |बहार जाके फिर से कोई ऐसा काम मत करना की फिर से जेल जाने की नौबत आये ! समज गये ना ?' - जेलर ने रघु समजाते हुये कहा ।
रघुवीर ......... .. रघु को इस नाम को सुने कई साल हो गये थे | यही जेलर थे जो रघु को रघुवीर बुलाते थे । रघु ने बस शिर झुकाके जवाब दिया |
'कल 11 बजे कागजी कार्रवाई के बाद तुमको रिहा किया जायेगा और तुम्हारे कपड़े और सामान कल जाते समय दे दिया जायेगा | ठिक है ? कुछ कहना है ?
'हा' - रघु बोला ।
'बोलो !'
'मुझे मेरे कपडे और सामान अभी चाहिए '
जेलर ने कुछ सोचा और बोला
'ठिक है। .... वैसे हम ये सब चिजे कैदी के छुटने बाद दि जाती है पर तुम्हारे 12 साल के रेकार्ड के कारण हम तुम्हें दे सकते है | हवालदार के हाथों भिजवाता हुं'
थोडी देर बाद हवालदार रघुवीर को उसका सामान और कपड़े दे गया |
रघुवीर ने जैसे हि अपने सामान पर नजर की तो इस तरह से यादे उभर आई जैसे मधुमक्खी के छते पर किसी ने पत्थर मार दिया हो |
जैसे जैसे नजर अपने सामन पर जाती वैसे वैसे उनसी जुदी यादे आंखो सामने तैर लगी |
उसकी बेटी की पहले जनम दिन पे खिंचाई तसवीर, बीवी सुधा की लाल साड़ी में तसवीर ! मानो घर के बाहर वो रघु का इन्तझार करती हो !
अचानक रघु की नजर शर्ट पर पड़ी जो उसने जुर्म किया उस दिन पहनी थी | उस शर्ट पर पड़े खुन के ढब्बे देखकर उसके हाथ ऐसे कपकपाए के वो शर्ट उसके हाथों से छूट हि गया | उस खून के छीटे से रघु ऐसे चौक गया जैसे बुरे सपने से कोई जाग जाता हो ! जैसे किसी ने पुराना घाव फिर से खुरद दिया हो ! जिसे वो पिछले 12 सालों से अनदेखा कर रहा था | मगर आज वो दिन फिर से ना चाहते आंखो से सामने आ रहा था |
छुट्टी का दिन था | रघु अपनी पत्नी सुधा और 3 साल की बच्ची रक्षा को लेकर गार्डन मे आया था |गार्डन मे बच्चे ऐसे झूल रहे है थे जैसे ठंडी हवा फुलो को झुला रही हो ! हर बच्चा ऐसे चहक रहा था है जैसे चिड़िया के बच्चे चहकते हो !
‘आँटी मुझे भी झुला झुलना है’ - एक बच्चे ने सुधा के आँचल को खेचते हुए कहा |
सुधा ने पलट के देखा तो वो बच्चा बाजु वाली सोसायटी में रह रहे एक रईस का बेटा था |
‘तुम्हारी मम्मी नहीं आई ? - सुधा ने कहा |
‘पापा ओफिस गये है और मम्मी वो सामने वाले ब्युटी पार्लर मे गई है’ - बच्चे ने
जबाब दिया
कैसे बेपरवाह माँ है ? बच्चे को अकले भेज दिया और खुद निकल पड़े सजने सवर ने ! –
रघु ने बच्चे के माँ की लापरवाही पे चिल्लाते कहा |
‘अब जाने दो ना ! आप क्यु गुस्सा हो रहे हो !’ - सुधा रघु के गुस्से को शांत करते
हुई बोली |
‘आ ओ में तुम्हें झुला झुलाती हुं’ - उस बच्चे को झुले पर रखते हुई सुधा बोली |
बच्चा थोड़ा झुला झुला ही था तभी दो आदमी आये और उस बच्चे को कहा –
‘चलो हम तुम्हें तुम्हारे पापा ने बुलाया है ‘
बच्चे ने उन दोनों कि तरफ देखा और फिर से झुला झुलने मे मशगूल हो गया |
उन दोनों में आपस मे कुछ आंखो से ईसारा किया और उन में से एक बच्चे की तरफ बढ़ा और बच्चे उठाते कहा – ‘हम आपके पापा के दोस्त है | पापा तुम्हारी राह बहार देख रहे है |’
बच्चा सहमी आंखो से दोनों को देखता रहा |
‘रुको’ - सुधा ने बच्चे ले जाता रोकते हुए कहा
‘क्या है’ - एक ने अक्डाते हुए कहा
‘बच्चे ने अभी कहा है की उसके पापा आफिस मे है तुम बोल रहे हो की गार्डन के बाहर है ? ‘ये.... तुम अपना काम करो ना ! तुम्हें क्या पड़ी है दूसरे की बातों में टाँग अडाने की ?’ – अब की बार दूसरे वाला चिल्लाते हुए बोला |
‘क्यु ना पडु ? इस बच्चे को में जानती हुं | मुझे बच्चे को पूछना पड़ेगा ! क्या तुम इन दोनों को जानते हो ?’ - सुधा ने बच्चे से सवाल पूछा |
बच्चे ने गरडन हिला कर ना मे जवाब दिया
‘रघु... रघु.... इधर आओ’ - सुधा ने रघु को आवाज लगाई |
रघु तुरंत रक्षा के साथ आ घमका |
‘क्या हुआ सुधा क्यु चिल्ला रही हो’ – रघु ने कहा |
‘रघु ये लोग इस बच्चे को उसके पापा के दोस्त बनकर जबरदस्ती ले जा रहे है जबकि ये दोनों उसके पापा के दोस्त नहीं है ‘
‘ओ.. ए क्या ये सच है ‘ - रघु ने आँखें बड़ी करके दोनों की तरफ देखकर बोला |
‘अरे मेडम आप भी ना राय का पहाड़ बना रही है ! ऐसा हो तो हम यहाँ से चले जाते है’- अपने हाथों से बनता खैल बिगता देख एक ने बात में नर्मी दिखाते कहा |
दोनों धीरे से बच्चे को छोड़ कर डबे पाँव वहा से खिसक ने की तैयारी करते है |
‘कही ये लोग बच्चे की किडनेपींग करने के लिए तो नहीं आये थे ? पिछले महीने भी ऐसे हि एक बच्चे की किडनेपींग हुई थी ! कही वो किडनेपींग में इन दोनों का हाथ तो नही ?’ – सुधा ने रघु को कहा |
सुधा कि बात सुनके दोनों के पसीने छुटने लगे और वो जल्द से जल्द 9 दो 11 हो ने कि तैयारी करने लगे | तभी दोनों को रघु ने शर्ट के कोलर से पकडते हुए कहा - कहा जहा रहे हो ? कौन हो तुम लोग ?
दोनों गभरा गये फिर एक ने जोर से रघु को धक्का मारा तो रघु गिर पड़ा | दूसरे बाजू खड़ी रक्षा को पकड़ लिया और तेज चक्कू छोटी सी बच्ची के गरदन पर टीका कर बोला - हमें ‘जाने दो नहीं तो बच्ची को ....’
‘नहीं नहीं मेरी बेटी को कुछ मर करना’ - सुधा ने अपनी बेटी की जान की रिहाई मांगती उस आदमी के सामने बेबस हो कर घुटनृ के बल गिर पड़ी |
लाचार रघु कुछ नहीं कर पा रहा था | चक्कू की घार इतनी तेज थी की रक्षा की गरदन से खून निकलने लगा | रक्षा बिलक बिलक के रोने लगी | कौन बाप देख पाता ये नजारा ? उसके सामने उसकी नन्ही बेटी से खून बह रहा था ! जिस माँ-बाप ने कभी अपने बच्चे को खरोच भी नही आने दी हो उसका खून माँ-बाप के सामने बह रहा था | रघु अपना होश खो बेठा और शेर तरह दोनो पे झपट पड़ा | रघु की आंखो में सुलगते अंगारे को देखकर एक ऐसा गभराया की उसके हाथों से चक्कू कब छूट गया ये पता ही नहीं | रघु ने वही चक्कू उठा कर उन दोनों पर इतने वार किए जितने उसकी बच्ची के गरदन से खून तपका था | आखिर वो भी वो क्या करता उसे सिर्फ उसकी बेटी के जख्म दिए थे | जब रघु अपने पुरे होस मे आया तो पता चला की उसका शर्ट खून के छिटो से भर गया था | रघु ने दोनों को जान से मार दिया था और वहा सुधा अपनी बच्ची को आँचल में समा कर सिसक सिसक के रो रही थी | पुलिस जब रघु को ले जा रही तब रघु ने सुधा से एक वादा लिया था की रक्षा को ये मत बताना इसका बाप जेल में है ! एक खूनी है ! में आजाद हो कर आउगा तुम मेरा इन्तजार करना | सुधा बस आसु बहा कर जवाब दे रही थी |
अचानक टाला खुलने की आवाज से पिछले बारह सालों की कड़वी यादें रघु की स्वाहा हुई |
रघु ने आँखें पोछते हुए देखा तो वहा जेलर थे |
‘रघु तुम्हारी रिहाई का वक्त हो गया है’ – जेलर ने कहा |
रघु आंखो मे खुशी की चमक लेकर उठा |
‘रघु तुमने तुम्हारे कपड़े नहीं लिए ?’ - जेलर ने कहा
‘नहीं ! अब मे कोई भी अतीत की यादो में नहीं जिना चाहता और मुझे कोई भी चिजे नहीं चाहिए जिस से मुझे मेरी अतीत की याद दिलाये’ – रघु नम आंखो से बोला |
‘ठिक है तुम जैसे ठिक समजो | ये लो पैसे जिसने जेल मे कमाये थे ! मे तो बस इतना हि कहुगा की तुम फिर यहाँ कभी भी ना आओ !’ – जेलर बोला
रघु ने पैसे लिये और निकल पड़ा आजाद दुनिया में आखिरकार वो भी तो आजाद हो गया है |
रघु बहार आकर जमीन पे रेंग रहे जिव जंतु से लेकर आकास मे उड रहे हवाई जहाज को देख रहा था | जमीन पर तरबतर फिरती चिंटी से लेकर मस्त मोला होकर घुमती चिड़िया को देख रहा है जो कभी वो जेल की छोटी सी खिड़की से देखता था | वो बहार का नजारा देखता देखता कब उसके घर की चोखत पर आ गया था पता हि नहीं चला !
रघु को घर मे उसकी बीवी सुधा और बेटी रक्षा नजरे झुकाके इन्तजार कराती दिखाई दी |
सुधा ने तो रघु को देख कर आसु का समंदर बहता छोड़ दिया | मगर रघु के आसु कौन सी दिवार रोके रखी थी वो तो रघु ही! सायद उसे ये डर होगा के उसकी रक्षा उसे पहचान सकेगी के नही ? 3 साल की बच्ची 15 बिटीयां हो गई है ! उसके पापा के कोन से लक्षन उसमे है ये तैय करना मुश्किल था |
रघु धीरे धीरे दोनो के सामने जा कर घुटने के बल बैठ गया और आसु का महासागर छलकाते हुए बोला - बेटी मुझे माफ करना मे पिछले बाराह साल से तुम्हारे पास नही था |
‘नहीं पापा’ – रक्षा ने कहा
पापा सुनते ही रघु के सोये हुए मन में हजारों उमंगे उछलने लगी |
‘पापा आपने आपकी बेटी रक्षा की रक्षा की थी अगर आप 12 साल यहाँ होते यो सायद मे यहाँ नहीं होती | जो भी हुआ वो आपने हमारे लिया किया था |’ – रक्षा ने पापा को बड़े प्यार से कहा
छोटी बेटी से इतनी बड़ी बात सुनके सुधा और रघु ऐसे बिलक बिलक कर रोये के ये तय कर पाना मुश्किल था की ये गम के आसु थे के खुशी के ?
समाप्त
संजय नायका
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