Siyah Haashie - 4 in Hindi Short Stories by BALRAM AGARWAL books and stories PDF | सियाह हाशिए - 4

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सियाह हाशिए - 4

हमेशा की छुट्टी

“पकड़ लो…पकड़ लो…देखो, जाने न पाये।”

शिकार थोड़ी-सी दौड़-धूप के बाद पकड़ लिया गया।

जब नेज़े उसके आर-पार होने के लिए आगे बढ़े तो उसने काँपती आवाज़ में गिड़गिड़ाकर कहा :

“मुझे न मारो…मैं छुट्टियों में अपने घर जा रहा हूँ।”

हलाल और झटका

“मैंने उसकी शहरग (हृदय से मिलने वाली सबसे बड़ी नस) पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया।”

“यह तुमने क्या किया?”

“क्यों?”

“इसको हलाल क्यों किया?”

“मज़ा आता है इस तरह।”

“मज़ा आता है के बच्चे…तुझे झटका करना चाहिए था…इस तरह।”

और हलाल करने वाले की गरदन का झटका हो गया।

घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में-से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया।

रात गुज़ारकर एक दोस्त ने उससे पूछा—“तुम्हारा नाम क्या है?”

लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया—“हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो…!”

लड़की ने जवाब दिया—“उसने झूठ बोला था।”

यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा—“उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…!”

हैवानियत

मियाँ-बीवी बड़ी मुश्किल से घर का थोड़ा-सा सामान बचाने में कामयाब हो गए।

एक जवान लड़की थी, उसका पता न चला।

एक छोटी-सी बच्ची थी, उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाए रखा।

एक भूरी भैंस थी, उसको बलवाई हाँककर ले गए।

एक गाय थी, वह बच गई; मगर उसका बछड़ा न मिला।

मियाँ-बीवी, उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे।

सख्त अँधेरी रात थी।

बच्ची ने डरकर रोना शुरू किया तो खामोश माहौल में जैसे कोई ढोल पीटने लगा।

माँ ने डरकर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया कि दुश्मन सुन न ले। आवाज दब गई। सावधानी के तौर पर बाप ने बच्ची के ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।

थोड़ी दूर जाने के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज आई।

गाय के कान खड़े हो गए। वह उठी और पागलों की तरह दौड़ती हुई डकराने लगी। उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई, मगर बेकार…

शोर सुनकर दुश्मन करीब आने लगा। मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी।

बीवी ने अपने मियाँ से बड़े गुस्से के साथ कहा-"तुम क्यों इस हैवान को अपने साथ ले आए थे?"

विनम्रता

चलती गाड़ी रोक ली गई।

जो दूसरे मज़हब के थे, उनको निकाल-निकालकर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया।

इससे फ़ारिग़ होकर गाड़ी के बाकी मुसाफ़िरों की हलवे, दूध और फलों से आवभगत की गई।

गाड़ी चलने से पहले आवभगत करने वालों के मैनेजर ने मुसाफ़िरों को मुख़ातिब करके कहा :

"भाइयो और बहनो, हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली; यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे, उस तरह आपकी ख़िदमत न कर सके…!"

खाद

उसकी ख़ुदकुशी पर उसके एक दोस्त ने कहा—“बहुत ही बेवक़ूफ़ था जी…मैंने लाख समझाया कि देखो, अगर तुम्हारे केश काट दिये गये हैं और तुम्हारी दाढ़ी मूँड़ दी गयी है तो इसका यह मतलब नहीं कि तुम्हारा धर्म ख़त्म हो गया…रोज़ दही इस्तेमाल करो…वाह गुरुजी ने चाहा तो एक ही बरस में वैसे के वैसे हो जाओगे…!”

दृढ़ता

“मैं सिख बनने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं…मेरा उस्तरा वापिस कर दो मुझे…!”

निगरानी में

क अपने दोस्त ख को अपना समानधर्मा बताकर उसे सुरक्षित जगह पर पहुँचाने के लिए मिलिट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।

रास्ते में ख ने, जिसका धर्म किसी कारणवश बदल दिया गया था, मिलिट्री वालों से पूछा—“क्यों जनाब, आसपास कोई वारदात तो नहीं हुई?”

जवाब मिला—“कोई खास नहीं…फलाँ मुहल्ले में अलबत्ता एक कुत्ता मारा गया।”

सहमकर ख ने पूछा—“कोई और ख़बर?”

जवाब मिला—“खास नहीं…नहर में तीन कुतियों की लाशें मिलीं।”

क ने ख की ख़ातिर मिलिट्री वालों से कहा—“मिलिट्री कुछ इंतज़ाम नहीं करती?”

जवाब मिला—“क्यों नहीं…सब काम उसी की निगरानी में होता है…!”

जूता

हुजूम ने रुख बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा।

लाठियाँ बरसायी गयीं। ईटें और पत्थर फेंके गये। एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने बहुत-से पुराने जूते जमा किये और उनका हार बनाकर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा कि पुलिस आ गयी और गोलियाँ चलना शुरू हो गयीं।

जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख़्मी हो गया। चुनांचे मरहम-पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया।

अग्रिम व्यवस्था

पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई।

फ़ौरन ही वहाँ एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।

दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई।

सिपाही को पहली जगह से हटाकर दूसरी वारदात की जगह पर तैनात कर दिया गया।

तीसरा केस रात के बारह बजे लॉण्डरी के पास हुआ।

जब इंस्पेक्टर ने सिपाही को नई जगह पहरा देने का हुक्म दिया तो उसने कुछ देर ग़ौर करने के बाद कहा—“मुझे वहाँ खड़ा कीजिए, जहाँ नयी वारदात होने वाली है…!”

सॉरी

छुरी, पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गयी।

नाड़ा कट गया।

छुरी मारने वाले के मुँह से एकाएक पश्चात्ताप के बोल फूट पड़े—“च्…च्…च्…मिशटेक हो गया!”

रिआयत

“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो…”

“चलो, इसी की मान लो…कपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ़…”

सफ़ाई पसंदी

गाड़ी रुकी हुई थी।

तीन बंदूकची एक डिब्बे के पास आये।

खिड़कियों में से अन्दर झाँककर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा—“क्यों जनाब, कोई मुर्ग़ा है?”

एक मुसाफ़िर कुछ कहते-कहते रुक गया।

बाक़ियों ने जवाब दिया—“जी नहीं।”

थोड़ी देर बाद चार लोग भाले लिए हुए आये।

खिड़कियों में से अन्दर झाँककर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा—“क्यों जनाब, कोई मुर्ग़ा-वुर्ग़ा है?”

उस मुसाफ़िर ने, जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया—“जी, मालूम नहीं…आप अन्दर आके संडास में देख लीजिए।”

भाले वाले अन्दर दाखिल हुए।

संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्ग़ा निकल आया।

भाले वालों में से एक ने कहा—“कर दो हलाल।”

दूसरे ने कहा—“नहीं, यहाँ नहीं…डिब्बा ख़राब हो जायेगा…बाहर ले चलो।”

सदक़े उसके

मुज़रा ख़त्म हुआ।

तमाशा देखने वाले विदा हो गये।

उस्ताद जी ने कहा—“सब-कुछ लुटा-पिटा कर यहाँ आये थे, लेकिन अल्लाह मियाँ ने चंद ही दिनों में वारे-न्यारे कर दिये…!”

साम्यवाद

वह अपने घर का तमाम जरूरी सामान एक ट्रक में लादकर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।

एक ने ट्रक के माल-असबाब पर लालचभरी नजर डालते हुए कहा-"देखो यार, किस मजे से इतना माल अकेला उड़ाए चला जा रहा है!"

असबाब के मालिक ने मुस्कराकर कहा-"जनाब, यह माल मेरा अपना है।"

दो-तीन आदमी हँसे-"हम सब जानते हैं।"

एक आदमी चिल्लाया-"लूट लो…यह अमीर आदमी है…ट्रक लेकर चोरियाँ करता है…!"

उलाहना

“देखो यार, तुमने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिये और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दूकान भी न जली…!”

आराम की ज़रूरत

“मरा नहीं…देखो, अभी जान बाक़ी है!”

“रहने दे यार…मैं थक गया हूँ!”

क़िस्मत

“कुछ नहीं दोस्त, इतनी मेहनत करने पर सिर्फ़ एक बक्स हाथ लगा था, पर उसमें भी साला सुअर का गोश्त निकला…!”

आँखों पर चर्बी

“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…पचास सुअर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश करके इस मस्ज़िद में काटे हैं…वहाँ मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है…लेकिन यहाँ सुअर का माँस खरीदने के लिए कोई आता नहीं…!”

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