बारह रशियां और सात दिन के अंक
बारह राशियों और सप्ताह के सभी दिनों के लिए अंक ज्योतिष के अनुसार अलग—अलग अंक निर्धारित हैं। इसके आधार पर भाग्य और भविष्य का आकलन जन्म की तरीख से प्राप्त होने वाले मूल अंक और भाग्य अंक के साथ किया जाता है।
राशिचक्र के उन बारह बराबर भागों को कहा जाता है, जिन पर ज्योतिषी आधारित है। हर राशि सूरज के क्रांतिवृत्त पर आने वाले एक तारामंडल से संबंध रखती है और उन दोनों का एक ही नाम होता है - जैसे की मिथुन राशि और मिथुन तारामंडल। ये बारह राशियां हैं –
1.मेष राशि, 2.वृष राशि, 3.मिथुन राशि, 4.कर्क राशि, 5.सिंह राशि, 6.कन्या राशि, 7.तुला राशि, 8.वृश्चिक राशि, 9.धनु राशि, 10.मकर राशि, 11.कुंभ राशि और 12.मीन राशि।
प्रकृति और सौरमंडल के अध्ययनों से यह जानकारी मिल चुकी है कि 30 डिग्री के हिसाब से इस राशि चक्र का 12 कालों में विभाजित किया गया है। ये बारह तारा समूह ज्योतिष के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं। यदि पृथ्वी, सूरज के केन्द्र और पृथ्वी की परिक्रमा के तल को चारो तरफ ब्रंहाण्ड में फैलायें, तो यह ब्रंहाण्ड में एक तरह की पेटी सी बना लेगा। इस पेटी को हम 12 बराबर भागों में बांटें तो हम पाएंगे कि इन भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। हमारी पृथ्वी और ग्रह, सूरज के चारों तरफ घूमते हैं या इसको इस तरह से कहें कि सूरज और सारे ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष इन 12 तारा समूहों से गुजरते हैं। यह किसी अन्य तारा समूह के साथ नहीं होता है इसलिये यह 12 महत्वपूर्ण हो गये हैं। इस तारा समूह को हमारे पूर्वजों ने कोई न कोई आकृति दे दी और इन्हे राशियां कहा जाने लगा।
इन राशि चक्र के काल में पैदा होने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर उसका प्रभाव पड़ता है। इनको 30 डिग्री के तीन कालों में विभक्त किया गया है। पृथ्वी का संबंध सौरमंडल से है। सूर्य इस राशि चक्र में शीत )तु के मध्य काल में ढाई से तीन मिनट और गर्मियों में तीन से पौने पांच मिनट तक परिभ्रमण द्वारा प्रवेश करता है। उस समय प्रत्येक ग्रह पर एक विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है तथा उन सब में अंतर भी होता है। यदि सूर्य के राशि चक्र की 360 डिग्री में घूमने पर विचार करें, जो औसत 4 मिनट की डिग्री होती है और इस डिग्री का संबंध दूसरी डिग्री से ठीक उसी तरह से होता है, जिस तरह से घड़ी को चलाने वाले बड़े और छोटे पहिए के साथ होता है। यदि इन 360 डिग्री को चार मिनट से गुणा किया जाए तो 1,444 मिनट प्राप्त होता है। इसे 60 से विभक्त कर दिया जाए तो 24 घंटे का एक बनता है, जो समय के कालचक्र के एक खंड को दर्शाता है।
खगोल विज्ञान से यह साबित हो चुका है कि सूर्य राशि चक्र के एक भाग से दूसरे भाग में जाने के लिए 30 दिन का समय लेता है। इस कारण एक विभिन्न प्रकार का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। इस तरह से सूर्य द्वारा एक राशि को पार करने से सौर मास की अवधि बनती है और सूर्य के राशि चक्र के बारह भागों में गुजरने के साथ-साथ हमारे बारह महीने पूरे हो जाते हैं। बारह महीनों से सौर वर्ष बनता है तथा सौर वर्ष और सौर मास का पहला दिन मेष होता है। इस आधार पर सौर वर्ष सूर्य के 21 मार्च से 23 तारीख तक सूर्य के विशुव में प्रवेश करने से आरंभ होता है। यदि सूर्य का राशि में प्रवेश दिन में होता है तो वह दिन मास का प्रथम दिन होता है। यदि प्रवेश रात्रि में होता है तो दूसरा दिन मास का प्रथम दिन होता है। किसी राशि में सूर्य के प्रवेश का काल विभिन्न पंचांगों में विभिन्न होता है, किसी पंचांग में सूर्यास्त के पूर्व और किसी में सूर्यास्त के उपरान्त होता है। अतः मास के प्रथम दिन के विषय में एक दिन का अन्तर हो सकता है। पृथ्वी अपनी धूरी पर 24 घंटे में एक चक्र पूरा करती है और राशि चक्र के 12 चिन्ह इन 24 घंटे में उसके प्रत्येक हिस्से से होकर गुजरता है। इसी के साथ चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर 28 दिनों के चंद्रमास में एक चक्र पूरा करता है। इस तरह से प्रत्येक राशि चक्र का एक समय निर्धारित किया गया है, जिनका संबंध मूल अंक से भी बनता है। वे इस प्रकार हैंः-
मेषः राशि चक्र की पहली राशि मेष का समय 21 मार्च से 19 अप्रैल है। इसका स्वामी ग्रह मंगल और मूल अंक 9 है। इस राशि का चिन्ह भेड़ा है। राशि चक्र का यह प्रथम बिन्दु प्रतिवर्ष लगभग 50 सेकेण्ड की गति से पीछे खिसकता जाता है। इस बिन्दु की इस बक्र गति ने ज्योतिषीय गणना में दो प्रकार की पðतियों को जन्म दिया है। भारतीय ज्योतिषी इस बिन्दु को स्थिर मानकर अपनी गणना करते हैं। इसे निरयण पðति कहा जाता है। जबकि पश्चिम के ज्योतिषी इसमे अयनांश जोडकर ’सायन’ पðति अपनाते हैं। हालांकि भारतीय ज्योतिष के आधार पर गणना को भास्कर के अनुसार सही माना गया है।
वृषः यह राशि चक्र का दूसरी राशि है, जिसका चिन्ह वृषभ यानि कि बैल है। इसका समय 20 अप्रैल से 20 मई तक है तथा यह 20 से 60 अंश के बीच होता है। स्वामी ग्रह शुक्र होने के साथ-साथ मूल अंक 6 है।
मिथुनः रशि चक्र की तीसरी राशि मिथुन का समय 21 मई से 20 जून तक का होता है। रशि चिन्ह जुड़वां है और स्वामी ग्रह बुध होता है। इसका मूल अंक 5 है।
कर्कः राशि चक्र की चैथी राशि कर्क का चिन्ह केकड़ा होता है तथा 2 और 7 मूल अंकों वाली इस राशि का समय 21 जून से 22 जुलाई तक का होता है। यह उत्तर दिशा का द्योतक और जल त्रिकाण की पहली राशि है। इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश पर पाया जाता है और स्वामी ग्रह चंद्रमा, मंगल और गुरु हंै।
सिंहः राशि चक्र का पांचवी राशि पूर्व दिशा का द्योतक है तथा विस्तार क्षेत्र 120 से 150 अंश तक होता है। इसका समय 21 जुलाई से 20 अगस्त् तक का होता है। सिंह चिन्ह वाली इस राशि का स्वामी सूर्य और और तत्व अग्नि है। इस दृष्टीकोण से इसके स्वामी सूर्य, गुरु और मंगल हैं। इसके दो मूल अंक 1 और 4 हैं।
कन्याः राशि चक्र की छठी राशि कन्या इसी चिन्ह की होती है तथा इसका समय 21 अगस्त से 20 सितंबर तक का होता है। 150 से 180 अंशों तक के विस्तार वाले इस राशि चक्र के स्वामी बुध, शनि और शुक्र होते हैं। यह मूल अंक 5 से प्रभावित रहता है।
तुलाः राशि चक्र की सातवीं राशि तुला का विस्तार अंश 180 से 210 होता है तथा यह 21 सितंबर से 20 अकटूबर तक के समय में रहता है। तराजू चिन्ह वाले इस राशि का स्वामी शुक्र है और मूल अंक 6 के प्रभाव में बना रहता है।
वृश्चिकः बिच्छू चिन्ह वाली इस आठवीं राशि का समय 21 अक्टूबर से 20 नवंबर का होता है। साथ ही इसका विस्तार 210 से 240 अंश तक है। स्वामी ग्रह मंगल और मूल अंक 9 है।
धनुः राशि चक्र की नौंवी राशि धनु का समय 21 नवंबर से 20 दिसंबर तक का समय होता है। इसका विस्तार के 240 से 270 अंश तक है और स्वामी बृहस्पति है। इसपर मूल अंक 3 का प्रभाव बना रहता है और चिन्ह धनुर्धर है।
मकरः राशि चक्र की दसवीं राशि मकर का चिन्ह मगरमच्छ है और इसका विस्तार 270 से 300 अंशों तकं होता है। यह 21 दिसंबर से 20 जनवरी तक के समय में रहता है । इसका स्वामी ग्रह शनि और मूल अंक 8 होता है।
कुंभः राशि चक्र के ग्यारहवीं राशि का चिन्ह कुंभ यानि घड़ा है और इसका विस्तार 300 से 330 अंश तक होता है। यह 21 जनवरी से 20 फारवरी तक के समय तक होता है। इस राशि के स्वमी ग्रह भी शनि और मूल अंक 8 होते हैं।
मीनः रशि चक्र की अंतिम बारहवीं राशि मीन का चिन्ह मछली है तथा इसका विस्तार 330 से 360 अंश तक होता है। इसका समय 19 फरवरी से 20 मार्च तक होता है और मूल अंक 3 है।
राशि और अंकों का क्रम: इसके अनुसार राशियों के अंक उनके स्वामी ग्रह के आधार पर तय किये गए हैं। इन ग्रहों का रशियों पर स्पष्ट और विपरीत दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं। स्पष्ट प्रभाव जहां व्यक्ति के शारीरिक गुणों-अवगुणों से दिखता है, वहीं विपरीत प्रभाव उसकी मानसिक दशा और मनोविज्ञान को दर्शाता है। ग्रहों और राशियों के अनुरूप अंक इस प्रकार से होते हैंः-
1-सिंह, सूर्य
2-कर्क , चंद्रमा
3- धनु और मीन, बृहस्पति
4- सिंह, सूर्य
5- मिथुन और कन्या, बुध
6-वृषभ और तुला, शुक्र
7- कर्क, चंद्रमा
8- मकर और कुंभ, शनि
9- मेष और वृश्चिक, मंगल
मूल अंकों और राशियों के साथ ग्रहों के संबंध के अनुसार एक विशेष बात यह देखी जा सकती है कि सूर्य और चंद्रमा ऐसे ग्रह हैं, जिनका संबंध दो मूल अंकों से है। सूर्य और यूरेनस आपस में एक-दूसरे से संबð रखते हैं, इसलिए सूर्य के दो अंक 1 और 4 हैं।
इसी तरह से चंद्रमा का संबंध नेप्च्यून से है, इसलिए इसके भी दो अंक 2 और 7 होते हैं। इस कारण इन अंकों के आपसी संबंध भी प्रभावित होते हैं। जब कभी 1 और 4 तथा 2 और 7 का आपस में मिलते हैं तो वे एक-दूसरे से सहानुभूति के भाव दर्शाते हैं। यानि कि 1 और 4 के से संबंधित 1,4,10,13,19,22,28 और 31 तारीख को पैदा हाने वाले व्यक्ति 2 और 7 के अधीन 7,11,16,20,25 और 29 को पैदा होने वाले व्यक्तियों के प्रति न केवल आकर्षित होते हैं, बल्कि उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं। ऐसे व्यक्ति 20 जून से 21-27 जुलाई तक चंद्रमा के प्रभाव में तथा 21 जुलाई से 20-27 अगस्त तक सूर्य के प्रभाव में जन्म लेने वाले होते हैं।
अंक और सप्ताह
सामान्यतः एक माह में चार सप्ताह होते हैं और एक सप्ताह में सात दिन। इन सात दिनों पर रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार से संबंधित ग्रहों और अंकों का असर भी व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है, जो ग्रहों के परिणाम से होता है। सप्ताह के प्रत्येक दिन पर नौ ग्रहों के स्वामियों में से क्रमशः पहले सात का राज चलता है. जैसे-
रविवार पर सूर्य, सोमवार पर चन्द्रमा, मंगलवार पर मंगल, बुधवार पर बुध, बृहस्पतिवार पर गुरु, शुक्रवार पर शुक्र और शनिवार पर शनि का प्रभाव रहता है। अन्तिम दो राहु और केतु क्रमशः मंगलवार और शनिवार के साथ संबंध रखते हैं।
इसी के साथ यह भी ध्यान दिया जाना जरूरी है कि पश्चिम में दिन की शुरुआत मध्य रात्रि से होती है, जबकि वैदिक दिन की शुरुआत सूर्योदय से। वैदिक ज्योतिष में जब हम दिन की बात करते हैं तो इसका मतलब सूर्योदय से होता है। सप्ताह के प्रत्येक दिन के कार्यकलाप उसके स्वामी के प्रभाव से प्रभावित होते हैं और व्यक्ति के जीवन में उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। जैसे- चन्द्रमा दिमाग और गुरु धार्मिक कार्यकलाप का कारक होता है। इस वार में इनसे संबंधित कार्य करना व्यक्ति के पक्ष में जाता है। सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों की संज्ञाओं के आधार पर रखे गए हैं अर्थात जो नाम ग्रहों के हैं, वही नाम इन दिनों के भी हैं। जैसे-
सूर्य के दिन का नाम रविवार, आदित्यवार, अर्कवार, भानुवार इत्यादि।
शनिश्चर के दिन का नाम शनिवार, सौरिवार आदि। हालांकि सप्ताह केवल मानव निर्मित व्यवस्था है, जिनके संबंध मूल अंकों से भी इस प्रकार से बताए गए हैंः-
रविवार- 1 और 4
सोमवार- 2 और 7
मंगलवार- 9
बुधवार- 5
बृहस्पतिवार या गुरुवार- 3
शुक्रवार- 6
शनिवार- 8
सप्ताह के दिनों का संक्षिप्त विवरण
रविवारः सप्ताह का पहला दिन है रविवार या इतवार। शनिवार के बाद और सोमवार से पहले आने वाल रविवार रवि से बना है, जिसका अर्थ सूर्य होता है। पंचांग के अनुसार यह सूर्य का दिन है। प्रायः इस दिन कार्यालयों में अवकाश रहता है। इसे सबसे सुखद दिन भी माना गया है और यह दिन आपसी संपर्क के लिए भी उपयोगी है। कार्यालयों में अवकाश होने के कारण यह सप्ताह का मनोरजंन दिवस भी माना जाता है।
जापान में रविवार को निचीयोबि अर्थात ‘सूर्य का दिन’ कहा जाता है। इसी तरह से रोमन केलैंण्डर में भी सप्ताह के पहले दिन को ‘सूर्य का नाम’ दिया गया है।
सोमवारःसप्ताह का दूसरा दिन है । रविवार के बाद और मंगलवार से पहले आने वाले इस दिन का नाम सोम से माना गया है, जिसका अर्थ भगवान शिव होता है। भारत तथा विश्व के कई देशों में यह सामान्य काम का ‘प्रथम दिन’ होता है। इसलिए लिए सोमवार को सप्ताह का पहला दिन भी कहा जाता है । हिन्दू धर्म में सोमवार को भगवान शिव को समर्पित दिन माना जाता है।
जापान में सोमवार को गेतसुयोबी अर्थात ‘चाँद का दिन’ माना जाता है। इसी तरह से रोमन केलैंण्डर में भी दूसरे दिन को चाँद का नाम दिया गया है।
मंगलवारः सप्ताह क इस दिन भौम भी कहा जाता है। यह सप्ताह का तीसरा दिन है, जो सोमवार के बाद और बुधवार से पहला दिन है। इसका नाम मंगल से पड़ा है, जिसका अर्थ कुशल होता है। मंगल का अर्थ भगवान हनुमान से भी माना जाता है । हिन्दू धर्म में मंगल का अर्थ पवित्र और शुभ होता है, अतः हिन्दू मंगलवार को किसी कार्य का प्रारम्भ करने के लिए शुभ मानते हैं ।
इसके विपरीत यूनान और स्पेन में मंगलवार किसी भी कार्य के लिए अशुभ माना जाता है। उनकी पारंपरिक कहावतों के अनुसार मंगलवार को यात्रा या विवाह नहीं करना चाहिए। जापान में मंगलवार को कायोबी अर्थात आग का दिन माना जाता है। जबकि रोमन केलैंण्डर में तीसरे दिन को मंगल कहा जाता है। इस दिन मंगल की पूजा की जाती है। मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्रपत्र पर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।
बुधवारः रोमन कैलेंडर के अनुसार सप्ताह का यह चैथा दिन मंगलवार के बाद और बृहस्पतिवार से पहले आता है तथा इसका बुध से पड़ा है, जिसका तात्पर्य एक हिन्दू देवता से है । बुधवार व्यापारियों के लिए अच्छा दिन है। इस दिन व्यापारी अपने उत्पादों के भावों की समीक्षा कर उसमें आम तौर पर बढोत्तरी करते पाए गए हैं। जापान में बुधवार को सुईयोबी अर्थात पानी का दिन माना जाता है।
बृहस्पतिवारः रोमन केलैंण्डर में सप्ताह के इस पांचवे दिन को गुरुवार या वीरवार भी कहा जाता है । यह बुधवार के बाद और शुक्रवार से पहले आता है । उर्दू में इसे जुमेरात कहते हैं, क्योंकि यह श्जुम्मा ;शुक्रवारद्ध से एक दिन पहले आता है । जापान में बृहस्पतिवार को मोकुयोबी अर्थात लकड़ी का दिन माना जाता है।
शुक्रवारः रोमन कैलेंडर के अनुसार सप्ताह के इस छठे दिन को उर्दू भाषा में जुम्मा कहा जाता है, जो बृहस्पतिवार के बाद और शनिवार से पहले आता है। जुम्मा का दिन इस्लाम में पवित्र माना जाता है और प्रत्येक आस्थावान मुसलमान शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं। ईसाई धर्म के लोग ईसा मसीह की याद में गुड फ्राईडे यानि अच्छा शुक्रवार मनाते हैं। इस सप्ताह का नाम शुक्र ग्रह पर है। जापान में शुक्रवार को किन-यूबी यानि धन का दिन कहा गया है। यह दिन धन के लेनदेन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
शनिवारः रोमन कैलेंडर के अनुसार सप्ताह का यह सातवां दिन शुक्रवार के बाद और रविवार से पहले आता है। इसे शनिचर भी कहते हैं तथा यह नाम शनि से आया है जो एक हिन्दू देवता को इंगित करता है। इसी नाम से एक ग्रह भी है। जापानी भाषा में शनिवार को दोयोबी यानि धरती का दिन कहा जाता है।शनिवार पर शनि का राज चलता है। कई कार्यालयों और विद्यालयों में इस दिन पूर्ण या अर्ध अवकाश रहता है। हिन्दू धर्म में इसे संकट के दिन से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन शनि का प्रकोप रहता है।