गधे का भूत
और यह चंकी ने ठप्पा खाती हुयी बॉल फेंकी .... और बंटी ने बैट घुमाया और ये लो... धत् तेरे की.... बॉल फिर चली गयी परसराम के गन्ने के खेत में....। यह आठवीं बॉल जो थी जो बच्चों ने आपस में पैसे इकठ्ठा करके खरीदी थी। बल्ला नितिन के मामा के लड़के का था, जो आजकल अपनी मम्मी—पापा के साथ अपने नाना—नानी के पास झालू गया हुआ था। खेत परसराम का था और परसराम इस वक्त खेत पर नहीं था वरना मोंटी पर खूब बिगड़ता जो इस समय परसराम के गन्ने के खेत में घुसा हुआ था और अपनी बॉल ढूंढ रहा था।
बॉल तो नहीं मिली अलबत्ता मोंटी को एक गढढा दिखाई दिया। गढढा जो था वो दूर से तो छोटाा दिखाई दे रहा था लेकिन जब मोंटी उसके पास गया तो गढढा उसे खूब बड़ा दिखाई दिया। इतना बड़ा कि मोंटी उसमें आसानी से बिना टोपी उतारे घुस जाये और टोपी भी न गिरे।
मोंटी असमंजस में। बॉल गयी तो कहां गयी? कहीं इसी गढढे में तो नहीं? बॉल आयी तो इसी ओर थी। जब इसी ओर आयी थी तो इसमें जा भी सकती है। गढढे का मुॅुंह भी काफी बड़ा है। एक नहीं, इसमें तो अनेक बॉल एक—साथ जा सकती हैं। एक बॉल की तो बिसात ही क्या? बल्कि बॉल और बैट की पूरी दुकान तक इसमें घुस सकती है। सोचकर मोंटी को खुद पर ही हॅंसी आ गयी। पर कुछ तो करना ही था। क्रिकेट खेलना जारी रखना था तो बॉल लानी थी। बॉल लानी थी तो अंदर जाना था। उसने पीछे मुड़कर देखा सभी खिलाड़ी उसी की ओर देख रहे थे। उसने सभी बच्चों को बॉल के लिए चिल्लाते हुए देखा।
और मोंटी कूद गया गढढे के भीतर।
अरे यह क्या! उसने तो सोचा था कि पत्थर होंगे, ईंटें होंगीं या ऐसा ही कुछ गंद—बला होगा। पर भीतर तो मखमली घास थी। घास के ऊपर ज्यौं ही पांव पड़े मोंटी के, वह आसानी से खड़ा हो गया। उसे झटका तक नहीं लगा।
भीतर अंधेरा था। बाहर से भीतर आने पर ऐसा ही होता है। उसने आंखे फाड़ कर देखा। धीरे—धीरे उसकी आंखे अंधेरे की अभयस्त हो गयीं। तब उसे दूर गधे की एक आकृति दिखाई दी। यह गधा यहां क्या कर रहा है? यह भी बॉल ढूंढने आया है क्या? सोचकर उसे हॅंसी आयी। नहीं। यह घास खाने आया होगा। यहां मखमली घास है न!
वह अपनी बॉल ढूंढने लगा। उसका ध्यान अपने पैरों की ओर था। बॉल यहीं कहीं हो सकती है। इस चक्कर में वह गधे की ओर आगे बढ़ने लगा। पर आश्चर्य!! वह ज्यौं—ज्यौं गधे की ओर बढ़ रहा था, गधा उससे दूर सरकता जा रहा था। यानी गधा भी आगे सरक रहा है। मोंटी ने एक क्षण सोचा और जम्प लगा दी। वह सीधे गधे के पैरों पर गिरा और कसकर उसके पैरों को पकड़ लिया।
‘परे हट, क्या करता है?' गधे ने उसे झिड़का।
गधा बोलता भी है। मोंटी चौंका।
‘नहीं छोड़ूंगा तुझे। पहले बता मेरी बॉल कहां है।' प्रत्यक्षतः मोंटी बोला।
‘मेरे पैर छोड़ वरना दुलत्ती मार दूंगा।' गधा बोला। मोंटी ने तुरन्त उसके पैरों को छोड़ दिया और खड़ा हो गया। उसे डर था कि कहीं गधे ने दुलत्ती मार दी तो बॉल भी नहीं मिलेगी और चोट लगेगी सो अलग।
‘बता मेरी बॉल कहॉं है?' मोंटी ने खड़े होकर पूछा।
‘पहले मेरी पीठ पर से गठरी उतार कर अपनी पीठ पर रख लो।' गधे ने कहा। तब मोंटी ने पहली बार देखा कि गधे की पीठ पर एक गठरी रखी है। मोंटी ने उसकी पीठ पर से गठरी उतारी और अपनी पीठ पर रख ली और आराम से खड़ा हो गया। गठरी अधिक भारी नहीं थी। इससे अधिक भारी तो उसका स्कूल बैग था जो वह प्रतिदिन कंधे पर लादकर स्कूल जाता था।
‘अब बताओ, बॉल कहां है?' मोंटी न व्यग्रता से पूछा।
‘मुझे भूख लग रही है। आओ, पहले घास खायेंगे।' गधे ने कहा और मॅुंह झुकाकर शुरू हो गया।
खाने के बाद मोंटी ने फिर पूछा— ‘मेरी बॉल कहॉं है?'
‘अब मैं थक गया हूॅं। मुझे सोने दो।' गधे न जम्हाई लेकर घोषणा की।
‘तुम वास्तव में हो कौन? गधे तो नहीं लगते। पहले भरपेट खाना खाया और अब सोने जा रहे हो। बताओ, मेरी बॉल कहां पर है?' व्यग्रता से पूछा मोंटी ने।
‘मैं भूत हॅूं।' गधे ने मानो रहस्योद्घाटन किया।
‘भूत? गधे का भूत?' मोंटी चौंका।
‘हॉं। क्या गधे का भूत नहीं हो सकता? मैं पिछले जन्म में गधा था। धोबी का गधा। धोबी मुझसे खूब काम कराता पर खाने को बिलकुल न देता। मैं जल्दी ही परलोकवासी हो गया। अब मैं यहां इस गढढे में भूत बनकर घूम रहा हॅूं। जमकर खाता हूॅं और खाली घूमता हूॅं। लेकिन आज तक मेरी पीठ पर धोबी के कपड़ों की गठरी चिपकी हुई थी, जो आज के बाद तुम्हारी पीठ पर रहेगी।' धोबी के गधे का भूत बोल उठा।
‘पर मेरी बॉल...।' मोंटी ने पूछा तो वह बोला, 'हॉ..हॉ देता हूूॅ। पहले मेरी बात तो पूरी हो जाने दो। मैं जब धोबी के साथ घाट पर जाता था तो बच्चों को बॉल से खेलते हुए देखता था। मेरा भी खूब मन करता था कि मैं भी बॉल से खेलूं। यहां गढढे में बैठकर मैं अपना वह शौक भी पूरा कर लेता हॅूं। मेरे पास बहुत सारी बॉल्स का कलैक्शन है।' कहकर गधे के भूत ने मोंटी का बहुत सी बॉल्स दिखायीं।
तब मोंटी को पता चला कि उनकी सारी बॉल्स कहां चली जाती थीं। मोंटी झट अपनी बॉल उठाने लगा लेकिन गधे के भूत ने मना कर दिया।
‘क्या सोच रहे हो मोंटी। कब से देख रही हॅूं। पढ़ रहे हो या कुछ सोच रहे हो।उठो, और हाथ मुंह धोकर कुछ खा लो।' मम्मी की आवाज आयी।
‘ओह! ते ये उसके ख्याली पुलाव हैं।' उसने सोचा और मुस्कुरा दिया। ‘भूतों की कहानी पढूंगा तो सपने में भूत ही दिखाई देंगे।'
तभी उसकी निगाह अपने भारी—भरकम स्कूल बैग पर पड़ी तो बरबस वह मुस्कुरा दिया — ‘यही तो धोबी के गधे की गठरी, जो उसकी पीठ पर अब प्रतिदिन रहती है।'