Deh ke Dayre - 12 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | देह के दायरे - 12

Featured Books
Categories
Share

देह के दायरे - 12

देह के दायरे

भाग - बारह

आज सन्ध्या को पूजा रेणुका के पास से लौटी तो उसने देखा, देव बाबू अपना सामान बाँध चुके थे | दोपहर ही उसने पूजा से कहा था कि आज साँझ ही वह इस घर को छोड़ देगा |

बहार ताँगा आकर खड़ा हो गया था | पूजा की माँ और पिताजी वहीँ खड़े थे | देव बाबू ताँगे वाले से समान तो ताँगे में रखवा रहा था | अन्त में सभी सामान ताँगे में रखवा चुकने के बाद देव बाबू ने उन दोनों के पाँव छूकर चलने के लिए अनुमति माँगी |

“तुम्हें यहाँ से जाने देना हमें अच्छा तो नहीं लगता बेटा, मगर तुम्हारी जिद के सामने हम कुछ कर भी नहीं सकते |” पूजा के पिताजी ने कहा |

“कभी-कभी चक्कर लगाते रहना बेटा |” पूजा की माँ ने कहा |

“जरुर माँजी |” कहकर देव बाबू कमरे से बाहर आ गया | पूजा उससे बहुत कुछ कहना चाहती थी मगर खामोश खड़ी उसे देखती रही | देव बाबू ने एक दृष्टि मुसकराकर उसे देखा और हाथ हिलाकर चलने की अनुमति चाही | माँ और पिताजी की उपस्थिति में वह हाथ हिलाकर उसे विदा भी न कर सकी | बस...मन मसोसकर रह गयी वह | ताँगा धीरे-धीरे आँखों से ओझल हो गया परन्तु पूजा यूँ ही खड़ी उस सड़क को ताकती रही |

देव बाबू को किराये के कमरे में गए कई दिन व्यतीत हो गए थे | पूजा को प्रतिदिन ही यह प्रतीक्षा रहती थी कि आज वह उससे मिलने अवश्य आएगा | इसी प्रतीक्षा के कारण वह सारा दिन घर से बाहर न निकलती | कई दिन तक भी जब वह न आया तो पूजा की प्रतीक्षा बेचैनी में बदल गयी | कहीं पर भी, किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता था | हर पल वह उससे मिलने का उपाय सोचती रहती | उसे तो देव बाबू के कमरे का पता भी मालूम न था | माँ तो पता था मगर संकोच के कारण वह उनसे पूछ नहीं पाती थी | यदि पूजा को देव बाबू के कमरे का पता मालूम होता तो शायद वह दो दिन भी प्रतीक्षा न कर उससे मिलने के लिए वहाँ पहुँच जाती |

आखिर इसके लिए भी उसे रेणुका का ही सहारा लेना पड़ा | जब उसने अपनी समस्या उसके सामने रखी तो कुछ देर तो उसने अपने स्वभाव के अनुसार उसे तंग किया परन्तु अगले दिन प्रातः ही उसने पूजा की माँजी से देव बाबू के कमरे का पता पूछकर पूजा को बता दिया |

पूजा को पता क्या मिला, उसकी उदासी मुसकराहट में बदल गयी | सन्ध्या को पाँच बजे तैयार हो, एक सहेली से मिलने का बहाना करके वह देव बाबू से मिलने के लिए चल दी |

रेणुका द्वारा दिए गए पते पर जाकर पूजा ने पूछा, “देव बाबू इसी मकान के एक कमरे में रहते हैं?” उसने धड़कते ह्रदय से आगे बढ़कर दरवाजा खटखटा दिया |

“खोलता हूँ...रोज तंग करने के लिए आ जाती है |” अन्दर से आती आवाज को सुनकर पूजा चकित रह गयी | आवाज तो देव बाबू की ही थी परन्तु वह उसके कहने का अर्थ नहीं समझ पा रही थी |

‘कौन आती है रोज...रोज?’ सोचकर पूजा के मन को एक धक्का-सा लगा |

दरवाजा खोला तो देव बाबू भी चकित रह गया |

“पूजा, तुम! आओ, अन्दर आओ |” सामने पूजा को खड़ी देखकर उसने कहा |

“कौन आती है रोज-रोज तंग करने?” क्रोध और संशय की कुछ लकीरें पूजा के मुख पर खिंच आयी थीं, जो देव बाबू से भी अनदेखी न रह सकीं |

“माफ करना पूजा, मुझे क्या पता था कि तुम आयी हो |”

“यह तो मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है?”

“कौन-से प्रश्न का?” देव बाबू भी गम्भीर हो गया |

“कौन आती है रोज आपके पास?”

“अच्छा समझा |” देव बाबू की गम्भीरता एक गहरी मुसकान में बदल गयी, “संशय न करो पूजा, इस समय प्रतिदिन एक भिखारिन रोती माँगने आती है |”

यदि देव बाबू के हाथ में पूजा ने रोटी न देख ली होती तो शायद उसका संशय दूर न हो पाता परन्तु अब उसकी शंका का समाधान हो गया था | इस समय तो पूजा को स्वयं पर शर्म-सी अनुभव हो रही थी कि उसने व्यर्थ ही देव बाबू पर शक किया |

देव बाबू ने पूजा की उस स्थिति को भाँप लिया था इसलिए बात को मोड़ देते हुए उसने कहा, “बैठोगी नहीं क्या?”

पूजा आगे बढ़कर पलंग के एक किनारे पर बैठ गयी | कमरा साफ-सुथरा, हवादार था परन्तु वहाँ की प्रत्येक वस्तु जिस स्थिति में थी उससे देव बाबू का अनाड़ीपन और लापरवाह स्वभाव की झलक मिल रही थी |

“क्या हल है पूजा?” देव बाबू ने भी पास ही बैठते हुए कहा |

“कभी मछली को पानी से बाहर फेंक दिए जाने पर उसकी स्थिति को देखा है देव?”

“तुम्हारे मन की बात मैं समझता हूँ पूजा | अब हमारी राह में कोई रूकावट नहीं है | मैं शीध्र ही पिताजी से बात करूँगा |”

“तुम्हारे बिना अब एक दिन भी कितना बोझिल हो जाता है-यह भी शायद तुम समझ सकते हो |”

“तो ऐसा करो...तुम यहीं ठहर जाओ | शादी बाद में कर लेंगे |” हँसकर देव बाबू ने कहा | पूजा भी हँसे बिना न रह सकी |

कुछ देर कमरे में उनकी हँसी छाई रही |

“मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ |”

“तुम चाय बनाओगे?”

“क्यों?”

“चाय बनानी आती है?”

“अब तो खाना बनाना भी सीख गया हूँ |” मुसकराकर देव बाबू ने कहा, “कहो तो आज शाम का खाना तुम्हें अपने हाथ से बनाकर खिला दूँ |”

“ख्याल तो बुरा नहीं है लेकिन अभी तो तुम मुझे ही चाय बनाने दो |” कहते हुए पूजा उठ खड़ी हुई |

“किचिन बराबर में है |” देव बाबू ने उँगली से उसे बताते हुए कहा और स्वयं एक पत्रिका के पृष्ठ पलटने लगा | पूजा किचिन की तरफ चली गयी |

कमरे वाली स्थिति किचिन की भी थी | एक कोने में स्टोव पड़ा था तो माचिस ढूँढे से नहीं मिल रही थी | किसी तरह पूजा ने पिन और माचिस तलाश की और स्टोव जलाकर चाय के लिए पानी रख दिया |

पानी स्टोव पर खौलता रहा मगर पूजा जो कमरे में आकर अस्त-व्यस्त सामान को ठीक करने लगी तो उसे यह ध्यान ही न हरा कि वह स्टोव जलाकर चाय बनने के लिए उसपर पाने रख आयी है | कुछ देर तो देव बाबू बैठा पूजा को वह सब कार्य करते हुए देखता रहा और फिर स्वयं रसोई की तरफ बढ़ गया |

पूजा को सुध आयी तो देव बाबू चाय के प्यालों को मेज पर रख रहे थे |

“ओह! मैं तो चाय बनाना भूल ही गयी थी |” पूजा ने चौंकते हुए कहा |

“अब तो हम तुम्हें माफ कर देते हैं | मगर शादी के बाद अँगीठी पर सब्जी को जलने के लिए ही न छोड़ दिया करना |” हँसकर देव बाबू ने कहा और पूजा हाथ धोकर पलंग पर आ बैठी |

खामोशियों के मध्य चाय पी जा रही थी | देव बाबू कमरे की ओर देख रहा था जो कि बदला-बदला-सा लग रहा था |

“तुम्हारे हाथ लगते ही यह घर बन गया है पूजा |”

“पहले घर नहीं था क्या?”

“पहले खण्डहर था पूजा, तुम्हारे आने पर महल हो गया है |”

“मगर तुम्हारे आने से हमारा घर तो सूना हो गया है |”

“चिन्ता न करो | जल्दी ही हम तुम्हें उस घर से ले आएँगे |”

“कब?”

पूजा ने कहा तो देव बाबू उसके मुख की ओर देखता रह गया | पूजा भी कहकर लगा गयी और उसकी दृष्टि झुक गयी |

चाय समाप्त हो चुकी थी | पूजा चलने के लिए उठ खड़ी हुई |

“इतनी जल्दी चल दी पूजा!”

“जल्दी! सात बज रहे हैं | क्या घर से निकलवाने का इरादा है?”

“एक दिन तो निकलना ही है |”

“लेकिन समय आने पर |”

“फिर अब आओगी?”

“जब तुम आओगे |” कहकर तेजी से बाहर निकल गयी पूजा |

उसके पाँव तो आगे नहीं बढ़ रहे थे परन्तु किसी तरह वह उन्हें धकेल रही थी |

देव बाबू के साथ आने की भी उसने प्रतीक्षा न की | वह चकित-सा दरवाजे पर खड़ा जाती हुई पूजा को देखता रहा |

दो दिन बाद जब पूजा फिर देव बाबू से मिलने के लिए घर से निकल रही थी तो उसके पिताजी ने उसे टोक दिया |

“देव बाबू से मिलने जा रही हो बेटी?”

सुनकर पूजा का मन शंकित हो उठा | उसकी प्रश्न-भरी दृष्टि अपने पिताजी के मुख की ओर उठी |

“तुम्हारी शादी की तारीख पक्की कर दी है बेटी...अगले महीने की बीस तारीख | अब रोज उससे मिलना ठीक नहीं है |” कहकर पूजा के पिताजी वहाँ से चले गए |

पूजा की इच्छा तो थी कि वह देव बाबू से मिलकर उस खुशी को बाँट ले परन्तु अपने पिताजी की बात टालने का साहस उसमें न था | देव बाबू से न मिल सकने का उसे दुःख अवश्य था परन्तु वह दुःख बीस तारीख की प्रतीक्षा की खुशी में नीचे दब गया था |