बख्षीष
’बग्गा वस्त्र भंडार में पचास प्रतिषत तक की छूट। बग्गा बंधु आपको और आपके परिवार को इस पावन पर्व पर अपनी हार्दिक षुभकामनाएं देते हैं। एक बार सेवा का मौका देकर हमें अनुग्रहीत करें।
धन-धन की सुनो झनकार ये दुनिया है काला बाजार
कि पैसा बोलता है.....हां पैसा.....
हलो. हलो कृपया ध्यान दें। ज्वेल पैलेस लाये हैं माताओं बहनों के लिए सुंदर गणेष लक्ष्मी, बेहद कम कीमत पर....
...............है काला बाजार.....
गट्टा, खिलौना चालीस में, लैया तीस की किलो। और कहां आइये हसानी प्रतिश्ठान में। एक हजार की खरीददारी पर दो किलो प्याज बिल्कुल मुफ्त।
बाजार में त्यौहार की खरीददारी अपने-अपने स्तर और आवष्यकतानुसार चढ़ती जा रही थी। ग्राहकों के स्टेटस पर सजी दुकानें। यह वह मजमा-ए-आम होता है जहां चीजों की खरीद फरोख्त ही नहीं होती, बौद्धिक रस्साकषी का अखाड़ा है जिसमें बेचने वाला अपने घर परिवार का सबसे चटख-तेज, चतुर-सुजान और बाजार से जरूरत का सामान लाने वाला अपने पैमाने पर प्रखर मेधावी।
बाजार में त्यौहारों की रौनक बखूबी देखी जा सकती थी। मैं, मेरी पत्नी और निज संतानों में परिभाषित वर्तमान फैमिली का मुखिया नीलेष पत्नी रष्मि को मार्केटिंग में मदद कर रहा था। जनरल आइटम्स निपट चुके थे। साड़ी के लिए कई दुकानों में ’समझ में नहीं आ रही........नो नो मनी इज नाॅट द मैटर। कुछ खास तो नहीं हंै, इन्हीं से काम चलेगा।’
तमाम लेटेस्ट डिजायन और वेरायटीज को रिजेक्ट करते हुए काफी जद्दोजहद के बाद गृहलक्ष्मी जी को लक्ष्मी पूजन, रंगोली, डेकोरेषन तथा दीपमालिका हेतु साड़ियाँ पसंद आई थीं।
षाॅपिंग कर नीलेष ने पेमेन्ट काउन्टर पर बिल चुकता करने के लिए जब क्रेडिट कार्ड आगे बढ़ाया तो श्रीमती जी ने नियतश्रव्य संवाद षैली में पति महोदय तक कुछ संप्रेषित किया। षायद कुछ याद आया था।
............’नाचहिं नर मरकट की नाई।’
वह सीधे माॅल के साड़ी वाले काउण्टर पर पुनः चल दिया।
’हलो यू कुछ सस्ती चलताऊँ साड़ियाँ दिखाईएगा।’
’जी मैम आपकी सेलेक्टेड साड़ियाँ तो अभी-अभी बिल काउण्टर पर भेज दी गई हं। मजाक कर रही हैं?
’अपने लिए नहीं यार, दीवाली पर बाई वगैरह को भी तो बख्षीष देनी पड़ती है। सो कुछ वैसी टाइप दिखाइए। तीन चार सौ के आस पास चल जायेगी।’
रष्मि बख्षीष और दीवाली षब्द पर जोर डालते हुए नीलेष की तरफ देख रही थी। कई साड़ियों को उलटने- पलटने के बाद उसने आखिर एक साड़ी चुन ही लिया। उसके इस उदात्त कार्य और चिंतन पर पति महोदय बाग-बाग थे। चैदह वर्श काट लिए थे ऐसा वाकया याद नहीं आता था कि उसने दीवाली पर इतनी दरियादिली दिखाई हो।
अगले दिन नौकरानी उर्मिला बुहार-पोंछा निपटाकर जाने लगी तो नीलेष ने रष्मि को आवाज दी, ’यह जा रही है......। आगे श्रीमती जी स्वयं काॅमन सेन्स वाली थीं सो जुर्रत कहाँ कि ’इसका गिफ्ट दे दो।’ तिल का ताड़ बन जाता।
’हां मुझे मालूम है नीलू। कल इसकी छुट्टी है। कोई बात नहीं। माँ जी तो हंै न...........।’
नीलेष को कुछ अटपटा सा जरुर लगा परंतु सब कुछ समन्वय भाव में देखने वाला वह इतना ही कह सका, हाँ -हाँ मिलकर काम निपटा लिया जायेगा।’
भोर में अम्मा पोते को दुलार रही थीं, ’’उठा लाला विवेक, वैभवा को भी जगाइ दे आजु अमावस है। जल्दी-जल्दी नहाव-ध्वाव। आजु हम तुम सबका खातिर पेड़ा बनाईब।’’
’ओह ओह....... कौन है? नीलू जरा चाय दीजिएगा। इतनी टायर्डनेस है कि ....। और अपनी कौषल्या मैया से कहो कि नींद नहीं आती तो सफाई कर डालें ।’
न्यूक्लियर फैमिली ने विद्युत लड़ियों, पटाखों और अम्मा के पेड़ों से भी लजीज माउथ वाटरिंग पकवानों तथा नववस्त्र धारण कर दीपोत्सव मनाया।
’बहुरिया-लरिका पोता सब सुखी रहैं लक्ष्मी मइया।’
पूरे परिवार के साथ-साथ अम्मा ने भी इस बार नई साड़ी .......में परिवार की सुख-षांति, ऐष्वर्य और मंगल की प्रार्थना की।