फैमिली
’सर, घर गए हुए मुझे छः महीने हो गए। मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती। दस-पन्द्रह दिन की ही छुट्टी दे दीजिये।’
सिपाही अनुराग सिंह सूबेदार के सामने छुट्टी की अर्जी देते हुए गिड़गिड़ा रहा था।
’मानता हूं कि तुम काफी दिन से छुट्टी नहीं गए लेकिन इस समय मैन पावर की क्राइसिस है, ब्रदर। दूसरे पहले उन लोगों को छुट्टी देनी है जिनकी फैमिली यहां नहीं है। तुम तो छड़े हो क्या फर्क पड़ता है, बाद में देखेंगे।
जब समाज की परते मां के षक्ति स्वरूपा, आश्रयदायी छांव के सुख से इतर पत्नी के साए में सुख की अनुभुति करने लगें तो उसकी परिणति मूल्य रहित स्खलित ठूंठ झुण्ड में क्यों न होगी। टुंडा लाट और और कछुवा सोचे संवेदनाओं के विद्युत षव दाह गृहों का निमार्ण ही करेंगी।
षाम को अनुराग ने मां को सेलफोन से रिंग कर बताया ’मम्मी यहां लीव की बड़ी प्राब्लम है। अभी उन्हीं को लीव दी जा रही है जो षादी-षुदा हैं।’
रात भर अनुराग को मां की याद आती रही। बार-बार ऐसा लग रहा था कि मां उसे बुला रही है।
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’दाहिने से गिनती कर।’
’एक, दो, तीन.............नौ। अप वन ब्लैंक सर।’
सुबह की वर्किंग परेड में नौजवानों की गणना में एक की रिक्तता।
सूबेदार साहब की रोबीली आवाज गूंज रही थी।
’सिक रिपोर्ट............ड्यूटी आॅफ?’
’बोलो ब्रदर! ह्वेयर इज अनुराग?’
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घोर अवसाद और मानसिक पीड़ा के चलते वह आज बैरक में ही पड़ा रहा। उसका दोस्त जहांगीर, साहब को इन्फार्म कर रहा था कि अरली माॅर्निंग कार्डियाक फेल्यिर होने से अनुराग की मां एक्सपायर हो गयीं।
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’डियर, साॅरी। इमेडियेटली प्रोसीड आॅन लीव। वी विल मैनेज द थिंग्स।’
सूबेदार सिम्पैथी का षिश्टाचार और करता कि अनुराग कहने लगा ’सर, मेरी तो बूढ़ी मां ही............, पहले फैमिली वालों की प्राब्लम्स देख लीजिए।’