Aaina Sach Nahi Bolta - 9 in Hindi Fiction Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | आइना सच नहीं बोलता - ९

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आइना सच नहीं बोलता - ९

आइना _सच_नहीं_बोलता

हिंदी कथाकड़ी

लेखिका अपर्णा अनेकवर्ना

अपर्णा .एक प्रतिभाशाली कवियत्री , पत्रकारिता की डिग्री धारक , पहले पत्रकार थी अब फुल टाइम गृहणी ,समय का सार्थक उपयोग करती हैं कविताएं लिखकर , उनकी कविताये अनेक प्रतिष्ठित

समाचार पत्र _पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी हैं |लेखन उनकी आत्मा से उसी तरह जुड़ा हैं जिस तरह शरीर का साँस लेना . उनकी रचनाये हिंदी और अंग्रेजी भाषा दोनों में प्रकाशित होती आई हैं | अनुवाद कार्य भी उनके द्वारा कुशलता पूर्वक किया जाता हैं

सूत्रधार नीलिमा शर्मा

आज दोनों को घर से बंगलोर लौटे २ महीना होने को आया. नंदिनी की चुप अब उसकी पक्की सहेली है. वो और दीपक साथ लौटे तो हैं ख़ुशी ख़ुशी पर नंदू अब कहीं वहीँ छूट गयी है, मायके-ससुराल के बीच. ये अपना संसार तो बस एक का ही है.. दूसरा उसे निबाह रहा है.

शादी के शुरुआती दिनों का ख़ुमार दीपक के सर से उतर रहा है, ये एहसास नंदिनी के मन पर कुंडली जमा कर बैठ गया है>यह घर दीपक का हैं और उसको कोई भी हक नही यहाँ , कुछ भी अपनी मर्ज़ी से करने का . वो अपने अकेलेपन की बावड़ी में इस वजन से खिंची रोज़ उतर रही है. डूबेगी या उबर ही जाए कौन जाने.
दिन, रोज़मर्रा के कामो का हाथ थामे गुज़ार देती है, और रात दीपक की मर्ज़ी है. दिन का दीपक रात के अँधेरे के दीपक से बहुत अलग होता . रात के अँधेरे में कभी मुलायम स्पर्श से सहलाता तो कभी जंगली सा व्यवहार करता दीपक उसे कभी प्यारा न लगता . रात का आना आना उसे कभी भयभीत करता तो कभी उसे शायद ऐसा ही होता होगा का अहसास कराता .नंदिनी इतने महीनों में समझ चुकी है दीपक की ज़रूरतें और उसके जीने का हिसाब. और इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर है उसकी चुप्पी और उसके मन मुताबिक़ अपने शारीर का भोग करने देना

दीपक को एक नामालूम सी चिढ़ है उसके बोलने से. बातचीत का तो कोई सवाल ही नहीं. मूड अच्छा हुआ तो ‘हाँ हूँ’ में एक-आध जवाब आ भी जाता है.. मूड अगर बिगड़ा हुआ तो बातों से ही नहीं कभी-कभार हाथों से भी जवाब मिल जाता है अब नंदिनी को. तब अम्मा को याद कर, उठती है सिसकी पर घोंट लेती है जल्द ही. माँ बाबा के कमरे से आती माँ की सिसकियो की आवाज़ का मतलब अब उसे समझ आने लगा | माँ के शारीर पर कभी कभी उभरे नील के निशाँ भाभी की गर्दन पर दीखते नील के निशाँ जिन्हें भाभी मजाक में लव बाईट्सकहती थी आज अपने दर्द की कहानी बयां कर रहे थे


अभी पिछले हफ्ते जबफ़ोन पर माँऔर भाभी की आवाज़ सुनी उसने, मन ऐंठ कर रह गया. लगा कैसे भी माँ को खींच लाये या खुद उड़ कर चली जाए माँ के पास. पर दीपक सामने बैठा घूर रहा था.. वो नज़र बहुत थी नंदिनी को वास्तविकता के धरातल पर जमाए रखने के लिए. ‘जहाँ डोली जा रही वहां से अर्थी उठे’ कहकर विदा करने वाली माँ का जीवन देखा था उसने. पिता भी एक ‘पुरुष’ ही रहे.. किसके आसरे लौटती घर, किससे कहती अपनी देखी-अनदेखी चोटों की कथा. उसने उन्हें फाउंडेशन से छुपाना सीख लिया है.
तब भी माँ से रुंधा गला नहीं छुपा सकी. ‘नंदिनी ,, मेरी समझदार बिटिया. बस जाये तू राज़ी-ख़ुशी तो हम गंगा नहा लेंगे, समझ रही है न तू? मेरी बहादुर बेटी है.

.’ माँ-बेटी कब दो औरतें बन गयीं पता ही नहीं चला. साझे दुःख उबलकर जल उठे. उस ताप को दोनों ने चुपचाप बाँट लिया. नंदिनी समझ गयी वो बात जिसे समझने के लिए लोग घर छोड़ देते हैं.. जोग धर लेते हैं.. जंगल परबत भटकते हैं.. उतनी सी लड़की ने समझ लिया इस पर्वत से भारी जीवन में वो निपट अकेली है. और कुछ भी नहीं ऐसा जो इसे बदल सके. और वो ख़ामोश हो गयी. एकाकी हो गयी | अकेले में उसका साथी होते लता के मुकेश के गीत जिनको वो रेडियो पर सुनती थी दीपक की अनुपस्तिथि में . दीपक तो आकार जाज़ संगीत के गाने लगा कर ख़ामोशी से बालकनी में बैठ जाते और कई बार फ़ोन से इंग्लिश में किसी से बाते करते रहते |

‘नोंदीनी! कहाँ हो तुम? एई दिके शुनो तो’ बाहर बालकनी के उस तरफ से बोउदी उसे बुला रही थीं.. जब दीपक घर में न होता तो नंदिनी आराम से उनसे बातें करती.. पर दीपक के रहते वो चुपचाप ईश्वर से मनाती कि बोउदी इधर का रुख न ही करें तो ही अच्छा. उसे अनजाना भय लगता कि दीपक कहीं उसके गुस्से में उनका भी अपमान न कर बैठे. उसे दीपक का बोउदी के प्रति चिढ़ अच्छी तरह से पता था.
‘आई' बालों को जुड़े में समेटती नंदिनी बालकनी की ओर लपक पड़ी. ‘लो नारियल देके पायाश बनाया है,, खेजूर का गुड़ भी है, खा के बताओ तो,’ जुड़वां टेरेस के नन्हे पार्टीशन के उस पार से खीर की कटोरी उसकी ओर बढ़ाते हुए स्नेह और सकारात्मक ऊर्जा से एक चेहरा चमक रहा था. एक यही कोना था जहाँ से स्नेह की आंच में अपने घाव सेंक लेती थी नंदिनी. ‘आप भी न.. आँखें भर आयीं दोनों ही ओर, आगे-पीछे थोडा. ‘दुर्र पागली, अमार मिष्टिमुख! मुझे भी रुलाएगा क्या?’ आंसू पोछते जाने क्यूँ दोनों हँस पडीं.

समय रुक कर ये धूप-छाँव देखने लगा ही था कि पीछे से आई बयार ने उसे धक्का दे चैतन्य किया. वो नामालूम खुशी से सीटियाँ बजाता वहां से चल दिया.
‘अरे! तुम्हे क्या हुआ रे? नंदिनी!’, मुंह में एक चम्मच खीर की गाढ़ी सी गंध भर गयी और वो लहरा कर वहीँ बैठ गयी. उबकाई ने मुंह से ज्यूँ का त्यों सब बाहर उलट दिया.. आँखें मुंदने लगीं नंदिनी.. और बोउदी की पुकार कहीं बहुत दूर पीछे छूट गयी.. सब अँधेरा था अब.. गाढ़ा सुकून से भरा अँधेरा..
एक पल तन्द्रा टूटी तो सामने दीपक का मुंह देखकर काँप गयी थी नंदिनी. इतना कसा हुआ चेहरा. जैसे क्रोध को वो और क्रोध उन्हें, परस्पर चबा रहे हों. होश आते ही अस्पताल की गंध उसके ज़हन में भय भर गयी.. ‘मुझे क्या हुआ?’ उसने पूछने की कोशिश भी नहीं की. हिम्मत ही नहीं हुई. नंदिनी ने आँखें मूंदते समय डॉक्टर को दीपक से कहते सुना, ‘आपको इनका बहुत ख़याल रखना होगा. कमज़ोरी बहुत ज्यादा है. ऐसे में खान-पान आराम के साथ-साथ मन खुश रहे तो बहुत अच्छा है. आप इनको घर ले जा सकते हैं . कौंग्राचुलेशन!’

वापिसी में गाड़ी में बैठते-बैठते भी दोनों के बीच एक लगातार कसती जा रही ख़ामोशी बैठी रही. माँ बनने की उम्मीद की ख़ुशी और इस तनाव के बीच झूलती रही थोड़ी देर.. आंसू कब बहने लगे.. उसे तब पता चला जब दीपक ने गाडी गुस्से से सुनसान सड़क के किनारे लगायी और उतर कर नीचे खड़ा हो गया.. वो उसे सिगेरट सुलगाते देखती रही.. उसके जलते सिरे को देख कांपती रही.. जोर से बंद किया दरवाज़ा देर तक उसके चेहरे पर किसी थप्पड़ सा बजता रहा. लगातार ३ सिगरेट पीने के बाद भी दीपक का मन अशांत ही लग रहा था | खुद से सवाल जवाब करता हुआ

दीपक ने वापस आते ही सवाल जड़ दिया. ‘क्या ज़रुरत थी अभी इस आफ़त की? तुम संभाल नहीं सकती थीं. गवारों की तरह सारी हरकतें. मेरे सोशल सर्किल में मज़ाक बन जाऊँगा, पर तुम्हें क्या? तुम्हें तो पोतड़ें धोने हैं. हाउ द हेल विल आय मैनेज?’ अवाक रह गयी थी नंदिनी.

“ अबो्र्ट कराओ इसे !!! मैं नही अफ्फोर्ड कर सकता अभी तुम्हारा बच्चा | “

“तुम्हारा बच्चा “ शब्द ने जैसे नंदिनी को सरे बाजार नंगा कर दिया हो उसका रंग सफ़ेद पढ़ गया . धरती ही नही फटती पुराने काल की तरह आज भी जो नंदिनी भी सीता की तरह जमीन में समा जाती .

जीवन अब और कितने पाठ पढ़ायेगा भला. समझ ही नहीं पाती कैसे हर बार वही गलत साबित हो जाती है. क्या उसके अकेले की संतान है? उसकी तो हिम्मत भी नहीं थी कि कुछ सोचे, प्लान करे.

सब कुछ तो दीपक की मर्ज़ी से होता रहा . उसकी इच्छा अनिच्चा का कभी मौका ही कहाँ आया जो करने जाती उल्टा ही पड़ जाता. हिम्मत ही कहाँ बची है उस में कि कुछ सोच सके. उसने बस सीख लिया है चुपचाप दीपक के पीछे चलना. फिर ये उसकी ज़िम्मेदारी, उसकी गलती कैसे हुई?


घर के बाहर तक भीतर लैंडलाइन फ़ोन बजने की आवाज़ आ रही थी. नंदिनी दरवाज़ा बंद करने लगी और दीपक लपक पड़ा था फ़ोन की ओर.

‘हेल्लो!’ ‘माँ! नमस्ते माँ.

आप.. आपको कैसे पता चला?

’ उसका स्वर परेशान हो उठा था.

‘जी! जी नमस्ते पापा!..

वो.. जी.. हाँ मैं देता हूँ. हूँ!’

उसने चिढ़े स्वर में नंदिनी को फ़ोन लेने का इशारा किया और खुद बालकनी में चला गया.

‘हेलो! माँ नमस्ते!’ नंदिनी का स्वर सास की आवाज़ सुनकर भर्रा उठा. उसने आंसू गटक लिए.

‘मुझे तो तेरी बंगालन पड़ोसन ने बताया. तुम मेरा फ़ोन नहीं उठा रही थी तो मैंने उसके घर ही फ़ोन कर लिया. मैं सुनते ही समझ गयी थी. बता तो डॉक्टर ने क्या-क्या कहा है. इश्वर ने हमारी मुरादे मन्नते पूरी करने का संकेत दिया हैं तुम्हारे पापा से बात करती हूँ और सोच रही हूँ थोड़े दिन के लिए आ जाऊं तेरे पास.’

उधर से आती ख़ुशी ने तसल्ली दी नंदिनी को. ‘जी माँ. आप आ जाइये,’ उसने जल्दी से कहा. अब वो अकेली नहीं थी. कम से कम इस बार तो नहीं.

दीपक अब चाह कर भी अबो्र्ट शब्द का इस्तेमाल नही कर रहा था अलबत्ता “बंगालन सहेली तेरी कभी नजर ना आये यहाँ मुझे “कहकर उसे बार बार धमकाता रहता |अगर रीमा पड़ोसन माँ को कुछ न बताती तो वो चुपचाप इस मुसीबत से छुटकारा पा लेता | अब बाबा का डर उसको चुप कराये था |

हफ्ते भर बाद ही दीपक माँ को हवाई अड्डे से लेकर लौटा तब कहीं उसके घर से जैसे कोई भार उतरा. अपने ऊपर का गुस्सा उसने काबू किये रखा | हाथो का इस्तेमाल नही कर सकता क्युकी उसकी माँ और ससुराल से रोज़ ही हिदायतों भरे फ़ोनलगातार आते. इस खबर ने एक सुरक्षा कवच सा बना लिया था नंदिनी के इर्द-गिर्द जिसे वो भेद नहीं सकता था या उसमें ऐसी हिम्मत नहीं थी.

सास के आते ही घर घर सा लगने लगा था. वो अपने भर सुबह से रसोई में जुट जातीं. साथ-साथ लगी रहतीं. डॉक्टर ने नंदिनी के एनेमिक होने की बात करके उनकी चिंता बढ़ा सी दी थी.
दीपक कुछ कहता नहीं पर इस पूरी परक्रम से खुद को काट रखा था. वो बस सामान लाने भर का काम कर देता. माँ समझ रही थीं इस अनकहे तनाव को और चिंतित थीं क्यूंकि उनको थोड़े ही दिन में घर लौटना था.

नंदिनी ने उन्हें बोउदी से कहते सुना, ‘ आप हैं तो हम भरोसे से हैं. नहीं तो आजकल किस पर भरोसा. हमारी नंदिनी को देखना और टोकना इसे. मुझे फ़ोन कर देना जो ये बात न सुने या परेशान बीमार दिखाई दे .'

देखते-देखते दो महीने बीत गए. नंदिनी अपने में मगन रहने लगी थी. डॉक्टर और सासुमाँ की सब बातें मानती. मातृत्व का रोमांच उसमें स्वास्थ्य के साथ भरने लगा. चेहरा लुनाई से दमकने लगा.
एक दिन उसकी मौसेरी बहन ज्योति दी का फ़ोन आया दिल्ली से. ज्योति के पति आर्मी में कर्नल थे और फिलहाल दिल्ली पोस्टिंग थी.
‘कैसी है हमारी नंदू? भाई तूने तो बड़ी जल्दी मचा दी. आजकल लोग रुकते हैं साल दो साल, हमारे जीजू तो बड़े उतावले निकले ,’ उन्होंने हँसते हुए पूछा. एक पल को नंदिनी पर उसका पुराना भय सवार हो गया. पर उसने सँभालते हुए जवाब दिया, ‘दी, मैं क्या करती? मुझे जब तक कुछ समझ आता तब तक ये सब हो गया. ये तो बहुत नाराज़ थे. पर घर वालों के सामने कुछ नहीं कहा.’

‘कोई ना। देखअब अपना ख़याल रख और कुछ चाहिए यहाँ से तो बोल. हमारे सहायक भैया घर जा रहे हैं. मैं उनके हाथ तुझे भिजवा दूँगी.’ नंदिनी को याद आया ज्योति दी जब अपने पहले बच्चे के समय मौसी जी के घर आयीं थीं तब उनके पास एक किताब देखी थी उसने. ‘परफेक्ट बेबी केयर’ नाम की. उसे वही चाहिए थी.
उसके हज़ार सवाल थे और उनका जवाब एक पीढ़ी पुरानी सास के पास था ना ही माँ के पास.एक शर्म हिचक थी उसके भीतर लेकिन वो जानना चाहती थी अपने भीतर के बदलाव को. अपने शरीर को समझना चाहती थी, वो अपने अजन्मे बच्चे से दोस्ती करना चाहती थी. ज्योति ने उसकी बात सुनकर जब फ़ोन रखा तो उसका मन अपनी छोटी बहन के लिए भर आया. खुद से ही कहा उसने, ‘हाय री मेरी नंदू! इतनी जल्दी माँ बनने जा रही हैं | एक आम सी जिन्दगी इसके भी पल्ले पड़ गयी |काश मौसा जी ने इसकी प्रतिभा को समझा होता. खुश रह मेरी बहन “
एक लम्बी सी भारी सांस कब उसके सीने से उतर गयी पता ही नहीं चला. वो ज़रूर भेजेगी अपनी बहन को वो किताब.

नंदिनी आज खुश है. बालकनी से नीचे चंपा के सफ़ेद फूलों को निहारते कलियों पर उसकी निगाह रुक गयी. उसका मन वात्सल्य से भर उठा. उसे उसमें नन्ही उंगलियाँ दिखने लगी थीं और मन गोपाल मन्त्र का जाप कबसे कर रहा था..
‘ॐ देवकीसुत गोविन्द जगत्पते, देहि मे तनयं.
कृष्ण अहम् त्वां शरणम गतः’
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लेखिका _ अपर्णा अनेकवर्ना

सूत्रधार –नीलिमा शर्मा निविया अभी तक