Deh ke Dayre - 10 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | देह के दायरे भाग - 10

Featured Books
  • ફરે તે ફરફરે - 37

    "ડેડી  તમે મુંબઇમા ચાલવાનુ બિલકુલ બંધ કરી દીધેલુ છે.ઘરથ...

  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

Categories
Share

देह के दायरे भाग - 10

देह के दायरे

भाग - दस

रविवार की सुबह पूजा सोकर उठी तो उसके मस्तिष्क में कल की बात घूम रही थी | कल रेणुका ने कहा था कि वह आज उसकी माँ से देव बाबू के विषय में बात करेगी | वह रेणुका की ही प्रतीक्षा कर रही थी | आज उसके जीवन में एक बहुत बड़ा निर्णय होने वाला था | मन आशंकित भी था कि कहीं बात बिगड़ न जाए |

दस बजे के लगभग जब रेणुका आयी तो पूजा अपने कमरे में बैठी हुई थी | उसकी माँ बराबर वाले कमरे में थी | रेणुका पूजा के पास न आकर सीधी उसकी माँ के पास ही चली गयी |

बराबर के कमरे में बैठी पूजा उत्सुकता से रेणुका और अपनी माँ के मध्य होने वाली बात सुनने की प्रतीक्षा कर रही थी |

“आंटी, कल जो लड़का हमारे साथ आया था उसे आपने देखा था न?” रेणुका कह रही थी |

“हाँ देखा तो था | देव बाबू नाम बताया था न उसका?” वह उसकी माँ का स्वर था |

“हाँ, कैसा है?”

“अच्छा है | क्यों, क्या बात है?”

“उससे शादी की बात?”

“तेरी शादी की...?”

“नहीं आंटी, पूजा की |”

“पूजा की?” माँ एकदम चौंक-सी पड़ी थी |

“हाँ आंटी, पूजा उससे शादी करना चाहती है |”

“पूजा उससे शादी करना चाहती है? मगर उसने तो कभी जिक्र नहीं किया |”

“उसने मुझसे कहा था |”

“मगर हमें उसके गाँव का, जाती का, खानदान का कुछ भी तो पता नहीं है |”

“आंटी, गाँव में बस उसकी एक बूढी माँ है | वैश्य जाती है | बहुत समझदार लड़का है आंटी, हमेशा कक्षा में पहले नम्बर पर आता है |” रेणुका ने देव बाबू की प्रशंसा की |

“लेकिन वह हमारी जाती का नहीं है फिर पूजा की उससे शादी कैसे हो सकती है?”

“आंटी, पूजा उसे बहुत चाहती है |”

“नहीं बेटी, एक लड़के ने तो पहले ही दूसरी जाती में विवाह करके हमारी नाक कटवा रखी है, अब पूजा की शादी मैं अपनी जाती से बहार नहीं करूँगी |” पूजा की माँ ने मना कर दिया तो बराबर के कमरे में बैठी पूजा का दिल बैठने लगा |

“अच्छी तरह सोचकर ही फैसला करना आंटी |” रेणुका कह रही थी |

“क्या पूजा ने तुझे मेरे पास भेजा है?”

“हाँ |”

इसके बाद पूजा को कोई स्वर सुनाई न दिया | कुछ देर बाद उसे रेणुका के वापस जाते पाँवों की आहट सुनाई दी | पूजा का हृदय धड़क उठा |

वह सोचकर धबरा रही थी कि अब उसकी माँ उसके पास आकर इस विषय में पूछ-ताछ करेगी | अपनी माँ से बातें करने का वह साहस नहीं जुटा पा रही थी | वह कैसे अपनी माँ से इस विषय में कुछ कह सकेगी, उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था |

समस्या से बचने का उसे एक ही उपाय सुझा | वह पलंग पर चादर खिंचकर लेट गयी ताकि माँ यदि आए भी तो उसे सोता देखकर वापस चली जाए | उसे प्रतिपल अपनी माँ के आने का भ्रम हो रहा था | सोने का बहाना किए उसके कान दरवाजे की ओर लगे थे | हवा के झोंके से भी दरवाजा हिलता तो उसे माँ के आने का भ्रम-सा होता |

उसकी आशा के विपरीत काफी देर तक उसकी माँ उस कमरे में न आयी | सोने का बहाना किए कुछ समय बीता तो उसकी आँख लग ही गयी | दो घंटे सोने के बाद जब वह उठी तो बराबर वाले कमरे से फिर किसी की बातों का स्वर आ रहा था | पूजा ने ध्यान से सुना-उसके पिताजी वापस आ गए थे और उसकी माँ उनसे उसीके विषय में बात कर रही थी | वह जिज्ञासा से उनके मध्य हो रही वार्ता को सुनने लगी |

पूजा की माँ ने उनको वह सब कुछ बता दिया जो रेणुका उन्हें बता कर गयी थी |

सब कुछ सुनने के बाद पूजा के पिताजी ने पूछा, “तुमने पूजा से इस विषय में कोई बात की?”

“नहीं, मैंने तो उससे अभी तक कुछ नहीं पूछा | अब वह बच्ची तो रही नहीं | सब कुछ सोचने-समझने लगी है | मैं तो आपके आने की ही प्रतीक्षा कर रही थी |”

“उस लड़के को मैंने उस दिन देखा था जब पूजा शिमला घूमने गयी थी | जब मैं पूजा को बस पर छोड़ने गया था तो उसने मुझे उससे मिलवाया था | मेरे मन में उस समय भी शंका तो उठी थी लेकिन मैंने बाद में इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया | हाँ, देव बाबू नाम ही बताया था पूजा ने उसका | लड़का तो भला लगता था |”

“लेकिन वह हमारी जाति का नहीं है |”

“किस जाति का है?”

“वैश्य जाति का है |”

“तो हमसे छोटी जाति का तो नहीं है |”

यह सुनकर पूजा की माँ झुँझला उठी, “हमसे छोटी जाति का तो नहीं है...हूँ! तुम्हारी तो बुढ़ापे में अकल ही सठिया गयी है | शादी-ब्याह अपनी ही बिरादरी में ठीक होता है पूजा के पिताजी | एक लड़के ने तो पहले ही हमारी नाक कटवा रखी है |”

“जरा ठण्डे दिमाग से सोच भाग्यवान | जब तेरे लड़के ने एक हरिजन की लड़की से शादी करने की बात की तो तूने उसे स्वीकार नहीं किया | परिणाम क्या हुआ, क्या वह शादी रुकी? उसने कचहरी में शादी कर ली | आज तेरी लड़की अपने से ऊँची जाति में विवाह करना चाह रही है तो भी तू इसे नहीं मान रही | पूजा अब सयानी हो गयी है | वह अपना भला-बुरा स्वयं सोच सकती है | यदि तूने पहले की तरह ही जिद की तो मुझे डर है कि कहीं पहले की तरह न पछताना पड़े | लड़का तो हमें छोड़कर चला ही गया, अब सिर्फ यह एक लड़की रह गयी है |” पूजा के पिताजी की आवाज भावनावश नम हो गयी थी |

“क्या पूजा भी ऐसा कर सकती है?”

“यह जवानी का जोश होता है पूजा की माँ | अब जमाना बदल रहा है | भला इसीमें है कि हम पीढ़ी के लिए अपनी पुरानी लकीरों को छोड़ दें |”

“बड़े की शादी का कितना चाव था मुझे | अब तो उसको एक लड़का भी हो गया है लेकिन वह तो हमें ऐसे भूल गया है जैसे हम उसके माँ-बाप ही नहीं हैं |”

माँ का स्वर अपने बड़े लड़के की याद में भीग गया था |

पूजा को कुछ आशा बंधी | उसे लगा, माँ का ह्रदय पिघल रहा है | माँ अपने बेटे से अलग होने पर दुख व्यक्त कर रही थी |

“पूजा की माँ, तुम पूजा से इस बारे में बात कर लेना |”

“नहीं...मैं तो बात नहीं कर सकूँगी | मुझमें तो अब इतनी हिम्मत नहीं...है |”

“कोई बात नहीं, उसे यहाँ मेरे पास भेज दे | मैं उससे बात कर लूँगा |” पूजा के पिताजी ने कहा |

माँ आएगी यह सोचकर पूजा एक पुस्तक खोलकर पढ़ने बैठ गयी |

“पूजा, तेरे पिताजी बुला रहे हैं |” माँ ने कमरे के बाहर से ही आवाज लगायी | पूजा ने अपना साहस बटोरा | दरवाजे से बाहर निकली तो उसे लगा जैसे उसके पाँव काँप रहे हैं | वह किसी तरह हिम्मत जुटा रही थी | पिताजी की बात वह सुन चुकी थी | इसी कारण कुछ साहस हो रहा था आगे बढ़ने का |

धीरे-धीरे चलती हुई, गर्दन झुकाए पूजा अपने पिताजी के पास कमरे में पहुँची |

“बैठो बेटी |” पिताजी ने कहा तो वह सामने की कुर्सी पर बैठ गयी |

“पूजा बेटी, मैंने सुना है तुम देव बाबू से शादी करना चाहती हो?”

“हाँ पिताजी|” किसी तरह साहस बटोरकर पूजा ने कहा |

“तुम तो जानती हो कि वह हमारी जाति का नहीं है |”

“वह एक शरीफ आदमी तो है पिताजी |” दृष्टि बिना उठाए ही पूजा पिताजी की बात का उत्तर दे रही थी |

“वह तो ठीक है बेटी, लेकिन उसके साथ क्या तुम्हें वे सुख-सुविधाएँ मिल सकेंगी जो यहाँ मिल रही है?”

“सुविधाएँ न सही मगर सुख तो अवश्य ही मिलेगा पिताजी |”

“अच्छी तरह सोच लेना बेटी, कहीं बाद में पछताना न पड़े |”

“मैंने इस विषय में बहुत सोचा है पिताजी |” किसी तरह साहस जुटाए पूजा कह रही थी, “शेष सब तो जो भाग्य में होता है वही मिलता है | मेरी खुशी तो इसी में है |”

“तो फिर ठीक है | मैं देव बाबू से इस विषय में बात करूँगा | कल मैं सुबह तेरे साथ ही कॉलिज चलूँगा, मुझे उससे मिलवा देना और अब तुम अपना मन पढाई में लगाओ, परीक्षा सिर पर है |”

“जी पिताजी |”

हर्षित मन पूजा उठकर अपने कमरे में आ गयी | उसकी इच्छा पूर्ण हो गयी थी | इतनी खुशी थी कि वह स्वयं में समेट नहीं पा रही थी | उसका मन करता था कि ढोलक पीटकर सारे नगर में खबर कर दे कि आज वह बहुत खुश है | उसे अपने-आप पर भी हँसी आ रही थी | मन की इस खुशी को व्यक्त करने के लिए उसके पाँव रेणुका के घर की तरफ बढ़ गए |

रेणुका अपने कमरे में बैठी कोई कोर्स की पुस्तक पढ़ रही थी | पूजा ने उसकी पुस्तक छीनकर पलंग पर फेंक दी | रेणुका उसे देखकर कुर्सी से खड़ी हो गयी |

“ तू आज रास्ता कैसे भूल गयी?”

“भूल गयी रास्ता जो अपनी रेणुका से मिलने का दिल किया |” खुशी से उसके होंठ मुसकरा रहे थे | वह स्वयं को रोक न सकी और रेणुका से लिपट ही गयी |

“क्या बात है पूजा, बहुत खुश हो? क्या हाथ लग गया?”

“बस, कुछ लग ही गया |”

“समझी, मम्मी मान गयी लगती है?”

“हाँ रेणुका |” पूजा ने उसके कन्धे पर अपना मुँह छिपा लिया |

“बधाई हो पूजा | तूने बाजी जीत ही ली |”

“तूने जितवा दी रेणुका, मेरी बहन!”

“तो बोल क्या इनाम दे रही है?”

“इसके बदले में तुझे क्या दूँ रेणुका, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है | तूने मुझपर बहुत उपकार किया है |”

“मेरे उपकार की फीस बहुत छोटी होती है |”

“क्या?”

“एक प्याला चाय |” कहकर रेणुका हँस दी |

“अच्छा चल, आज तुझे जी भरकर दावत दूँगी |” कहते हुए रेणुका को खींचकर पूजा दरवाजे की ओर चल दी |

अगले दिन पूजा अपने पिताजी को साथ लिए कॉलिज पहुँची | उसने उन्हें देव बाबू से मिलाया और स्वयं कक्षा में चली गयी | उन दोनों की बातें सुनने की उसकी इच्छा तो थी मगर संकोच के कारण वह वहाँ ठहर नहीं सकी थी |

कक्षा में उसका दिल न लगा | देव बाबू भी उसके पिताजी से बातें करके दुसरे पीरियड में कक्षा में आ गया था | दूसरा पीरियड समाप्त हुआ तो पूजा ने उसकी ओर देखा | वह मन्द-मन्द हँस रहा था | पूजा कक्षा में बैठी न रह सकी और उठकर कॉलिज के पास बाग की ओर चली |

देव बाबू उसकी स्थिति को समझ गया था | वह भी कक्षा छोड़कर बाग की तरफ चल दिया |

पूजा एक वृक्ष के नीचे आँखें बन्द किए बैठी थी | उसके कान देव बाबू के पाँवों की आहट की प्रतीक्षा कर रहे थे |

पास आती पदचाप से पूजा ने अनुमान लगा लिया कि देव बाबू वहाँ पहुँच गया है | आँखें खोलने को जैसे उसका दिल ही नहीं चाह रहा था |

“पूजा?”

“हाँ |”

“आँखें तो खोलो |”

“नहीं देव बाबू, ऐसे ही रहने दो | मेरा सपना बहुत सुन्दर है |”

“लेकिन सपने की क्या आवश्यकता है-मैं तो सामने ही हूँ |” आगे बढ़कर देव बाबू पूजा के समीप ही बैठ गया |

“पिताजी क्या कह रहे थे देव?”

“कह रहे थे कि पूजा से न मिला करो |”

“क्यों?” पूजा ने चौंककर आँखें खोल दीं |

“क्योंकि उसकी परीक्षा निकट है और यदि तुम उससे मिलते रहोगे तो वह पढ़ नहीं पाएगी | अगर वह फेल हो गयी तो उसका उत्तरदायित्व तुमपर होगा |”

“तुमपर क्यों?”

“क्योंकि उन्होंने अपनी लाड़ली को मेरे साथ बांध दिया है |”

“यह बात है | कुछ और कहा उन्होंने?”

देव बाबू एकाएक कुछ गम्भीर हो गए |

“पूजा, जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाएगी तब तक तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी |”

“मैं कर लूँगी देव |”

“तो फिर ठीक है | अब हमें कुछ दिन अलग-अलग रहना होगा | प्रतिदिन मिलने से कॉलिज में बदनामी भी हो सकती है और हमें परीक्षा की तैयारी भी करनी है | तुम भी पढाई में अपना मन लगाओ |” गम्भीरता से देव बाबू ने कहा |

“प्रयत्न करुँगी |” पूजा ने कहा |

“मुझसे कोई सहायता लेनी हो तो संकोच न करना |”

‘संकोच कैसा; अब तो सारा जीवन ही तुमसे सहायता लेनी होगी |’ पूजा ने मन ही मन सोचा और बिना कुछ कहे उठकर चल दी |

“पूजा, तुम्हारा रुमाल रह गया है |” पीछे से देव बाबू की आवाज आयी |

“कोई बात नहीं, इसे तुम रख लेना | देखोगे तो हमारी याद आ जाएगी |” पूजा ने रुकते हुए बिना पीछे मुड़े कहा |

“याद तो उनकी आती है जिन्हें भुलाया जा सके | तुम्हें क्या मैं कभी भुला सकूँगा?” आगे बढ़ती पूजा के कानों में देव बाबू के शब्द पड़े |

पूजा रुमाल भूली नहीं थी अपितु जान-बूझकर वहाँ छोड़ आयी थी | दो दिन लगाए थे उसने उसकी कढ़ाई करने में | रेशमी धागों से एक कोने में लिखा था-देव-पूजा | काढ़ने के पश्चात् उसे पढ़कर बार-बार लजा जाती थी वह | सुबह उस रुमाल में सेंट की कुछ बूँदें डालकर उसने देव बाबू को देने के लिए अपने पास रखा था | हाथ से देने का साहस वह न कर पाई तो इस तरीके से उसने वह रुमाल देव बाबू के लिए छोड़ दिया था |

कुछ आगे बढ़कर उसने पीछे मुड़कर देखा-देव बाबू रुमाल को अपने अधरों से लगा रहे थे | यह देखकर वह लजा गयी और तेजी से बाग से बाहर निकल गयी |

देव बाबू वहीँ पेड़ से पीठ टिकाए मुसकराते हुए खड़ा रहा |