सूर्य-पुत्र कर्ण
सूर्य पुत्र कर्ण का जीवन काटों की सेज समान दुष्कर था। कुंती नें जब सूर्य देव को प्रसन्न करनें का मंत्र आज़माया तब वह उनके समक्ष प्रकट हो गए। और कुंती को वरदान (पुत्र) देने के लिए विवश हो गए। उस समय कुंती अविवाहित थीं इस लिए, लोक लाज के कारण उन्होने अपनें पुत्र को एक टोकरी में रख कर “नदी” में बहा दिया।
कवच कुंडल के साथ जन्मे उस दिव्य बालक का उछेर एक सारथी के घर हुआ। उस सारथी का नाम अधिरथ था और उसकी पत्नी का नाम राधा था। उन्हीं दोनों नें मिल कर कर्ण का लालनपालन किया। कर्ण अब राधेय के नाम से जाना जाने लगा। धीरे धीरे समय बीतनें लगा, कर्ण अब किशोरावस्था में आ चुका था।
अधिरथ एक दिन अपनें पुत्र राधेय (कर्ण) को ले कर द्रोणाचार्य के आश्रम जाते हैं। ताकि उसकी शिक्षा आरंभ की जा सके। लेकिन कर्ण क्षत्रिय ना होने के कारण आचार्य द्रोण राधेय को अपना शिष्य बनाने से माना कर देते हैं।
द्रोणाचार्य की ना सुन कर कर्ण पूछते हैं की,,, वह सामने राजकुमारो की हरोड में बैठा हुआ, युवक कौन है, और तब उस सवाल के जवाब में द्रोणाचार्य कहते हैं की वह मेरा पुत्र अश्व्त्धामा है। तब कर्ण बड़े आदर के साथ बोलते हैं की,,,,
”अर्थात वह ना तो राज पुत्र है और ना ही क्षत्रिय”
इतना बोल कर कर्ण, द्रोणाचार्य को प्रणाम कर के आश्रम से बाहर चले जाते हैं। तभी द्रोणाचार्य वहाँ खड़े हुए अधिरथ को कहते हैं की इस बालक के मुखमंडल पर सूर्य का तेज है इस का नाम “कर्ण” रखो। उसी दिन से राधेय कर्ण के नाम से जाना जाने लगा।
उस के बाद गुरु परशुराम नें कर्ण को शिष्य बना कर शस्त्र-अस्त्र विद्या सिखाई तथा नीति ज्ञान प्रदान किया। उत्साही और गुणी शिष्य कर्ण कुछ ही समय में युद्ध कला में पारंगत हो गया। विद्या प्राप्त कर लेने के बाद कर्ण हस्तीनपुर जाते हैं और रंग-भूमि में अर्जुन को चुनौती देते हैं, लेकिन कर्ण एक सारथी पुत्र होने के कारण, उसे अर्जुन से मुक़ाबला नहीं करने दिया जाता है।
गांधारी पुत्र दुर्योधन को कर्ण में एक तिक्षण शस्त्र नज़र आता है जिसे कभी भी पांडवों के विरुद्ध उपयोग किया जा सकता है। दुर्योदन तुरंत कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर के उसे वहीं रंगभूमि में अपना सखा (मित्र) बना लेता है। कर्ण उसी क्षण से दुर्योधन का आभारी बन जाता है, और उसके सभी अच्छे बुरे कर्मों में जाने अनजाने उसका साथ दिये जाता है।
कर्ण को मिला था परशुराम से शाप
एक दिन भरी दो पहर में परशुराम थक कर आश्रम पर आते हैं। कर्ण अपनें गुरु को थका हुआ देख कर उन्हे अपनी गोद में सिर रख कर आराम करने को कहते हैं। परशुराम अपनें शिष्य का यह प्रस्ताव मान कर उसकी गोद में सिर रख कर विश्राम करने लगते हैं।
तभी अचानक वहाँ पर एक ज़हरीला बिच्छू आ चड्ता है। वह बिच्छू कर्ण को उसके पैर पर (जांघ पर) बुरी तरह से काट लेता है, जिस के कारण कर्ण को असह्य वेदना होती है। दर्द हो रहा होने के बावजूद भी कर्ण उफ तक नहीं करता है और उसी मुद्रा में बैठा रहता है। कर्ण ऐसा इस लिए करता है ताकि गुरु के विश्राम में खलल ना पहुंचे।
तभी अचानक परशुराम जाग जाते हैं और देखते हैं की,,, कर्ण के पैर से बहुत सारा खून बहे रहा है और पास ही में वह बिच्छू उसके पैर पर रेंग रहा है।
यह सब देख कर वह तुरंत कर्ण के पैर से बिच्छू को हटा कर उठ खड़े होते हैं, और क्रोध में कर्ण से कहते हैं की,,, किसी ब्राह्मण पुत्र में इतनी सहेन शक्ति हो ही नहीं सकती।
और फिर परशुराम बोले की,,, कर्ण तुम नें जूठ बोल कर मुझ से शिक्षा ग्रहण की है इस लिए में तुम्हें शाप देता हूँ की,, जब तुम्हें मेरी सिखायी हुई विद्या की सब से अधिक आवश्यकता होगी तब तुम उसे भूल जाओगे।
कर्ण को मिला एक ब्राह्मण का शाप
किसी वन्य पशु जैसी आवाज़ का भ्रम होने पर कर्ण शब्द भेदी वाण चला देते हैं। दुर्भाग्यवश कर्ण का वह वाण एक निर्दोष गाय के बछड़े को लगता है और वह उसी वक्त मर जाता है। यह सब देख कर, उस गाय के बछड़े को चराने आया हुआ ब्राहमीण कर्ण पर खूब क्रोधित हो जाता है, और उसे यह शाप देता है की,,, जिस रथ पर चढ़ कर तुम अपनें आप को को दूसरों से ऊंचा समझने लगते हो,,, उसी रथ के पहिये उस दिन ज़मीन के अंदर धस जाएंगे जब तुम अपनें जीवन का सब से महत्वपूर्ण युद्ध लड़ रहे होंगे।
कर्ण विशेष
पृथ्वी पर उत्पन्न होते ही माता के द्वारा त्याग दिये गए कर्ण का अंतर एक सुलगते अंगारे समान था। उनकी पालक माता राधा और पालक पिता अधिरथ के सिवाये सभी नें उसे गहेरे घाव और अपमान ही दिये थे। जब दुर्योधन नें कर्ण के घाव पर मरहम का एक फाया लगाया तब कर्ण नें अपनी निष्ठा उसके नाम कर दी। कर्ण आजीवन दुर्योधन का मित्र और हितेच्छु रहा। कर्ण शास्त्र, धर्म और नीति का ज्ञाता था फिर भी उसनें अपनी आंखो पर दुर्योधन के एहसान और मित्रता की पट्टी बांध कर उसके हर अच्छे-बुरे कर्म में उसका साथ दिया।
जब धर्म युद्ध की घड़ी आई तब कर्ण नें धर्म से अधिक मित्रता के ऋण को महत्व दिया। कर्ण खुद एक पांडव है, यह भेद जान लेने के बाद भी उसनें दुर्योधन की मित्रता से घात नहीं किया। भीष्म के घायल हो जाने के बाद आचार्य द्रोण के वीर गति पा लेने के बाद कर्ण को कौरव सेना का प्रधान सेना पति नियुक्त किया गया।
महाबली कर्ण नें युद्ध में उतरते ही पहले ही दिन भीम, नकुल, सहदेव और युधिस्ठिर को रण में निहत्था कर के वध किए बिना जीवित छोड़ दिया। और फिर वह दिन आया जब कर्ण-अर्जुन में घमासान युद्ध हुआ। इस महायुद्ध को देखने देवता गण भी आसमान में उपस्थित हो गए थे।
सूर्यास्त की घड़ी से ठीक पहले अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा (bow rope) टूट जाती है, तब कर्ण वाण संधान करता है,,, पर वाण नहीं चलता है। इस नज़ारे को देख कर अर्जुन भी स्तब्ध हो जाता है। देखते ही देखते सूर्यास्त हो जाता है। और दोनों महारथी अपनें अपनें शिविर की और लौट जाते हैं।
अर्जुन इस पहेली को समझ नहीं पता है की कर्ण नें उसे जीवित क्यूँ छोड़ दिया। तब कृष्ण भगवान विषाद में डूबे अर्जुन को समझाते हैं की,,, वाण तुम तक पहुंचनें से पहले ही सूर्यास्त हो जाता,,, इसी लिए कर्ण नें वाण रोक लिया था। और कर्ण की और से यह संदेश था की अब कौरव सेना का प्रधान सेनापति वोह है इस लिये उसके होते हुए युद्ध नियमों का उलंघन नहीं होगा।
अगले दिन दोनों महावीरों के बीछ उनका अंतिम युद्ध होता है। बड़ी देर तक घमासान लड़ाई होती है, अंत में कर्ण के साथ साथ चल रहे दोनों शाप अपना प्रभाव दिखाते हैं। गुरु परशुराम के साप अनुसार कर्ण अपनी विद्या भूल जाता है, और ब्राहमीण के शाप अनुसार कर्ण के रथ का पहिया ज़मीन में धस जाता है।
अर्जुन तब तक रुक जाने का फ़ैसला करता है जब तक कर्ण अपनें रथ का पहिया ज़मीन से बाहर निकाल रहा होता है। पर कृष्ण भगवान अर्जुन को अभिमन्यु कपट वध की याद दिलाते हैं। जिसमें कर्ण भी साझेदार था।
अग्नि समान अर्जुन एक ही पल में प्राण-घातक वाण संधान कर के रथ का पहिया निकाल रहे कर्ण का शीश उड़ा देता है। इस तरह महान दानवीर, सच्ची मित्रता के प्रतिक और परम शूरवीर सूर्य पुत्र कर्ण का अंत हो जाता है।
दुर्योधन कर्ण की मौत पर कहता है की,,, में अपनें 99 भाइयों की मौत पांडवों को माफ कर सकता हूँ पर कर्ण की नहीं। कुंती अपनें ज्येस्ठ पुत्र कर्ण की मृत्यु की खबर सुन कर रण क्षेत्र में दौड़ आती है।
शत्रु के शव पर आँसू बहा रही माता को जब पांचों पांडव पूछते हैं की वह क्यूँ कर्ण की मौत पर आँसू बहा रही है तब, वह भेद खोलती हैं की कर्ण उनका खुद का ही बड़ा पुत्र था।
युधिस्ठिर तब बोलते हैं,,, की आप के एक मौन नें इतना बड़ा युद्ध करवा दिया। दुर्योधन के पास कर्ण का बल नहीं होता तो शायद वह युद्ध करने की हिम्मत ही ना करता। हे,,, माता आपने एक भाई के हाथ दूसरे भाई को मरवा दिया। इस लिए आज में समस्त नारी जाती को आज शाप देता हूँ की,,, कोई नारी जीवन में कभी भी कोई भेद छुपा नहीं पाएगी।
विशेष
महाकाव्य महाभारत की गाथा में कर्ण, अर्जुन, भीष्म, और एकलव्य ऐसे महान पात्र थे जिनके जीवन चरित्र से काफी कुछ सीखने को मिलता है। प्रतिज्ञा, गुरु भक्ति, धर्म, वचन, मित्रता और कर्तव्य के बारे में इन महानायकों नें नए आयाम खड़े किए हैं। हमें गर्व है की हम उस भूमि के निवासी हैं जहां ऐसे महान पात्रों नें कभी अवतार लिया था।
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