Part - 12 Panchtantra in Hindi Children Stories by MB (Official) books and stories PDF | भाग-१२ - पंचतंत्र

Featured Books
Categories
Share

भाग-१२ - पंचतंत्र

पंचतंत्र

भाग — 12

© COPYRIGHTS


This book is copyrighted content of the concerned author as well as NicheTech / Matrubharti.


Matrubharti / NicheTech has exclusive digital publishing rights of this book.


Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.


NicheTech / Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.

पंचतंत्र

अच्छे काम का पुरस्कार

जादुई छड़ी

बेईमानी का फल

तोता ना खाता है ना पीता है...

राज्य में कौए कितने हैं?

अच्छे काम का पुरस्कार

एक बूढ़ा रास्ते से कठिनता से चला जा रहा था। उस समय हवा बड़े जोरों से चल रही थी। अचानक उस बूढ़े की टोपी हवा से उड़ गई।

उसके पास होकर दो लड़के स्कूल जा रहे थे। उनसे बूढ़े ने कहा— मेरी टोपी उड़ गई है, उसे पकड़ो। नहीं तो मैं बिना टोपी का हो जाऊंगा।

वे लड़के उसकी बात पर ध्यान न देकर टोपी के उड़ने का मजा लेते हुए हंसने लगे। इतने में लीला नाम की एक लड़की, जो स्कूल में पढ़ती थी, उसी रास्ते पर आ पहुंची।

उसने तुरंत ही दौड़कर वह टोपी पकड़ ली और अपने कपड़े से धूल झाड़कर तथा पोंछकर उस बूढ़े को दे दी। उसके बाद वे सब लड़के स्कूल चले गए।

गुरुजी ने टोपी वाली यह घटना स्कूल की खिड़की से देखी थी। इसलिए पढ़ाई के बाद उन्होंने सब विद्यार्थियों के सामने वह टोपी वाली बात कही और लीला के काम की प्रशंसा की तथा उन दोनों लड़कों के व्यवहार पर उन्हें बहुत धिक्कारा।

शिक्षायह कहानी हमें शिक्षा देती है कि हमें कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। साथ ही हमें हर जरूरतमंद व्यक्ति की हमेशा मदद करनी चाहिए चाहे वो छोटा हो या बड़ा। इसके बाद गुरुजी ने अपने पास से एक सुंदर चित्रों की पुस्तक उस छोटी लड़की को भेंट दी और उस पर इस प्रकार लिख दिया— लीला बहन को उसके अच्छे काम के लिए गुरुजी की ओर से यह पुस्तक भेंट की गई है।

जो लड़के गरीब की टोपी उड़ती देखकर हंसे थे, वे इस घटना का देखकर बहुत लज्जित और दुखी हुए।

जादुई छड़ी

एक बार की बात है गोलू अपने घर में आराम कर रहा था। अचानक उसके कमरे की खिड़की पर बिजली चमकी। गोलू घबराकर उठ गया। उसने देखा कि खिड़की के पास एक बुढ़िया हवा में उड़ रही थी। बुढ़िया खिड़की के पास आई और बोली गोलू तुम अच्छे लड़के हो। इसलिए मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूं। गोलू यह सुनकर बहुत खुश हुआ।

बुढ़िया ने गोलू को एक छड़ी देते हुए कहा, गोलू ये जादू की छड़ी है। तुम इसे जिस भी चीज की तरफ मोड़कर दो बार घुमाओगे वह चीज गायब हो जाएगी। अगले ही दिन गोलू वह छड़ी अपने स्कूल ले गया। वहां उसने मस्ती करना शुरू किया। गोलू ने स्कूल में भी टीचर की किताब गायब कर दी फिर कई बच्चों की रबर और पेंसिलें भी गायब कर दीं। किसी को भी पता न चला कि यह गोलू की छड़ी की करामात है।

जब वह घर पहुंचा तब भी उसकी शरारतें बंद नहीं हुईं। गोलू को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था। किचन के दरवाजे के सामने एक कुर्सी रखी थी। गोलू ने सोचा, क्यों न मैं इस कुर्सी को गायब कर दूं। जैसे ही उसने छड़ी घुमाई वैसे ही गोलू की मां किचन से बाहर निकलकर कुर्सी के सामने से गुजरी और कुर्सी की जगह गोलू की मां गायब हो गई।

गोलू घबरा गया और रोने लगा। इतने में उसके सामने वह बुढ़िया आ गई। गोलू ने बुढ़िया को सारी बात बताई। बुढ़िया ने गोलू से कहा, मैं तुम्हारी मां को वापस ला सकती हूं, लेकिन उसके बाद मैं तुमसे ये जादू की छड़ी की वापस ले लूंगी।

गोलू रोते हुए बोला, तुम्हें जो भी चाहिए ले लो, लेकिन मुझे मेरी मां वापस ला दो। तब बुढ़िया ने एक जादुई मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते गोलू की मां वापस आ गई। गोलू ने मुड़कर बुढ़िया का शुक्रिया कहना चाहा, लेकिन तब तक बुढ़िया बहुत दूर बादलों में जा चुकी थी। गोलू अपनी मां को वापस पाकर बहुत खुश हुआ और दौड़कर गले से लग गया।

बेईमानी का फल

नंदनवन में एक दम सन्नाटा और उदासी छाई हुई थी। इस वन को किसी अज्ञात बीमारी ने घेर लिया था। वन के सभी जानवर इससे परेशान हो गए थे। इस बीमारी ने लगभग सभी जानवर को अपनी चपेट में ले लिया था।

एक दिन वन का राजा शेरसिंह ने एक बैठक बुलाई। उस बैठक में वन के सभी जानवरों ने हिस्सा लिया। राजा शेरसिंह एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया और जंगलवासियों को संबोधित करने लगा। शेरसिंह ने सभी जंगलवासियों को सुझाव दिया कि हमें इस बीमारी से बचने के लिए एक अस्पताल खोलना चाहिए। ताकि बीमार जानवरों का इलाज किया जा सके।

इतने में हाथी ने पूछा, अस्पताल के लिए पैसा कहां से लाएंगे और इसमें तो डॉक्टरों की जरूरत भी पड़ेगी? तभी शेरसिंह ने कहा, पैसा हम सब मिलकर इकटठा करेंगे।

शेरसिंह की बात सुन टींकू बंदर खड़ा हो गया और बोला, महाराज! राजवन के अस्पताल में मेरे दो दोस्त डॉक्टर हैं, मैं उन्हें अपने अस्पताल में बुला लूगां। टींकू की बात से वन की सभी सदस्य खुश हो गए। दूसरे दिन से ही चीनी बिल्ली और सोनू सियार ने अस्पताल के लिए पैसा इकटठा करना शुरू किया।

सभी जंगलवासियों की मेहनत सफल हुई और जल्द ही वन में अस्पताल बन गया और चलने लगा। टींकू बंदर के दोनों डॉक्टर अस्पताल में आने वाले मरीजों का इलाज करते और मरीज भी ठीक होकर डॉक्टरों को दुआएं देते हुए जाते।

कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा। परंतु कुछ समय के बाद टीपू खरगोश के मन में लालच आ गया। टीपू ने बंटी खरगोश को बुलाया और कहा यदि हम अस्पताल की दवाइयां पास वाले जंगल में बेच देते हैं। जिससे हम दोनों खूब कमाई कर सकते हैं। लेकिन बंटी खरगोश ईमानदार था, उसे टीपू की बात पसंद नहीं आई। बंटी ने उसे सुझाव भी दिया, लेकिन टीपू को तो लालच का भूत सवार था।

टीपू ने कुछ समय तक ईमानदारी से काम करने का नाटक किया। परंतु धीरे—धीरे उसकी बेईमानी बढ़ती जा रही थी। वह अब नंदनवन के मरीजों को कम और दूसरे वन के मरीजों का ज्यादा देखता था।

एक दिन टीपू की शिकायत लेकर सभी जानवर राजा शेरसिंह के पास गए। शेरसिंह ने सभी की बात ध्यान से सुनी और कहा कि जब तक मैं अपनी आंखों से नहीं देखूंगा, तब तक कोई फैसला नहीं लूंगा। शेरसिंह ने जांच का पूरा काम चालाक लोमड़ी का सौंपा।

दूसरे दिन से ही चालाक लोमड़ी टीपू पर नजर रखने लगी। टीपू लोमड़ी को नहीं जानता था। कुछ दिनों तक लोमड़ी ने नजर रखने के बाद उसे रंगे हाथों पकड़ने की योजना बनाई। लोमड़ी ने इस बात की जानकारी शेरसिंह को दी, ताकि शेरसिंह अपनी आंखों से टीपू को पकड़ सके।

लोमड़ी डॉक्टर टीपू के कमरे में गई और बोली, मैं पास वाले जंगल से आई हूं। वहां के राजा की तबीयत काफी खराब है। यदि आपकी दवाई से वह ठीक हो गए तो आपको मालामाल कर देंगे। टीपू को लोमड़ी की बात सुन लालच आ गया। उसने लोमड़ी के साथ अपना सारा सामान उठाया और वन की तरफ निकल गया।

टीपू और लोमड़ी की बात चुपके से राजा शेरसिंह सुन रहे थे। शेरसिंह टीपू से पहले पास वाले जंगल में पहुंच कर लेट गए। वहां पर जैसे ही टीपू खरगोश और लोमड़ी पहुंचे शेरसिंह को देखकर डर गए। टीपू डर के मारे कांपने लगा। क्योंकि उसकी लालच का भेद खुल चुका था। टीपू रोते हुए शेरसिंह से माफी मांगने लगा।

राजा शेरसिंह ने गुस्से में आदेश सुनाया और कहा कि टीपू की सारी रकम अस्पताल में मिला ली जाए और उसे जंगल से मारकर निकाला जाए। शेरसिंह की बात सुन सभी जानवरों ने सोचा कि ईमानदारी में ही जीत है और बेईमानी करने वाले टीपू को अपनी लालच का फल भी मिल गया।

तोता ना खाता है ना पीता है...

एक बहेलिए को तोते में बडी ही दिलचस्पी थी। वह उन्हें पकड़ता, सिखाता और तोते के शौकीन लोगों को ऊंचे दामों में बेच देता था।

एक बार एक बहुत ही सुंदर तोता उसके हाथ लगा।

उसने उस तोते को अच्छी—अच्छी बातें सिखाईं, उसे तरह—तरह से बोलना सिखाया और उसे लेकर बादशाह अकबर के दरबार में पहुंच गया।

दरबार में बहेलिए ने तोते से पूछा— बताओ, यह किसका दरबार है?

तोता बोला— श्यह जहांपनाह बादशाह अकबर का दरबार है।'' सुनकर बादशाह अकबर बडे ही खुश हुए।

वह बहेलिए से बोले, श्हमें यह तोता चाहिए, बोलो इसकी क्या कीमत मांगते हो।''

बहेलिया बोला— जहांपनाह, सबकुछ आपका है आप जो दें वही मुझे मंजूर है।

बादशाह अकबर को जवाब पसंद आया और उन्होंने बहेलिए को अच्छी कीमत देकर उससे तोते को खरीद लिया।

महाराजा बादशाह अकबर ने तोते के रहने के लिए बहुत खास इंतजाम किए। उन्होंने उस तोते को बहुत ही खास सुरक्षा के बीच रखा और रखवालों को हिदायत दी कि इस तोते को कुछ नहीं होना चाहिए।

यदि किसी ने भी मुझे इसकी मौत की खबर दी तो उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा।

अब उस तोते का बडा ही ख्याल रखा जाने लगा। मगर विडंबना देखिए कि वह तोता कुछ ही दिनों बाद मर गया। अब उसकी सूचना महाराज को कौन दें?

रखवाले बडे परेशान थे। तभी उनमें से एक बोला कि बीरबल हमारी मदद कर सकता है और यह कहकर उसने बीरबल को सारा वृतांत सुनाया तथा उससे मदद मांगी।

बीरबल ने एक क्षण कुछ सोचा और फिर रखवाले से बोला— ठीक है! तुम घर जाओ, महाराज को सूचना मैं दूंगा।

बीरबल अगले दिन दरबार में पहुंचे और बादशाह अकबर से कहा, श्हुजूर आपका तोता...'

बादशाह अकबर ने पूछा— श्हां—हां क्या हुआ मेरे तोते को?'

बीरबल ने फिर डरते—डरते कहा— श्आपका तोता जहांपनाह...'

हां—हां बोलो बीरबल क्या हुआ तोते को?

महाराज आपका तोता३।'' बीरबल बोला।

अरे खुदा के लिए कुछ तो कहो बीरबल मेरे तोते को क्या हुआश्, बादशाह अकबर ने खीजते हुए कहा।

जहांपनाह, आपका तोता ना तो कुछ खाता है ना कुछ पीता है, ना कुछ बोलता है ना अपने पंख फडफडाता है, ना आंखें खोलता है और ना ही...' राजा ने गुस्से में कहा— श्अरे सीधा—सीधा क्यों नहीं बोलते की वो मर गया है।''

बीरबल तपाक से बोला— श्हुजूर, मैंने मौत की खबर नहीं दी बल्कि ऐसा आपने कहा है, मेरी जान बख्शी जाए।''

...और महाराज निरूत्तर हो गए।

राज्य में कौए कितने हैं?

एक दिन बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल के साथ अपने महल के बाग में घूम रहे थे।

बादशाह अकबर बागों में उड़ते कौओं को देखकर कुछ सोचने लगे और बीरबल से पूछा, श्क्यों बीरबल, हमारे राज्य में कितने कौए होंगे?'

बीरबल ने कुछ देर अंगुलियों पर कुछ हिसाब लगाया और बोले, हुजूर, हमारे राज्य में कुल मिलाकर 95, 463 कौए हैं।''

तुम इतना विश्वास से कैसे कह सकते हो? हुजर, आप खुद गिन लीजिए, बीरबल बोले।''

बादशाह अकबर को कुछ इसी प्रकार के जवाब का अंदेशा था।

उन्होंने पूछा, श्बीरबल, यदि इससे कम हुए तो?'

तो इसका मतलब है कि कुछ कौए अपने रिश्तेदारों से मिलने दूसरे राज्यों में गए हैं और यदि ज्यादा हुए तो? तो इसका मतलब यह हैं हुजूर कि कुछ कौए अपने रिश्तेदारों से मिलने हमारे राज्य में आए हैं — बीरबल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

बादशाह अकबर एक बार फिर मुस्कुरा कर रह गए।