Port Bleyar : Ek Antyatra in Hindi Magazine by Arpan Kumar books and stories PDF | पोर्ट ब्लेयर : एक अंतर्यात्रा

Featured Books
Categories
Share

पोर्ट ब्लेयर : एक अंतर्यात्रा

यात्रा-वृतांत

पोर्ट ब्लेयर : कुछ रंग, कुछ राग

अर्पण कुमार

जाना पोर्ट ब्लेयर

हमारा पोर्ट ब्लेयर जाना चेन्नई के मार्फ़त हुआ। वैसे आप इसके अलावा दिल्ली, कोलकाता, विशाखापत्तनम आदि जगहों से भी हवाई जहाज के माध्यम से जा सकते हैं। समुद्री मार्ग मुख्यतः तीन जगहों से हैं: चेन्नई, कोलकाता और विशाखापत्तनम। .... सुबह जेट एयरवेज़ की फ्लाइट थी। सो, एक रात चेन्नई के होटल में रुका। नज़ीर दीन एक पेशेवर टैक्सी चालक हैं और वे हमें होटल से चेन्नई एयरपोर्ट छोड़ने आए। नज़ीर उर्दू बोल लेते हैं मगर हिंदी पढ़ नही पाते। रास्ते में बातचीत होती रही। चेन्नई और तमिलनाडु के बारे में नज़ीर के पास जानकारियों का अच्छा भंडार है। उनका एक बेटा इंजीनियर है और दूसरा बेटा बी कॉम कर रहा है। एक सफल पिता का संतोष, सफ़ेद दाढ़ी युक्त उनके चेहरे पर सहज दृष्टिगोचर है।

विमान संख्या 9W 0613 (जेट एयरवेज़) के द्वारा चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर की यात्रा एक घंटे पचपन मिनट में पूरी हुई। विमान के अंदर एक परिचारिका का व्यवहार संतोषजनक नहीं था। मेरा छोटा बेटा जिस सीट पर बैठा था, उस सीट के आगे अख़बार/पत्रिका पढ़ने, खाना खाने के निमित्त बने ट्रे के संतुलन में कुछ कमी थी, जिससे खाने की प्लेट बार बार नीचे सरक रही थी। मैंने विमान-परिचारिका से बात की। बच्चे को हो रही असुविधा से उसका कन्नी काटे रहना और बिना कोई खेद व्यक्त किए,गैर संवेदनात्मक रूप में सीट बदलने की बात करना (जब अगल बगल कई लोग खाना खा रहे हों और असुविधा में ही सही, मेरे बेटे ने भी खाने का अपना पैकेट खोल दिया हो), महज एक खानापूर्ति सा लगा। खैर, मैंने विस्तार से अपनी शिकायत, ग्राहकों के निमित्त बने राय-पत्र में लिखकर दी। बाद में एक वृद्ध सज्जन ने पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे पर आगे बढ़कर इस पूरे प्रकरण के बारे में पूछा। उनकी बातचीत से लगा, वे भी विमान के अंदर उसके व्यवहार से कहीं आहत थे। मेरे द्वारा लिखी गयी शिकायत से शायद उनके घाव पर भी कुछ मलहम लगा हो। सोच रहा हूँ,उस परिचारिका के पास ऐसा कहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। ट्रे के खराब होने की ज़िम्मेदारी भी उसकी नहीं थी। मगर एक बेहतर ढंग से जवाब देकर ऐसी अप्रिय स्थितियों को संभाला जा सकता था। सेवा उद्योग में ऐसे अकड़बाज व्यक्तित्व के होने से छोटी बातें बड़ी बन जाती हैं।

भारत की बहुलतागामी संस्कृति का एक प्रतीक : पोर्ट ब्लेयर

यह पोर्ट ब्लेयर है। भारत के सुदूर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में स्थित। भारत की बहुलतागामी संस्कृति का एक प्रतीक। प्रतिकूल परिस्थितियों में भारतीयों की जीवटता की कहानी का एक अभिन्न दस्तावेज़। प्राकृतिक सुरम्यता के बीच स्थित एक छोटा शहर, जहाँ अमूमन एक दूसरे की आँखों में परस्पर परिचय और सम्मान की भावना दिखती है। इसके किनारे की चट्टानों से दिन टकराती समुद्री लहरों की आवाज़ में एक अलग नशा है। हर हाल में थपेड़ों को सहने की ताकत रखने के अपने संकल्प से भरा एक नशा। वह थपेड़ा फिर प्रकृति का दिया हो या बाहरी आक्रमणकारियों का, यहाँ के लोगों ने कभी हार नहीं मानी।

यह पोर्ट ब्लेयर है, संघ शासित प्रदेश अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी। अंडमान निकोबार द्वीप समूह ,जहाँ छोटे-बड़े लगभग 300 द्वीप हैं। पोर्ट ब्लेयर, अंडमान एवं निकोबार कमान का मुख्यालय भी है। प्रधानमंत्री की बहुचर्चित घोषणा के अंतर्गत भारत के जिन 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की गई है, उनमें से एक पोर्ट ब्लेयर भी है। विदित है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लेफ्टिनेंट आर्किबाल्ड ब्लेयर के नाम पर इस शहर का नामकरण ‘पोर्ट ब्लेयर’ किया गया। उन्होंने 1789 में इस क्षेत्र का सर्वे किया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1943-44 के बीच, पोर्ट ब्लेयर, आज़ाद हिंद फ़ौज का एक मुख्यालय भी रहा।

पोर्ट ब्लेयर, हमारे विविधवर्णी समाज के एक जीते-जागते उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। यहाँ बंगाली, तमिल, तेलगू, निकोबारी और बर्मिज हर प्रजाति और भाषा के लोग मिल-जुल कर रहते हैं। यहाँ की संपर्क भाषा हिंदी है। तभी राजभाषा नियम 1976 के अनुसार (जिसके अंतर्गत पूरे देश को क, ख और ग क्षेत्र में बाँटा गया है) ‘अंडमान निकोबार द्वीप समूह’ पूरी तरह हिंदी भाषी प्रदेश/ संघ शासित क्षेत्र न होते हुए भी किसी संपूर्ण हिंदी भाषी राज्य की तरह ‘क’ क्षेत्र में आता है। दिल्ली के अलावा, ‘क’ क्षेत्र में आनेवाला यह दूसरा संघ शासित प्रदेश है।

सेलुलर जेल : यातना की अनथक कहानी का एक परिसर

पोर्ट ब्लेयर का मुख्य आकर्षण सेलुलर जेल है। 1886 से शुरू होकर यह जेल 1906 में जाकर पूरा हुआ। यह हमारे देश के स्वतंत्रता संघर्ष की एक जीती जागती मिसाल है। यहाँ का बहुचर्चित ‘लाइट एन्ड साउंड शो’ 1989 में शुरू हुआ, जो अनवरत रूप से ज़ारी है। यह ‘शो’ अंग्रेजी और हिंदी दोनों में होता है ।

सेलुलर जेल का यह चर्चित प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम देखना हुआ। वास्तव में,यह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम है। स्वतंत्रता संग्राम के सर्वाधिक यातनादायक जेलों में से एक इस सेलुलर जेल के खुले प्रांगण में रात के धुंधलके में उनसे जुड़े किस्सों- कहानियों को मल्टी मीडिया के माध्यम से कसी हुई पटकथा के साथ और ओमपुरी जैसे कुछ मंजे हुए अभिनेताओं की हृदयस्पर्शी आवाज़ (जेल के पुरातन पीपल की आवाज़,जो इतिहास-कथा के सूत्रधार की भूमिका में है) में वृतांतपूर्वक सुनना, एक रोमांचक अनुभव रहा। सच, अपनी ही धरती पर गुलामी का दंश झेलना और उसके प्रतिकार में अमानवीय जुल्मों का शिकार होना...ऐसे शहीदों को दिल से नमन। शुरू में अंग्रेजों द्वारा और बाद में कुछेक वर्षों के लिए जापानियों द्वारा किए गए अत्याचारों और उनसे लड़ते वीर शहीदों के साहस की कई कहानियाँ,एक तरफ़ आपकी नसों को फड़काती हैं तो दूसरी तरफ आपकी आँखें नम करती हैं। छोटी-बड़ी किसी लड़ाई में आँसू और ओज का यह द्वैत सहज ही दिखाई पड़ता है।

हमारे जिन स्वतंत्रता सेनानियों को यहाँ की इस जेल में भेजकर उसे ‘काले पानी’ की सज़ा का नाम दिया गया, उसी सेलुलर जेल में जाकर उन छोटे छोटे ‘एककों’ को देखना एक रोमांचकारी अनुभव है। यहाँ चप्पे चप्पे पर आजादी के संघर्ष की गाथा है और यातना की एक से बढ़कर एक कहानियों को सुन आपका खून उबलने लगता है। आपको यहाँ आकर एक बार पुनः महसूस होता है कि हमारे देश की आज़ादी कितनी महँगी रही है और हमें इसकी निरंतरता और देश की संप्रुभता को बचाए रखने के लिए, आज़ादी के मूल्यों को सही मायनों में हासिल करने और उन्हें जन-सामान्य तक समान रूप से संचारित करने के लिए अभी कितना कुछ करने की ज़रूरत है!

सेलुलर जेल के सामने,सड़क से नीचे उतरकर समुद्र के किनारे बने मरीना पार्क जाना हुआ। वहाँ का दृश्य बड़ा मनोरम है। वहीं से कुछ दूरी पर ‘अबरडीन जेट्टी’ है,जहां से रॉस द्वीप जाया जा सकता है।

पोर्ट ब्लेयर में भारतीय नौसेना के एक अद्भुत संग्रहालय ‘सामुद्रिक’ (Naval marine museum) में जाना भी एक यादगार अनुभव रहा। कई सामुद्रिक प्राणियों को निकट से देखना अविस्मरणीय है। यहाँ समुद्री जीवों के 350 से अधिक प्रजातियो को देखा जा सकता है। यहाँ कई तरह के ‘शेल’ रखे गए हैं। ‘कोरल’ की कई प्रजातियाँ आप देख सकते हैं। एक ‘ब्लू व्हील’ का पूरा कंकाल भी यहाँ संजो कर रखा गया है। पोर्ट ब्लेयर आकर आप चिड़िया टापू (Bird Island) जाना न भूलें। नीली जल तरंगें, और रेत के सफ़ेद कण, हरे भरे मैंग्रोव,चिड़ियों का चहचहाना...सबकुछ आपको एक अलौकिक अनुभव से भर देता है। सिपीघाट फार्म, वाइपर टापू पोर्ट ब्लेयर के आसपास स्थित अन्य दर्शनीय स्थल हैं। कार्बिन कोव बीच (Carbyn's Cove Beach), माउंट हेरिट, मधुबन तट तथा काला पत्थर, पोर्ट ब्लेयर के समीप स्थित अन्य प्रसिद्ध स्थल हैं। पोर्ट ब्लेयर में,एशिया के सर्वाधिक पुराने लकड़ी के आरा मिल,चाथम आरा मिल(Chatham Saw Mill) भी हमारा जाना हुआ। हमलोग रॉस द्वीप (Ross Island) और नार्थ बे (North Bay) पर भी घूमे।

क्षत-विक्षत दीवारों और बिखरे हुए साज-सामानों के बीच कभी सजी-संवरी मानवीय बस्तियों का आख्यान कहता और इतिहास के निर्मम थपेड़ों से हमारा परिचय कराता एक द्वीप : रॉस द्वीप

रॉस द्वीप, अपने उजाड़ में मनुष्यों की सभ्यता की क्षणिकता की कहानी कहता है । जलीय सर्वेक्षक सर डेनियल रॉस के नाम पर अंग्रेजों ने इस द्वीप का नाम रॉस द्वीप रखा गया। कभी अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों के लिए, रॉस द्वीप, अंग्रेजों का प्रशासनिक सचिवालय रहा । 1941 में आए भूकंप से यहाँ बहुत तबाही हुई। तब यहाँ से प्रशासनिक मुख्यालय को पोर्ट ब्लेयर अंतरित किया गया। आज यह भारतीय नौसेना के नियंत्रण में है। यह वही द्वीप है,जिसपर जापानियों ने बिना कोई गोली चलाए आसानी से कब्ज़ा कर लिया था और कुछेक सालों (1942-1945) तक इसपर उनका प्रभुत्व रहा। उनके द्वारा बनाए गए बंकर आज भी देखे जा सकते हैं। रॉस द्वीप, पोर्ट ब्लेयर से लगभग दो किलोमीटर पूर्व में है, जहाँ आप नाव या जहाज से पहुँच सकते हैं।

अंगेजों द्वारा बनाए गए सचिवालय सहित नृत्य क्लब, मुख्य आयुक्त निवास ( बॉल रूम और बड़े बगीचे के साथ), तरणताल,क्लब हाऊस,गिरिजा घर, बंगलो, अस्पताल, डाकघर, दुकानें आदि आज जीर्ण शीर्ण हालत में इस द्वीप पर विद्यमान हैं।हॉरर फिल्मों की शूटिंग के लिए मुझेयह जगह पर्याप्त रूप से उपयुक्त दिखी । समुद्र के पानी को शुद्ध करके उसे पेय जल में बदलने के संयत्र के कुछ उपकरण,तट के एक किनारे जंग लगी हालात में पड़े हुए हैं। कभी विभिन्न प्रशासनिक और दैनंदिन गतिविधियों से गुलज़ार रहनेवाला यह द्वीप अब देशी विदेशी पर्यटकों की आवाजाही का केंद्र है। पर्यटकों के स्वागत में कुछ हिरन और मोर भी यहां उपस्थित हैं।

तरणताल के समीप, साफ-सफाई में जुटे कर्मियों ने लोहे के पुराने पाइपों से फंसाकर एक झूला लगा रखा था। कुछ देर उस झूले का आनंद मैंने भी लिया। द्वीप के पीछे की तरफ समुद्र तट तक जाने के लिए कई सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। तब मुख्यतः अंग्रेज लोग उनसे होकर तट के बिल्कुल करीब जाकर समुद्र की लहरों के साथ अठखेलियां किया करते थे।आज भी वे सीढ़ियां, हमें नीचे तक ले जा रही हैं मगर नियमित प्रयोक्ताओं के न होने के कारण वे थोड़ी सुस्त और वीरान हो गई हैं। जहाँ तहाँ से टूट फूट गईं हैं। मनुष्य जिस उत्साह से मकान बनाता है,बस्तियां बसाता है, सुविधा,सुरक्षा और मनोरंजन के तमाम अन्य संसाधनों को जुटाता है,प्राकृतिक आपदाओं के आक्रमण और उनके दुबारा आने के अंदेशे से वह उन्हें उसी तीव्रता से छोड़ भी देता है। सच ही है,कोई मकान स्वयं में भुतहा नहीं होता, बल्कि लोगों के न होने से वह भुतहा दिखने लगता है। कोई मकान, अपने मकीं से ही गुलज़ार होता है,वरना वह क्रमशः एक मक़बरा सरीखा होता चला जाता है। फिर लोगों को शरण देनेवाली वह इमारत,लोगों को भयभीत करने लगती है। ‘सबऑर्डिनेट क्लब’ का डांस फ्लोर तो नहीं दिखा,मगर उनकी दीवारें आज भी जस की तस खड़ी हैं। खिड़कियाँ तो हैं, मगर इटली से लाकर उनमें बड़े चाव से लगाए गए शीशे नदारद हैं। दीवारों पर काई का अंबार है और पेड़ो की जटाओं /शाखाओं ने उनपर अपना कब्ज़ा जमा लिया है। कहते हैं कि रॉस द्वीप की भौगोलिक बनावट कुछ ऐसी है कि वह स्वयं पर प्राकृतिक आपदा झेलकर पोर्ट ब्लेयर को बचा लेता है।

नार्थ बे द्वीप पर स्कूबा डाइविंग

नार्थ बे द्वीप पर स्कूबा डाइविंग करना एक रोचक और अभूतपूर्व अनुभव रहा। ‘कोरल’ को करीब से देखना और छूना आप ज़िंदगी भर भूल नहीं सकते। मगर यह सारा कार्य कुछ पेशेवर गाइड्स की देखरेख में किया जाता है। ‘नार्थ बे’ द्वीप के चित्र को बीस रुपए के नोट पर देखा जा सकता है। मेरे साथ स्कूबा डाइविंग करके बाहर आए मेरे दल के एक साथी ने ठीक ही कहा, "समुद्र के भीतर जितने रंग हैं, उतने रंग धरती के ऊपर नहीं हैं"। जिन मछलियों और अन्य समुद्री जीवों को आपने पोर्ट ब्लेयर स्थित ‘सामुद्रिक’ के काँच के पारदर्शी बक्सों में देखा था, आप यहाँ ‘नार्थ बे’ पर समुद्र के अंदर जाकर उनमें से अधिकांश को उनके अपने सामुद्रिक परिवेश में अपेक्षाकृत अधिक सहजता और खुलेपन से देख सकते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि समुद्र के अंदर एक बहुत बड़ी दुनिया धड़कती है। उसके भीतर ज़रूर जाएं। मगर तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद यह कुछ जोख़िम भरा होता है। अतः दिल को थोड़ा मजबूत करके और यहाँ उपलब्ध कराए जानेवाले ‘किट्स’ के साथ जाएं।आपको याद होगा, ‘स्कूबा डाइविंग’ की कुछ झलक, 'ज़िंदगी मिलेगी न दुबारा' फिल्म में दिखाई गई थी। आपका गार्ड कब आपको समुद्र के नीचे लेकर चला जाएगा, आपको पता नहीं चलेगा। आप घबराएं नहीं। उँगलियों से अलग अलग मनःस्थितियों में इशारा करने के निहित संदेश आपको पहले ही बता दिए जाएंगे। आपका गार्ड आपके ऊपर-नीचे कहीं आपके आसपास ही तैर रहा होता है। आपके एक इशारे पर वह तुरंत आपके करीब आ जाएगा। डर और घबराहट के उन पलों में वही आपका ईश्वर होता है। आपके जबड़े के साथ कड़े प्लास्टिक का ‘डेन्चर’ होता है, जिसे दांतों से कसकर पकड़ना होता है। आप मुंह खोलेंगे, तो समुद्र का खारा पानी आपके मुँह में आ जाएगा, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही और कोई छोटी भूल आपको डुबा भी सकती है।साँस के लिए, आपको अपनी पीठ पर लगे ऑक्सीजन के सिलिंडर से, जिसका मास्क आपकी नाक पर चढ़ा होता है, का सहारा लेना पड़ता है। हाँ,ध्यान रहे आप स्वयं स्कूबा डाइवर नहीं है, अतः अपने गाइड के संरक्षण और उसके दिशानिर्देश में ही काम करें। आपकी ‘ड्रेस’ और आपका ‘गेटअप’ बेशक एक डाइवर का हो, मगर वह ‘गेटअप’ मात्र ही है। एक बात और....समय पूरा होने के लक्ष्य या पैसा वसूलने के अपने लोभ पर कोई ध्यान न दें। जब अपने को असहज महसूस करें आप ऊपर आ जाएं। ऊपर आने के लिए अँगूठा ऊपर करें। घबराने का निशान, हथेली को कंपकंपाना/हिलाना है।

चाथम आरा मिल

आप पूछ सकते हैं कि चाथम आरा मिल देखने की क्या ज़रूरत है! एक तो यह कि यहाँ आकर लकड़ियों के विभिन्न उपयोगी आकारों में काटे जाने और उनके अलग किए जाने की विधियों को बड़े इत्मिनान से देखा जा सकता है। साथ ही, यहाँ आकर आप इस द्वीप की जीवन-शैली को न सिर्फ करीब से देख सकते हैं, बल्कि आप इसके धड़कते इतिहास से भी दो-चार हो सकते हैं। यहाँ एक छोटा संग्रहालय भी है, जिसमें इस द्वीप के बारे में कई सूचनाएँ आप आसनी से प्राप्त कर सकते हैं। इस सग्रहालय में कई पुराने जहाजों के मॉडल देख सकते हैं। इनमें से कई जहाजों पर दूर दराज के द्वीपों से लकड़ियाँ पोर्ट ब्लेयर लाई जाती थीं। आप इसके आसपास के इलाक़ों में भी घूम सकते हैं। यहाँ एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक जाने के लिए अलग अलग आकार के जहाजों का इस्तेमाल करते लोग आपको मिलेंगे। स्कूली बच्चे बड़े सहज भाव से अपनी माँ की उँगलियाँ पकड़े हुए उन जहाजों में चढ़ते और उनसे उतरते दिखाई देंगे। आप यहाँ आकर यहाँ की वनस्पतियों और प्राणियों के बारे में जान सकते हैं।

हर शहर या कहें क्षेत्र की अपनी कहानी होती है...

हर शहर या कहें इलाक़ा, अपनी मिथकों के स्याह-सफेद उजालों में जीता है और उसके वर्तमान के साथ उसके इतिहास का साया मंडराता रहता है। कभी दिखता है तो कभी ओझल हो जाता है। पोर्ट ब्लेयर को ‘काला पानी’, ‘दंडी बस्ती’, ‘सेफ्टी टैंक’, ‘सेफ कस्टडी’ आदि नामों से नवाज़े जाए जाने के पीछे उससे लिपटे ऐसे ही मिथक हैं। इन नामों की पृष्ठभूमि में इतिहास के कई मिलते-जुलते रंग देखे जा सकते हैं। ये वो रंग हैं, जिनसे किसी शहर या उसके समाज के सांस्कृतिक,सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ताने-बाने रंगे होते हैं। इनमें उचित ही हरेक नाम के पीछे उसकी अपनी अंतर्कथा होती है और हर अंतर्कथा में कई उप-कथाएं पीढ़ियों से धड़कती आ रही होती हैं।

इसे एक सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि यहाँ पोर्ट ब्लेयर में कोई पाँच सितारा किस्म का बड़ा होटल नहीं है। हाँ बदलते वक़्त के साथ यहाँ कई रिसॉर्ट अवश्य खुल गए हैं। आजकल पहले से होटल बुकिंग के कई भरोसेमंद वेबसाइट और उनके मोबाइल एप्लीकेशन हैं। उनका प्रयोग करें और उनमें दिखाए गए होटल/ कमरे के चित्र और अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपना कमरा बुक कर लें। यहाँ होटल के स्टॉफ अमूमन अच्छे, पेशेवर और सहयोगी हैं। कई होटलों में आपको आपकी रुचि और आपके परिवार-जनों की ज़रूरत के हिसाब से वे खाना तैयार कर देते हैं। पोर्ट ब्लेयर कोई बहुत बड़ा शहर नहीं है। वहाँ सब कुछ आसपास है। अतः अपेक्षाकृत सस्ते दर पर ऑटो और टैक्सी मिल जाते हैं। थोड़ा-बहुत मोलभाव चलता है। अमूमन यहाँ के दुकानदार और अन्य लोग शांतिप्रिय और काफी हद तक ईमानदार दिखाई दिए।

पोर्ट ब्लेयर से विदा लेते हुए :-

विदाई का क्षण तो हमेशा ही दुःखदायी होता है। सुदूर जयपुर से यहाँ तक आकर और यहाँ के नीले पानी, मैंग्रोव के वनों को देखकर, कण-कण में समाए हमारे पूर्वजों के संघर्षों को महसूस कर, सुंदर तटों, प्राकृतिक विपुलताओं को निहारकर और स्थानीय लोगों का ढेर सा प्यार पाकर मन सहसा ही विह्वल हो उठता है। मन में स्मृतियों का खजाना लिए इस मिट्टी से विदाई ले रहा हूँ। यह एक ऐसी जगह है, जहाँ निश्चय ही बार बार आने का मन करता है। भीड़भाड़, प्रदूषण और रोज़मर्रा की दिनचर्या से बाहर आकर आप यहाँ कुछेक दिन सुस्ताना चाहते हैं। कभी आप भी जाएं ना पोर्ट ब्लेयर!!

विदा के उन्हीं क्षणों में मोबाइल के मेमो पर अंकित किया गया वहाँ के हवाई अड्डे का एक दृश्य, आपके लिए हू-ब-हू प्रस्तुत है :-

अभी पोर्ट ब्लेयर के विमामपत्तन पर प्रतीक्षारत हूँ। छोटे से इस हवाई अड्डे पर इस वक़्त काफी गहमा गहमी है। मेरी दाईं ओर Island Handicrafts Emporium की दूकान है,जिसमें कोरल,पत्थर सहित कई तरह के सजावती सामान उपलब्ध हैं। ज्यादातर सामान, महिलाओं के साज श्रृंगार से जुड़े हुए हैं। रुक रुक कर दुकान के काउंटर पर महिलाओं का कोई न कोई समूह आ खड़ा होता है।दुकान में बैठा पुरुष विक्रेता कुछ आरामपसंद लग रहा है। मगर ग्राहकों की जिज्ञासाओं को समुचित रूप में संतुष्ट करता दिख रहा है। एक छोटी बच्ची, अपने पिता के बार बार मना करने के उपरांत भी फर्श पर लोटती चली जा रही है। शायद अपने पिता को यूँ परेशान होते देखना,उसे अच्छा लग रहा हो। ख़ैर, विमान में बोर्डिंग की घोषणा हो गई है। अब अंदर जाना होगा। अंडमान की मिट्टी को, कई जगहों पर हरे दिखते इस जल को, इसकी आत्मीय बसावट को प्रणाम!!

9 w 614 (जेट एयरवेज) से चेन्नई तक की यह यात्रा 1 घंटे पचास मिनट की है।

...........

संपर्क : अर्पण कुमार, बी-1/6, एसबीबीजे अधिकारी आवास, ज्योति नगर, जयपुर, राजस्थान

पिन: 302005

मो: 0-9413396755 : ई-मेल :

‘नदी के पार नदी’ और ‘मैं सड़क हूँ’ काव्य संग्रह प्रकाशित और चर्चित। तीसरा काव्य-संग्रह ‘पोले झुनझुने’ नौटनल पर ई-पुस्तक के रूप में उपलब्ध | पहला उपन्यास ‘पच्चीस वर्ग गज़’ शीघ्र प्रकाश्य। आकाशवाणी दिल्ली और जयपुर से कविताओं-कहानियों का प्रसारण। महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षाएँ, गज़लें, आलेख आदि प्रकाशित।दूरदर्शन के जयपुर केंद्र से कविताओं का प्रसारण। हिंदी अकादमी, दिल्ली से पुरस्कृत। कई पुस्तकों के आवरण पर इनके खींचे छायाचित्रों का प्रयोग।

……………..