फिर मिलेंगे
पार्ट 2
रोज की तरह आज भी जनकपुरी की बस खचाखच भरी हुई थी. किसी तरह खड़े हो जाए इतनी जगह की उम्मीद के अलावा कोई गुंजाइश नही थी. किसी तरह धीरे धीरे आगे बढ़ने के बाद खड़े होने की थोड़ी सी जगह मिल गई. अभी इत्मिनान की सांस ली थी अचानक लगी ब्रेक से मेरा बैलेंस बिगड़ गया और सामने खड़े यात्री से टकरा गया. मैंने अपने आपको अभी संभाला ही था की सामने से आई आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा....., तुम?? आवाज़ किसी लड़की की थी मैंने उसकी तरफ देखा तो मैं थोडा घबरा गया. तुम!. मैंने कहा! ये वही लड़की थी जिसे मैं कई दिनों से ढूंढ रहा था......., तभी उसने फिर से कहा ....तुम फिर से? क्या तुम्हे बार बार टकराने की बिमारी है?...., ये दूसरी बार है जब तुम मुझसे टकराए हो....,
पर आज न जाने उसकी बातों में गुस्सा कम और शरारतपन ज्यादा था....., जी मैं .....मैं इतना अभी कहा ही था की एक बार फिर उसने कहा ......, जी, जी छोड़ो, कोई सॉरी वोरी बोलने की जरुरत नही है मेरा स्टॉप आ गया है और मुझे उतरना है, इतना कहकर वो बस से उतर गई. तभी मुझे ध्यान आया मुझे भी यही उतरना है जल्दी जल्दी मैं नीचे उतरा और दौड़ता हुआ उसी लड़की के पास गया और उसे आवाज़ दी ........,सुनो!... दौड़ता हुआ उसके पास आया और अपनी सांसों के रफ़्तार को थोडा नियंत्रित करते हुए कहा- ये आपका का मोबाइल! उस दिन वही रह गया था....., थैंक्स गॉड,.. इसे मैं कब से ढूंढ रही थी मेरे हाथों से मोबाइल लेते हुए कहा., मैं उसके चेहरे को देखता रहा. उस वक़्त उसके चेहरे पर फैली मुस्कराहट में वो ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी..., थैंक यू! ये सुन मेरा ध्यान टूटा...नो नो इट्स ओके ...इतना कहकर मैं वापस मुड़ा तभी आई आवाज़ ने मुझे फिर से रोक लिया.... सुनो! मैं वापस मुड़ा...उस दिन मैंने तुम्हे कुछ ज्यादा ही कह दिया था उसके लिए सॉरी!.. नहीं नहीं इसकी कोई जरुरत नही है तुम्हारी जगह कोई और होता तो वो भी ऐसे ही रियेक्ट करता..., ये सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई....इसके आगे मैं कुछ बोलता उसने फिर से कहा - तो फिर मेरी तरह से एक कॉफ़ी, अगर कोई ऐतराज़ न हो तो. उसके जवाब में....., मैंने हाँ में सिर हिला दिया...
कैफेटेरिया मैं और वो एक दुसरे के सामने बैठे थे, वेटर को टेबल पर कॉफ़ी रखे बहुत समय हो चूका था, मेरे मन में एक अलग जद्दोजहद चल रही थी समझ नही आ रहा था की क्या कहूँ? कैसे बातों की शुरुवात करूँ?. एक अनचाही झिझक ने मुझे बाँध रखा था. काफी देर के बाद उसकी आवाज़ ने हमारे बीच के ख़ामोशी को तोडा,..... यहाँ कोल्ड कॉफ़ी के ज्यादा पैसे लगते है अब क्या कॉफ़ी और ठंडी करनी है...., मैंने कुछ न कह कर उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया..., ओह्ह हो हमको मिले इतना देर हो गया और हमने अभी तक एक दुसरे का नाम तक नही जाना..उसने हलके से सिर पर हाथ रखते हुए कहा.. हम्म कोई नही! अब जान लेते है बाय द वे मैं अनुश्री! तुम मुझे अनु बुला सकते हो! और तुम?... अनु! सादगी से भरी इस ख़ूबसूरत लड़की का इस अच्छा नाम कोई और हो ही नही सकता था मैंने मन में कहा........ निखिल! निखिल है मेरा नाम... निखिल! अच्छा नाम है उसने कहा. कॉफ़ी ख़त्म करने के बाद हम वहां से चल दिए. अभी कैफेटेरिया के गेट तक पहुंचे ही थे की उसने कहा - तुम से मिल के अच्छा लगा कभी फ्री रहो तो मिलने की कोशिश करना. मैं यही जनकपुरी में ही रहती हूँ. मैं चुप रहा मेरे पास उसकी बातों का कोई जवाब नही था क्या कहता मैं यही की मेरा बस चलता तो मैं उसे अपने आँखों ओझल ही नही होने देता हर पल उसके साथ रहता..., इतना कहकर वो वहां से चल दी और मैं बस वही खड़ा उसे जाते देखता रहा जब तक वो मेरे आँखों से ओझल न हो गई...............
उस वाकये को आज बीते तीन हफ्ते हो गए थे. इस बीच हम दो बार मिले, पर इन मुलाकतो में इतनी सी भी हिम्मत नही हुई की मैं अपनी दिल की बात कह सकूँ...,, मेरे पास कोई विकल्प नही रह गया था सिवाए लैटर के जिससे मैं उससे अपनी बात कह सकूँ....मैंने अपनी सारी बात सारे एहसास एक कोरे कागज़ पर उतार दिए जो मैं कभी सामने से उसे कह नही पाता. मुझे याद है लैटर पढने के बाद वो इस बात से बहुत नाराज हुई. कई दिन उसने मुझे बात नही की. बीतते वक़्त के साथ मेरी उम्मीद खत्म होने लगी थी पर किस्मत ने मेरे लिए कुछ और तय कर रखा था....... मैं किसी काम में बिजी था ही की फ़ोन की घंटी बजी. मैंने फ़ोन उठाया हेल्लो! फ़ोन अनु का था – कहाँ हो मुझे तुमसे अभी मिलना है, मुझे उसी कैफेटेरिया में मिलों जहाँ हम मिले थे. और फ़ोन कट हो गया....
कुछ देर बाद हम कैफेटेरिया में थे एक दुसरे के आमने सामने. मेरी हिम्मत नही हो रही थी की मैं उससे नजरे मिला सकूँ......,पर वो आज सब हिसाब किताब बराबर करने के मूड में आई थी. हम्म अब कहो क्या कहना चाहते थे मुझसे. मैं चुप रहा......, मुझे चुप देख उसने फिर कहा – अब चुप क्यों हो. मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था मैंने थोड़ी हिम्मत करके आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ी. मैं ...मैं ये तुमसे से पहले ही कहना चाहता था अनु, पर मेरी हिम्मत ने मेरा साथ नही दिया. मुझे बस यही एक रास्ता सुझा तुमसे अपने दिल की बात कहने के लिए. मैं इतना ही कह पाया था ही की अनु ने फिर से मुझसे कहा... मुझे इन इससे प्रॉब्लम नही है निखिल, क्या तुम जानते हो तुम्हारे और मुझमे में कितना अंतर है निखिल. तुम मुझे प्यार करते हो. क्या तुम जानते मैं तुमसे उम्र में तीन साल बड़ी हूँ?. और इस प्यार का मुझे कोई फ्यूचर नही दिखता है, गर मैंने हाँ भी कह दिया तो क्या दोनों के फॅमिली इस रिश्ते को मानेगी, नही न.... मैं चुपचाप उसे सुनता रहा....लम्बी ख़ामोशी के बाद मैंने कहा- पर प्यार को कभी उम्र बाँध सका है अनु...प्यार को किसी उम्र की कोई जरुरत नही है. और अगर तुम्हारा साथ है मेरे पास, तो फॅमिली भी मान जायेगी अनु.... वो मुझे बस सुनती रही ......कुछ देर दोनों चुप रहे और फिर से ख़ामोशी ने अपना दायरा बना लिया..और अनु ने धीरे से मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए मुस्कुरा दिया.
वक़्त बीतता गया और तीन साल कब गुजर गए पता नही चला.. घरवालों को काफी मनाने के बाद आज अनु मेरे साथ थी और अनु आज दिल्ली के एडवरटाइजिंग एजेंसी में पी आर हेड है, ग्रेजुएशन के पुरे होने के बाद मुझे अभी तक कोई अच्छी नौकरी नही मिली थी और मेरी तलाश अभी भी जारी थी. अनु सुबह ही काम पर जा चुकी थी. रोज की तरह मैं आज भी एक इंटरव्यू के लिए घर से निकला... सुबह से शाम हो गई, मैं थका हुआ घर लौटा. अनु अभी तक नही आई थी....मैंने शावर ली और किचेन में कॉफ़ी बनाई और आज की अखबार लेकर बैठ गया...थोड़ी देर में मुझे नींद आ गई. गेट के खुलने के आवाज़ के साथ मेरी खुल गई देखा तो अनु थी.. आज बहुत जल्दी आ गए – अन्दर आते ही अनु ने कहा, मैंने घडी की तरफ देखा तो 9 बज चुके थे.. मैंने थोडा सख्त लहजे में अनु से कहा – ये कोई आने का टाइम है अनु, क्या ये रोज रोज का नाटक लगा रखा है. कभी आठ कभी नौ...., मुझे भी कोई शौक नही है लेट आने क्लाइंट के साथ मीटिंग थी, इसके अलावा मुझे और भी काम रहते है तुम्हारी तरह मैं फ्री नही बैठी रहती – अनु ने गुस्से में कहा और दोनों के बीच बहुत कहासुनी हुई. अनु गुस्से में बेडरूम में चली गई.. आज अनु की ये बात मुझे किसी नस्तर की तरह चुभ गई..., आज कोई पहली बार नही था जब दोनों बीच कहासुनी हुई हो बीते कई दिनों से ये हालात थे.... पर आज अनु की वो बातें निखिल को रह रह कर चुभ रही थी, निखिल के मन में रह रह यही सवाल सिर उठा रहे थे क्या पैसा और नौकरी ही सबकुछ है क्या बिना पैसे और नौकरी की मेरी कोई हैसियत नही. क्या अनु के लिए मेरा होना, न होना सब एक है...
आज अनु बेडरूम से बाहर नही निकली...और मैंने भी उससे कुछ पूछने के जेहमत नही उठाई ... और वही सोफे पर लेट गया पर आँखों में नींद कहा थी सो पूरी रात आँखों ही आँखों में काट दी.....अगली सुबह सबकुछ शांत था अमूमन अनु सुबह ही ऑफिस के लिए तैयार हो जाती थी पर आज बेडरूम से बाहर नही निकली. मैंने बेडरूम के गेट पर नॉक किया...काफी देर बाद अनु ने गेट खोला. उसके चेहरे पर नजर गई तो मेरी नजर वही ठहर गई. उसकी आँखें थकी और सूजी हुई लग रही थी शायद वो रोई थी....... अन्दर दाखिल हुआ तो देखा सारे सामान बिखरे पड़े थे अनु ने अपना आधे से ज्यादा सामान पैक कर चुकी थी... अनु ये सब क्या है तुमने अपना सामान क्यों पैक किया हुआ है, कहाँ जा रही हूँ?..... अनु ने मेरे सवाल का कोई जवाब नही दिया और कोने में खड़ी मुझे देखती रही.... अनु मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ क्या है ये? अपने मम्मी पापा के यहाँ तुम्हे कोई प्रॉब्लम – अनु ने कहा..., पर क्यों ?......क्योंकि अब हमारे बीच कुछ बाकी नही है मैं रोज रोज के झगड़ो से परेशान हो गई हूँ .इससे ज्यादा मुझसे अब और सहा नही जाएगा..., ठीक है तुम्हे जाना है जाओ, मैं तुम्हे नही रोकूंगा...इतना सुन अनु ने अपना बैग लिया और बाहर चली गई.. मैं उसे बस जाते हुए देखता रहा.... उसके ओझल होने के साथ मेरी आँखें धुधला गई....
अकेलेपन में कुछ हफ्ते यूँ ही बीत गए...अनु का न कोई फ़ोन आया और न ही मैंने कोई कोशिश की उससे बात करने की. एक दिन यूँ ही अकेले में बैठा अपने आप में उलझा हुआ था की तभी गेट की डोरबेल बजी.. उठकर गेट खोला. मेरे नाम से कोई कूरियर था. मामूली फॉर्मेलिटी पूरा करने के बाद कूरियर मेरे हाथ में था.. ब्राउन लिफाफे में बंद अच्छे से चस्पा किया हुआ... लिफाफा खोल कर लैटर को अभी पढ़ा ही था की मैं सन्न रह गया ...कोर्ट का नोटिस था अनु ने मुझसे डाइवोर्स की माँग की है. कुछ पल के लिए मेरा मन जैसे शुन्य हो गया ...”डाइवोर्स” अनु को मुझसे डाइवोर्स चाहिए...ऐसी क्या गलती कर दी मैंने, बस इतना ही हमारे बीच एक मामूली सी बहस हुई थी इसलिए! कौन से पति पत्नी के बीच बहस नही होती, तो क्या वो एक दुसरे से डाइवोर्स ले लेते है .. मैंने बिना देर किए अनु को फ़ोन लगाया.......कुछ देर तक रिंग बजती रही उसके बाद अनु ने फ़ोन काट दिया... मुझे यकीन ही नही हो रहा था की अनु अब मुझसे बात भी नही करना चाहती क्या इतना अजनबी हो गया था मैं उसके लिए. क्या इतना ही प्यार था दोनों के बीच...ये बातें निखिल को अन्दर ही अन्दर कचोटती रही...
अगली दिन दोनों फॅमिली कोर्ट में एक दुसरे के पास बैठे थे. हम दोनों ने उस दौरान एक दुसरे से कोई बात नही की. मेरे दिल अभी भी उम्मीद थी ये कोई बुरा सपना है और नींद खुलते ही सब ठीक हो जाएगा. सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा. जज के सवाल से मैं अपने जेहन में चल रहे ख्याल से बाहर आया. जज ने मुझसे सवाल किया. क्या आप अपनी पत्नी अनुश्री भारद्वाज को अपने सम्मति से तलाक देना चाहते है. मैं एक बार अनु की तरफ देखा और हाँ में सिर हिला दिया.....जज ने अनु से वही सवाल किया और अनु ने बिना देर किए हाँ कह दिया....उसके हाँ के साथ मेरी आखिरी उम्मीद भी टूट गई.... इतनी मुश्किलों से जो रिश्ता जुड़ा था आज बड़ी आसानी से टूट चूका था... दोनों पक्षों को सुनने के बाद जज ने तलाक पर मुहर लगा दी...अब मेरे लिए यहाँ कुछ नही बचा था मैंने अनु की तरफ देखा. एक आखिरी बार उसे जी भर के देख लेना चाहता था....पता नहीं अब कब मिले. मैं उठा और वहां से चल दिया. अनु से अलग होने के बाद निखिल ने दिल्ली छोड़ दिया और वहां से दूर शिलोंग की अपना छोटा आशियाना बना लिया
अचानक चली हवा से, कांच के फ्लास्क के टूटने की आवाज़ ने निखिल को अपने यादों से बाहर निकाला . शाम हो चुकी थी और बहार बरस रही मानसून की आखिरी बारिश की फुहारों के चंद बूँदे निखिल के चेहरे पर फ़ैल गई.. चंद बूँदे उन बूंदो में मिल गई जो निखिल के आँखों से अभी अभी बरसे थे......निखिल के लिए आज वक़त नही बड़ी मुश्किल से कट रहा था जब तक ज़िन्दगी में कोई नहीं था तो ज़िन्दगी आसान लग रही थी लेकिन आज निखिल के ज़िन्दगी अनु में वापस आ जाने से निखिल परेशान था....
अगली शाम मैं गुवाहाटी स्टेशन में खड़ा था. ट्रेन अभी तक नही आई थी. इंतज़ार के पलों के काटने के लिए वही प्लेटफार्म पर इधर उधर चहलकदमी करने लगा.. बीस मिनट के इंतज़ार के बाद आखिरकार ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट हुई... ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी और मैं ठीक कोच बी1 के सामने खड़ा था. मेरी नजरे अनु को ढूढ रही थी. कुछ देर बाद अनु मेरे नजरो के सामने थी पहले से बहुत कमजोर लग रही थी काफी कुछ बदल चूका था, बदला नहीं था तो सिर्फ उसकी वो कत्थई आँखें और उसके चेहरे पर बात बे बात आ जाने वाली हल्की सी मुस्कान. मैंने आगे बढ़ कर उसका सामान अपने हाथों में ले लिया. पहले से बहुत कमजोर हो गई हो, मैंने कहा. तुम भी बहुत बदल गए हो जवाब में अनु ने कहा. हाँ अकेलेपन से बहुत कुछ सीख गया हूँ मैं... अनु की तरफ देखते हुए कहा.. कुछ देर तक अनु मुझे देखती रही और अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा- हाँ अकेलेपन ने बहुत कुछ सीखा दिया है तुम्हे, निखिल... हम दोनो शांत कुछ देर यूँ ही चलते रहे. शिलोंग पहुँचने तक अनु बिल्कुल शांत रही..बस में भी उसने मुझसे कोई बात नही की... बस शिलोंग पहुँच चुकी थी...., भैया होटल अल्पाइन- अनु ने अपना बैग ठीक करते हुए सामने खड़े ऑटो ड्राईवर से कहा........ होटल अल्पाइन, होटल क्यों अनु मेरे होते हुए तुम्हे होटल में रहने की कोई जरुरत नही है और मुझे कुछ नही सुनना!.. तुम मेरे साथ चल रही हो.. अपनी बातों पर जोर देते हुए मैंने अनु से कहा...अनु को मेरी बात माननी पड़ी.....
अनु के आने की खबर के बाद से निखिल का कमरा जो अमूमन अस्त व्यस्त रहता था आज काफी व्यस्थित था हर चीज़े अपनी जगह सलीके के रखे हुए थे. उसके कल्पनाओ से भरे पेंटिंग एक कोने में एक के बाद एक करके सलीके से रखे हुए थे...., ये है मेरा छोटा सा आशियाना मैंने गेट से सामान अन्दर रखते हुए कहा...ज्यादा बड़ी नही है पर मेरे लिए ये मुझे काफी लगा..., अनु कुछ कहती उससे पहले मैं फिर बोल पड़ा- तुम फ्रेश हो लो तब तक खाने का कुछ बंदोबस्त कर लेता हूँ और हाँ गर कुछ जरुरत हो तो बता देना.....अनु चुपचाप खड़ी घर के हर एक कोने को देखती रही.... मैं कमरे से बाहर चला गया...
मुझे लौटने में बहुत देर हो गई थी। देखा तो अनु गुमशुम एक कोने में बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैं कमरे में दाखिल हुआ। मेरे मन अभी भी कई सवाल उमड़ रहे थे आखिर अनु ने क्यों शिलांग आने का फैसला किया। वो भी यूँ अचानक…..तुम आ गए, मैं तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रही थी अनु ने कहा। हाँ मुझे आने में थोड़ी देर हो गई- खाने के सामान को टेबल पर रखते हुए मैंने कहा. देर ही सही मैंने अनु से आखिरकार ये पूछ ही लिया। अनु तुमने मुझे अभी तक वजह नही बताया यूँ अचानक शिलांग आने की? मैं यहाँ क्लाइंट के साथ होने वाली मीटिंग के लिए आई हूँ निखिल, अनु ने कहा। कुछ देर चुप रहने के बाद अनु की आवाज़ फिर मेरी कानो में गूंजी- मेरे यहाँ आने यही एक वजह नही है निखिल, इतना कहते हुए अनु का गला रुद्ध गया, और उसकी आँखें छलक पड़ी। उसके आँखों में आए आँसू मैं परेशान हो गया। अनु क्या हुआ? बताओ मुझे, इतना कहते हुए मैं अनु के करीब आकर के बैठ गया।
अनु ने मेरी तरफ देखा और रुँधे हुए आवाज़ में कहा - निखिल मुझे माफ़ कर दो, मुझे ऐसा नही करना चाहिए था मैंने तुम्हे बहुत तकलीफ दी है।... सालों से जो दर्द मैंने बाँध रखे थे सहसा वो दर्द मेरे आँखों से छलक पड़े। अनु ने आगे कहा- तुम्हे मुझे रोकना चाहिए था निखिल, मैंने कोशिश की थी अनु…मैंने अनु से कहा. तभी अनु ने अपना बैग खोल कर ये लिफाफे से निकाल कर एक तस्वीर मेरे हाथों में रख दी। तस्वीर किसी छोटे से बच्चे की थी, मैं अनु की तरफ सवाल भरे नजरो से देखा। ये तुम्हारी बेटी है निखिल, अनु ने कहा। उसकी इस बातों से मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गई। ये ...ये मेरी बेटी है…. हाँ निखिल ये तुम्हारी ही बेटी है अनु ने जवाब में कहा । अचानक मिली ये ख़ुशी मुझसे संभाली नही जा रही थी सबकुछ सपने जैसा लग रहा था। अनु तुमने ये मुझे पहले क्यों नही बताया, अनु से कहा, उस वक़्त हालात ऐसे नही थे की मैं तुम्हे कुछ बताती निखिल, सबकुछ उलझे हुए थे, मेरी नजर अभी भी उस तस्वीर को ही देख रही थी। इसी बीच मैंने अनु से कहा - क्या हम फिर से एक नही हो अनु पहले जैसा? बिना किसी शिकायत के ,बिना किसी मतभेद के…., कुछ ऐसे ही रहने के बाद अनु ने हाँ में सिर हिला दिया, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने कहा - हाँ पर एक शर्त पे की तुम मुझे कभी छोड़ के नही जाओगे… नही अनु अब नही इतना कह कर मैंने अनु को अपनी बाँहों में भर लिया... आज इस बेजान रूखी जमीन को आज बारिश की पहली बूदों की राहत मिल चुकी थी।……
समाप्त