1
वो कह के गए हैं अब हमें याद ना करना कभी,
कैसे बताये की यादो में ही तो गुजारा करते हैं।
जो शिकवे बनाये थे हमने अपने हमदम से,
कैसे बताये की सपनो में ही तो सुधारा करते हैं।
वो बसा के जो गए थे अपना गुल सा चेहरा,
कैसे बताये की उसे ही तो निहारा करते हैं।
यूं तो बहुत से सूखे से गुजरा है ये दिल,
कैसे बताये की उसमे ही तो बहारा करते हैं।
वो तो गए थे हमको 'मैकश', तनहा बेसहारा करके,
कैसे बताये की अब दूसरो को ही तो सहारा करते हैं।
2
अगर ना कर सको तो बता देना ,हम बात कर लेगें।
अगर ना हो सके बेवफाई उजाले में, हम रात कर लेगें।
वैसे तो ज़माने में साथ पाने को तरसता है हर कोई,
हो जरूरत गर तुझे तो आ जाना, हम जमात कर देगे।
जमी भी गुजर रही है सूखे के दौर से आज कल,
तुझे हो जरूरत गर तो आ जाना, हम बरसात कर देगे।
ना रुक पाये जो दिल का ये दरिया बहते बहते,
हो जरूरत गर तुझे तो आ जाना, हम जात कर लेंगे।
जाना नहीं हमने "मैकश", कि होता है देना क्या,
हो जरूरत गर तो आ जाना, हम "जकात" कर लेंगे।
3
रहो दूर इस तजुर्बे से , टूट जाने के तुम,
हमने तो इन्ही लम्हों में जिंदगी गुजारी है।
जबसे देखा है तुमको, खुश होते हुए जीवन में,
हमने ले ली तेरे गम की सारी अंधियारी है।
सिसक के ना रोता देखा, जब भी देखा पनियल आँखे,
अभी तो ये जीवन पथ की थोड़ी सी पुचकारी है।
खुश रहना ही जीवन का , मंत्र यहाँ सूने जग में,
फिर इस को खुद में लेने में ऐसी क्या दुश्वारी है।
यहाँ वहां किसका और क्या, कब क्यों कैसे जान गए,
पर खुद को ना जाना , यही तो एक महामारी है।
तुमपे लिखते हैं "मैकश", यही तो है रोजी अपनी।
जो मिली बिना लिखे तुझे, फिर तो वो बेगारी है।
4
ना मिले जो हम तुम्हे, मान लेना अपना नसीब सही।
तुम्हे जहा की दौलत मिले हम ठहरे गरीब सही।
ये मर्ज था हमारा जो ख्याल रखते थे तुम्हारा हम,
ना मिले कल तो, मान लेना गुजरा हुआ मरीज सही।
बस रो रो के ना कर लेना ये आँखे नशीली अपनी,
वरना जमाना समझेगा हमे तेरा मुरीद सही।
हां लिखेंगे हम भी , गुजरे वक़्त में बिखरा नाम तेरा,
क्या हुआ जो है हमारी लिखावट अजीब सही।
किसी और से मिलते थे तो फिर भी ना पूछा "मैकश",
फिर परेशाँ क्यों होते हो,जब मेरा कोई करीब सही।
5
कुछ तो लिखना चाहूँ मैं, पर आस नहीं हैे तू।
जैसे दिखता हो हर पल , पर पास नहीं हैे तू।
मैं तो गुजर के हो आया वफाओं की अंजुमन से,
उन गलियो में है मरघट, पर सांस नहीं है तू।
चल, चले फिर वही, जहा छोड़ आये थे हम,
खुदा तो मेरा है वही, पर अरदास नहीं है तू।
अब हर कदम पे लाशें हैं, टूटे हुए घरोंदों की,
घर तो अब भी घर ही है, पर विश्वास नहीं है तू।
जीवन को ढोते हैं जैसे, एक बोझ हो ये जीवन भर का,
जिन्दा हम है तो "मैकश", बस प्यास नहीं है तू।
6
उलझे उलझे रहते हैं, जाने अब हम किधर जाएगें। तुझको ही खो देंगे हम , या तुझको ही पाएंगे।
रातो के समन्दर में भीगते हुए ही चल पड़े थे हम,
ये ना सोचा था की ऐसे चलते कहाँ जायेगें।
हर कदम पे उलझ पड़ी है जिंदगी गिरते हुए,
ना कोई पता है की ये उलझन कैसे सुलझाएंगे।
तू ही था तो था सब कुछ, तू बिन जैसे दरवेश हैं हम,
ना जाने अपनी खोयी मंजिल हम कब तक पाएंगे।
तू गया तो जैसे ताकत गयी हो मेरे जीवन की,
फिर से वो साँसे जीने की कैसे पायेगें।
चल तू भी जिन्दा रह ले, हम खामोश रह लेंगे "मैकश",
वैसे भी अब हम दोनों कहा मिल पाएंगे।
7
खुशिया ले ले मुझसे सारी, औ अपने गम मुझको दे दे।
खिल जाए हसीं ये लब तेरे,चाहे मेरी आँखे नम दे दे।
मालूम है मुझे टूट जाने का दर्द, हम भी इसके नाजिर है,
थोड़ी सी ये खुशिया ले जा, चाहे दर्द का थोडा मरहम दे दे।
काट रहा हूँ मैं जीवन, तू मुझसे जीने के बहाने ले जा,
साँसे सारी कर दी वसीयत, चाहे थोडा गर रहम दे दे।
याद तेरी ही आएगी जब, तनहा होंगे हम फिर से,
अपने इश्क़ की वजह को ले जा, चाहे यादो के मौसम दे दे।
रोने की तू वजह ना बन, बस खुशियो की झील तू बन जा,
सूखे दरिया को आज तो तू, बदरा ये बेमौसम दे दे।
मैं तो उलझ गया भवरो में, छोड़ मुझे तू पार निकल,
याद मुझे ना करेगी तू, हाथ ये रख बस कसम तू दे दे।
कल जब भी यादें आएगी, आ जाना उनके साथ में "मैकश",
मुझसे इस "मै" को ले जा, बस दोनों का "हम" तू दे दे।
8
जिसे कभी तू समझ ना पायी, हां मैं वो कहानी हूँ।
जो कभी मिले ना कभी किसी को, हां मैं वो निशानी हूँ।
वक़्त गुजारा करते थे,पर अब वक़्त ही तो नहीं यहाँ
कभी यादो के तरह गुजरी रातो की, हां मैं वो बेमानी हूँ।
ठुकरा दिया था दिल ने भी, इसमें तेरी कोई वजह नहीं,
कभी जिससे नफरत थी तुझको, हां मैं वो वीरानी हूँ।
झुक गया था सजदे में, कबूल कर जाने को दुआ तेरी,
दुआ की तूने,मुझे मिटाने की, हां मैं वो नादानी हूँ।
दिल में जगह दी फिर भी, मुआवजा लेना भूल गए,
पत्थर दिल की नाजुक सी तेरे, हां मैं वो मेहरबानी हूँ।
खयाल को तेरे तो अब तक, समझ ना सके हम जाना यूं,
हर हाल में तुझे दिल में लाने को, हां मैं वो मेजबानी हूँ।
फिर से पांसे फेकू या कोई, नया जाल बुन दू बता,
तुझको हर हाल में पाने की, हां मैं वो परेशानी हूँ।
प्यार की कोई वजह नहीं,"मैकश" इज़्ज़त ही जरूरी है,
तेरे हर गम को सहने वाली, हां मैं वो बदनामी हूँ।
9
मैं तो उसकी याद में बैठा, कुछ बातों में खोया था।
जैसे कोई थका मुसाफिर, पीपल की छाँव में सोया था।
घने बादलो का झुण्ड वो आया,जाने वहां कब किधर से,
जैसे काले केश की छाया,संवर के आई हो उसके सर से।
बरस रही थी बूंदे नभ् से, करती घटा में किलकिल ऐसे,
अश्क जो थे उसकी आँखों के,करते फिजा में झिलमिल जैसे।
हां गम भी सारे खोयेथे,महके समां की मस्ती में,
कुछ और बचा ना था हम में, और हमारी हस्ती में।
तभी कुछ लहरे थी चमकी, और हवा ये लहराई सी,
जैसे चूड़ी लाल हो खनकी, और उमर ये गदराई सी।
कुछ खो गया था अंदर में अपने, जैसे हवा कुछ उठा ले गयी हो,
ये दिल जो उसका था ही वैसे, वो चोरी से उठा ले गयी हो।
याद ये उसकी आई थी , कुछ ना कहने के वास्ते,
पर बता गयी थी चुपके से, उसके दिल के सारे रास्ते।
मैं अंजान, अजनबी,अजूबे सा, फिरता रहा इधर उधर।
वो बेफिक्र,बेवजह,बाअदब सी, फिरती रही दर बदर।
"मैकश" इतना ही बस याद रहा, ये बस एक छलावा था।
उसका, (यादो में होकर) लिखना, ये बस एक भुलावा था।
10
पर मैं तो "मैकश" हूँ यारो, कल फिर से होश को भूलूंगा।
जब नींद घनी ही छायेगी, उसकी यादो में सो लूँगा।
वैसे तो मैं खोया सा रहता,बस वजह ना जानूँ खोने की,
फिर से उसकी यादो में, मैं अपने आप को खो दूँगा।
यूं तो मुझको नींद ना आती,पर हाथ तेरे ये मसनद मेरे,
जैसे की पीपल की छाँव में, पनघट पे मैं सो लूँगा।
घने बादलो का झुण्ड वो आये, या बरखा की बूंदे भी,
जुल्फ के गहरे आँचल को, मैं तन पे ढांप के सो लूँगा।
आंसू जो उसकी आँखों के , कल गिरे थे यही कही,
मोती बना अपनी आँखों का, आज मैं फिर से रो लूँगा।
मुझे नशा ये चाहत का है,बस रूह ये मेरी पावन कर दे,
गर ऐसा ही हो जाए फिर,मैं तेरी आँख से पी लूँगा।
उसको जिसका भी होना है,आज उसे वो कर लेने दो,
जो भी मुझको चाहेगा मैं,आज उसी का हो लूँगा।
'मैकश'