Sirf tere lie in Hindi Poems by Pranjali Awasthi books and stories PDF | सिर्फ़ तेरे लिए ...गज़लों में हूँ मैं

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सिर्फ़ तेरे लिए ...गज़लों में हूँ मैं

(1) ?? ख़्वाब भटक रहे थे ??

खुली आँखों में ख़्वाब भटक रहे थे

शब़े इंतजार पीकर बहक रहे थे

दर्द के गिरेबां में झांक कर जब देखा

मुहब्बत़ के कुछ अश्क़ सुब़क रहे थे

बंद कर के तालों में रखा था इनको

फिर भी कुछ अहसास महक रहे थे

ख़्यालों पर कितनी भी रोक लगा दो

ढयौड़ी पर मनचलों से फुद़क रहे थे

क्या हूँ मैं ना जाने क्या बला है तू

नज़रों में जमाने की खटक रहे थे

मुहब्ब़त के दामन को मत ऐसे झिड़को

मदहोश़ अल्फ़ाज सर पटक रहे थे

ना मैं मैं हूँ खुद़ में ना तू तू है खुद़ में

कठपुतली की मानिन्द मटक रहे थे

डोर बँधीं जीवन की खुद़ा तेरे हाथों

फ़िजूल हम खुद़ में , कसक रहे थे

यह दर्द़ तीख़ा सा लगता है 'प्रांजलि '

अल्फ़ाज तेरी नज़्मों के चटक रहे थे

(2) ??ज़िन्दगी की तर्ज ??

जिन्द़गी जीने को कुछ किरद़ार चाहिए

इक लम्हा मुहब्ब़त का इज़हार चाहिए

मुख़्तसर सी जिन्दगी की तर्ज है गज़ल

मत़ला मक़ता काफ़िया बऱकरार चाहिए

लिखने को खुद़ ही तो चलती नहीं कलम

दिल से निकले कुछ हंसीं अश़आर चाहिए

यूँ ही तो बहे नहीं जाते हैं जिन्दगी की रौ में

बढ़ जाने को फ़कत इक मचलती धार चाहिए

इक मेयाऱ मुहब्ब़त का नापने को मेरे हुजूऱ

इकराऱ चाहिए कि फक़त इनकाऱ चाहिए

बंजर सा हो रहा है यह दिलों का गुलस्ताँ

गुलोद़ार वतऩ होने को राग़ मल्हाऱ चाहिए

वक़्त की जरूऱत है कि संभल जाऐं 'प्रांजलि'

मज़हबी दिलों में नफ़रत की नहीं दराऱ चाहिए

(3)??कैसे जी पाऐंगे ??

इस कद़र तो ना अहद़े वफ़ा निभाऐंगे

जमीऱ बेच के जीतने से अच्छा हार जाऐंगे

रकीब़ मेरे ने घोंपा है खंजर इस कद़र

चोट दिल पर लगी है कैसे जी पाऐंगे

क्यूँ परेशां होना दुश़्वारियों से वक़्त की

सख़्त जाऩ हैं हम सब सह जाऐंगे

चलो आज कुछ यूँ फैस़ला कर लें हमद़म

मुहब़्बत के नग़मे मिलकर गुनगुनाऐंगे

रूख़ पर हवाओं की पत्तों की सरसराहट

गूँजी जो ग़र आवाज़ तो बाग़ी कहलाऐंगे

गुलों की चाहत में दरख़्तों पर सर पटकना

कब सोचा 'प्रांजलि' ऐसा हम भी कर जाऐंगे

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3) ??आज मैं भी लिखती हूँ ??

एक हंसीं मुहब्ब़त का पैगाम ,आज मैं भी लिखती हूँ

जऱदोजी सजा साज़ो सामान , पेश़ मैं भी करती हूँ

हैरत़ ए जल़वा देख कर , मायूसियों का दम़ तोड़ना

जिन्दगी के नये बयान का ,आगाज़ मैं भी करती हूँ

क्यूँ सहम कर रव़ायतों से, इसको मुक़र मैं जाने दूँ

ज़हे मुक़द्दर का यह ऐलान ,आज मैं भी करती हूँ

कहीं हो ना जायें गुस्ताख़ियाँ ,तेरी शाऩ ओ हऱम में

आऱजुओं पर वक़्ती लगाम़ , आज मैं भी कसती हूँ

तेरी मुहब्ब़त की नज़र , राब़ता जो मुझसे होती है

महके फिज़ाँ में तेरे पयाम़ , अंदाज मैं भी पढ़ती हूँ

क्यूँ ख़िजा सी बेनूऱ रंगत इस मौसम की है 'प्रांजलि'

तल्ख़ी में तेरी देख पल पल ,नासाज़ मैं भी मरती हूँ

.....pranjali......

4)??इक लम्हा मिलता है ??

दर्द से भींगा हुआ इक लम्हा मिलता है

अहसास अश्कों में कहीं जाकर घुलता है

कुछ हंसी जज़्बात होठों पर सजाकर

दिल में मुहब़्बत का कमल खिलता है

मान भी जाओ अब मजबूरियाँ समझो

सितमग़र मुझ सा मुश्किल से मिलता है

मत कर ऐत़बार मुझ पर बेव़फा है 'प्रांजलि'

मतलब़ परस्त साया तेरे साथ चलता है

5)

तेरी मेहनत के कसीद़े तो, तेरे हाथों की नरम़ाई पढ़ती है

छूती हूँ जो पोरों से हथेली, कुछ सख़्त सी जान पड़ती है

क्या देखना पसरती हुई थकान को, चेहरे के गलीचे पर

पेशानी हालात की सूरते, आईना सी जान पड़ती है

प्यासी आरजुओं का बहक जाना इश़्क की आगोश़ में

मुहब्ब़त अद़ायगी की बातें,ज़ामे शराब़ सी जान पड़ती हैं

आ तो जाऊँ आगोश़ में सिमट कर , ऐ जिन्द़गी मैं तेरी

पर मौत नामालूम़ क्यूँ मुकम्म़ल महबूब़ सी जान पड़ती है

कैसे बेखौफ़ हो इश़्क फरमाऐं ,हम यूँ आखिर 'प्रांजलि '

इश़्क के किनारे पड़ी मुहब्ब़त,बेरौऩक सी जान पड़ती है

6)??अधूरे ख़्याल ??

तेरी दोस्ती से महके अधूरे ख़्यालों की खुश़्बू

कुछ भींगी कुछ भीनी सी जान पड़ती है.....

जिन्द़गी की तर्ज पर इठलाती हमदम आऱजू

कुछ गज़ल कुछ गीत सी जान पड़ती है...

उम्मीद़ ऐ सेहऱा में भटकती नामुकाम़ मुहब़्बत

कुछ कच्ची कुछ पक्की सी जान पड़ती है

दो घड़ी चहलकद़मी करते ज़ज्बातों की चाल

कुछ थकी कुछ थमी सी जान पड़ती है

इस उम्मीद़ से कि इक उम्मीद़ ना टूटे फिर कभी

कुछ ख़लिश कुछ कमी सी जान पड़ती है

आँसमा छूने को हाथ बढ़ाने वाले की आँखों में

कुछ जमीं कुछ नम़ी सी जान पड़ती है

कम़जोर को सहारा देने को बढ़ने वालों की साँसें

कुछ धीमी कुछ सहमी सी जान पड़ती हैं

इस कद़र फ़िदा हैं आज़माइश पर जिंद़गी की "प्रांजलि"

कुछ खीझी कुछ रीझी सी जान पड़ती है

7)??आवाज़ लगाना तुम ??

लड़खड़ाते गीत की लय जरा संवार जाना तुम

बंद पड़े सुरों को इक आवाज लगा जगाना तुम

रिवायतें वफ़ाओं की निभा कर ज़हाँन के सामने

वफ़ा की शक़्लो सूरत की मिस़ाल बन जाना तुम

बस्तियों में मुहब्ब़त की इन उदास चेहरों के सामने

मुस्कुराती सुकून भरी निग़ाह लिए गुज़र जाना तुम

क्या ख़ाक समझेगा नासमझ कोई द़िली ख़्वाहिश़ें

हसऱतों को गले लगा कर यह पैग़ाम दे जाना तुम

शिक़वा नहीं किया कभी बंद होंठों की जुबाँ से भी

कह रही हूँ आँखों से बस हर लफ़्ज समझ जाना तुम

......pranjali.....

8)?? सिर्फ़ मेरे लिए ??

ख़्यालों के आसमाँ पर छाए हो तुम

सिर्फ मेरे लिए ही तो आए हो तुम

इज़हारे मुहब़्बत बावफ़ा कर पाना

बोलो कहाँ से सीख कर आए हो तुम

दिल की शुर्ख़ियों में है ताज़ा खब़र

धड़कनों में कहीं कसमसाए हो तुम

करीबिय़त की क्या तब़ज्जो करना

ऱूह में दोस्ती की समाए हो तुम

बेख़ुदी में साथ निभाना तो देखिए

परछाईं को भला पकड़ पाए हो तुम

तुम हो मैं हूँ और आलम़ तन्हाई का

तभी तो मुझ को ढूड़ पाए हो तुम

साथ निभाना इतना मुश्किल तो नहीं

क्यूँ फिर इस कद़र घबराए हो तुम

बाँध कर यह मुहब़्बत अहसासो में

अब हर कद़म पर लड़खड़ाए हो तुम

यकीन है मुझे तुझ पर खुद़ से ज्यादा

जब से मुझे अपने साथ ले आए हो तुम

कर लो ज़ज्ब जिन्दगी में ऐसे 'प्रांजलि'

दऱिया ऐ अश़्क से जैसे नहाए हो तुम

9)??आपके लिए ☺☺.....??

वक़्त बेऱहमी में भी मेहरबाँ बनता गया

मर्ज़ ही दर्द़े दिल का निग़हबाँ बनता गया

इक सुकूं का आसऱा अल्फ़ाजों की बस्ती में

बिखरी जो खुश्ब़ू हवा में गुलिस्ताँ बनता गया

कहाँ चली थी साथ अपने आप को लेकर 'प्रांजलि'

आप खुद़ से मुझे मिल गए कारवाँ बनता गया

10) ??तेरे बिछाए पन्नों पर ??

चलो उतरती हूँ आज मैं ;तेरे बिछाए पन्नों पर

तेरे ही स्याही में रँगूं मैं ; तेरे बिछाए पन्नों पर

ना कलम ही पाबंद में हो, ना कोई लगाम हो

तेरे ही शब्दों में बँधूं मैं ; तेरे बिछाए पन्नों पर

कुछ आधे से कुछ पूरे से, कुछ मेरे मन अधूरे से

तेरे ही शब्दों को ओढ़ूँ मैं ; तेरे बिछाए पन्नों पर

जोड़ कर एक एक शब्द, छुपा लो तुम मुझे यहीं

तेरे ही शब्दों में दिखूँ मैं ; तेरे बिछाए पन्नों पर

इक रंग आता जाता है, बदल रही है 'प्रांजलि' यूँ

तेरे ही शब्दों में घुलूँ मैं ; तेरे बिछाए पन्नों पर

10)

रोश़न उज़ालों को पाने के नाकाब़िल ही सही

पर अंधेरों ने भी हमें खुद़ से मऱहूम रक्खा

चऱागे दोस्ती को जब मिल कर जलाया हमने

उन्होंने ग़ैरों में शाम़िल हमें कब नाम़ालूम रक्खा

10)

इस कद़र गुस्ताख़िया ये करता है दिल

इशारे पर तेरे ही अब धड़कता है दिल

यूँ मोहब्ब़त का मंजर हंसी तो बहुत है

हाथों में चाहत की अब मचलता है दिल

जादू सा है फ़िजाओं में हवा है महकी

नजऱ मदहोश़ सी है कुछ बहकी बहकी

अब आरजू ए चश़्म की हसरतें कुछ यूँ हैं

बैचेनी निग़ाहों में है पर है चहकी चहकी

मेरे दिल के जानिब़ मुख़ातिब तो आ

दस़्तूरे वफ़ा की रस़्में जरा तू भी निभा

सरक़ रही है झीऩी हय़ा की चादऱ 'प्रांजलि'

शाऩों पर ज़िन्दगी के अब इसको टिका

10)??चाँद भी पिघलता है??

धूप में तो अपना साया भी काला पड़ता है

इंसान की तो फितरत़ है कि रंग बदलता है

कुछ ख़ासियतें भी कहाँ ब़ेअसर होती हैं

मुहब्ब़त की गरमी में चाँद भी पिघलता है

इक आह़ तेरी और इक दुआ बस मेरी

देखते हैं किसका ज्याद़ा असर पड़ता है

खंजर उठाकर करते थे वार पहले कभी

आज तो इसां नफ़रत के दाँव चलता है

देखते हैं महफ़िल में सियास़ी राज़दारों की

जुर्रत है किसमें कि दूजे के कान पकड़ता है

क्या शिकव़ा और क्या शिकाय़त करना यारों

कौन यहाँ खुद को किसी से कम समझता है

देखकर इंसानी ज़ज्बों से ब़ेमुरब्बत दुनियाँ

सच़.. लहू रग़ों का हमारी बहुत उब़लता है

अब जाती है दूर कहीं यह मायूस 'प्रांजलि'

कौन यहाँ उसके हुनऱ की कद़र करता है

#pranjali....

11)??अहसास़ की राहें ??

उद़ासी बिखरी है अहसास़ों की राहों में

दूरियों को समेट लें हम अपनी बाहों में

चुभन भी खलिश़ भी है कुछ तो कमी है

क्यों एक नम़ी सी है फिर आज हवाओं में

आगोश़ में दिल की अश्क़ छुपे बैठे हैं

चुप सी लगी है फिर आज सद़ाओं में

मुहब्बत़ के सफ़ीने पर सवार आऱजुऐं

फिसल़ी गऱ तो कम़ी है तेरी दुआओं में

जाओ रूठ कर कि अब ना मनाऐंगे हम

क्या खाक़ मजा है पुरानी अद़ाओं में

आब़ ए चश्म़ की ताब़ से जल जाओगे

अब नहीं वो ठण्डक दिल की फिज़ाओं में

नहीं मुक़म्मल हर श़ै दुनियाँ में 'प्रांजलि'

ज़िस्त को ढाल ले वक्त़ की ख़ताओं में

????Pranjali...????