Kuchh anubhav in Hindi Philosophy by Shreyas Apoorv Narain books and stories PDF | कुछ अनुभव

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कुछ अनुभव

"तुम"

सुनो, आज मैं 'तुम' पर लिखने जा रहा हूँ।अब 'तुम' ये मत कहना की 'तुम' पर ही क्यों? किसी और पर क्यों नहीं?

'मैं' पर कैसे लिख दूं वो तो आत्मविवेचना होगी जो मुझे आती नहीं।'हम' पर कैसे लिख दूं वो तो जहाँ को मंजूर नहीं।'सब' पर कैसे लिख दूं,कोई समाज सुधारक तो हूँ नहीं।'शून्य' पर भी नहीं लिख सकता क्योकि वो पहले से ही लिखित है।तो इन उलझनों से बेहतर है की 'तुम' पर लिखूँ।

'तुम' ही तो हर जगह हो,चाहे रास्ते चलते या कहीं भटकते हुए। 'तुम' फिर कहोगे की ये ज्यादा हो रहा और मैं कहूँगा की इन बातों का तमीरकार 'तुम' ही तो हो।

'तुम' से बेहतर कुछ हुआ ही नहीं है,चाहे छोटा हो या कोई ऐसा, जिसे अपना बनाना हो उसे 'तुम' कह दो,देखो अगले ही पल वो अपना हो जायेगा।अब यहाँ तुम्हारी फिर से एक बहस,और वो ये की तुम कहने से कोई अपना कैसे?

चलो इसका जवाब भी बताये देता हूँ,भई मैं ठहरा दो दशक पुराना, मुझे ये ज्यादा पता नहीं पर सुना है आजकल के नए इश्क़ के जमीदारों से, की 'आप' कहने पर अजनबी होने का अहसास होता है।अपनापन लाने का ये नया नुस्खा है कि 'तुम' 'तुम' करके पुकारो।अगर प्यार की इन्तहा को दरिया की सैर करवानी हो तो 'तेरा' या कुछ और प्रयोग करो।या फिर गहराई की ओर डूबना हो तो 'तू' मुझे 'तू 'कह! देखा! कितना तन्नल-गश्त मुकालमा है ये। तुम भी परेशान हो जाओगे इस नयी शब्दावली से,इसलिए बेहतर है तुम्हारी बात करना।

जानते हो! तुम पर लिखना ही तो सबसे मुश्किल है,सबसे दुरूह पेशा है। और जानते हो मेरे जैसे बेरोजगार के लिए एक बेहतर वक़्तख़र्ची है। अब फिर से तुम्हारा नया हमला-'मेरे बारे में लिखते हो तो फिर बेरोजगार कैसे!बताओ?

चलो इसका जवाब भी बता दूंगा पर शायद अभी नहीं।

क्योकि मुझे तुम से तेरा होते हुए तू तक भी तो पहुँचना है।ज़माने के साथ चलना है ना!

तो विदा है तुम्हें.....

आगे लिखना भी तो जरूरत है ये बताने के लिए की ये मख्लूकीयत अभी ख़त्म नहीं हुई,

"मैकश"

क्रमशः

"माँ"

"माँ" क्या है बस एक कतरा सा हिस्सा है किसी घर की,पर अगर ये कतरा ही ना रहे तो सब टूट जायेंगे।

"माँ" क्या है कुछ नहीं बस वो एक बुनियाद है जिसे कभी उसकी योग्यता के बराबर महत्व नहीं मिलता।

"माँ" एक लड़की है जिसे कभी कभी रसोई में गुनगुनाने का मौका मिलता है,वो भी बहुत ही नगण्य।

"माँ" एक लड़की है जिसे खुद के हिस्से का ख्याल भी दूसरों पर लुटाना आता है।

"माँ" एक ब्रह्माण्ड है जिसे एक छोटी छोटी सी घटना की जानकारी होती है।

"माँ" एक तमीरकार है जिसने खुद को गला कर एक तवाना तमीर बनाया है।

"माँ" वो है जिसे हमेशा याद होता कि अपने बच्चे को कब बड़ा बनाना है,और कब छोटा।

"माँ" वो है जो अपने बच्चों के लिए हर बला से टकरा सकती है।

"माँ" वो है जो खुद किसी अँधेरे में रो लेगी परन्तु घर में सदा हँसी रहे,इसकी चिंता करती है।

"माँ" वो है जो अपने हिस्से का सब कुछ काटकर अपने बच्चे के हिस्से में बढ़ा देती है।

"माँ" वो है जिसने हमेशा एक साड़ी पर साल गुजारे हैं,पर बच्चों को हमेशा नया पहनाया है।

"माँ" वो है जिसने पूरे घर को बच्चे की तरह पाला है,चाहे बुजुर्ग हों या बच्चे।

"माँ" वो है जिसने हमेशा बच्चे की बाल में कंघी करते समय माँग निकाली है,और बलाएँ ली हैं।(मेरे साथ तो यही होता है)

"माँ" एक अनसुलझी कहानी है जिसे खुद पिताजी लोग भी आज तक समझ नहीं पाये।

"माँ" वो है जिसने हमेशा यही कहा की "रो क्यों रहे हो? तुम तो शेरनी के बच्चे हो"।

"माँ" वही है जिसको बच्चा कभी मना नहीं करता,जबकि हो सकता है पिता को मनाही हो।

"माँ" वो है जो बच्चे का खज़ाना होती है,यहाँ वो अपने बच्चे का सीक्रेट छुपा के रखती है।

"माँ" ही होती है जो बच्चे की हर बात सुनती है,और कभी बोर नहीं होती।

"माँ" वो है जिसे खुद का जन्मदिन याद नहीं रहता,पर हर नए साल पर वो अपने बच्चे का जन्मदिन याद कर लेती है।

"माँ" वो होती है जिसे कभी भी थकन नहीं होती,वो अपने बच्चे के लिए नए पकवान बना सकती है,भले ही उसकी हालत खड़े होने की भी ना हो।

"माँ" ही होती है जो सहला दे तो सदियों का जागा भी पल भर में सो जाता है।

"माँ" में एक सबसे ख़ास ताकत होती है जिसे भगवन ने किसी और को नहीं दिया,वो है दर्द को खुद में आत्मसात कर लेने की, बच्चे से।(ये तो मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव है हर समस्या में।Natural power healer is mother)।

उन सभी माँओं के लिए एक छोटा सा अर्पण।आप सभी बहन,बुआ,बेटी,मौसी,चाची, दादी,नानी इत्यादि तो रिश्तों में हैं,पर आप सभी के अंदर माँ है,उसी माँ को मेरा प्रणाम।

(हो सकता है इस पोस्ट में भाव की कमी हो परन्तु जहाँ माँ की बात हो वहां तो खुद ही भाव आ जाता है।ये मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभव से महसूस किया है,आगे आप सभी पर निर्भर)।

प्रणाम

"मैकश"