आइना सच नही बोलता
शब्दावकाश
हिंदी कथाकड़ी भाग ३
नाम :
डाॅ श्रीमती संध्या तिवारी
जन्म स्थान :शाहजहांपुर
वर्तमान निवास स्थान: पीलीभीत उत्तर प्रदेश
शिक्षा :
एम.ए (हिन्दी, संस्कृत ) बी. एड. , पीएच. डी. स्ववित्तपोषित डिग्री काॅलेज में प्रिंसिपल
लेखन की विधायें :
लघु कथा कहानी कविता ( अतुकान्त ) रेखाचित्र, संस्मरण यात्रावृत्त , लेख ,शोधपरक लेख आदि।
समप्रति :
साँझा काव्य संग्रह " कलावती प्रकाशन सरोजिनी नगर नई दिल्ली " से कवितायें प्रकाशित"
श्रेष्ठ काव्य माला (खण्ड 4) " "जे एम डी पब्लिकेशन न्यू महावीर नगर नई दिल्ली" से कवितायें प्रकाशित"
मुट्ठी भर अक्षर " "हिन्दयुग्म प्रकाशन हौज खास नई दिल्ली " से लघु कथायें प्रकाशित"
सेवा चेतना " "निराला नगर लखनऊ " से प्रकाशित अर्धवार्षिक पत्रिका में 2007 से 2011 तक शोध पत्र लेखन "
छपरा बिहार "से "विवेक ज्योति" में लेख प्रकाशित , "कथादेश" मासिक पत्रिका मई 2016 में प्रकाशित लघुकथा "चप्पल के बहाने"
कई स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में रेखाचित्र संस्मरण लघुकथाये आदि प्रकाशित।"
अटूट बंधन " मासिक पत्रिका में लघुकहानियां प्रकाशित"
बूंद बूंद सागर " सांझा लघुकथा संग्रह बनिका पब्लिकेशन बिजनौर से लघुकथाये प्रकाशित"
लघुकथा अनवरत " सांझा संग्रह अयन प्रकाशन दिल्ली से लघुकथाये प्रकाशित"
राजा नंगा है " नामक लघुकथा का एकल ई संग्रह प्रकाशित।
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आइना सच नही बोलता
हिंदी कथाकड़ी भाग तीन
गाड़ी घर की गली छोड़ मेन रोड पर आ पहुँची थी , लेकिन नंदिनी की रुलाई रूक ही नहीं पा रही थी । अनजान शहर अनजान लोगों के बीच वह अपनी जगह कैसे बना पायेगी ? जब कि " सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े " वाली स्थिति से बारात के समय हुआ घटनाक्रम उसकी डबडबाई आंखो में तैर गया।"
अब क्या ससुराल तक रोने का इरादा है?"
गाडी की आगे की सीट पर बैठी दीपक की दीदी ने हँसते हुये उलाहना सा दिया। तो नंदिनी की बगल मे बैठा दीपक भी हल्का सा मुस्कुरा दिया। तब जाकर नंदिनी कुछ प्रकृतिस्थ हुई ।वरना वह तो अतीत के ज्वार भांटो में बेतरतीब गोते खा रही थी। दीदी की बात से उसे यूं लगा जैसे डूबते हुये इंसान को तिनके का सहारा मिल गया हो।
कोई कुछ और कहता इससे पहले नंदिनी ने अपने सुन्दर से पर्स से अपना सेन्टेड रूमाल निकाल कर आंसू पोंछ लिये। और हल्के से अपना घूंघट पीछे सरका कर हौले से दीपक की दीदी की बात के प्रति उत्तर में मुस्कुरा दी । "
ये हुई न बात ।" दीपक की दीदी चंहकीं ।
नंदिनी ने अपनी घनी पलको की चिलमन आंखो पर से उघाड़ कर कनखियों से एक बार पूरी कार का जायजा सा ले डाला।
दीपक , दीपक का चचेरा भाई जो कि कार ड्राइव कर रहा था , दीपक की दीदी और वह खुद ।बस गिनती के चार लोग ही थे गाड़ी में ।
तभी दीपक के भाई ने कार ड्राइव करते हुये दीदी से कहा ; दीदी भाभी से पूछो गाने सुनेगीं कैसेट लगाऊं? "
दीदी ने पीछे पलट कर नंदिनी की ओर देखा , तो नंदिनी अकबका गयी इस नये सम्बोधन को सुनकर । तब दीदी ने हंस कर कहा ; " अरे भई नंदिनी तुमसे ही पूछा जा रहा है तुम्ही हो इसकी भाभी।"
नंदिनी ने मुस्कुराते हुए अपनी झुकी पलकों को थोड़ा सा उठा कर फिर गिरा दिया ।"
ओहो ! ये जलबे है ।"
दीपक के भाई ने ठिठोली करते हुये कार में लगा म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया।
कैसेट विनाका गीत माला की थी। नंदिनी जानती थी एक से एक चुनिंदा गाने होंगें इसमें ।विनाका गीत माला का एक और आकर्षण है अमीन सयानी का गहरा स्वर।
तभी अमीनसयानी का खास अंदाज वाला स्वर उभरा " मै हूं , अमीन सयानी और आप सुन रहे है , विनाका गीत माला ।आज मैं आपके लिये लेकर आया हूं नंदिनी और उनकी सखियों की फरमाइश पर मोहम्मद रफी का गाया यह गीत.....गीत के बोल है
“बदन पे सितारे लपेटे हुये ओ जाने तमन्ना किधर जा रही हो ।"
नंदिनी अपना नाम सुन कर पुलक उठी । गीत उसके मनोभावों के अनुरूप ही तो था | दीपक की सरसराहट उसने बगल में महसूस की | उसने अपने आप को खुद में समेटा और मुस्कुरा उठी |
लेकिन जल्दी ही यथार्थ के धरातल पर उतर कर सोचने लगी , अच्छा जिनका नाम वास्तव में रेडियो या अखबार में आता होगा उनको कैसा लगता होगा।
उसका सोचना बदस्तूर जारी था और अमीन सयानी का खास अंदाज में बोलना । उनकी उतार-चढ़ाव बाली आवाज के सैकडो दीवाने थे।उनके सैकडो प्रशंसको मे से एक नंदिनी भी थी। सोचने और गाने सुनने में उसका सफर कब खत्म हो गया पता ही नही चला।
पता तब चला जब दीपक की दीदी ने कहा ; " घर आने बाला है , घूंघट पल्ला सही कर लो नंदिनी।" तब कही जाकर नंदिनी में थोडी हरकत हुई और उसने दीपक की जांघ के नीचे दबी अपनी लहंगे की चुन्नी का पल्ला खींच कर दुरूस्त करना चाहा, लेकिन दीपक टस से मस नहीं हुआ।उसने अपनी नाजुक अंगुलियों से दोबारा पल्ला खींचना चाहा , लेकिन वह असफल रही ।इस बार उसने एक हाथ से दीपक का हाथ पकड़ कर हल्के से हिलाया और दूसरे हाथ से अपना पल्ला खींचा तो कहीं दीपक को चेत हुआ और उसने उसका पल्ला अपनी जांघ के नीचे से निकाला।
दीपक के हाथ का सपर्श उसके मन के भावो को झंकृत कर गया , नंदिनी दीपक का हाथ छूकर काफी पुलकित थी मन ही मन ।
नंदिनी ने सबसे पहले अपना घूंघट पल्ला ठीक किया ।फिर उसका मांग टीका रोने धोने में कब अपनी जगह छोड चुका था , पता ही नहीं चला। उसने टटोल कर मांग टीका को यथास्थान जमाया। नथ की पलट गयी लर का एक-एक मोती अंगुलियो में दबा कर सीधा किया। माथे की बिन्दी अंगुली से दबाकर आश्वस्त हुई कि बिन्दी यथा स्थान है या वह भी कहीं की कहीं चिपकी है।सोच कर ही सिहरन सी दौड गयी उसके शरीर में।
हाथों का चूडा , कंगन , करधनी , बिछुआ , हथफूल, हार ,मंगलसूत्र , बाजूबन्द, पायल सब उसने एक बार छू छूकर देखे जब सब को यथास्थान पाया तो आश्वस्त होकर बैठ गयी । लेकिन एक मिनट बाद ही बेचैन होकर सोचने लगी, हाय! मेरा काजल। रोने धोने में कहीं फैल न गया हो, पर्स से शीशा निकाल कर देख भी तो नही सकती ।नई-नवेली बहू जो ठहरी ।
इसी उहापोह के चलते ससुराल की हवेली की चौखट पर गाडी आ गई।गाडी हलके से धचके के साथ रुकी , तो नंदिनी के ह्दय का स्पन्दन एक अजीब भय मिश्रित भविष्य के प्रति धड़क उठा।
बारात आ गयी ,बारात आ गयी ,का हलका सा शोर गाडी के इर्द गिर्द गहरा गया ।पहले से तैयार ढोल वाले अपना पूरा हुनर उसी क्षण उढेल देना चाह रहे
थे ।और इस चाहना के पीछे उनकी
बरातियों और करीबी रिश्ते दारो से अच्चा नेग लेने की सोच काम कर रही थी। चाचा फूफा मौसा ताया सभी भगवान दादा के डांस से लेकर जितेन्द्र उर्फ जीतू जी और ऋषिकपूर तक के डांस को आजमाया जा रहा था ।हद तो तब हो गयी जब ढोल पर नागिन डांस का नजारा भी दिखाई दिया ढोल पर नागिन डांस को कनखियों से देख नंदिनी मन ही मन हँस पडी।
गाडी पर मेवे और सिक्के उछाले जा रहे थे ।दीपक यह सब देख मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे, और नंदिनी चकित हिरनी सी कनखियों से सब तरफ का जायजा लेने की कोशिश कर रही थी।
तभी दीपक की दीदी गाडी से बाहर उतरी। दीपक के जीजा जी ने "आव देखा न ताव " उन्हे खीचकर डांस करने वालो के बीच खडा कर दिया ।बेचारी दीदी को न, न करते करते भी दो चार ठुमके लगाने पडे।बडी मुश्किल से पीछा छुडा कर वह घर के अन्दर दाखिल हुई ।अन्दर भी भारी गहमा-गहमी थी ।
सभी रिश्ते की औरतें जल्दी जल्दी तैयारी में लगी थीं। तो कुछेक बडी बूढियां सबको हिदायतें देने में।
नंदिनी की सास और छोटी ननद मीतू दौड़ दौड़ कर घर के सारे काम धाम कर रहीं थी।साथ ही साथ रितिरिवाजों की भी तैयारी करती जा रहीं थी।और मेहमानो की भी बडी विनम्रता से आवभगत कर रही थी। "
मां ,मां कहां हो ?" दीपक की बडी दीदी ने उतावली भरे स्वर मे पुकारा तो मीतू ने बताया मां तैयार हो रहीं है ।
नंदिनी की सास गौरवर्णी तीखे नयन नक्श वाली अधेड लेकिन स्मार्ट सी महिला थीं।उन्होने पीले ज़री के बार्डर वाला रानी कलर का लंहगा पहना और सीधे पल्ले में की चुनरी में उनका ढलता हूआ रूप भी खिल उठा । "
मां लंहगे की मैचिंग का सेट पहनती न ।" लेकिन आधुनिक और पुरातन दोनो की हिमायती नंदिनी की सास ने ऊपर से नीचे तक सोने चांदी के जेवर पहने ।"
मां , मां अब जल्दी करो। भइया भाभी काफी देर से गाडी में बैठे है। " मीतू ने आतुरता से कहा
"
क्या ठीक लगेगा ? " नंदिनी की सास कुछ संकुचित होते हुये बोली ।"
अरे ! मां ,तुम भी न, हर बात में किन्तु परन्तु करती रहती हो ,अब चलो ,जल्दी से हार पहन लो और बाहर आ जाओ । "दीदी ने कहा।
नंदिनी की सास जब सज धज के नौलखा हार पहन कर बाहर निकलीं तो
सब एक दूसरे को कनखियों से ऐसे देख रही थी , मानो कनखी रूपी कुदाल से अगले के दिल की कंदरा में छुपी बात खोद कर बाहर निकाल लेंगीं।
लेकिन नंदिनी की सास तो बहू उतारने की खुशी में झूमती सी हर ईर्ष्या द्वेष को नजर अंदाज करती हुयी रस्म रिवाज में उलझी हुयीं थी। उन्होने मीतू को आवाज लगायी ; " मीतू आरती थाल लाना बेटा ।" तभी मीतू आरती का थाल और जल भरा लोटा लिये मां के सामने उपस्थित थी।
" आरती करने के लिये दीपक कहां है ?" नंदिनी की सास ने रोली अक्षत सम्भालते हुये मीतू से पूछा ?
" अरेऽऽऽऽ ! "मीतू दातों तले जीभ दबाती हुयी पूजा घर की ओर फिर भागी जल्दी से देशी घी का दीपक लाकर थाली मे धर दिया ।"
अब तो जल्दी चलो न मां , हमें भाभी को देखना है ।" वह कुछ ठुनकते हुये बोली, हांलाकि उसकी उम्र ठुनकने बाली नही थी फिर भी बचपन तो हरेक के मन में हमेशा ही रहता है ।
नंदिनी की सास बडी ननद और छोटी ननद चाची ,मौसी ,बुआ आदि सभी महिला रिश्तेदारों का जमावड़ा देहरी पर हो गया।
दीपक की बड़ी दीदी ने आगे बढकर नंदिनी की तरफ वाला कार का दरवाजा खोला और हाथ पकड़ कर उसे बाहर निकाला ।दीपक दूसरी तरफ का कार का दरवाजा खोल कर बाहर निकलना चाह रहा था लेकिन उसके गले में पड़ा पटका जोकि नंदिनी की चुनरी से बंधा था, सो वह बीच में ही अटक गया।
उसके बंधन को देख सभी रिश्तेदार हँस पडे।
दीपक के जीजा जी तो हँसते हुये बोले ; "
साले साहब अब जिन्दगी भर इन्ही के पीछे चलना होगा , आप मेरी ये बात गांठ बांध लो। "
खिसियानी हंसी हंसते हुये मजबूरी में दीपक को भी कार के उसी दरवाजे से बाहर निकलना पडा जिससे नंदिनी निकली थी।
दीदी ने नंदिनी के भारी लहंगे को एक हाथ से पकड़ा और एक हाथ से उसको सहारा देकर देहरी के नजदीक लिवा लायी। जहां उसकी चाची सास, मौसी सास , बुआ सास के साथ उसकी अपनी सास , ननद उत्सुकता के साथ उन दोनो की प्रतीक्षा में खड़ी थी।लाल सुर्ख लहंगे में हल्का सा घूंघट काढ़े नंदिनी बिल्कुल लाल कमल के बीच सफेद पराग सरीखी दिख रही थी , बहुत सुन्दर ,नाजुक सी । और उसकी बगल मे खड़े दीपक की आभा भी कुछ कम नहीं थी।
मां ने दीपक और नंदिनी की बलैया लीं। फिर उन दोनों को रुचना करके अक्षत लगाया । आरती उतारी। मुंह मीठा कराया ।फिर जल भरे लोटे से सात बार पानी उतार कर पिया।नंदिनी की सास के बाद यही रस्म बारी बारी से सभी सासों ने की।" आओ बहू ,अन्दर आओ।"सास ने कहा ।
नंदिनी और दीपक अन्दर की ओर बढ़े ही थे , कि छोटी ननद मीतू और उसकी चचेरी तैयेरी बहनें दरवाजे को घेर कर खड़ी हो गयी, "
पहले देहरी रुकाई नेग दो, तो आगे जाने दूंगी। " मीतू अधिकार और गर्वीली मुस्कान के साथ नंदिनी के घूंघट में झांकते हुये बोली । बाकी की चचेरी तैयेरी बहने भी उसकी हां में हां मिलाते हुये दीपक से बोली; " चलो भइया पहले जेब डीली करो, फिर ही अंदर आ पाओगे।" उनकी चुहल बाजियां सबका मनमोह रही थी। दीपक मंद मंद मुस्कुरा रहा था उसने जेब में हाथ डालकर हजार का नोट निकाला और हवा मे लहराया। छोटी ननद मीतू ने नोट को देख मुंह बिचका दिया; "हुंह, इसमे क्या होगा हमारा। कम से कम दस हजार ढीले करो तब ही भाभी को लेकर अंदर जा पाओगे ।"
"दस हजार!" दीपक आंखे चौडी करते हुये बोला ।
बहां खडे बडे बूढे भी दीपक की हां मे हां मिलाते हुये बोले "अरे ! लड़कियों क्या डकैती डालने का इरादा है ,चलो जल्दी जो कुछ मिल रहा है उसे लो, और रास्ता छोडो।" काफी नोक झोंक के बाद मीतू एक हजार रुपये लेकर दरवाजे से हटी ।
तभी नाइन ने महावर घुला थाल लाकर दरवाजे पर रख दिया।
सास ने नंदिनी से कहा ; " बहु पहले इसमे पैर रखो तब आलता लगे पैरो से अंदर आना ।" कहते है कि बहु लक्ष्मी का रूप होती है और तुम तो मुझे साक्षात लक्ष्मी लग रही हो।
नंदिनी मन ही मन अपने नये घर के रीति रिवाजों से परिचित होकर प्रसन्न हो रही थी।
आलता भरे थाल में पैर रखने को
नंदिनी ने बांया पैर आगे किया , तो रिश्ते की चाची ताई और अडोस पडोस बाली महिलायें मुंह टेढा करते हुये बोली ; " इत्ती तो पढी लिखी हो इत्ता भी नहीं पता शुभ काम में कौन सा पैर आगे रखते है?"
न॔दिनी ने संकोच और भय से झट अपना पैर पीछे कर लिया ।
उसके मन के उल्लास ने तुरंत विषाद का रूप धर लिया।
उदास नंदिनी ने एक बार फिर मदद के लिये दीपक की बडी दीदी पर नजरें टिका दी लेकिन दीदी का ध्यान कही और था ...........
डाॅ सन्ध्या तिवारी
सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया