स्त्री स्वतंत्र क्यों नहीं ?
स्त्री का स्वतंत्रता का अर्थ क्या है ? उसकी स्वतन्त्रता की दायरा कहाँ तक है ? हर रोज़ स्त्री के नाम से एक नया सवाल खड़ा कर दिया जाता है । जिसमें स्त्री जाती की हर करतूत को न्यूनाती न्यूनतम बताया जाता है । कभी उसकी कपड़ों को लेकर तो कभी उनकी श्रृंगार को लेकर कभी उनकी स्वतन्त्रता को लेकर तो कभी उनकी घर से बाहर निकलने पर कभी पान खाने से तो कभी नौकरी करने पर। हर समय पर स्त्री को ही क्यों कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। स्त्री का सजना संवरना उसकी जन्मसिद्ध अधिकार है। स्त्री ही क्यों? पुरुष भी तो सूंदर दिखना चहता है । फ़ैशन की बाज़ार में पुरुष मॉडल्स, उनके लिए परफ्यूम अलग फेयरनेस क्रीम्स अलग होती हैं।
स्त्री की सजाने सवांरने को लेकर कई बाते सुनने को मिली है। स्त्री के सजने संवरने से या सूंदर दिखने से अगर बदनियती पैदा होती तो गाँव में साड़ी पहने वालों की माँ बेटी की इज़्ज़त न लूटती। अगर स्त्री का पान खाने से पुरुष को लुभाना हुआ तो मर्द समाज में क्या कोई पान नहीं खाता? फिर स्त्री के पान खाने से ऐतराज़ क्यों ? जो महिला सजती सँवरती है वो देहव्यापार के लिए या पुरुष को लुभाने के लिए ? क्या खुद के लिए सजाने सवनरने अधिकार स्त्री की नहीं ? क्या स्त्री की सुंदरता पुरुष को बदनियत बना सकती है। नीयत तो लोगों की अंदर होती है। जो अपने ऊपर संयम न रख सके वो पुरुष हो या स्त्री बदनीयत होते ही है। स्त्री पुरुष के बीच ऐसी भेद क्यों? अगर ऐसी बात होती भी तो छोटे बच्चों के साथ जो अत्यचार और अमानुष्यता हो रही है वह क्या है क्यों हो रही है ? जिन बच्चों ने अभी ठीक से दुनिया तक नहीं देखी हो पुरुष की हैवानियत की शीकार बन जाती है, क्या वह इन पुरुषो को लुभाते हैं? क्या वे इसमें शामिल हैं ? क्या उन मासूम बच्चे पुरुष को बदनीयत बना रहे है या उन्हें रेप जैसी संगीन मामला करने में उकसा रहे है ? हर लोगों की नजरिया अलग होती है। गलत नज़रिए से देखो तो कोई भी सूंदर व अच्छी चीज़ में भी बदसूरत ही नज़र आएगी। पुरुष स्त्री को देखने की अपना नजरिया बदलें। हर स्त्री को एक शोभा वास्तु या सम्भोग का चीज़ की तरह न देखें। अपनी माँ बहनों के रूप में देखें तो इस समस्या का हल होगी । पुरुषों को क्यों नहीं कहां जाता की स्त्री को देखने की अपनी गंदी नजरिया बदलें।
नारी की स्वतन्त्रता को लेकर कुछ पुरुष अपनी कलम या लफ़्ज़ों से बयान कर उन्हें न्यून बताने की उन्हें तन मन से खंडित करने की प्रयाश करते रहे है जो की सदियों से किया जा रहा है। कुछ ही दिन पहले की बात है ऐसे ही नारी पर हो रहे शारीरिक अत्यचार को लेकर किसी नेता ने बहुत ही गलत प्रसंग उत्पन्न किया था। जिसके वजह से स्त्रियों के दिल को चोट पहुंची। इस तरह के बयान बाज़ी करके स्त्रियों को नीचा दिखाकर अपनी पौरुषत्व को उठाना नहीं होता है। जो स्त्री घर बनाती है, बच्चों को संस्कार सीखती है, उन स्त्रियों पर घिनोनी आरोप? चंद स्त्रियों को लेकर पूरा समाज में स्त्रियों का अपमान करना पुरुष का लक्षण है ? आज के समाज में स्त्री विकाश और प्रगति के और बढ़ रही है क्यों की वे आज़ादी चाहती हैं। पुरुषों की अत्याचार और औरत को दबाए रखने का हर कोशिश समझ चुकी हैं। रीती रिवाज के नाम पर उन्हें बेड़ियां पहना कर घर के चार दीवारों में बंद कर दिया जाता है। मैं पूछना चाहूँगी ये रीती रिवाज सिर्फ स्त्री के लिए क्यों? स्त्री पुरुष के लिए पूरा दिन उपवास रह कर उनकी लम्बे उम्र की कामना क्यों करें ? एक पति अपनी पत्नी के लिए क्यों न करें ? स्त्रियों में हो रही ऐसी जागृत को खंडित करने के लिए खुद पुरुष कहलाने वालों ने अपनी दर्ज़ा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सामानता की दौर में गुजरते हुए आज की स्त्री इस तरह की बयान बाज़ी से खंडित नहीं हो सकती। पुरुष की पौरुषत्व बहुत खूब समझ चुकी है महिला। इन सब से कैसे निपटाया जाए वो बखूबी जानने लगी है। कुछ लोगों की नियत कभी नहीं बदलती। आज भी समाज में ऐसे लोग हैं जिन्होंने स्त्री को एक खिलौना समझा है। ऐसे लोगों के लिए स्त्री, अपनी घर की एक विलाश वस्तु या अपनी शो केस-कॅश में रखी एक पुतुली से ज्यादा कुछ नहीं । लेकिन अब वक्त आ गया है की लोग इस तरह की सोच को बदलें व इस तरह की बयान बाज़ी से बचें । स्त्री के प्रती ऐसी नजरिया मानसिकता बदलना जरुरी है। बदलाव जरूरी है।
©लता तेजेश्वर
मेरे पापा,
आप मुझे बहुत याद आते हो। माँ को भी। माँ कहती थी आखिरी बार जब आप मुझे बचपन में दखे थे तब मैं सिर्फ 4 साल की ही थी। आप के जाने के बाद से चार साल हो गए। मैं अभी बड़ी हो गयी हूँ स्कूल भी जाने लगी हूँ। माँ मेरी दो चोटी बनाती है और स्कूल छोड़ने भी आती है। अब मैं माँ को परेशान नहीं करती, बड़ी हो गयी हूँ न, माँ जो भी बनाती है चुप चाप अपने हाथ से खा लेती हूँ। जब भी माँ मेरी दो चोटी बनाती रहती है आप की बहुत सारे बातें सुनाती है। आप का मेरे लिए रातों को जागते रहना, मुझे गोद में लेकर चांदनी रात में परियों के कहानी सुनाना, मुझे तो सिर्फ हलकी सी याद है लेकिन माँ के बातों में मैं रोज़ आप को सुनती रहती हूँ।
आप को देख कर मुझे चार साल हो गए न पापा पर मैं मेरे मम्मी के आँखों में रोज़ आप को देखती हूँ। जब भी वो मुझे गोद में लेकर खिलाती है आप ही की बात करती है। जैसे की उसी दिन ही जिंदगी कहीं ठहर गयी हो, जिस दिन आप हमें छोड़ कर गए थे। मैं तो फिर भी कभी नाराज़ हो जाती हूँ की आप हमें यहां अकेले छोड़ गए लेकिन माँ तो ये भी नहीं समझती की आप हमसे दूर हैं। वो तो सारा दिन आप ही से बात करती रहती है।
पापा इस महीने मेरा जन्म दिन है, याद है न ? मेरे दोस्तों ने बताया है की आप को पाकिस्तानियों ने कैद कर लिया है। आप कभी नहीं आओगे। लेकिन पापा मुझे यकीं है आप आओगे। मैं इस साल मेरी जन्म दिवस पर माँ को आप का तोहफा दूंगी। बहुत दुःख सहा है माँ ने। पहले तो माँ मुझे सुलाने के बाद तकिए पर रो भी लेती थी।
माँ कहती है देश की सीमा पर आप की जवानों ने खूब लड़ते हैं, मैने टीवी पर भी देखा है। पर आप कभी नहीं दिखे। पर चिंता मत करो आप खूब लड़ो, देश के लिए। हमें आप से गर्व है पापा। मैं अपनी दोस्तों से जब भी आप का जिक्र करती हूँ वह मेरे हर बात को ध्यान से सुनतीं है। मैं फक्र से सिर ऊंचा कर हमारी झंडे को सलाम करती हूँ। लेकिन पापा जब भी माँ की सुखी ऑंखें देखती हूँ उस आँखों में आप के लिए इंतज़ार दिखी है, ये मुझसे सहा नहीं जाता।
पापा देश के लिए आप जैसे कई जवान हैं न लेकिन हमारे लिए आप तो एक ही हैं। फिर भी आप पर हमें नाज़ हैं। मैं भी बड़े हो कर आप के जैसा देश के लिए लड़ूंगी। चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए। पापा आज भी गांव की चौराह पर माँ आप की रास्ता घंटों निहारती रहती है उसी रास्ते जिस रास्ते आप आखिरी बार हमें छोड़ कर गए थे। सरहद से जब भी कोई खबर आती है माँ दौड़ी चली जाती है आप की खैरियत पता करने।
पापा, जानते हो आप का वो पुराणा घिसा हुआ ड्रेस, माँ आज भी उसे संभाल कर रखी है अलमारी में। कभी कबार चुपके से निकालती है और गले लगा लेती है। पापा क्या आप को हमारी याद आती है? महीनो हो गए आप का पत्र पा कर। आज भी हम इंतज़ार करते हैं । पता है गली के कोने में रघु चाचा जिसकी राशन का दूकान है, वह आज भी रोज़ राशन ड़ाल जाते हैं। माँ के मना करने के बावजूद। हमें गली महल्ले के लोग बहुत इज्जत करते हैं। लेकिन पापा मेरे जन्म दिन में चाहे कितने लोग हो आप की कमी महसूस होगी न। आप जब तक अपनी गोद में न लोगे तब तक मैं जन्म दिन नहीं मनाऊँगी।
पापा, यहां सब बहुत अच्छे लोग हैं। हम जब बाहर निकलते हैं रिक्शा वाला अंकल हमें अपनी रिक्शा में छोड़ने आते हैं स्कूल तक । जब माँ पैसे देती है तो वो कहते हैं जब आप के पापा हमारे लिए सरहद पर लड़ सकते हैं तो क्या हम उनके परिवार के लिए इतना नहीं कर सकते? बहुत अच्छे लोग हैं ना पापा। दादा तो बहुत पहले चल बसे दादी भी कुछ दिन पहले हमें छोड़ कर चली गयी। माँ बहुत अकेली पड़ गयी है। पर आप चिंता न करो आप की शेरनी बेटी है न मामा के पास।
आप तो मेरा सब से बेस्ट पापा हो। आप मेरे जन्म दिन पर आवोगे न पापा। मुझे पूरा विश्वास है आप जरूर आओगे। माँ कहती थी पहाड़ों के बीच घुटूनों तक की बर्फ में आप की सेना छाँवनी है, जहां आप रहते हो। आप को हमारा याद आता तो होगा न पापा पर आप हमारा चिंता मत कीजिए हम बहुत खुश हैं अब तो मैं बड़ी हो गयी हूँ ना मैं माँ का ख्याल रखूंगी। पापा आप इस जन्मदिन पर जरूर आना। माँ की आँखों में वो चमक और आनंद देखने का इंतज़ार है मुझे। आप आओगे ना पापा?
ढ़ेर सारे पप्पी के साथ आप का इंतज़ार करूँगी। आप की प्यार मुन्नी।
© लता तेजेश्वर
दायरे
अक्सर देखा गया है आज कल के बच्चों से प्रताड़ित हो कर माँ बाप को बृद्धालय का आश्रय लेना पड़ रहा है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? बच्चे तो कल भी थे आज भी हैं। माँ बाप भी कल जैसे थे आज भी वैसे हैं। फिर कल और आज में फर्क क्या है जो पिता माता ज्यादा संख्या में एक उम्र के बाद बृद्धाश्रम का आश्रय लेने लगे हैं?
संयुक्त परिवार कल भी थे एक परिवार में रह कर सब के साथ होने का सुख भी था दुःख भी था। सुख दुःख में सब एक दूसरे से जुड़े रहते थे। एक दूसरे के कष्ट सुख में सब का अपना दायरा होता था। लेकिन समाज में कल के जो रीति रिवाज चलन में थे क्या आज हैं? माँ बाप अपने बड़ों से तो बच्चे अपने माँ बाबुजी व बुआ मौसी इन सब से जुड़ कर एक सयुक्त परिवार में सुख दुःख के मायने जिम्मेदारियां सीखते थे। पीढ़ी दर पीढ़ी जैसे-जैसे परिवार में लोग कम होते गए परिवार की मायने बदलता गया। पहले बड़ों से जो संस्कृती मिलती थी अब बडें अपने बच्चों को वह संस्कृती देने के लिए कितना वक्त दे पा रहे है? क्या बच्चे वो संस्कृती को अपना रहे हैं ? अगर नहीं तो क्यों ?
बच्चों ने भी खुद को इन संस्कृती को अपनाने में और अँधा धुंध विश्वास करने में परहेज करने लगे। हर चीज़ में सच्चाई और वैज्ञानिक तत्व को ढूंढने परखने लगे। फिर परिवार छोटा होने से बच्चों का स्वतंत्रता भी बढता चला गया। वे परिवार से ज्यादा अपनी हम उम्र के दोस्तों को ज्यादा प्रधान्यता देने लगे धीरे धीरे वे अपनी मर्ज़ी को पालने लगे। जो संस्कार उन्हें बाधा देने लगी उन्हें आड़े आँख करते गए। माँ बाप तो माँ बाप हैं। बच्चों के आगे हमेशा मजबूर होते गए। उनकी प्यार ममता बच्चों को कायदे में रहने से ज्यादा उनकी मजबूरी नज़र आने लगी। बच्चे भी माँ बाप से जिम्मेदारी लेने से ज्यादा उनकी हर बात को मनाना उनकी हक़ समझने लगे। जब दादा दादी होते थे वे उन्हें उनकी जिम्मेदारियां और हक़ के बीच के दायरे को कम होने नहीं देते थे। लेकिन दादा दादी के परिवार से दूर होने से माँ बाप की मजबूरी उनके मन मानी को बढ़ावा देता गया।
पहले कभी कबार माँ बाप की अनुभव काम आती थी पर अब वे सिर्फ दादीमा की नुस्खे तक ही रह गए हैं। बदलते समय के साथ साथ नए तकनीकी का प्रभाव जोर पकड़ता गया और माँ बाप के अनुभव की जरुरत के दायरे कम होते गए। पढ़ाई के क्षेत्र में बढ़ते समाज की पुराने अनुभव पुराने कारों की तरह एंटीक वस्तुओं जैसे सिर्फ शो केस में रखने की लायक ही रह गए। इसलिए बड़ों की अनुभव से ज्यादा बच्चों की अनुभव सराहना की पात्र बनते गया। बच्चों के बढ़ते कदम को देख कौन पिता माता गर्वान्वित न होंगे ? उनकी सीना 54 इंच का 56 इंच का होने लगा। बच्चों पर भरोशा स्नेह प्यार हद से ज्यादा बढ़ गया की वे कभी ये सोचना भी मुनासिब न समझने लगे अगर बच्चे कभी धोखा दे दें तो उनका क्या होगा। उनकी सारे मेहनत की कमाई पैसे बच्चों पर उनकी उज्जवल भविष्यत पर लुटाने के बाद उनकी आखिरी अवस्था में उनकी आगे की जिंदगी के लिए उनकी खुद के सुरक्षा का क्या होगा। पर सच्चाई तब सामने आने लगी जब माँ बाप अवकाश प्राप्त कर घर में बैठने लगे। काम की बोझ से जब उन्हें बच्चों के सहारे की जरुरत पड़ने लगी तब उन्हें हकीकत का पता चलने लगा और तब तक बहुत देर हो चूका होता है।
इन सब की चलते बच्चे अपनी जरूरतें और दोस्तों के बीच हो कर अपने आप में स्वार्थी होने लगे हैं। उनकी दायरे उनकी जरुरत के हिसाब से बदलने लगा है। उनकी आवश्यक मुताबिक़ उनकी दायरे में परिवार के अलावा शिक्षा, परिसर, दोस्त और समाज में अपनी एक पहचान बनाने की इच्छा बढ़ने लगा। इन सब को हासिल करने के अलावा माँ बाप की निस्वार्थ सेवा उन्हें उनकी हक़ की भ्रम में ड़ाल देता है और सिर्फ वो उनसे कुछ लेने के अलावा कुछ उन्हें देना या उनकी परवा करना जरुरी नहीं समझ रहे। उनकी जीवन में खुशियों की जरुरत उनकी माता पिता की बदौलत और उनकी निस्वार्थ सेवा से ही है ये बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और इन सारी उपेक्षा के कारण कई पिता माता खुद बृद्धाश्रम को आश्रित होते हैं या तो बृद्धाश्रम में उन्हें भेज दिया जाता है।
समाज में हो रहे अभिवृद्धि भी एक कारण है। तकनिकी क्षेत्र में हो रहे अभिबृद्धि बच्चों को मजबूत करने लगा है। वे तकनिकी क्षेत्र में नए नए परिकरणों का इस्तमाल में लेने लगेने हैं । जो काम कभी घंटों में होता था अब मिनटों में होने लगा। पोस्ट के जगह मेल फोटो के जगह वीडियो लेने लगे। बच्चों के दायरे बढ़ते ही गए। अब तो यहां तक आ पहुंचा की बच्चे माँ बाप के ऊँगली पकड़ कर नेट का उपयोग सिखाने लगे। ये बदलाव भी जरुरी था। माँ बाप का प्यार बच्चों के लिए सच्चा होता है पाक और पवित्र होता है पर इस समाज में बढती तकनीकी के बीच खुद इन सारे चीज़ों की उपयोग जानना भी जरुरी हो गया। एक दिन था एक छोटी सी काम के लिए दर बदर भटकना पढ़ता था जोहै काम पूरा होने में दिन महिना लग जाते थे और तब परिवार की एक अहं भूमिका होती थी ऐसी हालातों में परिवार की मदद बहुत ही कारगर साबित होता था पर आज घर में बैठ नेट पर बैठ सारे काम आसानी से हो जाते हैं। न सगी संबंधी का जरूरत न ही किसी से सलाह मसवरा करने की जरुरत होती है। न माँ बाप की अनुभव काम आते न उनकी दूरदर्शी। क्यों की ये दुनिया तो बुजुर्गों के लिए बिलकुल ही नया है।
आज की प्रतियोगिता के ज़माने में बच्चों के ऊपर काफ़ी बोझ बढ़ता जा रहा है। पढाई में एक दूसरे से आगे जाने की चाह अच्छी कॉलेज में दाखिला के लिए रात दिन एक करके पढाई करना उपर से कंप्यूटर का जमाना जिससे बच्चे घर परिवार में हो कर भी उनकी स्नेह प्यार से दूर होते जा रहे है। मोबाइल की इस युग में 24 घंटे नेट की बदौलत पूरा समय वॉट्सएप्प पर बने रहते हैं। परिवार के साथ हो कर भी एक कमरे में पास हो कर भी पास नहीं होते है। इस तरह परिवार में हो कर भी उनसे दुर होते जाते हैं। इस तरह बच्चे क्या करते हैं किससे बात करते हैं और नेट पर रहकर कोई गलत इंसान से दोस्ती कर कहीं रास्ते से भटक तो नहीं रहे इन सब का चिंता पिता माता में असुरक्षता का भाव पैदा होने लगा है। इन दिनों नेट सर्वोपरी हो गया है। हर क्षेत्र में इसकी जरुरत पड़ने लगी। नेट का उपयोग से जितना अच्छाई है उतना ही बुराई है। बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या और किस तरह की कदम उठा जाए ये भी चिंता का विषय बन गया है। जब तक बच्चे खुद सही गलत न समझे तब तक पिता माता भी कुछ नहीं कर सकते ऐसे हालात पैदा हो गए है। इसके लिए कजब तक स्कूल कॉलेज में बच्चों को सही गलत का शिक्षा के साथ परिवार और आदर्श को अगर शिखाया न जाए तब तक उनकी भविष्य उनके साथ ही उनकी परिवार का भविष्य भी खतरे में पड़ सकती है। ये समाज के लिए बहुत ही सोचनीय है।
©लता तेजेश्वर