Naukari ka dansh in Hindi Short Stories by Dr Pradeep Gupta books and stories PDF | नौकरी का दंश

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नौकरी का दंश

नौकरी के दंश

मधु अति प्रसन्न थी। आज उसका पति श्याम नौकरी के लिए शहर जा रहा था। उसके पति की नौकरी लगी है। मधु को इतनी खुशी इससे पहले कभी नहीं मिली। शायद उसे अपनी शादी के दिन भी इतनी खुशी नहीं हुई होगी। आज के हालात में नौकरी मिलना क्या मामूली बात है। श्याम बी.ए. पास था। आस-पास के लड़को में वह सबसे काबिल और होनहार छात्र माना जाता रहा था। मैट्र्कि, इन्टर तथा बी.ए. के तीनों इम्तिहानों में वह हमेशा फर्स्ट आया था। श्याम को जो जानने वाले यह मानते थे कि वह एक दिन बहुत बड़ा अफसर बनेगा। उसके बड़ा अफसर बनने पर इस गॉंव का भला और दोनो ही संभव हो पाएगा। उसके सभी जानने वाले की लगभग यही सोच थी। बी.ए. पास करने के बाद श्याम अच्छी सरकारी नौकरियों के लिए अनेक प्रतियोगिता परीक्षाओं में बैठा। उसमें से ज्यादातर प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता भी मिली। मगर सब बेकार क्योंकि प्रतियोगिता परीक्षाओं के बाद हुए साक्षात्कार में सफल न हो सका। एक दिन श्याम ने एक दैनिक अखबार में नौकरी का एक विज्ञापन देखा और नौकरी को पाने की आशा में वह शहर गया। वहॉं पता चला कि वह विज्ञापन एक प्लेसमेंट सर्विस की तरफ से दिया गया था। उसे नौकरी पाने के लिए रजिस्ट्र्ेशन हेतु पॉंच हजार रूपए नगद शुल्क के साथ एक फार्म भरने को दिया गया। श्याम भारी उलझन में पड़ गया। रजिस्ट्र्ेशन हेतु फार्म देने वाली उस लड़की ने उसकी इस उलझन को सुलझाने में मदद की। उसने उसे समझाया, अगर साथ में रूपए नहीं लाये हो तो घर जाकर रुपए ले आओ। नौकरी रजिस्ट्र्ेशन फार्म भरने के पश्चात ही उसे मिल पाएगी। घर वापस लौटकर श्याम ने यह समस्या अपनी पत्नी से बतायी। काफी जद्दोजहद के पश्चात दोनों ने यह तय किया कि यह समस्या पिताजी को बता दी जाए, सम्भव है कि वे कुछ कर सकें। पिताजी से आश्वासन मिला कि पैसे का इन्तजाम हो जाएगा। श्याम शहर जाकर पैसे तथा रजिस्ट्र्ेशन फार्म जमा करा आया। प्लेसमेंट सर्विस वालों ने उसे कहा दो माह के अन्दर उसे नियुक्ति पत्र डाक से प्राप्त होगा। नियुक्ति पत्र मिलते ही वह नौकरी के लिए आ जाएं। वह शहर से वापस जब घर लौटा, तब कुछ दिनों बाद पता चला कि पिताजी ने उसकी मॉं का एकमात्र अमूल्य जेवर बेचकर उसे पैसे दिए थे। श्याम को यह मालूम था कि उसकी मॉं के पास एक मात्र अनके स्वर्गवासी पिता की दी हुई एक चॉंदी की मोटी ’’हंसुली‘‘ थी, जिसे वह किसी भी परिस्थिति में, कभी भी उसे बेचने को तैयार नहीं रहीं थी।

श्याम को नौकरी पर जाने के लिए मधु ने ज्यादा समान भरने के लिए एक बड़े बेग का इन्तजाम किया। मधु की मॉं ने नवदम्पति को जाड़े में ओढने के लिए एक बड़ा कम्बल दिया था। मधु ने खुशी-खुशी वह कम्बल अन्य समानों के साथ बेग में रख दिया। वह अपनी हर बेहतर चीजें पति की जरूरत के लिए उस बेग में भरे जा रखी थी। उसे दृढ़ विश्वास था कि श्याम उसे इन चीजों से बेहतर चीजें उसे लाकर दे सकेगा। यूं तो वह घर के सभी सदस्यों के लिए वह अच्छी सोच रखती थी, मगर पति को विदा करते समय यह सोच रही थी कि पहली तनख्वाह से वह अपनी मम्मी तथा सास के लिए एक समान दो साड़ी खरीदकर उन्हें देगी। अगर ज्यादा पैसा घर आया तो पिताजी और ससुर के लिए भी एक-एक कुर्ता तथा एक -एक धोती एक समान ही खरीदकर उन्हें देगी। वह पड़ोस में रहने वाली रामेश्वरी को दिखा देना चाहती थी कि मॉं और सास में कोई अन्तर नहीं होता। पिता और ससुर दोनों एक समान होते हैं। दोनो का सम्मान एक जैसा किया जाना चाहिए।

मधु को पति के विछोह का जरा भी दुख नहीं था। उसे पूर्ण विश्वास था कि नौकरी कर श्याम वापस घर ही तो लौटेगा। तब तो आना जाना लगा ही रहेगा इसके लिए दुख क्या करना। श्याम का साथ, अब उसे कम मिलेगा। इसमें फिक्र की क्या बात है। उसकी शादी के ज्यादा दिन नहीं हुए थे लेकिन मर्द को तो कमाने के लिए घर से बाहर जाना ही पड़ता है। धन कमाने के उपरान्त ही तो गृहस्थी रूपी गाड़ी सही ढंग से चलती है।

श्याम को एक-एक कर पांच महीने बीतने के बाद नौकरी हेतु बुलावा पत्र मिला था। इस अन्तराल में वह डाकिये से सैकड़ों बार उसके घर जाकर उससे पूछता रहा कि - मेरी कोई डाक आयी है क्या ?

बार-बार पत्र आने के बारे में पूछकर उसने डाकिये को परेशान कर रखा था। आखिर पांच महीनें बाईस दिनों के बीतने के उपरान्त नौकरी हेतु बुलावा पत्र उसे मिला। यह पत्र पाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन पत्र खोलने के बाद उसकी सारी खुशियॉ काफूर हो गई। उसके अरमानों पर तुषारपात हो गया था। उसे सेक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए नियुक्ति पत्र भेजा गया था। उसकी सोच थी कि कम से कम किसी निजी संस्थानों में उसे बाबुओं की जगह तो अवश्य ही रखा जाएगा। वैसे तो उसने कई सरकारी संस्थानों के अधिकारी वर्ग तथा बैकों के प्रोबेशनरी ऑफिसर की लिखित परीक्षा अनेक बार पास की थी। मगर इन्टरव्यू की दहलीज को पार न कर पाया। सेक्योरिटी गार्ड की नौकरी का नियुक्ति पत्र पाकर उसे बेहद निराशा हुई। एक बार तो जी में आया कि इस नियुक्ति पत्र के टुकड़़े - टुकड़े कर आग में डाल दे। लेकिन उसी वक्त उसे ख्याल आया कि उसके पिताजी ने उसे घर का एक बहुमूल्य आभ्ूषण बेचकर रुपए दिए थे। इसलिए उसने चुपचाप नौकरी के लिए चले जाना ही मुनासिब समझा।

सेक्योरिटी गार्ड की नौकरी उसके लिए बहुत ही मुश्किल का काम था। बिना कोई काम किए हमेशा खडे़ रहना सचमूच ही एक कठिन काम है। उसने अपने घर में किसी को भी नही बताया कि उसे किस प्रकार का काम मिला है। उसने उस वक्त बुजुर्गों की कही बातों का स्मरण किया कि काम, काम होता है। काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है। मधु भी दसवीं पास थी। उसने नौकरी के इस बुलावा पत्र को पढ़ लिया, लेकिन वह श्याम की नौकरी मिलने पर इतनी खुशी थी कि उसे ओहदे से कोई्र वास्ता न था। मधु की सोच थी कि आज के जमाने में भगवान मिल जाना आसान है, लेकिन नौकरी मिलना बिलकुल असम्भव। उसका विश्वास था कि श्याम मेहनती है और जहां भी रहेंगे मेहनत से काम करेंगे तो तरक्की अपने आप मिलती चली जाएगी ।

श्याम को विदा करते समय कुछ पल के लिए उसे जुदाई का एहसास तो हुआ, मगर नौकरी मिलने की खुशी में वह उसे दिमाग से झटक दिया। चार हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी में वह कितने रुपए हर माह बच जाएगें, इसका हिसाब वह मन ही मन लगाती रही ।

एक महीने बाद उसे श्याम का भेजा पत्र मिला। उसे एक एटीएम बैंक के बाहर सेक्योरिटी करने का काम दिया गया था। आठ- आठ धंटे की सामान्य ड्यूटी थी। दिन भर हर तरह के लोग इस एटीएम से रुपए निकालने आते थे। सभी लोग इस मशीन से एक मामूली कार्ड तथा एक पासवर्ड से अपने - अपने रुपए निकालते थे। वह भी रुपए निकालने का तरीका सीख गया था। मॉडल सरीखी कइ्र्र लेडिज उससे ही रुपए निकलवाती थी। एक बार एक मोटे सेठ ने उसे सौ रुपए यूं ही दे दिए। मासिक तनख्वाह भी उसे समय पर मिल गयी। एक बहुत ही छोटे से कमरे में तीन सेक्योरिटी गार्डों के साथ वह वहां रहता है। कमरा उतना ही बड़ा है, जितने बडे़ कमरे में पिताजी कुबड़ी गाय को बांघते हैं। फिर भी वह खुश है। उसने इस माह की तनख्वाह से पन्द्रह सौ रुपए बचा लिये हैं।

शहर के लड़के - लड़कियां एक साथ किस प्रकार धूमते फिरतें हैं, और क्या - क्या करतें है इसकी चर्चा उसने विस्तार से पत्र में लिखा था। उसने पत्र में यह भी लिखा था कि एक दिन, दिन के तीन बजे एक प्रेमी युगल रुपए निकालने के लिए एटीएम के अन्दर धुस कर उन दोनों ने क्या - क्या हरकतें की, वह उसे धर आकर बताएगा। जब दोपहर मे बाहर चेहरे झुलसाने वाली तेज धूप व गर्मी पड़ती है, तब मशीन के पास के आस पास खूब ठंढक रहती है । वह भी कभी - कभी ठंढ़क का मजा लेने अन्दर चला जाता है, मगर सेक्योरिटी गार्डों को एटीएम के पास अन्दर जाने की अनुमति नहीं है।

उसके साथ रहने वाला एक और सेक्योरिटी गार्ड है रफीक, वह उसे हमेशा किसी न किसी बहाने से सताया करता है। शैतान प्रवृति का रफीक घर से लेकर एटीएम तक उसे तंग करता है। ड्यूटी पर भी हमेशा देर से आता है। खाना बनाने में भी वह ज्यादा सहयोग नहीं देता है, मगर वह इसकी चिंता न करे। यह सब रोजाना की बातें है जिसे वह सम्भाल लेता है।

चिठ्ठी पढ़कर मधु बहुत खुश हुई। थोड़ी - बहुत परेशानी तो नई - नई जगहों में तो होती ही है। इसमें चिंता क्या करना। वह खुश होकर अपनी सास से सारी बातें बता आयी। पहले महीने में सोलह सौ रुपए की बचत की बात सुनकर उसकी सास ने वहीं से बैठे - बैठे हाथ जोड़कर भगवान की प्रार्थना की तथा सवा किलो लड्डू मन्दिर में चढाने की मन्नत की ।

मधु को एक महीने बाद फिर दूसरा पत्र मिला, जिसमें श्याम ने बेहद निराशा और घोर दुख प्रकट किया था। इस पत्र में उसने बताया था कि पिछले महीने के वेतन से कम्पनी ने पन्द्रह सौ रुपए काट लिए थे, क्योंकि एक दिन सेक्योरिटी सुपरवाइजर ने उसे ड्यूटी पर बिना कैप का पकड़ लिया था। यह एक संयोग की बात थी कि सिर में खुजलाहट होन पर उसने कैप सिर से उतारा ही था कि सेक्योरिटी सुपरवाइजर आ धमका। उसे ऐसा लगा की जैसे सेक्योरिटी सुपरवाइजर इसी मौके की ताक में कहीं खड़ा था। इसी तरह सेक्योरिटी सुपरवाइजर ने एक दिन उसे एटीएम मशीन के पास अंदर पकड़ा, जबकि वह अंदर एक ग्राहक के बुलाने पर उसे मदद के लिए अन्दर गया था। जिस दिन उसकी तनख्वाह काटी गयी थी, उसी दिन रफीक का भी अलग - अलग मामलों में तनख्वाह काटी गयी। बेचारा रफीक रात भर इस दुख के कारण सो न सका। पहले से वहां कार्यरत कई सेक्योरिटी गार्डों ने उसे बतलाया कि कम्पनी के लोग हर माह इसी तरह से पांच रुपए सौ से लेकर दो हजार रुपए तक की राशि सेक्योरिटी गार्डों के तनख्वाह से गलत -गलत आरोप लगा कर काट लेते हैं। मुश्किल से सिर्फ एक आदमी के गुजारे लायक तनख्वाह हर माह बचती है। चाहे तो नौकरी करते हुए खुद का पेट पाल लो और घर परिवार को भूल जाओ,या नौकरी छोड़ कर घर बैठो।

पत्र पढ़कर मधु की आंखें भर आयी। उसकी आखों से आंसू की कई बूदेंं पत्र पर गिर पड़े। उन बहते आसुओं में से एक बूंद आंसू पत्र में नीचे लिखे शब्द तुम्हारा श्याम पर गिरा और श्याम शब्द आंसू के खारे पानी में धुधंला हो गया।

डा. प्रदीप गुप्ता

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