बारिश में भीगती हुई लड़की
कहानी
क़ैस जौनपुरी
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+91 9004781786 20 June 2010
कहानी क़ैस जौनपुरी
बारिश में भीगती हुई लड़की
कई साल बाद, आज मैं उसी रास्ते से गुज़रा. वही तिराहा, जहाँ से एस वी रोड का रास्ता अंबोली की तरफ मुड़ता है. कई साल पहले, उसी तिराहे पे, सफ़ेद कपड़ों में, हल्की-हल्की बारिश में भीगती हुई एक लड़की देखी थी.
उस दिन, बारिश की बूँदें, उसके चेहरे की ख़ूबसूरती को पी रहीं थीं, उसके होंठों की नरमी को बार-बार छू रहीं थीं. बारिश की बूँदें उसकी पलकों पे कुछ इस तरह बैठी हुईं थीं, जैसे वहाँ से उतरना ही न चाहती हों. वो लड़की बारिश की बूँदों के बीच चाँदी जैसी चमक रही थी. आज कई साल हुए, वो लड़की, सफ़ेद कपड़ों में, बारिश में भीगती हुई, न जाने किसके इन्तज़ार में, आज भी वहीँ खड़ी है.
कभी-कभी मुझे लगता है, “उसे मेरा इन्तज़ार है.” फिर मैं ये सोचने लगता हूँ कि, “उसे मेरा इन्तज़ार क्यों होगा? उसकी और मेरी तो कोई जान-पहचान भी नहीं है. उससे मेरा कोई रिश्ता-नाता भी तो नहीं है.”
तभी एक बात और दिमाग़ में आती है कि, “एक रिश्ता तो है उससे. और वो ये है कि वो बहुत ही ज़्याद: ख़ूबसूरत है और वो मुझे बहुत अच्छी लगती है.” अब इसके लिए भी जान-पहचान और किसी रिश्ते का होना ज़रूरी है क्या? मुझे तो नहीं लगता. और मुझे ये भी लगता है कि उस लड़की को भी इस बात से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता होगा, तभी तो वो इतने लम्बे अरसे से एक ही जगह खड़ी है.
कभी-कभी सोचता हूँ, उसके पास छाता ले के जाऊँ और उसे बारिश में भीगने से बचा लूँ. लेकिन ऐसा मैंने जब भी किया, पता नहीं क्यूँ, उसे कुछ अच्छा नहीं लगा. मेरा छाता देखके हमेशा उसके चेहरे पे एक अजीब सी परेशानी दिखाई देती है. ऐसा लगता है जैसे उसे छाते में रहना पसन्द नहीं है. शायद छाते में उसका चेहरा ढँक जाता है, इसलिए उसे घुटन महसूस होने लगती है. शायद वो भी यही चाहती है कि वो खुले आसमान के नीचे यूँ ही खड़ी रहे, बारिश में भीगती हुई, ताक़ि उसका चाहने वाला किसी न किसी दिन उसे देख सके, और पहचान सके.
फिर मैं सोचता हूँ कि अगर इसे किसी और का इन्तज़ार है तो मैं कौन हूँ, जो दौड़ के इसके पास छाता ले के गया? इसने तो मुझे पहचाना भी नहीं.
क्या सच में इसे मेरा नहीं, किसी और का इन्तज़ार है? लेकिन मुसीबत तो ये है कि ये लड़की कुछ बोलती ही नहीं है. बस चुपचाप बारिश में खड़ी भीग रही है, पिछले कई साल से.
लेकिन एक बात मैं उससे ज़रूर कहना चाहता हूँ जो मैंने अभी तक उससे कही नहीं है. वो ये कि वो लड़की मुझे वैसी ही लगती है, जिसका मुझे इन्तज़ार है. उसकी शक्ल कुछ-कुछ वैसी ही है, जैसी मैं अपने ख़यालों में सोचता रहता हूँ. कुछ-कुछ वैसी ही, जैसी मेरी आँखों में बसी रहती है, लेकिन जिसकी सूरत आज तक पूरी बन नहीं पाई है. कभी उसकी आँखों पे आके सारी बात ख़त्म हो जाती है, तो कभी उसके होंठों पे.
मैंने आज तक उसका पूरा चेहरा नहीं देखा है. और एक तो उसने सफ़ेद कपड़े पहने हुए हैं, जिसकी वजह से बारिश की बूँदें मेरी आँखों के सामने ही अमीर होती रहती हैं. और नहीं तो क्या! मैंने देखा है, किस तरह बारिश की बूँदें हौले-हौले से, बड़े इत्मिनान के साथ, उसके छोटे और प्यारे से माथे से नीचे सरकते हुए उसके चमकीले गाल पे उतरती हैं और उसके गुलाबी होंठों के किनारों को छूते हुए उसके मुँह के अन्दर चली जाती हैं.
उस वक़्त मैं बस जी मसोस के रह जाता हूँ कि, “काश! मैं बारिश की एक बूँद ही होता. भले ही मेरी ज़िन्दगी बस कुछ पलों की होती, लेकिन कुछ ख़ास तो होती. कम से कम इस ख़ूबसूरत लड़की के ख़ूबसूरत माथे को छूते हुए उसके ख़ूबसूरत गालों तक सरकने का मौक़ा तो मिलता.”
मेरा दिल जल-भुन जाता है, जब बारिश तेज़ होती है और लगातार बरस रही बारिश की बूँदों की एक बहती हुई धार, तेज़ी से उस प्यारी सी लड़की के छोटे से माथे से नीचे ढुलकती है और फिर उसके गालों को छूते हुए नीचे उसकी गरदन तक पहुँचती है और फिर अचानक उसके गोरे-गोरे सीने में कहीं खो जाती है.
उस वक़्त मेरा जी बस यही कहता है कि, “या ख़ुदा! या तो तू इस लड़की को यहाँ से हटा ले! या फिर अपनी बारिश की बूँदों को थोड़ी तमीज़ ही सिखा दे!”
लेकिन मैं पाता हूँ कि वहाँ ऊपर, जन्नत में बैठा हुआ ख़ुदा, मेरी इस दुआ को सुनके सिर्फ़ मुस्कुरा भर देता है, लेकिन कोई जवाब नहीं देता. हाँ, बस थोड़ी देर के लिए बारिश की तफ़्तार थोड़ी कम ज़रूर कर देता है, जिससे मेरा ख़ून खौलना थोड़ा सा कम हो जाता है.
लेकिन फिर हल्की-हल्की धूप में बारिश की ये बूँदें उस मासूम लड़की के चेहरे पे मोती जैसी चमकने लगती हैं. यहाँ मुझे फिर तकलीफ़ होने लगती है. तब बड़ी मुश्किल से मैं अपने दिल को समझाता हूँ कि अब इसमें उन बेचारी नासमझ बारिश की बूँदों का क्या क़ुसूर है? वो लड़की है ही इतनी ख़ूबसूरत कि बारिश की बूँदें भी उसके चेहरे को छूते ही मोती बन जाती हैं.
तब मुझे अपनी नज़र और अपनी पसन्द पे फ़क्र महसूस होने लगता है कि मैंने किसे पसन्द किया है! लेकिन अब मुसीबत ये है कि इस लड़की से बात आगे कैसे बढ़ाई जाए? ना तो ये कुछ बोलती है, ना कभी इसके आगे मेरी ही ज़ुबान खुलती है.
असल में होता ये है कि मैं तो उसे बस देखने में ही रह जाता हूँ. सफ़ेद कपड़ों के अन्दर से उसका भीगा हुआ गुलाबी जिस्म उसके कपड़ों से बाहर आ जाना चाहता है, और फिर मेरी आँखें उसके पूरे जिस्म को अपने अन्दर समा लेना चाहती हैं. उस वक़्त मैं चाहता हूँ कि उसके ऊपर किसी और की नज़र भी न पड़े. और फिर उसकी चमक से मेरी अपनी ही आँखें बन्द हो जाती हैं.
फिर जब मेरी आँखें खुलती हैं, तब तक तो मैं अंबोली तिराहे से बहुत दूर निकल चुका होता हूँ, क्योंकि ऑटोरिक्शा वाले ड्राइवर को तो ये मालूम नहीं होता है न कि मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है? वो तो बस थोड़ी देर के लिए अंबोली तिराहे पे रुकता है, जितनी देर ग्रीन सिग्नल नहीं होता है.
जितनी देर ऑटोरिक्शा उस तिराहे पे रुकता है, मैं जी भर के उस ख़ूबसूरत परी जैसी दिखने वाली बारिश में भीगती हुई लड़की को अपनी भीगी-भीगी नज़रों से देखता रहता हूँ. और फिर क़सम ख़ुदा की! मुझे ऐसा लगने लगता है कि बारिश की बूँदें उसके चेहरे से टकराती हैं और उड़-उड़ के मेरी आँखों में आने लगती हैं. और फिर पानी पड़ने की वजह से मेरी आँखें बन्द होने लगती हैं. मैं अपनी आँखों को मलते हुए जब उसे वापस देखने की कोशिश करता हूँ, तब तक ग्रीन सिग्नल हो जाता है और ऑटोरिक्शा आगे बढ़ जाता है.
लेकिन जब उस लड़की को लगता है कि अब मैं यहाँ से चला जाऊँगा, तब वो लड़की मुझे अपनी गरदन घुमा के वहाँ तक देखती ज़रूर है, जहाँ तक मैं उसे देख पाता हूँ. इससे मुझे लगता है कि शायद वो मेरा ही इन्तज़ार कर रही है. लेकिन उसके पास जाके उससे ये बात पूछ्ने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.
कभी-कभी मुझे ऐसा भी लगता है, “कहीं उसे मेरा इस तरह घूरना अच्छा न लगता हो.” लेकिन उसकी और मेरी नज़र तो बहुत कम ही मिल पाती है, क्योंकि नज़र मिलते ही वो अपनी पलकें झुका लेती है, जिसपे मुझे बारिश की कुछ नन्हीं-नन्हीं बूँदें अटकी हुई दिख जाती हैं और फिर बात कुछ और ही हो जाती है.
बारिश में भीगते हुए मैंने उसके धड़कते हुए सीने को भी देखा है. इसके बारे में मैं ज़्याद: कुछ नहीं कह पाऊँगा, क्योंकि उसके नाज़ुक-नाज़ुक उभारों को देखते ही मेरा दिमाग़ बन्द हो जाता है. और फिर ऐसा लगता है कि मेरे दिमाग़ की हर नस में ख़ून तेज़ी से दौड़ने लगा है और कहीं एक जगह आके सब कुछ रुक गया है. फिर मैं अपनी नज़र उसके हौले-हौले साँस लेने की वजह से ऊपर-नीचे उठते-गिरते उभारों की झलक अपनी आँखों में बसाए उसके सीने से अपनी नज़र हटा लेता हूँ.
कभी-कभी सोचता हूँ कि ये बारिश बड़ी ख़राब है, क्योंकि ये उस लड़की को भिगाती रहती है. फिर सोचता हूँ कि नहीं, ये बारिश बड़ी अच्छी है, क्योंकि बारिश में भीगने की वजह से उस लड़की की ख़ूबसूरती और भी निखर जाती है.
मुझे अलग से कुछ नहीं करना पड़ता है और बारिश की वजह से उसका सफ़ेद कपड़ा कहीं-कहीं उसके बाज़ूओं पे चिपक जाता है और कहीं-कहीं उसके जिस्म से थोड़ा सा ऊपर उठा रहता है, जिसकी वजह से मेरी आँखों को गुलाबी और सफ़ेद बादलों जैसा अहसास होने लगता है.
तब उसके बाज़ू मुझे एक बहुत बड़ा मैदान लगने लगते हैं, जिसमें मैं अपने आपको अकेला खड़ा पाता हूँ और जिसकी ज़मीन मुझे गुलाबी-गुलाबी दिखाई देती है. फिर मैं झुक के उसके गोरे रंग की गुलाबी ज़मीन को अपने हाथ से छू लेना चाहता हूँ.
लेकिन जैसे ही मेरी ऊँगलियाँ उसके बाज़ू तक पहुँचने वाली होती हैं, वो लड़की कसमसा के कुछ इस तरह हिचक जाती है, जैसे मेरे छूते ही उसे बिजली का करण्ट सा लग जाएगा. लेकिन तब मैं अपना हाथ वापस खींच लेता हूँ कि, “रहने दो, क्या पता उसे छूके मुझे ही करण्ट लग जाए. और फिर जब उसकी हिचक दूर हो जाएगी, तब उसे छूना ज़्याद: अच्छा रहेगा.”
मैं उसे किसी भी तरह परेशान नहीं करना चाहता. मैं चाहता हूँ कि जब मैं उसके पास रहूँ तो वो ख़ुशी से मुस्कुराए. अभी जब मैं उसके पास जाता हूँ तो उसके चेहरे पे मुझे एक गहरी ख़ामोशी दिखाई देती है. पता नहीं क्यों वो इतनी चुप रहती है?
एक दिन तो ऐसा हुआ कि बारिश की वजह से उसके चमकीले माथे पे उसके काले और ख़ूबसूरत घुँघराले बालों की एक लट उसकी आँखों पे झुक रही थी. जिसे मैंने हल्के से हटा के उसके कान के पीछे कर दिया था. उस दिन उस लड़की ने शरमाते हुए अपनी नज़र नीचे कर ली थी. मुझे ये समझ में नहीं आया कि वो क्या चाहती है?
उसके मुलायम बालों में से एक ऐसी ख़ुश्बू आ रही थी, जिसे सूँघते ही मेरे सीने में ऐसा लगा, जैसे अचानक से ढ़ेर सारी ताक़त आ गई है. उसके बाल इतने मुलायम हैं जैसे रूई के फ़ाहे. मुझे अपनी ऊँगलियाँ उसके मुलायम बालों पे फिराते हुए आज भी याद है. और उसका वो शरमाना भी.
मज़े की बात ये है कि वो मुझे ये सब करने देती है. बस वो बात नहीं करती है. और ना ही कभी उसने मुझसे ये पूछा है कि मैं क्यों उसे इस तरह घूरता रहता हूँ? पूछेगी तो मैं साफ़-साफ़ कह दूँगा. क्या कहूँगा? ये सोचते हुए मैं भी मुस्कुरा देता हूँ.
फिर मैं सोचने लगता हूँ, “जब लड़की इतनी ख़ूबसूरत है, तो फिर कुछ बोलने की ज़रूरत क्या है?” बंबई में आजकल बारिश फिर से शुरू हो गई है. सोचता हूँ एक दिन उसके पास जाऊँ और बारिश में उसके साथ खड़े होके मैं भी भीगूँ. वैसे तो वो कुछ बोलेगी नहीं, इतना मुझे मालूम है.
लेकिन जब भी मैं उसके साथ खड़ा होके भीगता हूँ, वो मुझे बड़े ग़ौर से देखती है. ऐसा लगता है जैसे वो मुझे पहचानने की कोशिश कर रही हो.
फिर मैं उसकी पलकों को देखने लगता हूँ जिसपे बारिश की तेज़ बूँदें गिरती हैं और छटक-छटक जाती हैं. मैं ये भी देखता हूँ कि बारिश की तेज़ धार बहते हुए किस तरह उसकी प्यारी सी नाक और फिर उसके गोरे-गोरे गाल और फिर उसके गुलाबी-गुलाबी होंठों को भिगाते हुए नीचे गिर जाती है.
उस वक़्त मैं बस ये चाहता हूँ कि ये लड़की, बस एक बार मुझे पहचान ले और अपना मान ले, फिर तो मैं तुरन्त उसके भीगते हुए, रस से भरे और काँपते होंठों पे अपने प्यासे होंठ रख दूँ और अपनी बरसों की अधूरी तमन्ना पूरी कर लूँ. क्या पता वो भी इसी बात का इन्तज़ार कर रही हो. क्या पता उसके होंठों को छूने के बाद ही वो कुछ बोले.
जब भी वो मुझे पहचानने की कोशिश करके थक जाती है, और मेरी आँखों में देखते हुए अपनी नज़र नीचे कर लेती है, तब मेरी नज़र उसकी कमीज़ पे चली जाती है. उसकी झिल्लीदार सफ़ेद कमीज़ पे सफ़ेद धागों से फूलदार कढ़ाई बनी हुई है.
बारिश में भीगने की वजह से उसकी कमीज़ का पतला सा कपड़ा उसके जिस्म से कुछ इस तरह चिपक जाता है जैसे वो फूलदार कढ़ाई उसकी कमीज़ पे नहीं, बल्कि उसके अपने जिस्म पे बनी हुई हो. फिर मैं उस सफ़ेद फूलदार कढ़ाई पे अपने ऊँगली फिराने लगता हूँ जिससे वो लड़की सिहरने लगती है. फिर मैं अपना हाथ, न चाहते हुए भी, धीरे से, वापस हटा लेता हूँ.
एक तो वो इतनी नाज़ुक सी है कि उसके साथ ज़रा सी भी ज़ोर-ज़बर्दस्ती करने का मेरा दिल ही नहीं करता है. वो कुम्हार के हाथों ताज़ा-ताज़ा बनाई हुई मिट्टी की उस कच्ची सुराही की तरह है, जिसे गरदन से पकड़के उठाने पे सुराही टूट जाती है. इसलिए जिस तरह उस कच्ची सुराही को दोनों हाथ लगा के, नीचे से, और बड़े आराम से सँभाल के उठाया जाता है, इस नाज़ुक लड़की के साथ भी मुझे कुछ ऐसा ही करना पड़ता है.
बस इससे एक बार बात हो जाए ना, फिर बस. बस एक बार ये कुछ कह दे कि इसके मन में क्या चल रहा है? मेरा इसके पास जाना अच्छा तो लगता है, लेकिन ये फिर कुछ कहती क्यों नहीं है? कहीं ये मेरे कुछ कहने का इन्तज़ार तो नहीं कर रही है? अब इस पागल लड़की को मैं कैसे समझाऊँ कि इसकी ख़ूबसूरती के आगे तो मेरी ज़ुबान ही बन्द हो जाती है, तो मैं इससे कभी कुछ कैसे कहूँगा?
क्या करूँ? किससे कहूँ? किसी से मदद भी तो नहीं ले सकता. इस मामले में जो भी करना है, मुझे ही करना होगा. करने को तो मैं कुछ भी कर जाऊँ, लेकिन दिक्कत बस ये है कि मैं उसे नाराज़ नहीं करना चाहता, क्योंकि वो कहाँ से आई है, मुझे तो ये भी नहीं पता. अगर कहीं वो नाराज़ होके चली गई तो मैं उसे कहाँ ढूँढ़ूँगा? मुझे तो उसका नाम भी नहीं मालूम है. और उसने भी तो कभी मुझसे मेरा नाम नहीं पूछा है. सोचता हूँ अगर कभी वो अपनी प्यारी सी और मीठी सी आवाज़ में पूछेगी तो मैं उसे अपना नाम झट से बता दूँगा कि मेरा नाम...अभी रहने देता हूँ. जब वो प्यार से पूछेगी, तब उसे ही बताऊँगा.
कभी-कभी सोचता हूँ, उसका नाम क्या होगा? वो ख़ुद इतनी प्यारी और इतनी ख़ूबसूरत है तो ज़ाहिर सी बात है कि उसका नाम भी उसी की तरह प्यारा और ख़ूबसूरत होगा. क्या उसका नाम ज़ीनत होगा? कहीं उसका नाम कनीज़ तो नहीं. अरे वही लड़की, जो दसवीं में मेरे साथ कोचिंग में पढ़ती थी. जिसे मैं थोड़ा-थोड़ा पसन्द करने लगा था, लेकिन वो एक अमीर ख़ानदान से थी और मैं एक ग़रीब घर से था, इसलिए हमारी बात शुरू होने से पहले ही ख़तम हो गई थी.
मैं बहुत मिलाने की कोशिश करता हूँ लेकिन अपनी ज़िन्दगी में देखी हुई किसी भी लड़की से उस लड़की की शकल मेल नहीं खाती है. और फिर मैंने अभी तक उसका पूरा चेहरा देखा भी तो नहीं है. क्या पता, ये उन्हीं लड़कियों में से किसी एक की परछाई बनके वहाँ खड़ी हो, जिन्हें मेरे दिल ने कभी पसन्द तो किया था, लेकिन वक़्त और हालात ने हमें कभी पास नहीं आने दिया.
ख़ैर, जो भी हो. मुझे इससे कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है. मैं तो बस अब उस दिन के इन्तज़ार में हूँ जिस दिन ये लड़की कुछ बोलेगी.
कभी-कभी मैं इस लड़की के बारे में सोचता हूँ और अपने आप से ही बातें करने लगता हूँ कि, “रहने दो, उसे इसी तरह से चुप रहने दो. तुम्हीं अल्लाह मियाँ से कहके बारिश बन जाओ. और फिर तुम वो सब कुछ कर सकते हो जो तुम अभी सिर्फ़ सोचके और मन मसोस के रह जाते हो.
फिर तो तुम बारिश की बूँद बनके उसके प्यारे से माथे को चूम भी सकते हो. उसके मुलायम गालों पे बार-बार फिसल भी सकते हो. उसकी ठोड़ी से नीचे सकरते हुए उसकी गरदन पे भी पहुँच सकते हो. और फिर और नीचे उसके उसके गोरे-गोरे सीने में....अब इतना शरमाओ मत. चाहते तो तुम ये भी हो.”
फिर ऐसी ही तरह-तरह की और भी कई बातें सोचते हुए मैं अपने आप को जवाब भी देने लगता हूँ कि, “चाहता तो मैं बहुत कुछ हूँ. चाहता तो मैं ये भी हूँ कि कभी न मिटने वाली बारिश की एक बूँद बन जाऊँ और उस ख़ूबसूरत लड़की के गोरे-गोरे कन्धे पे थोड़ी देर बैठने के बाद उसकी लम्बी पीठ की तरफ़ नीचे सरक जाऊँ और फिर उसकी कमर पे आके रुक जाऊँ.
फिर जब उसे गुदगुदी होगी तो वो अपना नाज़ुक सा हाथ मुझपे रख देगी और फिर मैं उसकी उँगलियों से चिपक जाऊँगा. और फिर मैं ये चाहता हूँ कि वो अपनी गीली-गीली उँगली अपने रस भरे होंठों पे रखके मुझे पी जाए. और मैं उसके नाज़ुक-नाज़ुक होंठों को छूते हुए उसके छरहरे हुस्न के गुलाबी रस में मिल जाऊँ और फिर उसके चेहरे की रौनक बन जाऊँ और फिर उसके चेहरे में हमेशा के लिए समा जाऊँ.
फिर जब कभी वो आईना देखे तो अपनी ख़ूबसूरती पे कुछ इस तरह इतराए कि शरमाते हुए अपनी मुलायम ऊँगलियों के पोर से अपने गाल को छूए तो मैं ख़ुश हो जाऊँ.
बस, यही चाहता हूँ मैं.
इसलिए मैं नहीं चाहता कि वो वहाँ से हटे. क्या पता किसी दिन मुझमें ही इतनी हिम्मत आ जाए कि मैं उसके पास जाऊँ और वो मुझे देख के मुस्कुरा दे.
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