"लतीफुल्ला की सोने की कटोरी”
हमरे मोहल्ले में एक थे मिया लतीफुल्ला।। जहाँ भी जाते एक लतीफ़ा सुना डालते।। अरे नही नही... आमाँ आप गलत समझ रहे हैं।। वो कोई शौक नहीं रखते लतीफ़ा सुनाने का... बस अनजाने ही उनकी मुँह से लतीफ़ा निकल जाता और सामने वाला हंस हंस कर लोट पोट हो जाता।।
मुझे तो यूँ मालूम होता है की ये उनके नाम का ही आसार होगा ।। नाम भी तो उनकी अम्मा ने क्या खूब रखा था "लतीफुल्ला"
दरअसल हुआ यूँ था कि उनके अब्बा मिया बोहोत गुस्से वाले थे... हर वक़्त गुस्सा नाक पर धरा रहता.. उनकी अम्मा ने सोचा कि कहीं मेरा लाल, मेरा जिगर का टुकड़ा अपने बाप की तरह तेज़ गुस्से का न हो जाये तो उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े का नाम लतीफुल्ला ही रख दिया।।
अब खुदा का करना यूँ हुआ कि वो अपनी हर बात में एक लतीफ़ा सुना डालते।।
पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में वो भी किसी शाहजहाँ से कम नही लगते थे। गुटनो तक काले रंग की लंगोट बांधे, उसके उप्पर उनकी खूबसूरती को चार चांद लगाता सफ़ेद कुरता ।। चेहरे पर शेख चिल्ली वाली ढाडी, उसमे छुपे होंठों पर सदा रहने वाली मुस्कान।। माशा अल्लाह क्या रंग रूप पाया था कि खुदा ना खस्ता कोई बच्चा उन्हें रात को देख ले तो अपनी माँ से चिपक कर फिर दूर न होने की कसम खा ले।।
अरे नही मिया आप तो फिर गलत समझ बेठे... वो कोई सांवली रंगत के नही बल्कि दूध सी सफ़ेद रंगत के बल्कि यूँ कहो कि आलू को उबाल कर छील दिया गया हो, और उस दूध सी सफ़ेद रंगत पे बड़ी बड़ी आँखों में काजल की पूरी डिबिया लगी हुई।।
अब अगर अँधेरे में वो किसी बच्चे के पास चले जाये तो सोचो की क्या हश्र होगा उस मासूम से बच्चे का... खेर छोडिए ये सब बातें।।
अभी कल ही मेरी दुकान पर आये तो फट मैंने पूछा “कहो मिया! कौन सा पान बना दूँ.. मीठा पान, सोडा पान, इलायची पान या....”
मेरी पान वाली बात वो सिरे से ही अनसुनी करते हुए आपनी ही सोचो में गुम बोले...
"हमीद भाई ! ये सोने की कटोरी कितने में बन जायगी।“
"अमाँ तुम्हे क्या सोने की कटोरी की ज़रुरत पढ़ गयी।" मैं खासा चौंक गया कि इतनी महंगाई के ज़माने में ये क्यों कर सोने की कटोरी का पूछ रहे हैं।।
"अरे भाई! वो मेरी अम्मी है ना.. एक नयी ज़िद लग गयी है उन्हे।।" मिया ललिफुल्ला बोले।
"क्या कहती हैं बी अम्मा.. ज़रा बताओ तो।।" मैं सुनने को बेचैन हुआ।।
"कल कह रही थी कि वो अपने पड पोते की कमाई से चौ-मंजिला मकान की छत पर बैठ के सोने की कटोरी में दूध पायेंगी।।" मिया लतीफुल्ला में सारा रात का वाक़िया कह सुनाया।।
“क्या ! मिया तुमने शादी कब कर ली।। हमें तो दावत भी नही दी।" मुझे सोने की कटोरी से ज़यादा अपनी दावत का दुःख हुआ कि लो बे-मौत एक दावत मारी गयी।।
"अरे हमीद भाई ! कैसी बात करते हो।। भला एसा हो सकता है कि मेरी शादी हो आप को दावत न मिले।। अभी अम्मी लड़की देखना शुरू कर रही हैं।।“ शरमाते हुए मिया लतीफुल्ला ने मेरा दुःख कुछ काम किया।।
लो भैया।। अभी लड़की मिली नही, शादी हुई नही और बी अम्मा ख्वाब देख रही हैं पड पोते के।।
"तो तुमने कहीं लड़की वड़की पसन्द तो नही कर रखी।।“
"नही जी,, मैं तो वहीँ शादी कर लूंगा जहाँ मेरी अम्मी बोलेंगी।। पर हमीद भाई मैं सोच रहा था सोने की कटोरी खरीद लूँ।। " मिया लतीफुल्ला को अब भी कटोरी की पड़ी थी ।।
"पर बी अम्मा तो पड पते की कमाई से लायी हुई कटोरी में दूध पीना कहती हैं ना।।" मैं झुंझला गया ।।
"मैं अम्मी को बताऊंगा ही नही कि मैंने खरीदी है।। ओ तेरी!!!! हमीद भाई, वादा करो की आप अम्मी को नहीं बतओग।।" मिया लतीफुल्ला जैसे किसी खशमकश में मुब्तला हो गए कि अब क्या होगा मेरा ये राज़ तो हमीद भाई जान चुके हैं।।
"कसम ले लो मिया।। मैं किसी को नही बताऊंगा.... तो कब ले रहे हो सोने की कटोरी।।" मुझे भी अम्मा बी की ख्वाहिश में कुछ कुछ दिलचस्पी होने लगी।।
"बस हमीद भाई ! नोकरी ही नहीं मिलती कहीं।। मिल जाये तो कुछ पैसा हाथ में आ जये।। अब्बा तो कुछ नही देते ।। " मिया लतीफुल्ला ने बड़ी बेचारगी से कहा थ।।
मैं एक मिनट को सकते मैं आ गया।। खुद पर बड़ी ज़ोर से गुस्सा आया कि मैं भी किस की बातों में अपना वक़्त बर्बाद कर रहा हुं।। ये तो वही बात हुई की मुर्गी खरीदी नहीं पर उस मुर्गी के अंडे बेच बेच कर महल खड़ा कर लिया।।
"मिया तुम घर जा कर आराम कर लो।। अभी मैं काम जा रहा हूँ ।। वक़्त मिला तो ज़रूर सोने की कटोरी का देखते हैं क्या करना है।।" मैंने जैसे पीछा छुड़ाने की कोशिश कि।।
मिया लतीफुल्ला तो चले गये खुदा हाफिज बोल कर।। पर मैं थोड़ा कंफ्यूज हो गया कि इस साडी गुफ्तगू पर हसूं या अपना सिर पीट लूँ... जो भी है! एक बात तो साफ़ है मिया लतीफुल्ला के आला ख्याल सुन सुन कर तो बीरबल की खिचड़ी भी पाक जए।।
क्यों!! सही कहा ना मैंने....
समाप्त