Aaramkhurshi in Hindi Short Stories by Ajay Oza books and stories PDF | आरामखुर्शी

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आरामखुर्शी

आरामकुर्सी

लेखक :–

अजय ओझा


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आरामकुर्सी

जरूर ऐसा माना जाता है कि आरामकुर्सी में तो आराम ही मिलता है, चैन ही मिलता है । और जशवंतराय, आप तो इस बातका अनुभव हमेशा करते आये हैं । हाँलाकि पिछले चंद हफ्तो से हीऐसा होने लगा है कि कुर्सी मे बैठने के बावजूद भी न जाने क्युं आपकोआराम महसूस नहीं होता । आप बराबर जानते हैं कि इसमें दोषआरामकुर्सी का बिलकुल नहीं है । दोष आपके हालात का है, दोषआपकी बेटी दर्शना का भी हो सकता है, दोष उस रेडियम नंबरप्लेटवाली बाइक का भी हो सकता है जो आपकी कोलोनी के नुक्कड़ परआके खडी रहती है । ़ ़ या जशवंतराय, ऐसा भी हो सकता है किदोष आपकी नजरों का ही हो । जो भी हो, आप को आरामकुर्सी मेंआराम के बदले बेचैनी बढती मालुम होती है, कोई रास्ता तो जरूरनिकालना पडेगा ।

देखा जाये तो बात सिर्फ इतनी ही थी कि पिछले चंदहफ्तों से एक नौजवान कोलोनी में बाइक लेकर घूमता रहता है ।कोलोनी में उसका आना–जाना काफी रहता है । सामने के नूक्क्ड़पर अपनी बाइक पार्क करके काफी समय वहाँ खडा रहता है । इतनाही नहीं, कई बार तो आपके घर के आसपास भी वो अपनी बाइक परचक्क्र लगाता देखा गया है । यदि आप के घर में दर्शना जैसी जवानबेटी न होती जशवंतराय, तो यह बात आप के लिए कोई मायने भीनहीं रखती । शुरू के दो–तीन दिन तो आपने भी इस बात कोसाधारण समझकर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बाद में आपने अपनीजिम्म्ेदारी को तराशा, और शार्प किया । घर में सिर्फ दो ही सदस्य;आप और आप की बेटी दर्शना । इस लिए फिकर होना जायज है,स्वाभाविक है ।

इन दिनों दिखाई दे रहा खास किसम का म्युजिकल होर्नआरामकुर्सीउस नौजवान ने अपनी बाइक मे लगवाया है । वह जब भी कोलोनी मेंप्रवेश करता है तुरंत ही आप को पता चल जाता है । आपके घर केसामने से गुजरते वक्त फिर वह होर्न बजता है । उस समय आप अपनेआँगन में आरामकुर्सी में बैठे होते हैं और दर्शना आँगन में कुछ कामकरती होती है या बैठकखण्ड़ में कुछ पढती होती है । जब जबम्युजिकल होर्न बजता है तब तब जशवंतराय, आप के भीतर एकअजीबोगरीब कश्मकश उठ खडी होती है । रक्तवाहिनियों में भारीदबाव बनने लगता है, तूफान उठता है । सारी ऐसी भावनाएँ मन मेंउठती हैं जशवंतराय, जो एक बाप को होनी चाहिए ।आप सोचते, नुक्क्ड़ के ऐसे भटकते मजनुओं को तोबराबर पाठ पढाना चाहिए । लेकिन कैसे पाठ पढाए ये समझ में नहींआता । सोचते; बाइक की बारबार की आवन–जावन से दर्शना भीमन ही मन डिस्टर्ब होती होंगी, व्याकुल हो जाती होंगी । बेचारीभीतर ही भीतर अकुलाती हो फिर भी बिन माँ की बच्ची कहे भी तोकिसे कहे ? और क्या कहे ?

अब होता यह है कि बाइक का होर्न बजते ही आप कीआँखें विभिन्न आवर्तनों का पृथक्करण करनें में लग जाती हैं । बाइकपसार हुई या नहीं ? नौजवान खडा है या नहीं ? उसकी निगाहआपके घर की ओर आती है या नहीं ? उस वक्त दर्शना की प्रतिक्रियाक्या होती है ? उसके चेहरे पर घृणा आती है या आकस्मिक स्मित ?

होर्न की आवाज सुनकर दर्शना भी चौंकती है या नहीं ? सारेअवलोकनों का पृथक्करण कोई निष्कर्ष तक ले जा सके ऐसा ठोसनहीं बनता । वस्तुतः इन सभी बातों से आपकी परेशानियां बढ़ जातीहै ।

कई बार आपको ऐसा लगा कि बाइक का होर्न बजते हीआँगन में बैठी दर्शना मुँह फुलाकर कोई काम का बहाना बनाकर घरमें चली गई हो। तो कई बार ऐसा भी हुआ है कि आवाज आते हीबैठकखण्ड़ में पढ़ रही दर्शना यकायक दौडकर बाहर आई हो औरआकुल–व्याकुल आँखों से सडक पर दबी धूल में पहियों के निशाँढूँढती हो । नुक्कड़ पे नौजवान खडा हो तब कुछ लेने दर्शना बाहरनिकली हो ऐसा भी क्या नहीं हुआ ? इसके विपरीत ऐसे ही मौके पेआप कुछ काम सौंपकर दर्शना को बाहर जाने को बोलो तो उसनेइनकार किया हो, ऐसे प्रसंग भी कम नहीं । उसकी माँ होती तो प्यारसे बेटी को पूछ सकती थी, 'बेटा, कौन है ये नौजवान ? तु जानती हैइसे ?' लेकिन जशवंतराय, आप तो इकलौती प्यारी बिटिया कोइतना पूछने तक की हिंमत करनेवाले नहीं है । डर लगता है,जल्दबाजी में कोई गलत कदम उठा ले तो ? बच्चों का मन पढनाइतना आसान थोडे ही होता है ? ये छोटी–बडी परेशानियाँ आपकेब्लडप्रेशर के फिगर को लगातार उपर–नीचे भगाती रहती हैं, इतनाभगाती रहती है कि कईं बार तो ब्लडप्रेशर को काबू में रखने रोजखानेवाली दवा की गोली खाना भी आप को याद नहीं रहता,जशवंतराय ।

आप सोचते है कि थोडा हिंमत से काम लेकर दर्शना कोघुमा–फिराकर पूछ लेने में क्या हर्ज है ? फिर सोचते है कि शायददर्शना का उस नौजवान से किसी तरह का परिचय हो तो भी क्या वहहाँ कहेगी ? समझो कुछ भी नहीं है, तो इस तरह के घटिया सवालपूछकर खामखां बात का बतंगड़ बनाने की क्या जरूरत है ? एकजोखिम और भी है; आज तक तो मान लें कि दर्शना के मन में उसनौजवान के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन उससे पूछने के बाद उसे भीनौजवान के बारे में कुछ इस तरह देखने–सोचने की ढलान मिल गईतो ? तो ? आपका मानसिक व्यायाम भीतरी गहराइयों में फैलता जारहा है, जशवंतराय । आरामकुर्सी की लकडी में से उभरती फाँसें एकके बाद एक आप के बदन में चुभती रहती है, छलनी करती है ।

खास किसम का म्युजिकल होर्न हमेशा बजता है, बजताही रहता है । बजने का कोई नियत समय नहीं होता, फिर भी आपकोलग रहा है जशवंतराय, कि ज्यादातर होर्न तभी बजा है जब दर्शना घरपे होती है । दर्शना जब घर में नहीं होती तब आपने होर्न सुना नहीं ।ऐसे समय शायद आप निश्चिंत होते है तो मन में होर्न का खयाल भीनहीं आता – बिलकुल उसी तरह जिस तरह दर्शना घर में होती है तबआपके मन में न बजे म्युजिकल होर्न की भनक बजती रहती है । उसनौजवान की गरदन मसोसकर कोलोनी का रास्ता भूला देने काआपका मिजाज़ व काबिलियत बिलकुल है, पर प्रत्यक्ष रूप में किसीभी तरह के सबूत न होने से ऐसा करने में आपको आपकी सभ्यताआडे आती है ।

लेकिन पानी आपके सर से उपर तो उस दिन चढ़ गयाजिस दिन पसार हो रही बाइक परसे नौजवान ने दर्शना की ओरदेखकर स्माइल दिया । इतना ही नहीं, दरवाजे पर खडी दर्शना ने भीमुस्कुराके उत्तर दिया ये आपकी तेज़ नजरों ने देखा । अब आपकेहालात और बिगडे । असमंजस बढी । क्या वही हुआ जशवंतराय, जोआप सोचते थे ? या वही हुआ जो आपने कभी सोचा ही न था ?यकीनन दर्शना उस नौजवान को जानती है । समझो अब आप के उपरएक साथ कईं मुश्किलें आनेवाली है । आपके विवश चेहरे को देखकरआपकी परेशानी को भाँप गई दर्शना तुरंत बोली, 'वे हमारे 'सर' थे ।

आप नहीं जानते । हमारे कोलेज में आये हिन्दी के नये प्रोफेसर हैं ।''हाँ, होंगे । मैं नहीं पहचान सका, कभी देखा भी नहींना ?' आपने कुछ बेरूखी से जवाब देकर बात को बढने न दिया ।प्रोफेसर है तो क्या हुआ ? यूं किसी के उपर हम विश्वास भी कैसे करलें ? और क्युं कर लें ? एक लंबे अरसे से बडे जतन से और जिम्मेदारीके साथ सोची हुई सोची–समझी बात को सिर्फ 'खयाली शक'मानकर महज़ एक 'प्रोफेसर' नामक हथियार से आप काट नहींसकते, है ना जशवंतराय ? है ना ?

आपके सामने आज सिर्फ स्माइल से बात रूकी है तोइससे हरगिज़ ये मत समझना कि बात आगे नहीं बढेगी, और ना हीऐसा मानने का कोई कारण दिखता है । आप दूर की सोच रहें हैं,आज दोनों आमने–सामने मुस्कुराए हैं, कल कुछ लफ्ज़ भी बोलनेलगेंगे । फिर ऐसा भी हो सकता है कि आपके दरवाजे पर बाइक पार्ककरके नौजवान आप ही के बैठकखण्ड़ में अपनी विद्यार्थिनी के हाथ कीबनी कोफी बडे चाव से पी रहा रहा हो ।? ऐसी संभावना से आपइनकार भी नहीं कर सकते । खास किसम का म्युजिकल होर्न आपकेदरवाजे पर आकर हमेशा बजे ऐसा दृश्य आपको हरगिज़ मुनासिबलगनेवाला नहीं है, जशवंतराय । कुछ रास्ता तो निकालना ही पडेगा।

आपने की हुई छानबीन से इस बात का तो पता चल गयाहै कि वो नौजवान प्रोफेसर नहीं है, बल्कि हां, वह दर्शना के कोलेजमें विजिटींग लेक्चरर्‌ के रूप में हिन्दी पढाने आता है । अब सवाल हैवो इधर से रोज़ क्यूं गुजरता है ? तो दर्शना ने बताया था कि वह पीछेकी कोई गली में ही किराये के मकान में रहता है, तो जाहिर हैउसका आपकी कोलोनी में से गुजरना बिलकुल वाजिब है, ये कोईअस्वाभाविक बात नहीं है । आप भी समझते है, म्युजिकल होर्न तोआजकल की ट्रेडीशन है । सोचिए अगर आपको दर्शना जैसा नौजवानरंगीन मिजाज़ लडका होता तो आप ही की दिलवाई उसकी नई बाईकमें उसका मनपसंद खास किसम का म्युजिकल होर्न लगवाने से आपउसे रोक पाते ?? बात में वजूद है, जशवंतराय, वजूद है । सवालगलत भी नहीं । इस जमाने में ठण्डे दिमाग से कुछ इस तरह भीसोचना जरूरी होता है । हकीकत के दूसरे पहलू भी नजरअंदाज़ कभीनहीं करने चाहिए । जो भी हो, कालेज का लेक्चरर्‌ जो है, उसमेंखानदानी एवं परिपक्वता तो जरूर होंगी । और फिर पूरी कोलोनी मेंआप एक ही ऐसे बाप थोडे ही है जिसे जवान बेटी है ? जशवंतराय,धीरे धीरे आप को ये बात समझमें आती है कि बिना वजह किसी केबारे में कुछ भी सोच लेना या शक करना अनपढ–गँवार लोगों काकाम है, जो हमें शोभा नहीं देता । हकीकत का ये दूसरा पहलू आपकेआवेग को रोकता है । आपकी समझ में नहीं आता कि क्या कियाजाये ? स्वाभाविक है, कोई भी समझदार बाप –जिसे अपनी बेटी कीफिकर है, सिक्के के दोनों पहलूओं को ईतनी आसानी से कैसे समझसकता है ?इतने में ऐसा हुआ कि पास के शहर में रहतीं दर्शना कीमौसी ने दर्शना को किसी अवसर पर दो दिन के लिए अपने पास रहनेबुलाया । आप को ये बात पसंद इसलिए आई जशवंतराय, कि दोदिन दर्शना यहाँ नहीं होंगी तो कई तरह की समस्याओं से राहत मिलसकती है । फिर आपका काम सरल इसलिए हो गया कि किसी तरहकी आनाकानी किये बिना मौसी के घर जाने दर्शना तुरंत ही राजी होगई । उसके कपडे,रूपए आदि सामान बाँधकर सुबह की पहली बस मेंआप उसे छोड़ आये । दर्शना के जाने के बाद घर आकर आपआरामकुर्सी में चैन की लंबी साँसें लेने लगे । हां, कुछ आराम जरूरमिला । दोपहर खाने के बाद आपने दर्शना की अलमारी इत्यादिसाजोसामान की ठीक से जाँच की, बराबर छानबीन की । कोईआपत्तिजनक सबूत हाथ नहीं आया ।

शाम को फिर चैन की साःस लेने आप आरामकुर्सी मेंखुद को फैलाकर पडे । कभी अनुभव न किया हो ऐसी शांति काअनुभव आपके दिल में छा गया । दूर दूर कहीं म्युजिकल होर्न बजा होऐसी भ्रांति हुई, आपके कान तेज हुए । पर नहीं, ये आपका भ्रम हीथा । केवल भ्रांति, महज़ एक वहम था वो, क्युं कि आज होर्न नहींबजा । इस भ्रांति के साथ ही आप के दिमाग में एक भयानक विचारकौंध गया : आज होर्न नहीं बजा जो रोज बजता है । हां, आज खासकिसम का म्युजिकल होर्न बजा ही नहीं । आज तक जब होर्न बजतातो बूरी तरह सहम उठते आप जशवंतराय, आज दिनभर होर्न नहींबजने के खयाल से सर से पैर तक काँपने लगे । पता नहीं कितने दिनबिना होर्न के गुजरे होंगे लेकिन आज के दिन होर्न का सुनाई न देनाकिस अनहोनी बात का संकेत हो सकता है ? न जाने क्युं ये खयालस्वयं ही एक शूल है । इस शूल ने आपके मन को कईं भयानकखयालों की सौगात दे दीं । कई बात पर सोचने आप मजबूर हो गये ।

क्या उस प्रोफेसर के बच्चे को पता चल गया होगा किदर्शना आज घर पर नहीं है ? या वो खुद कही चला गया होगा ? यातो ़ ़ या फिर ़ ़ कहीं ऐसा तो नहीं कि ़ ़ , ओह, नहीं, नहीं,ऐसा नहीं हो सकता, नहीं हो सकता । जशवंतराय, ऐसे अमंगलखयाल क्यूं करते हैं आप ?

इतने में पीछे की गली में कुछ हल्लागुल्ला सुनाई पडा ।उस ओर से आ रहे लोगो में से एक परिचित आदमी को पूछने पर उसनेबताया, 'कुछ नहीं हुआ, जशवंतराय । ये पीछे गली में कोईकिरायेदार रहता था, कहते है प्रोफेसर था, आज सुबह किसीविद्यार्थिनी को लेकर भाग गया है । शायद पुलिस भी आई थीं । चिंताकी कोई बात नहीं, आप अपनी आरामकुर्सी में शांति से आराम फरमासकते है ।'

अब आपको आरामकुर्सी में आराम क्या खाक मिलेगा,जशवंतराय ? क्या वही हुआ जशवंतराय, जो आप सोचते थे ? या वहीहुआ जो आपने कभी सोचा ही न था ? आपकी आँखों के सामनेडरावना अँधेरा भयानक पिशाची नाच दिखा रहा था । दर्शना ़ ़ ,मेरी बेटी ़ ़ , ऐसा कर सकती है ? ना, नहीं, कभी नही ़ ़ , कभीनहीं ़ ़ । जिस बात को आपका दिल स्वीकार नहीं कर रहा उसी बातको लेकर सोचने पर आप मजबूर है । दिल की धडकनें तीव्रतम होनेलगी । और एक समय आप के ब्लडप्रेशर का फिगर कोई नियत बिंदुपर मानो स्थिर हो गया । शायद इस तरह; आरामकुर्सी में बैठे बैठेदर्शना की मौसी को फोन लगाने जेब से निकाले अपने मोबाइल फोनके पुशबटन पर जैसे आपके फिंगर स्थिर हो गये है ़ ़ ।