नोंध—यह आलेख गुजरात के पर्वो के संबंध में है, अतः उस हिसाब से अगस्त-2016 में आनेवाले रक्षाबंधन-राखी के पर्व पर, 18 अगस्त को प्रकाशित कर सक्ते है.
फोटो सजेशन- गुजरात के सभी उल्लेखित पर्व- रक्षाबंधन, उत्तरायण एवं नवरात्र की तसवीरो को मिलाकर एक कोलाज बनाएं. कोलाज के नीचे गुजरात का नक्शा रखें. साथ में भेंजी हुई तसवीर सिर्फ एक आईडिया लेने हेतु है, उस का उपयोग बुक के लिए न करें.
बुक का शीर्षक : उत्सवप्रिय गुजराती
लेखक : परीक्षित जोशी
Book title- Utsav-priy Gujarati
by Parikshit Joshi
बुक कन्टेन्ट :
गुजरात, लोक संस्कृति और परम्परा से जीवंत राज्य है. भारतवर्ष के राज्यों में भौगोलिक दृष्टि से छोटा सा है लेकिन संस्कृति और संस्कार को जोड़कर, पिछले कुछ वर्षो में विकास पथ पर अग्रसर राज्य है.
महाकवि कालिदास ने कहा है की ‘लोग उत्सव प्रिय होते है.’ यह बात भारतवर्ष के लोगो को तो लागु होती ही है परन्तु गुजरात के लोगो को तो खास तौर से लागु होती है, क्योकि, गुजराती प्रजा मात्र उत्सव का आनंद ही नही लेती, वो तो उत्सव घेली (उत्सव के पीछे पागल ) होती है. बस, उनको कोई वजह मिलनी चाहिए, उत्सव मनाने के लिए. शायद इसी लिए, महाराष्ट्र में भारत के आज़ादी संग्राम के वख्त लोकमान्य तिलक महाराज के द्वारा प्रारम्भ किये गये गणेशोत्सव को सबसे ज्यादा सार्वजनिक स्वरुप में गुजरात ने ही स्वीकार किया है, अलबत्त, महाराष्ट्र के बाद. गुजरात में बसते महाराष्ट्रियन लोगों का भी इसमें बड़ा योगदान है. लेकिन, इस बात से संकेत यह प्राप्त होता है की गुजराती प्रजा सबके सुख में सुखी और सबके दुःख में अपने को दु:खी मानती है. यही तो इस प्रजा की एक विशेषता है. गणेशोत्सव अब गुजरात के पडोशी राज्यों में भी सार्वजनिक हो रहा है.
आप कोई भी टेलीविजन श्रेणी देख लें. आप अपनी मनपसंद कई भी चेनल लगायेंगे तो उस में गुजराती संस्कृति, गुजराती भाषा और गुजराती लोगों को दर्शाती कम से कम एक श्रेणी तो अवश्य होगी, होगी और जरुर होगी. और गुजराती प्रजा की बात हो, गुजराती जीवन पध्द्ती की बात हो, वहाँ उन के लोकपर्व नदारद कैसे रह शकते हैं, भला ! इसी लिए गुजराती कार्तिक माह से आसो माह तक के सभी प्रमुख गुजराती वार-त्यौहार आप टी.वी. के माध्यम से भी अपने बैठक खंड में देख सकते हो और उसे मनाने का लुफ्त भी उठा सकते हो.
तो फिर फिल्में पीछे क्यों रहे भला ? पिछले एक वर्ष में प्रदर्शित सिर्फ हिंदी फिल्मों के नाम ही याद करें . अरे, पिछले कुछ दिनों के हिट फ़िल्मी गीतों को याद करें. उस में आप को गुजरात के कोई न कोई पहलु को ध्यान में रख कर बनाये हुए गीत सुनाई देंगे, एसी फ़िल्में कितनी यादगार रहती है, उसका पता चलेगा, जरा गिनती तो कीजिये.
गुजरात की सिद्धि और प्रसिद्धि एसी जम गई है की बोलीवुड के कई स्टार और सुपरस्टार गुजरात में अपने फ़िल्मी स्टूडियो बनाने की योजना बना चुके हैं. उन में से अनुपम खेर और जैकी श्रोफ जैसे कलाकार तो अपना काम का श्री गणेश भी कर चुके हैं.
वैसे तो गुजरात में काफी पर्व-उत्सव मनाये जाते हैं . लेकिन उन सब में शिरमोर है, नवरात्र . नवरात्र में खेले जाने वाले रास और गरबा तो सीधे तौर से माँ भगवती की आराधना-उपासना के साथ जुड़े हुए हैं . यह है तो एक लोककला. गरबा, तो पूरे गुजरात का लोकधन है. आज गुजरात अथार्त गरबा और गरबा अथार्त गुजरात एसा समीकरण प्रचलित हो चुका है. ईसी लिए जहाँ-जहाँ गुजराती लोग बसते हैं , वहाँ गुजरात होता है, वहाँ -वहाँ गरबा तो होना ही है. इसका प्रमाण देखना हो तो आप गुजराती हास्य लेखक तारक मेहता के लेखो पर आधारित "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" श्रेणी को देख लें. ईस श्रेणी की नायिका दया जेठालाल गडा के माध्यम से, थोडा ज्यादा हुआ है लेकिन खैर, महात्म्य तो गरबा का ही हुआ है.
गुजरात के लोक पर्व, गरबा, रास, सीदी नृत्य आदि पर्वो के प्रमुख आकर्षण हैं और अब तो राष्ट्रीय तथा आंतरराष्ट्रिय आयोजनों का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं. फिल्म तथा टी.वी. के माध्यम से भी लोक पर्व प्रतिष्ठित हुए है. गरबा यानि गर्भदीप, मटके में रखा हुआ दिया. मटके में छेद करवा के उस में दीप रख कर, उस के प्रकाश किरणों में गरवी नार, गुजरातण गरबा खेलती है. आसो सूद एकम से लेकर नवमी तक नौ-नौ रात्रि शक्ति आराधना का महापर्व बन जाता है. माता जी की स्तुति, भक्ति, पूजा, अर्चना में ही यह गरबा की उत्पत्ति का मूल है.
जैसे गरबा देवी उपासना के साथ जुड़े हैं, ठीक उसी तरह उस से बिलकुल नजदीकी सम्बन्ध रखने वाला स्वरुप गरबी का सम्बन्ध कृष्णलीला के साथ है. और विप्रलंभ शृंगार तो उसका प्रमुख रस है. कृष्ण जन्मोत्सव के समय यह गुजरात ही नही, अन्यत्र भी प्रदर्शित होती हैं.
किन्तु आज गरबा सिर्फ शक्ति पूजा का माध्यम रहा नहीं है. अब वो शेरी के चोक में, गोल-गोल घूमता हुआ, पार्टीप्लाट के मंच तक जा पंहुचा है. गुजराती लोगों के घरों में शादी-ब्याह जैसे शुभ अवसरों पर भी गरबा रखने की प्रथा है. पहले शेरी में महिलाए इकठ्ठी हो कर गीत गाति और दोहराती थी. वह गरबा आज व्यावसायिक गवैयों के द्वारा गवाने तक पहूंच चूका है. उस में फिर माइक्रोफोन, औरकेस्ट्रा और कोरिओग्राफी के आ जाने से उस का मूल ग्रामीण स्पर्श लगभग खो गया है.
एसा ही दूसरा स्वरुप है रास. जो मोटे तौर पर पुरुष खेलते है. जब की महिलाऐ उन के साथ जुड़ कर के खेलती हैं तो उसे रासडा कहते हैं. परम्परा के हिसाब से रास सर्वोत्तम लोकनृत्य है. आजकल रास और रासड़ा राष्ट्रिय तथा आंतरराष्ट्रिय समारोहों-इवेंट्स के अनिवार्य अंग हैं. गुजरात की रास-मंडलियो को विदेशो से आमंत्रण प्राप्त होते रहते है तथा विदेश में यह कला प्रदर्शन हेतु उनका व्यापक स्वागत होता है.
गुजराती आदमी जहाँ भी गया है वहां अपने घर, कुटुंब, ज्ञाति और प्रदेश के संस्कार और संस्कृति को भी साथ ले के गया है. गुजराती सब कुछ अपना लेते है, सब के साथ मिलजुल कर रह सकते हैं लेकिन अपनी ‘अस्मिता’ खोये बिना, भूले बिना. इसी लिए तो फाफडा-ज़लेबी हो या अचार, ढोकला-हांडवो हो या खिचड़ी, गुजरातियो के साथ-साथ ये भी राष्ट्रिय एवं आंतरराष्ट्रिय स्तर पर पहोच चुके हैं . वही बात हुई, गरबा-गरबी और रास के साथ.
एसा ही दूसरा लोक पर्व है, उत्तरायण. पूरे वर्ष में आते दो अयनॉ में से एक. सूर्य मकर राशी में संक्रांत हो ने की वजह से इसे मकरसंक्रांति के नाम से भी जाना जाता है. इस पर्व की खास बात है, पतंग. सूर्य के कोमल किरणों का आयुर्वेद में भी खासा महत्व बताया गया है. यही किरणों को अपने शरीर पर लेने का पर्व यानि उत्तरायण. कागज़ के पतंगो के सहारे अपनी कला-करतब दिखाते लोग अपने घरों की छत के उपर जा कर जब ‘ए कायपो छे’ और ‘ए लपेट...लपेट’ की आवाज़ लगाते हैं, तब जो आनंद का अनुभव होता है वह बिलकुल अलग ही होता है.
एसे ही गुजरात में प्रचलित स्वामीनारायण संप्रदाय और जैन संप्रदाय के पर्व और उत्सव भी अब राष्ट्रिय नही, किन्तु आंतरराष्ट्रिय बन चुके है. गुजरातीओ के बारे में कहा जाता है की जहाँ-जहाँ बसे एक गुजराती, वहाँ सदा काल गुजरात. गुजरात की यह प्रतिष्ठा में गुजरात के सांस्कृतिक पर्वो का बहुत बड़ा योगदान है.
अम्बाजी की शक्तिपीठ गुजरात के शक्ति या शाक्त उपासको के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है. नवरात्र में यहाँ पूजा अर्चना का बड़ा महत्त्व है. भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में सब से पहेला गिना जाने वाला सोमनाथ महादेव गुजरात में शिवभक्ति या शैव धर्मियों की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. यहाँ शिवरात्र का पर्व भी राष्ट्रिय महत्त्व प्रस्थापित कर चूका है.
भाई-बहन के संबंधो का विशेष पर्व बलेव या रक्षाबंधन भी गुजरात के सन्दर्भ में काफी अहेमियत रखता है. गुजरात के देश के सब से लम्बे समुद्री तट पर यह पर्व नारियेल पूर्णिमा के नाम से जाना और मनाया जाता है. समुद्र की खेप करने वाले मछ्वारों समेत सभी इस पर्व को बड़े आदरभाव से मनाते है. अब तो इस पर्व का महत्त्व समग्र भारतवर्ष के समुद्र के आधार पर जीवन व्यतीत करने वाले सभी के लिए अति महत्त्वपूर्ण बन चूका है. इस दिन दरियालाल की पूजा अर्चना करने के बाद समुद्र में जाने वाले सभी लोग आपना कामकाज शुरू करते है.
२००१ के बाद गुजरात के तत्कालिन मुख्यमंत्री ने गुजरात के ऐसे लोकपर्वो को एक नई दिशा दिखलाई और उन्हें ‘वाईब्रंट’ इफेक्ट दी है. उन की दूरंदेशी और सफल संचालन के कारन आज गुजरात की संस्कृति और संस्कार को देश-विदेश में कोने-कोने तक पहुचाने में बड़ी मदद मिली है. हर वर्ष गुजरात सरकार के नेतृत्व में मनाये जाते वाईब्रंट उत्सवों की वजह से अब वाईब्रंट नवरात्र, वाईब्रंट पतंगोत्सव, वाईब्रंट आंतरराष्ट्रिय समिट आदि आयोजनों ने गुजरात के लोकपर्वो को राष्ट्रिय एवं आंतरराष्ट्रिय स्तर पर स्वीकृति प्राप्त करने में बड़ी सहायता की है.
मुंबई की टीवी-फिलमी दुनियां में भी बहुत बड़ी मात्रा में गुजराती लोग होने की वजह से आज करीब-करीब हर चेनल पर, कुछ-कुछ टीवी श्रेणी और फिल्मो में गुजराती संस्कार, संस्कृति और परम्परा का त्रिवेणी संगम दिखाई देता है. टी आर पी के मुद्दे पर इस स्पर्धात्मक युग में इस व्यवसाय में गुजराती सुगंध ने नया रंग बिखेर दिया है. गुजरात का गरबा समग्र देश और विश्व में फ़ैल चूका हैं. विदेशो में भी नवरात्र का आयोजन बड़ी धामधूम के साथ होने लगा हैं. पतंगोत्सव भी आंतरराष्ट्रिय बन चूका हैं. गुजरात सरकार द्वारा आयोजित पतंग पर्व में अनेक देशो के लोग सम्मिलित होते हैं. विदेशी महिलाये, विशेष रूप से विदेशी युवतियां गुजराती साड़ी परिधान तथा गरबानृत्य शिखने की उत्सुकता जताती हैं, सीखती भी हैं.
गुजरात की यही परम्परा की वजह से हिन्दू जीवनशैली के आधार रूप संस्कार एवं संस्कृति का समन्वय आज भी जिवंत स्पर्श का अनुभव कर रहा है.