‘ बच्चा बना खिलौना ‘
एक औरत राजा के दरबार में रोती चिल्लाती आयी | राजन!! इन्साफ दो मुझे!! पास खड़ी दूसरी औरत पहली वाली पर आरोप लगाने लगी कि इसने मेरा बच्चा चुराया है, मुझे न्याय दे प्रजापालक!! मेरा कोई दूसरा सहारा नहीं है | राजा ने अपने मंत्री को बुलाकर दोनों के समस्या के बारे में मालूमात की | उसने बताया कि राजन पति तो दोनों ही महिलाओं के जीवित नहीं हैं अगर किसी एक का भी पति जीवित होता तो शायद थोड़ी आसानी होती इनकी समस्या सुलझाने में| राजन बोला जो नहीं है उसके बारे में क्या सोचना !चलो
बताओ इनके क्या तर्क हैं ? मंत्री बोला – पहली वाली का आरोप है रात के वक़्त जब वह सो रही थी तो चुपके से आकर दूसरी औरत ने उसका बच्चा चुरा लिया और चुरा कर भाग गयी | और उससे पूछने पर वह औरत कहती है कि वह गयी तो थी पहली वाली के घर में पर बच्चा चुराने नहीं वरन खाने पीने का सामान चुराने जब उसे कुछ नहीं मिला तो वह ख़ाली हाथ लौट आयी | लेकिन इसको भागते हुए पहली वाली औरत ने देख लिया था और दूसरी का पीछा किया पर पकड़ पाने में असफल रही और वापस आयी तो देखा उसका बच्चा घर से गायब है |तो इसे शक हुआ कि दूसरी औरत ने ही इसका बच्चा चुराया है | और किसी तरह पता लगाकर उसके घर जाकर इसको अपना बच्चा वापस मिल गया लेकिन दूसरी
औरत का कहना है महाराज ! कि ये पहली वाली औरत का नहीं उसी का बच्चा है जबकि पहली वाली कह रही है कि इसके कोई संतान नहीं है ये औरत झूठ बोलकर उसका बच्चा हथियाना चाहती है | दोनों ही न्याय की मांग कर रही हैं महाराज !!! महाराज बोले इस घटना को देखने वाला कोई प्रत्यक्षदर्शी लाओ ढूंड के |
माफ़ी महाराज !! काफी रात की घटना है इसे देखने वाला मुझे कोई नहीं मिला इनके दरबार में पेश होने से पहले ही मैंने पता लगवाया था - मंत्री बोला |
ये सुनने के थोड़ी देर बाद महाराज बोले – पहली वाली औरत से क्या सबूत है कि यह तुम्हारा बच्चा है ?
वो औरत बोली महाराज माँ की आँखों के आँसूं आपको नहीं दिखते माँ की अपने बच्चे के लिए ममता ही उसका सबसे बड़ा सबूत है | महाराज बोले आपकी बात सच है पर न्याय भावुकता नहीं सबूत मांगती है कोई निशानी कोई ऐसी बात या विशेषता जो केवल तुम ही जानती हो –
कुछ सोचकर वह औरत बोली हाँ महाराज – इसके बाए कंधे पर एक छोटा सा तिल है,
तपाक से दूसरी औरत बोली – ऐसे तो मैं भी बता सकती हूँ कि मेरे लल्ला के हथेली में भी एक काला तिल है | दोनों की बातें बच्चे के कपड़े हटाकर मिलान की गईं दोनों ही सत्य निकली | मंत्री भी थोड़ा असमंजस में पड़ गया |
वजीर से सलाह ली गयी राजा को लगा अब वही इस समस्या का समाधान कर सकता है | वजीर ने कहा – राजन ! इस समस्या का केवल एक ही सबसे बेहतर उपाय है बच्चे को मार डालने का हुक्म आप दोनों औरतों के सामने दे दीजिये | मंत्रीगण और राजा बोले- इससे आपका क्या अभिप्राय है – वजीर बोला महाराज ! एक माँ अपने बच्चे को अपनी आँखों के सामने मरता हुआ नहीं देख सकती है चाहे भले उसके प्राणों की खातिर उसे उसको दूसरी औरत को सौपना पड़े |
तभी एक मंत्री बोला राजन यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं कुछ बोलूं – राजा ने कहा ठीक है – राजन आपकी गिनती इस राज्य के अब तक के आदर्श राजओं में होती है इसलिए मैं भी आपको एक बात से आगाह करना चाहता हूँ | वह कहता है – हम आप सब कलियुग के भ्रष्टतम काल में आधुनिकता और विलासिता के चरम पर हैं | हम कोई मुग़ल काल में नहीं हैं कि बच्चे को मारने पर माँ का दिल पसीज जाए और वो उसकी हत्या होने से पहले ही उसको दूसरी औरत को सौप दे और हम लोग माँ की ममता से सच्चाई का पता लगा लें कि यही असली माँ है जो अपने बच्चे को मरता हुआ नहीं देख सकती | और मैं अपने अनुभव से ये कह रहा हूँ कि आजकल की कुछ माएं तो अत्यंत गरीबी
के चलते अपने ही हाथों से बच्चे का गला घोंट देती हैं या कही निर्जन स्थान पर छोड़ कर भाग जाती हैं | और कभी कभी कोई कोई तो पैसों के चलते या बच्चे के बाप का नाम न पता होने के चलते अपनी और अपने परिवार की इज्ज़त के खातिर इसका सौदा तक दलालों से कर देती है |
महाराज काफी चिंतित हुए बोले वजीर जी इसका अभिप्राय तो यह कि समाज में पापाचार बढ़ता ही जा रहा है और नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है | बच्चे तो खुदा की रहमत होते हैं ऐसा माना जाता है | फिर इन पर इतना अत्याचार क्यूँ ?
सभी निरुत्तर थे | वजीर बोला – महाराज ये बच्चा भी काफी दिनों से भूखा और कमजोर मालूम होता है और ये दोनों महिलाएं जो अपना अपना दावा ठोंक रही हैं उनको ये होश नहीं रहा कि दरबार में बच्चे को लाने से पहले कम असे कम ये तो देख लें बच्चे की हालत कैसी है ? कम से कम पैकेट का ही दूध पिला दिया होता |
राज़ा ने सिपाही को आदेश दिया – सिपाही ने उन औरतों से बच्चे को छीना जो उसके लिए चुड़ैलों की तरह लड़ रही थी बच्चे को राजा ने अपनी गोद में उठाया उसकी हालत बहुत नाज़ुक थी ऐसा प्रतीत होता था कई दिनों से उसने कुछ खाया नहीं था | ठीक से आँख भी खोल नहीं पा रहा था | राजा को बहुत विस्मय हुआ |
वह उस मंत्री की बात और वजीर की बातों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि वास्तव में बच्चे के द्रष्टिकोण से भी इस मुद्दे को देखना चाहिए दयालुता के चलते उसने तुरंत घोषणा कर दी झगड़ा का निपटारा जो होगा होगा बाद में देखा जाएगा फिलहाल मैं बाल सरंक्षण केंद्र खोलने की घोषणा करता हूँ जो भी माताएं – बहनें गरीबी से लाचार हैं और अपने बच्चे का पालन पोषण करने में असमर्थ हैं वे अपने बच्चे को यहाँ १४ साल की उम्र तक रहने तक डाल सकती हैं राज्यकोष से उनके शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था के जायेगी और इसका पूरा कार्यभार मैं स्वयं ही देखूँगा |
क्यूंकि अगर इसमें भ्रष्टाचार का दीमक लग गया तो ये हमारे देश के पौधों को ही खोखला कर देंगे जो भावी पेड़ बनने वाले होंगे| देश और राज्य के विकास के लिए ये मेरा अंतिम निर्णय है | इधर बच्चे को खाने पीने का सामान खिलाया जा रहा था अब उसकी हालत पहले से कुछ बेहतर थी | शायद वह अपनी माँ के प्यार से ज्यादा अपने भावी भविष्य को लेकर अन्दर ही अन्दर खुश हो चुका था | और दोनों औरतों को जो बच्चे पर अपना दावा ठोंक रही थी उनको दरबार में उपस्थित होने की अगली तारीख दे दी गयी थी | हो सकता है कि बच्चे की असली माँ पहली वाली ही हो और दूसरी वाली बदनीयती के चलते कुछ सामान न चुरा पाने के गम में बच्चे को लेकर ही भाग खड़ी हुयी हो |
असलियत तो अगली तारीख पर तय होनी थी पर ये जरुर तय हो गया था कि राज्य के बदहाल बच्चों के लिए सबसे जरुरी क्या था और इस बात की पोल भी कि आधुनिकता और विलासिता और स्वार्थपरकता के चलते समाज किस दिशा में जा रहा है और मानव मूल्य की कडवी सच्चाई क्या है वर्तमान में ?? नैतिकता का भी आइना दिख ही गया था उस एक मंत्री के अचानक सही वक़्त पर खड़े होने से | राजा उस मंत्री को धन्यवाद दे रहा था और सबसे मजेदार बात ये थी कि राजा अब देश दुनिया और राज्यों की खबरें नियमित रूप से पढने में दिलचस्पी भी दिखाने लगा था | ताकि दिल और दिमाग खोल कर सही वक़्त पर स्वयं भी उचित निर्णय दे सके |