Janpath in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | जनपथ

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जनपथ

जनपथ

आज वह दुकान के सामने से निकल कर जा रहा था तो नरेंद्र ने तुरंत अमरेश को उसके पीछे दौड़ाया। अमरेश ने जल्दी से दौड़कर नेताजी के नजदीक पहुँच कर आवाज लगाई कि आपको भाई बुला रहे हैं। नेताजी तो आने को तैयार ही नहीं थे, तब तक नरेंद्र भी वंही पहुँच गया और बोला कि नेताजी अब तो उस दिन के डेढ़ सौ रुपये दे दो जो आपने उस दिन सब उधार ले कर खाया था एक महीने से ऊपर हो गया है, मैंने तो आपको भला आदमी समझ कर आप पर विश्वास करके ही आपको उधार दिया था। नेताजी कहने लगे कि भाई मैं कंही भाग तो नहीं रहा हूँ, मैंने अपना कार्ड और फोन नंबर आपको दे रखा है, जैसे ही कोई काम बन जाएगा मैं आपके पैसे जरूर दूंगा। मैं एक राष्ट्रिय राजनीतिक दल का सदस्य हूँ कोई ऐरा गेरा नहीं हूँ लेकिन क्या करूँ जब से मोदी आया है सब काम धंधे बंद हो गए हैं और तू तो बड़ा भाग्य शाली है जो तेरे यहाँ पर मैंने सिर्फ डेढ़ सौ रुपये का उधार खाया है बाकी पूरे कनौट प्लेस के सभी रेस्तरां में तो मैंने किसी मे हजार का खाया है किसी मे डेढ़ हजार का खाया है। नरेंद्र कहने लगा है कि वो सब तो ठीक है लेकिन मैं तो मेहनत मजदूरी करके, सर्दी, गर्मी, बरसात मे यहाँ खड़े रहकर जूस और फ्रूट चाट बेचता हूँ जिसमे मुश्किल से 1 या 2 रुपये प्रति ग्राहक बचते हैं अब आप ही सोच कर देखें कि डेढ़ सौ कमाने के लिए मुझे डेढ़ सौ लोगों की सेवा करनी पड़ेगी और जरूरी नहीं कि इतने ग्राहक तुरंत ही आ जाए इसलिए नेताजी आप कृपया मेरे पैसे तो आज ही दे दीजिये। अब नेताजी कहने लगे कि अगर मैं नहीं दूँ तो क्या करोगे, पुलिस बुलाओगे, तो बुलाओ पुलिस को मैंने उल्टा तुम्हारे ऊपर ही केस न करवा दिया तो राजनीति छोड़ दूंगा, अब जाओ दुकान पर जाकर अपना काम धंधा देखो, मेरे चक्कर मे जो नुकसान हो गया उसे छोड़ो, अब आगे का तो बचा लो। नरेंद्र बोला कोई बात नहीं आप मेरे पैसे नहीं दोगे तो मैं पुलिस को तो नहीं बुलाऊंगा बल्कि जब आप अपने दो चार आदमितों के साथ दिखाई दोगे तब मैं अपने पैसे मांगूंगा और आपको बेज्जत भी करूंगा। इतना कहकर नरेंद्र अपनी दुकान पर वापिस आ गया और पीछे पीछे नेताजी भी डेढ़ सौ रुपये अपने हाथ मे पकड़ कर उसके सामने खड़े होकर कहने लगे की ले भाई तू अपने पैसे ले ले, तू नहीं छोड़ेगा और कंही तेरे डेढ़ सौ रुपये के कारण मेरा डेढ़ लाख का काम ना बिगड़ जाए।

नरेंद्र की जनपथ पर फ्रूट चाट और जूस की दुकान है, इस दुकान से नरेंद्र का घर तो चलता ही है, साथ मे तीन लोग जो दुकान पर काम करते हैं उनका घर भी चलता है। जूस नरेंद्र स्वयं निकाल कर देता है और यादव चाय वाले काउंटर को संभालता है। यादव चाय के साथ मैगी, ऑमलेट, भुजिया एवं ब्रैड बटर भी बना कर देता है। दुकान चूंकि जनपथ पर है तो सभी तरह के ग्राहक आते हैं, देसी, विदेशी, राजनीतिज्ञ, सरकारी सेवारत और साधू-संत या भिखारी भी, लेकिन ये चारों लोग अपने काम को इतने आनंद से करतें हैं कि पूरा दिन कैसे गुजर गया पता ही नहीं चलता। तरह तरह के लोगों की सेवा करते करते नरेंद्र इतना होशियार तो हो ही गया था कि किससे कैसे पैसे निकालने है परंतु उसकी यह होशियारी धरी की धरी रह गयी जब एक खूबसूरत आधुनिक वेश-भूषा पहने एक लड़की उसकी दुकान पर आई। सारे लड़के टकटकी लगाए उस लड़की को ही देखे जा रहे थे और वह हाथ मे मोबाइल से बिजी दिखते हुए दुकान की तरफ ही बढ़ रही थी। नरेंद्र का रटा रटाया वाक्य जी मैडम क्या लेंगी आप और अमरेश अभी भी उसी को देखे जा रहा था तो लड़की अमरेश की तरफ घूम गयी और पूछने लगी कि आप क्या बनाते हैं। अमरेश तो जैसे हतप्रभ सा रह गया पहले तो उसके मुंह से बोल ही नहीं निकला फिर थोड़ा संभाल कर बोला कि फ्रूट चाट मैडम। लड़की बोली अच्छा फ्रूट चाट बनाते हुए सफाई का तो ध्यान रखते हो न या ऐसे ही बना कर दे देते हो तब अमरेश ने कहा मैम आप चिंता न करें मैं सफाई का पूरा ध्यान रखूँगा और वह उसके लिए फ्रूट चाट बनाने लगा। तभी लड़की ने उसको रोक दिया और कहने लगी कि मेरे लिए फ्रूट चाट बनानी है तो ताज़े साबुत फल लो उन्हे ठीक से धोकर लाओ, अपने हाथ व चाकू भी ठीक से धो लो तब मेरे लिए फ्रूट चाट बनाना, मैं वहाँ बेंच पर बैठी हूँ तुम वहीं ले आना। अमरेश ने सेब, चीकू, संतरा, पपीता, तरबूज, खरबूजा और अन्नानास व अपने हाथ और चाकू खूब मलमल कर धोये तब तक लड़की यादव की तरफ वाली बेंच पर बैठ कर अपने मोबाइल मे कुछ करने लगी। जब लड़की मोबाइल मे खेल रही थी तब यादव उसको टकटकी लगाए घूर रहा था, लड्की ने यादव को घूरते हुए देख लिया था अतः वो पूछने लगी कि तुम क्या बनाते हो। तब यादव ने बताया कि मैम मैं मैगी, ऑमलेट, भुजया, ब्रैड-बटर व चाय बनाता हूँ, बहुत अच्छी बनाता हूँ खा कर देखना याद करोगी तो लड़की बोली ठीक है पहले मैगी बनाओ, फिर ऑमलेट बनाना तब तक मैं फ्रूट चाट खाती हूँ, अमरेश ने फ्रूट चाट बना ली थी और पूछ रहा था कि मसाला कम डालना है या ज्यादा और लड़की ने नॉर्मल कहा तो वो मसाला मिला कर फ्रूट चाट लेकर आ गया, लड़की ने उसके हाथ से फ्रूट चाट लेकर थैंकयू कहा तो अमरेश बड़ा प्रसन्न हुआ। यादव जी जिन्हे मैगी और ऑमलेट का ऑर्डर मिला था वे मैगी बनाने के लिए भगोने को एवं ऑमलेट बनाने के लिए फ्राईपैन को रगड़ रगड़ कर मांझने लगा, एकदम चमचमाती हुई सफाई की उसने बर्तनों की और फिर अपने हाथ अच्छे से धोये। भगोना व फ्राई पैन लाकर मैम को दिखाने लगा और पूछने लगा कि ठीक से साफ हो गया है न, अब बना दूँ इसमे मैगी और ऑमलेट। लड़की ने दोनों बर्तनों को गौर से देखा और हाँ कर दिया, लड़की की हाँ होते ही यादव अपने काम में जुट गया।

नरेंद्र अपनी जगह छोड़ कर लड़की के सामने आकर खड़ा हो गया एवं पूछने लगा की फ्रूट चाट ठीक बनी है, कोई कमी तो नहीं रह गयी, मैं इस दुकान का मालिक हूँ। नरेंद्र को लग रहा था जैसे वो लड़की कोई लक्जरी ग्राहक है और उसकी दो तीन सौ रुपये की बिक्री रोज़ हो जाया करेगी। लड़की फ्रूट चाट का स्वाद खराब नहीं करना चाहती थी अतः उसने ऊपर देखे बिना ही बोल दिया हाँ हाँ बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया। जब लड़की ने मुंह उठा कर ऊपर की तरफ देखा भी नहीं तो नरेंद्र थोड़ा खिसिया सा गया और दबे पैरों से अपनी जगह पर वापिस आकर खड़ा हो गया। इसी चक्कर में दो ग्राहक भी बिना पैसे दिये निकल गए यह तो नरेंद्र को बाद में समझ आया। गुलशेर जो दुकान में सबसे छोटा है और अपने काम के अलावा सभी की स्टेपनी का काम करता है, दुकान के बीच में खड़े होकर कनखियों से मैडम को देखे जा रहा था तब लड़की फ्रूट चाट की प्लेट खत्म करके बैठी अपने मोबाइल में खेलने लगी थी एवं मैगी की प्रतीक्षा कर रही थी। यादव प्लेट में मैगी डाल कर ले आया और मैडम को दे दी, मैडम मैगी खाने लगी तब तक यादव ऑमलेट बनाने में लग गया। मैगी खत्म की तो ऑमलेट आ गया, ऑमलेट खाते खाते लड़की ने गुलशेर को यह सम्बोधन करके बुलाया, छोटू इधर आओ। गुलशेर को मैडम ने छोटू क्या कहा सभी उसको छोटू कहकर ही बुलाने लगे तब से यह उसका छोटा नाम पड़ गया। गुलशेर ने आकर बोला जी मैडम और मैडम ने कहा कि क्या बनाओगे हमारे लिये, गुलशेर बोला मिक्स जूस, मौसमी जूस, मैंगो शेक, केला शेक चीकू शेक या पपीता शेक जो भी बोलो बना दूंगा। लड़की ने मौसमी जूस का बड़ा गिलास बनवा लिया और ऑमलेट के बाद धीरे-धीरे करके पीने लगी, बीच-बीच मे अपना मोबाइल भी चलाती रही। जूस खत्म हुआ तो बोली कि कितना हुआ और इतना सुनते ही नरेंद्र फिर दौड़ कर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और बोला जी मैडम डेढ़ सौ रुपये। अब लड़की ने थोड़ा इधर-उधर हाथ मारा और कहा ओह पर्स तो मैं अपने ऑफिस में ही भूल आई, मैं आपके पैसे बाद में दे जाऊँ तो चलेगा, नरेंद्र के पास हाँ कहने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था, लेकिन गलती तो तब पता चली जब किसी ने न तो उसका मोबाइल नंबर लिया और न ही ऑफिस का पता पूछा। वैसे तो नरेन्द्र् किसी को उसके साथ ऑफिस भेज कर भी पैसे मँगवा सकता था लेकिन वो सभी तो उसकी सुंदरता की चकाचौंध में ही खो गए थे और यह बात किसी को भी ध्यान मे नहीं आई और तब तक वो लड़की अंतर्ध्यान हो चुकी थी। अब फिर नरेंद्र के सामने वही यक्ष प्रश्न था कि डेड सौ रुपये कमाने के लिए डेड सौ चाय बेचनी पड़ेगी। एक बुजुर्ग जो चाय पी रहे थे ये सब नजारा देख रहे थे, अपनी चाय के पैसे देने आए तो बोले, नरेंद्र बेटा यह तो जनपथ है यहा इस तरह के बहुत लोग आएंगे, तुम अपने धंधे पर ध्यान दिया करो। नरेंद्र अपनी गलती पर पछता ही रहा था कि एक विदेशी महिला ने आकर उससे सेब का भाव पूछा। नरेंद्र ने बताया की 100 रू पर केजी तब वह महिला बोली कि नो नो यू हेव टु गिव मी सम डिस्काउंट और वो एक किलो सेब लेकर पाँच सौ का नोट नरेंद्र को दे कर जाने लगी। नरेंद्र ने वापस करने के लिए जब तक गल्ले से चार सौ रू निकाले तब तक वह महिला थोड़ी दूर जा चुकी थी, नरेंद्र ने उसको आवाज लगाई madam please take your balance back, लेकिन उसने सुना नहीं तो नरेंद्र ने अमरेश को उसके पीछे दौड़ाया। अमरेश ने जाकर उस विदेशी महिला से कहा की आप अपना बाकी पैसा तो लेती जाओ लेकिन उसकी समझ में नहीं आया और कहने लगी I will not give more money, I alredy asked to give me discount। तब नरेंद्र बोला, you gave me five hundred rs but these apples are for 100 rs only please take your balance 400 rs, और उस तरह नरेंद्र ने उस महिला को दूर से बुलाकर उसके चार सौ रुपये लौटा दिये जब कि वह चाहता तो रख सकता था क्यूंकी अभी अभी उसके साथ डेढ़ सौ रुपये का धोखा हो चुका था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया ईमानदारी से उस विदेशी महिला को उसका बचा हुआ पैसा वापिस किया।

नरेंद्र के पिताजी के एक दोस्त आज़ाद समाज सेवी अक्सर दुकान पर आ जाते थे। रमजान का महीना था वो अपने साथ ढेर सारे पकोड़े लेकर आए और कहने लगे लो बच्चों सब पकोड़े खाओ constitution club से लाया हूँ। सब लोग पकोड़े खाने लगे तो नरेंद्र ने कहा ताऊ जी आपका तो रोज़ा है आप तो नहीं खाओगे तब आज़ाद जी बोले कि कैसे नहीं खाऊँगा मैं भी जरूर खाऊँगा लेकिन पकोड़े नहीं फ्रूट चाट खाऊँगा, तुम पकोड़े खाकर बाद मे हाथ धोकर मेरे लिए बढ़िया नींबू मसाला डाल कर फ्रूट चाट बनाना। नरेंद्र ने पकोड़े खाकर फ्रूट चाट बना कर आज़ाद जी को दे दी, खाने के बाद आज़ाद जी कहने लगे कि अब मैं चलूँगा भाई घर जाकर रोज़ा भी तो खोलना पड़ेगा और नरेंद्र उनकी तरफ देखता रह गया कि इतना कुछ खाकर अब रोज़ा भी खोलेंगे। आज़ाद जब भी बैठते थे तो अपने शिकार के किस्से सुनाया करते थे और खाली समय मे सभी लड़के उनके किस्से सुना करते थे एक दिन सूचना मिली कि आज़ाद जी का निधन आखिरी जुम्मे की नमाज पढ़ते वक़्त मसजिद मे ही हो गया सभी लोग कह रहे थे कि ये बंदा तो सीधा जन्नत में गया है और नरेंद्र सोचने लगा कि वास्तव में सही गलत का फैसला हम नहीं भगवान स्वयं करता है। नरेंद्र को याद आ रहा था कि कुछ दिन पहले ही आज़ाद जी बालिका वधू के ताऊसां बसंत के साथ यहीं इसी बेंच पर तो बैठे थे और खूब बातें कर रहे थे। उस दिन बालिका वधू का ताऊसां बसंत अचानक ही बेंच पर आकार बैठ गए थे, उनका चेहरा कुछ जाना पहचाना लग रहा था तो यादव कहने लगा कि ये सरकारी नौकरी करतें हैं तभी बसंत ने आवाज देकर कहा भाई एक सिगरेट गोल्ड फ्लेक बड़ा देना और एक चाय भी बना देना। यादव और नरेंद्र इसी उधेद्बुन मे थे कि अमरेश ने उनको पहचान लिया सिगरेट उनको थमाते हुए पूछ लिया कि आप आनंदी के ताऊसां हैं न, और बसंत ने हाँ कहकर अमरेश का मनोबल बढ़ाया, अमरेश दौड़ा दौड़ा नरेंद्र के पास आकर बोला भाई ये तो tv कलाकार आनंदी के बसंत ताऊसां हैं। कभी कोई लेखक, कोई गीतकार, कोई कलाकार यहाँ तक कि हीरोइन भी नरेंद्र की दुकान पर आ जाते जिन्हे यादव अपने डोले दिखाकर अपने लिए भी फिल्मों या टीवी मे काम मांगता रहता है और अच्छी चाय पिलाता रहता है, क्यूंकी यह जनपथ है और इसी जनपथ पर एक साधू महात्मा ललाट पर तिलक सजाये हाथ में त्रिशूल लेकर नरेंद्र की दुकान पर आकार ज़ोर से बोलते हैं अलख निरंजन बेटा तू बड़ा भाग्यशाली है, तेरे जीवन में खुशियाँ आने वाली हैं, कोई शुभ कार्य तेरी प्रतीक्षा कर रहा है, मैं बड़ी दूर से आया हूँ एक गिलास मौसमी का जूस पिला दे। नरेंद्र साधू महात्माओं की सेवा तो करता ही रहता था अतः उसने देर लगाए बिना ही एक गिलास जूस बना कर महात्मा जी को दे दिया। महात्मा जी जूस पीने लगे तो नरेंद्र उनसे बातें करने लगा कि महात्मा जी आप बड़ी दूर से कहाँ से आए हैं, तब महात्मा जी बोले कि हम हिमालय से आए हैं, कई वर्षों से हिमालय में भगवान को खोज रहे थे। नरेंद्र ने फिर पूछ लिया क्या भगवान जी मिले तब महात्मा जी बोले कि अभी तो नहीं मिले, लेकिन हम फिर जाएंगे खोजने। नरेंद्र कहने लगा कि महात्मा जी अगर भगवान जी मिल गए तो आप क्या करोगे, यह प्रश्न सुनकर महात्मा जी थोड़ी देर तक सोचते रह गए फिर संभल कर बोले कि कुछ नहीं बस थोड़ा सुकून मिल जाएगा। लेकिन इस गर्मी के मौसम मे जूस का बड़ा गिलास पीकर महात्मा जी को बड़ा आनंद आया बोल पड़े कि बड़ा सुकून मिल गया बेटा भगवान तेरी मनोकामना पूरी करेगा। नरेंद्र बोला कि आपको तो जूस पीकर ही सुकून मिल गया और वह भी यंही जनपथ पर फिर आप हिमालय पर क्यों जाना चाहतें हैं। आपको जूस पीकर सुकून मिला, मुझे पिला कर मिला और बताऊँ महात्मा जी मुझे तो सबसे ज्यादा सुकून तब मिलता है जब मुझे लगता है कि सामने बस स्टॉप से मोदी जी अपनी बड़ी सी तस्वीर से मुझे ही देख रहे हैं और शायद यही कह रहे हैं कि मेहनत और ईमानदारी से काम करते रहो सुकून अपने आप मिल जाएगा। मैं भी पूरा दिन मोदीजी को देख देख कर प्रेरणा लेता रहता हूँ फिर मुझे सर्दी, गर्मी व बरसात का कोई फर्क नहीं पड़ता बस अपना काम दिखाई देता है।

वेद प्रकाश त्यागी

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