बहादुरी और हिम्मत की मिसाल - मलाला युसुफज़ई
मलाला युसुफज़ई पाकिस्तान देश की नागरिक हैं। उन्हे बच्चों तथा महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज़ उठाने और लड़ने के लिए प्रससिद्धि प्राप्त हुई है। इस्लाम धर्म में मानने वाली और पश्तुन नस्ल से ताल्लुक रखने वाली मलाला युसुफज़ई एक निडर और बहादुर शक्षीयत है। मलाला युसुफज़ई का जन्म 12 जुलाई, 1997 के दिन हुआ था। मलाला नें पाकिस्तान के ही खैबर पख्तूनख्बा प्रांत के स्वात जिले में स्थित “मिंगोरा” शहर में अभ्यास किया है। मलाला युसुफज़ई अपने अभ्यास के दिनों में ही तहरीक-ए-तालिबान शासन के द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के बारे में “छद्म” नामक ब्लॉग से, “गुल मकई” नाम (लेखक नाम) से ब्लॉगिंग करने लगी थीं। मलाला युसुफज़ई यह ब्लॉग बी॰ बी॰ सी॰ के उर्दू संस्करण के लिए लिखती थीं।
अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने और उसके सामने निडरता से लड़नें का जो काम पाकिस्तान के प्रसाशन और सैन्य शक्ति को करना चाहिए था, वह काम एक 13 साल की बहादुर लड़की कर रही थी। मलाला युसुफज़ई के शब्दों में महिला अधिकार, बाल अधिकार और शिक्षावाद की बात होती थी, इस कारण कुछ ही समय में वह स्वात विस्तार के लोगों में एक नायिका बन गयी।
मलाला युसुफज़ई को प्राप्त हुए सम्मान
वर्ष 2011 में मलाला युसुफज़ई को पाकिस्तान का राष्ट्रिय शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
वर्ष 2011 में मलाला युसुफज़ई को आंतरराष्ट्रिय शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। और उन्हे वर्ष 2013 में आंतरराष्ट्रिय बाल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया था।
मलाला युसुफज़ई को वर्ष 2013 में सखारोव पुरस्कार दिया गया था। यह सम्मान उन्हे वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए, और बच्चों के शिक्षा अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए दिया गया था।
सयुंक्त राष्ट्र के द्वारा वर्ष 2013 में मलाला युसुफज़ई को “मानवाधिकार सम्मान” (Human Right Award) से सम्मानित किया था। यह सम्मान हर पांच साल में एक बार ही दिया जाता है। मलाला युसुफज़ई के पहले “मानवाधिकार सम्मान” पुरस्कार नेल्सन मंडेला, और पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर जैसे दिग्गज व्यक्तियों को ही दिया गया है।
मलाला युसुफज़ई को वर्ष 2013 में मैक्सिको का सम्मान पुरस्कार दिया गया है। उन्हे यह पुरस्कार मनवाधिकारों की रक्षा करने और अन्याय के सामने बहदुरी से लड़ने के लिए दिया गया है।
मलाला युसुफज़ई को 10 दिसंबर, 2014 के दिन नॉर्वे कंट्री में आयोजित एक कार्यक्रम में “नोबेल पुरस्कार” प्रदान किया गया था। मलाला युसुफज़ई केवल 17 साल की उम्र में नोबेल पुरस्कार अर्जित करने वाली विश्व की प्रथम लड़की बन गयी। अपना पुरस्कार लेने जब मलाला स्टेज पर आई तब औडिटोरियम में उपस्थित सभी लोगों नें खड़े हो कर तालियों के साथ उनका सम्मान किया।
14 वर्ष की उम्र में मलाला युसुफज़ई पर जानलेवा आतंकवादी हमला
तालिबान शासकों को महिला जाती के बिना बुरखे घूमने और शिक्षा प्राप्त करने पर सख्त ऐतराज है। मलाला युसुफज़ई नें अत्याचारी तालिबानियों की धमकियों के बावजूद भी महिलाओं को शिक्षित करने का अभियान जारी रखा था। इसी वजह से मलाला युसुफज़ई तालिबानियों की हिट-लिस्ट में थीं। मलाला युसुफज़ई पर उन्होने ऐसा आरोप लगाया की मलला पश्चिमी देशों के हितों की हिमायती हैं और उन्होने स्वात विस्तार की धर्मनिरपेक्ष (सभी धर्मों को आदर देने वाली) सरकार का समर्थन किया था। इनहि दो कारणों की वजह से उन पर हमला किया गया था।
October 9, 2012 के दिन स्कूल से पढ़ाई कर के बस में घर लौट रही, 14 साल की एक मासूम लड़की पर तहरीक-ए-तालिबान संगठन के दो ट्रेइन्ड हमलखोरों नें ऑटोमैटिक गन (स्वचालित बंदूक) से बर्बरता पूर्ण हमला किया। हमलावर की बंदूक से निकली गोली मलाला युसुफज़ई के सिर की बाईं और लगी, और वह गोली उनके सिर से होते हुए उनके गले में अटक गयी। इस हमले में मलला के साथ साथ और दो लड़कियां भी घायल हुई थीं।
बस में हुए इस जानलेवा हमले में मलाला युसुफज़ई बुरी तरह से घायल हो गयी, और इस खौफनाक हमले के बाद उन्हे तुरंत ब्रिटेन (Birmingham England ) ले जया गया था, जहां अस्पताल में कई घंटों तक चले ऑपरेशन के द्वारा, काबिल डोकटोरों की टीम नें, उनकी जान बचा ली थी। (मलाला युसुफज़ई पर दो सर्जरीयां करनी पड़ी थीं)।
गोली लगने के बाद मलाला युसुफज़ई
गोली लगने के बाद दस दिन तक मलाला युसुफज़ई कोमा में चली गयी थीं। ग्यारहवे दिन जब वह हौश में आई तब उसने खुद को इंग्लैंड के क्वीन एलीज़ाबेथ हॉस्पिटल में पाया। मौत के मुह से वापिस आने वाली बहादुर मलाला युसुफज़ई नें कुछ ही दिनों में अपने शारीरिक और मानसिक घावों से उबर कर अपना काम शुरू कर दिया। इतनी कम उम्र के बावजूद इतनी निडरता, बेजौड आत्मविश्वास और उंच कोटी की विचारधारा मलाला युसुफज़ई को अन्यों से अगल और आगे खड़ा कर देती है।
मलाला युसुफज़ई क्यूँ पूरी दुनियाँ की नज़र में छा गयी
वर्ष 2008 के समाप्त होते होते कट्टरवादी तालिबानी स्वात घाटी में चारसों से अधिक स्कूल बंद करवा चुके थे। मलाला युसुफज़ई उस समय आठवि कक्षा की छात्रा थीं। उन्होने इस अत्याचार का तब ही विरोध किया था और अपनी आवाज़ बुलंद की थी।
जिन तालिबानी शासकों के सामने आँख उठाने में अच्छे अच्छों के हलक सुख जाते थे, उन बर्बर संगठन के खिलाफ छद्म “गुल मकई” नामक डायरी के माध्यम से मलाला युसुफज़ई नें मोरचा खोला था। उनकी इस डायरी में तालिबानी शासको की क्रूरता, उनके अत्याचार और महिलाओं का शोषण करने वाले फतवों के बारे में स्वात घाटी की हालत बयान की गयी थीं।
मलाला युसुफज़ई के स्वस्थ हो जाने के बाद 12 जुलाई के दिन सयुक्त राष्ट्र नें मलाला के जन्मदिन को “मलाला दिवस” घोषित कर दिया।
मलाला युसुफज़ई नारी जाती का गर्व हैं। उन्हे नोबेल पुरस्कार के अलावा भी कई आंतरराष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आज उनके जन्म स्थान पाकिस्तान में ही नहीं परंतु पूरे विश्व में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।
मानवाधिकार विचारधारा और समाजकल्याण की पहेरवी करने वाली मलाला युसुफज़ई के जीवन पर बनी documentary फिल्म “He Named Me Malala” को ब्रिटिश एकेडमी ऑफ फिल्म अँड टेलेविज़न आर्ट्स (BAFTA) पुरस्कारों के 69th संस्कारण के लिए नामांकित किया गया है।
मलाला युसुफज़ई उन चुनिन्दा दिग्गज हस्तियों में शामिल हो चुकी हैं जिनहोने सयुक्त राष्ट्र को सबोधित किया हों। मलाला युसुफज़ई को कुछ ही दिनों पहले ब्रिटेन की सब से प्रभावशाली एशियाई हस्ती के रूप में सम्मान दिया गया है, उन्हे इस के लिए जीजी-2 लीडरशिप अँड डाइवर्सिटी पुरस्कार से नवाज़ा गया है।
बहादुरी और साहस की मिसाल मलाला युसुफज़ई के लिए अमेरिका में उनके सम्मान के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जहां पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा नें और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा में मलाला युसुफज़ई से मुलाक़ात की थी।
मलाला युसुफज़ई quotas
मुझे शिक्षा पाने का अधिकार चाहिए और मुझे इस बात के लिए किसी का डर नहीं।
भाषा, रंग, त्वचा, और धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं होने चाहिए।
याद रखिए – एक कलम, एक कापी (book), एक बालक, एक सिक्षक दुनियाँ बदल सकता है।
पाकिस्तान एक शांति चाहने लोक तांत्रिक देश है।
मुझे हर एक चरमपंथी की बेटियों और बेटों के लिए शिक्षा (education) चाहिए। खास कर तालिबानी यों के संतान के लिए।
हमे लड़कियों (स्त्री जाती) को बताना होगा की उनकी आवाज़ मायने रखती है।
मै कहूँगी की, मै भय (fear) से अधिक बलवान हूँ,
घर जैसी और कोई सुखदायक जगह नहीं है, और मुझे अपने घर की याद आती है।
मेरे पिता हमेशा कहते हैं, “मलाला एक पंछी की तरह आज़ाद होगी”
अपनी बेटियों को सम्मान दो, वह सम्माननिय हैं।
मुझे लगता है की बंदूक (Gun) में कोई शक्ति नहीं होती।
मै अपना चहेरा नहीं छुपाती, चूँकि मुझे अपनी पहेचान दुनियाँ को दिखनी है।
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