Kele ka thela in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | केले का ठेला

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केले का ठेला

केले का ठेला

आज तो लालाजी काफी थक गए थे, हिम्मत जवाब दे गयी थी और भूख भी लगी थी, एक केले के ठेले पर आकर रुक गए और केले का भाव पूछने लगे। उसके पास चार केले ही बचे थे, बाकी सब बिक गए थे। उसने कहा कि चलो लालाजी पचहत्तर पैसे दो और ले लो चारों केले, लालाजी ने कहा कि पचास पैसे दूंगा और केले खाने शुरू कर दिये, भूख तो लग ही रही थी। केले वाले ने कहा कि लालाजी पचहत्तर पैसे से कम नहीं लूँगा तब तक लालाजी ने चारों केले खा लिए थे और पचास पैसे निकाल कर उसे देने लगे, लेकिन वह पचहत्तर पैसे लेने पर ही अड़ा रहा।

लालाजी ने कहा कि भाई तुम तो पढे लिखे लगते हो, कहाँ तक पढे हो, तुम्हारा नाम क्या है, लेकिन वह बोला कि लालाजी आपने चारों केले खा लिए, मैंने पहले ही पचहत्तर पैसे बताए थे, अब आप पचास पैसे दे रहे हैं, आपको ऐसे नहीं खाने चाहिए थे, चलो अब पचास पैसे ही दे दो, मैं भी जल्दी में हूँ, मेरी माँ इंतज़ार कर रही होगी, मुझे जल्दी जाना है। लालाजी को उससे बात करके लगा कि लड़का पढ़ा लिखा है और किसी सम्भ्रान्त परिवार से है। इसलिए लालाजी ने फिर से पूछ लिया कि भाई कहाँ तक पढे हो और तुम्हारा नाम क्या है तो उसने बताया कि उसने बी.कॉम तक पढ़ाई की है और उसका नाम रमेश है, अब लालाजी की जिज्ञासा और बढ़ गयी और पूछ बैठे कि भाई तुम किस बिरादरी के हो। लड़का इस सवाल से थोड़ा झिझका और कहने लगा आप ये सब जानकर क्या करेंगे फिर भी आप जानना चाहते है तो सुनो मेरा नाम रमेश गुप्ता है, बी. कॉम तक पढ़ा हूँ नौकरी नहीं मिली तो केले का ठेला लगाने लगा, आनंद पर्वत की पहाड़ी पर झुग्गियाँ है उन्ही मे से एक में अपनी माँ के साथ रहता हूँ। अब लालाजी ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलकर तुम्हारी माँ से मिलना चाहता हूँ, रमेश बोला लालाजी आप मेरे केले के पचास पैसे दे दो और जाओ, मुझे भी जाने दो, माँ इंतज़ार कर रही होगी, जाकर खाना भी बनाऊँगा और माँ को खिलाऊंगा । लालाजी उसको पचास पैसे देकर उसके साथ-साथ चलने लगे, घाटी रोड की चढ़ाई पर उसके ठेले को ठेलने के लिये हाथ से सहारा भी लगाया और साथ साथ चलते रहे।

लाला दया राम अग्रवाल का नारायणा मे लोहे का कारोबार था। दो लड़के और एक लड़की तीन संताने थी उनकी। लड़के बड़े थे दोनों की शादी हो चुकी थी, अब कारोबार संभाल रहे थे और लालाजी लड़की की शादी के लिए लड़का ढूंढने निकले हुए थे, जहां भी कोई बताता वहीं पहुँच जाते थे परंतु अब तक कोई ढंग का लड़का मिला नहीं था। लड़की सबसे छोटी थी इसलिए माँ बाप व भाइयों की लाड़ली भी थी। ईस्ट पटेल नगर मे बड़ी कोठी थी लाला दया राम अग्रवाल की, जिसमे सभी सुख शांति से रह रहे थे और अब यही विचार था कि लड़की के लिए कोई अच्छा घर वर मिल जाए तो गंगा नहा आऊँ। जहां भी लालाजी जाते तो कोई बारह लाख की शादी की मांग रखता तो कोई थोड़ा कम करके दस लाख ही बोल देता। लाला दया राम को दस लाख, बारह लाख देने मे कोई समस्या नहीं थी, परंतु लड़के जो भी देखे थे वो सब उनकी समझ से परे थे, जैसा लड़का वो अपनी प्यारी बिटिया के लिए चाहते थे वैसा मिल नहीं रहा था। आज तो पैदल भी काफी चलना पड़ा और बस ने भी आनंद पर्वत टर्मिनल पर ही उतार दिया था। न जाने कहाँ और कब मिलेगा कोई ऐसा लड़का जो मेरी बेटी को मुझ से भी ज्यादा प्यार करे और ऐसी सास जो मेरी बेटी को अपनी पलकों पर बैठा कर रखे। यही सोचते सोचते लाला दया राम रमेश की झुग्गी तक पहुँच गए, जहां एक चारपाई पर रमेश की माँ लेटी थी, शायद बीमार थी, रमेश ने लालाजी के बारे मे बताया तो माँ उठ कर बैठ गयी, सिर पर कपड़ा ढका, हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तथा लालाजी को पास पड़े स्टूल पर बैठने को कहा। लाला दया राम अग्रवाल ने रमेश की माँ को अपना पूरा परिचय दिया और उनसे पूछने लगे कि आप लोग कहाँ के रहने वाले हो, यहाँ कैसे रह रहे हो। रमेश की माँ पहले तो सब टालती रही लेकिन लालाजी के एक दो बार ज़ोर देकर पूछने पर सब बता दिया कि हम लोग एटा के रहने वाले हैं, रमेश के पिता और उनके दो छोटे भाइयों की मेन बाज़ार मे मिठाई की बहुत बड़ी दुकान थी और नजदीक मे ही हमारी काफी बड़ी हवेली थी, जिसमे हम सब बड़ी शांति और सुकून से रहते थे। रमेश घर का सबसे बड़ा व पहला बच्चा था तो सभी बड़ा प्यार करते थे। दो देवर दो देवरानियाँ थी और मैं खुद को सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली मानती थी लेकिन किस्मत को तो ये सब मंजूर ही नहीं था, एक दिन अचानक रमेश के पिता को सीने मे ज़ोर से दर्द हुआ और किसी को कुछ भी मौका दिये बिना ही वो चल बसे, मैं अकेली रह गयी, लेकिन मुझे अपने देवर देवरानी पर पूरा विश्वास था कि वे मुझे सहारा देंगे। एक दिन अचानक ही मैंने अपने दोनों देवरों को आपस में बात करते हुए सुना कि अगर इन दोनों माँ बेटों को निबटा दे तो हमारी जायदाद दो हिस्सो मे बंटेगी नहीं तो तीन हिस्से करने पड़ेंगे और एक हिस्सा इनको भी देना पड़ेगा और उन्होने तय किया कि आज रात को ही इन दोनों का काम तमाम कर देंगे। इतनी बात सुनकर तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गयी और मैं किसी तरह से रमेश को लेकर चुपचाप, बिना कुछ सामान लिए वहाँ से निकल आई, मेरे मायके मे भी कोई नहीं था जो वहाँ जा सकती, ट्रेन पकड़ी और सीधी दिल्ली आ गयी। यहाँ रहने की जगह मिल गयी, घरों मे काम मिल गया। मैंने रमेश को पढ़ाया-लिखाया और सोचा था कि रमेश पढ़ लिख कर कोई नौकरी कर लेगा, कहीं दूसरी जगह घर ले लेगा तो वहाँ रह लेंगे। लेकिन इसको नौकरी नहीं मिली और यह केले का ठेला लगाने लगा और मुझे काम करने को मना कर दिया, अब तो मैं बीमार भी रहती हूँ और यहीं लेटी रहती हूँ।

लालाजी को जब पूरी तसल्ली हो गयी की रमेश का परिवार उनकी बिरादरी से ही हैं, तो लालाजी ने एक चाँदी का सिक्का अपनी जेब से निकाला और रमेश की माँ की तरफ बढ़ा दिया कि यह शगुन का सिक्का है रमेश के लिए, मैं रमेश का रिश्ता अपनी बेटी के साथ तय करता हूँ, मगर यह बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए किसी तीसरे व्यक्ति को इसका पता नहीं चलना चाहिए, रमेश की माँ ने पूरे मान सम्मान से वो शगुन का सिक्का अपने पास रख लिया। अब लालाजी ने वहाँ से विदा ली और सीधे घर आ गए, आज बड़ा सुकून उनके दिमाग को मिला था, इसलिए भरपेट खाना खाया और बड़ी गहरी नींद रात भर सोये। घर वाले समझ गए कि शायद लालाजी कहीं रिश्ता पक्का कर आए हैं, इसीलिए ही इतनी चैन से बैठे हैं। अगले दिन लालाजी ने ईस्ट पटेल नगर मे ही सौ गज का एक छोटा प्लॉट देखकर अपनी बेटी के नाम से खरीद लिया। बयाना वगेरह कर दिया, दो चार दिन मे ही उसकी पूरी पेमेंट करके इस पर काम भी शुरू करवा दिया। एक बेसमेंट और दो मंजिल ऊपर बनवा कर रमेश और उसकी माँ को उसमे शिफ्ट कर दिया। बेसमेंट किराए पर दे दिया जिसका किराया रमेश की माँ को मिलने लगा और उससे उनका गुजारा आराम से होने लगा। ये पूरा मकान लालाजी ने अपनी बेटी वंदना के नाम से बनवाया था और इसमे करीब चार लाख रुपये खर्च हुए थे। रमेश को सी ए की तैयारी करने को कहा, रमेश सी ए का एंट्रैन्स पास कर गया एवं सी ए करने लगा। लालाजी ने रमेश की माँ से सलाह करके सगाई की तारीख पक्की कर दी, खाने पीने और बाकी सभी तरह का प्रबंध लालाजी ने स्वयं करवा दिया, मगर किसी को कुछ भी ज्ञात नही होने दिया। सभी रिश्तेदारों और बिरादरी वालों को न्योता भेज दिया। रमेश देखने मे भी सुंदर और हष्ट पुष्ट था, अब जो भी देखता वही लालाजी से एक ही प्रश्न करता कि यह हीरा आपने कहाँ से खोज निकाला है। हम में से तो किसी को भी आज तक इसकी जानकारी नहीं मिली और लालाजी ने एक ही जवाब दिया कि हीरा तो खान में ही मिलता है बस खोजना पड़ता है।

लालाजी रमेश के परिवार की खोज मे एटा भी गए, क्योंकि वे चाह रहे थे कि शादी में पूरा परिवार ही शामिल हो और वहाँ जाकर देखें तो शायद रमेश के परिवार का कोई तो मिल जाए, वहाँ जाकर पता चला कि रमेश के दोनों चाचाओं और एक चाची की असमय मृत्यु हो गयी थी, एक चाची बची थी जिसकी एक लड़की शादी लायक हो रही थी, दुकान भी बिक गयी थी और हवेली भी जर-जर हालत में थी। लालाजी ने जब वहाँ पहुँच कर यह हाल देखा तो समझ गए कि यहाँ पर सब रमेश के पिता की किस्मत का ही था, वो नहीं रहे तो कारोबार भी नहीं रहा और अपने बुरे व्यसनों के कारण दोनों छोटे भाई भी असमय ही भगवान को प्यारे हो गए। लालाजी ने रमेश की चाची को अपना परिचय दिया एवं पूछा कि क्या तुम्हें रमेश के बारे में कुछ पता है। पहले तो रमेश की चाची को कुछ याद ही नहीं आया फिर जब लालाजी ने बताया कि तुम्हारी जेठानी का बेटा था रमेश जो उसको लेकर कंही चली गयी थी तब उसको सब याद आ गया और उनको याद करके वो फफक फफक कर रोने लगी, लालाजी ने भी उसको जी भर कर रोने दिया, जब वह शांत हुई तो उसने लालाजी से पूछा कि आप रमेश को कैसे जानते हो तो लालाजी ने बताया कि रमेश से मेरी बेटी की शादी तय हुई है और मैं उन लोगों को बता कर यहाँ का पता पूछ कर ही तुम लोगों को शादी के लिए ले जाने आया हूँ, जल्दी से दोनों तैयार हो जाओ और मेरे साथ दिल्ली चलो। दोनों माँ बेटी तैयार होकर और परिवार के एक और व्यक्ति को लेकर रमेश की चाची लालाजी के साथ दिल्ली चल पड़ी।

रमेश की माँ ने इस तरह अचानक जब अपनी देवरानी को देखा तो वह हतप्रभ रह गयी और उसको गले लगा कर रोने लगी, दोनों देवरानी जेठानी बड़ी देर तक गले लग कर रोती रहीं। शांत होने के बाद दोनों ने बच्चों से एक दूसरे का परिचय करवाया और सभी पुरानी यादें ताज़ा करने लगी। अपने परिवार की दुर्दशा के बारे मे जानकर रमेश की माँ को बहुत दुख हुआ और रमेश और उसकी माँ द्वारा झेली गयी कठिनाइयों के बारे मे जानकर रमेश की चाची भी बहुत दुखी हुई। अब रमेश को एक बहन भी मिल गयी जो उसकी शादी की रस्में पूरी करने वाली थी। रमेश की माँ ने उन लोगों को अपने पास ही रख लिया, जिन्होने उसे बेसहारा कर दिया था आज उन्ही को सहारा देकर रमेश की माँ ने अपना बड़प्पन दिखाया जो लाला दया राम अग्रवाल को भी अच्छा लगा। चाची ने बताया की रमेश के दोनों चाचाजी को शराब और जुए की लत लग गयी थी जिसके चलते उन पर काफी कर्ज़ हो गया था। कर्ज़ उतारने के लिए उनको दुकान बेचनी पड़ी।

रमेश और वंदना की शादी बड़ी धूमधाम से हुई और थोड़े दिन बाद रमेश ने सी ए की परीक्षा भी पास कर ली। अपने ही घर के भूतल मे अपना कार्यालय बनाया एवं प्रथम तल पर रहने लगे। रमेश की माँ वंदना को बड़े प्यार से रखती थी क्योंकि जिसने अपनी ज़िंदगी मे भयंकर दुख देखे हों वह अपनी बहू को कैसे दुखी कर सकती थी। एक दिन लालाजी मिले, बैठ कर बातें होने लगी तब उन्होने पूरी कहानी बताई एवं कहने लगे कि मेरे तो सिर्फ पाँच लाख रुपये खर्च हुए, जो मैंने दहेज मे नहीं नेक काम मे लगाए, एक बच्चे का भविष्य सुधर गया और मेरी बेटी का जीवन भी सुखी हो गया, अगर मैं दस-बारह लाख लगा कर अपनी बेटी की शादी लालची लोगों मे कर देता तो क्या भरोसा था कि वो मेरी बेटी को प्रताड़ित करके और दहेज नहीं मांगते। इस लड़के को तो मैंने तब ही परख लिया था जब वो पढ़ लिख कर भी केले का ठेला लगा रहा था और मैं समझ गया था कि लड़का मेहनती है, कुछ भी करेगा, मेहनत मजदूरी जो भी मिलेगी करेगा लेकिन मेरी बेटी को भूखा नहीं रखेगा। उसी लड़के ने अपनी बहन की शादी बड़ी धूम धाम से की जो उस चाचा की लड़की थी जिसने उसे व उसकी माँ को मारने को योजना बना डाली थी।

वेद प्रकाश त्यागी

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