Pawnesh Dixit
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“ सीख “
एक बार एक जंगल में एक बहेलिया लड़की नीरू अपनी भेड़ बकरियों को घास चरवाते -२ बहुत दूर तक निकल आयी | उसे ध्यान ही नहीं रहा रास्ते और वक़्त का सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गयी और अब शाम भी जाने लगी थी और रात की दस्तक कुछ ही देर में होने वाली थी | अब बहेलिये को घबराहट होने लगी थी इधर उधर नज़र घुमा कर देखा कहीं कोई नज़र नहीं आया | भेड़ बकरियां भी खो गयी थी | ढूँढने के बजाय सोच रही थी कि घर पर क्या बताना है जब डांट पड़ेगी अब ये उसकी गलती ज्यादा नहीं थी क्यूंकि उसका भाई भी तो चरवाते समय दूर खड़े होकर इधर उधर घूमता था | कोई चिपक कर तो भेड़ बकरियों से नहीं रहता ! जानवर हैं निकल गए कहीं उसकी क्या गलती ! नीरू सोच -विचार में पड़ गयी कोई तरकीब न सूझती थी जंगल वह अकेले ही आयी थी वैसे रोज उसका भाई भी साथ में होता था जो तेज़ और चकड़ था लेकिन आज वह सुबह जल्दी न उठने के कारण साथ में नहीं आ पाया था |
अब जो कुछ करना था उसी को अकेले करना था शाम बीतती जा रही थी अब नीरू ने बजाय रास्ता याद करने के भागना शुरु कर दिया शायद अँधेरा उसे अब डराने लगा था| रास्ते न पाने की चिंता में भागते–भागते बहुत घने जंगलों में पहुँच गयी तभी सामने से एक शेर आ गया तुरंत उसकी घिग्गी बंध गयी और हाथ जोड़ कर जंगल के राजा शेर से प्रार्थना करने लगी - मैं रास्ता भटक गयी हूँ अगर रास्ता मालूम हो तो उसे रास्ता बता दे !!
शेर गुर्राने लगा बोला जानती नहीं !! मेरा नाम शेरू है | मैं शेर हूँ जंगल का राजा!! कोई ऐसा वैसा नहीं ! जिसको अपनी जान प्यारी होती है वह मेरे पास भूल कर भी आता नहीं ! तुम जल्दी से निकल लो इसके पहले मैं तुम्हारा कीमा बनाऊं !! वह तुरंत घबरा गयी सोचा आज लगता है इसके पास पहले से शिकार है या फिर आज उसकी किस्मत अच्छी है जो शेर ने उसे छोड़ दिया | फिर भागने लगी आगे इस बार उसे लोमड़ी ने देख लिया था |
वह सोच रही थी कि कहीं उसका किसी खतरनाक जंगली जीव से सामना न हो जाए जो उसका काम तमाम कर दे इसलिए लोमड़ी का आभास उसे नहीं हो पाया था - मुसीबत में घबराया हुआ इंसान बिलकुल वैसे हो जाता है जैसे तूफ़ानी हवा में एक कुएं की मुंडेर पर फुदकते हुए नन्हे मेंढक को हवा के झोंके के डर से ज्यादा तूफ़ान आने के डर से कुएं में गिरने का डर हर पल सताता रहता है | ऐसा ही कुछ नीरू बहेलिये के साथ हो चला था पर लोमड़ी को उसकी हालत देख कर कुछ तरस आ गया था | उसके मुहं से अनायास ही रास्ता पूछने की बात निकल गयी थी | लोमड़ी चालाक बिना कुछ मिले वह एक कदम न आगे बढ़ाये तो रास्ता तो बहुत दूर की बात थी | तुरंत बोल दी मैं जंगल की सबसे चालाक जानवर हूँ मैं इतनी छोटी बात तुझे बता कर अपनी हंसी नहीं उड़वा सकती और ये नीरू भी कुछ नादान ही थी जो ये समझ न सकी
कि जंगल के कुछ जानवर भी कभी कदार स्वार्थ की नीति अपनाते हैं अतः चालाकी न कर सकी और अपना सा मुहं लेकर रह गयी |
आगे जैसे -तैसे बढ़ी -भालू मिला वो भी भूखे पेट! अब वह अपनी सुध बुध पहली ही खो चुकी थी उसे क्या पता कि भालू भूखा था , दाग दिया भालू भाई !! मैं रास्ता भटक गयी हूँ अगर रास्ता पता हो तो रास्ता बता दो | भालू बोला कुछ अच्छा खाने को हो तो मैं रास्ता क्या अपनी पीठ पर बैठा कर तुझे जंगल के बाहर छोड़ दूं !नाम है मेरा भालूराम करता नहीं कुछ काम ,चला घूमने अब हो गयी शाम ! अब बहेलिया लड़की वैसे ही मासूम नादान और कुछ था भी नहीं उसके पास , खाने को क्या देती गर्दन लटकाए आगे बढ़ गयी सोचा चलो - आगे कोई मदद मिल जाए |
गीदड़ महाशय को देखा खुद ही बुला लिया बोली - गीदड़ भाई! मेरे पास देखो देने के लिए कुछ नहीं है मैं रास्ता भटक गयी हूँ मुझे जंगल से बाहर निकलना है कोई तरकीब हो तो बताओ ! गीदड़ वैसे भी डरपोक सकपका गया बेमतलब !! कहने लगा मुझे क्या यहाँ का चप्पा चप्पा मालूम है! जो तुम्हे मैं हाथ पकड़ कर ले चलूँ |
शेरु , लोमड़ी, भालूराम और गीदड़ महाशय- सभी ने उस बेचारी लड़की को बुरी तरह से निराश कर दिया था | अब रात होने में कुछ ही पल बाकी थे और भागते-भागते वह थक गई थी | एक जगह साफ़ देख कर पेड़ के किनारे वह बैठ गयी | धमधमाते हुए जोरों से उधर से हाथी गुज़र रहे थे | हाथियों को रोकने की गुस्ताखी भी उसने कर दी | अगर हाथी जल्दी में न होते तो शायद उसका काम तमाम हो जाता | माजरा यह था कि हाथी अपने खोये हुए एक बच्चे को दूंढ़ रहे थे जिसे कोई जंगली जीव या शेर उठा ले गया था | उसके ऊपर गुस्साते हुए हाथी भी एक तरफ से निकल गए |
अब बुरी तरह से वह टूट चुकी थी | उम्मीद की सारी किरणें एक के बाद एक ख़तम होती जा रही थी | रात भी हो चुकी थी थक हारकर किसी पेड़ के ऊपर चढ़कर सो गयी डर के मारे | सो तो क्या पायी थी बस रात कट गयी थी | सुबह उठी और अब उसके सब्र और उम्मीदों का बाँध टूट गया था उसने अब रोना शुरु कर दिया था | पूरा एक दिन जंगल में बीत चुका था, भूख प्यास के मारे भी उसका बुरा हाल था |
जब पूरे आंसूं बाहर निकाल दिए तो दिल कुछ हल्का हुआ होगा तब नए सिरे से फिर से सोचना शुरु किया | इस वक़्त अपनी मदद के लिए वह खुद ही सब कुछ थी | हार मानना या जीतना सब उसी पर निर्भर था | जब मदद मिलने की बिलकुल उम्मीद न हो और भूख प्यास भी बेचैन कर रही हो तबएक बार ज़िंदगी सामने जरुर निकल कर आती है और अपने बचाव का रास्ता खोजने की कोशिश करती है |
नीरू को भी अपने दादा की एक बात याद आ रही थी जो एक बार कहानी सुनाते वक़्त उन्होंने कही थी चाहे कितना भी अँधेरा हो सवारे शेर अपनी मंजिल खुद ही ढूंढ कर बना लेता है | ये बात याद आते ही उसे कुछ उत्साह आ गया और जोर से चिल्ला पड़ी - हे! ईश्वर मदद कर और अपनी आँखें बंद करके आसमान की तरफ देखने लगी | अब जाकर पहली बार उससे कुछ बुद्धिमानी का कार्य हुआ था | एक पल के लिए डर और निराशा उससे दूर हो गए थे |
तभी अचानक पेड़ पर बैठे कबूतर ने उसे देखा और उसकी पुकार सुनी | आकर उससे पूछने लगा कि बात क्या है क्यूँ वह दुखी है!! उसकी किस्मत जग चुकी थी हिम्मत हारते –हारते जीतने की ओर बढ़ चली थी | पूरा हाल उसने कबूतर भैय्या को कह सुनाया और अबकी बार बिना उसके कहे ही वह कबूतर उसकी मदद करने को तैयार हो गया | ये भी अच्छा ही हुआ था कि वह आसमान की ओर मुहं करके चिल्लाई थी वर्ना ऊपर वाला शायद नीचे देखने से चूक जाता यानी कबूतर महाराज उसे देख न पाते | अब नीरू की ख़ुशी का ठिकाना न रहा ख़ुशी के मारे झूमने लगी तभी कबूतर ने कहा अभी बाहर निकली नहीं हो इतना उतावलापन अच्छा नहीं !! नीरू कुछ संभली | कबूतर भैय्या उपर-ऊपर उड़ते और नीरू नीचे-नीचे आगे बढ़ती जाती | धीरे- धीरे जंगल पार करते-करते वह बाहर निकल आयी और कबूतर भाई को धन्यवाद दिया |
फिर जाते-जाते उनसे पूछने लगी कि उन्होंने बिना कुछ मांगे कैसे उसकी मदद कर दी ? तो कबूतर भाई जी ने मस्त दिलवाले अंदाज़ में पंख फडफडाते हुए कहा – “कि रास्ता दिखाना तो बहुत छोटी बात है - हम लोग तो पुराने ज़माने से ही दिल से दिल को मिलाने के लिए जाने जाते हैं “ और वैसे भी मुसीबत में पड़े हुए आदमी की मदद करना कौन सी बुरी बात है ! नीरू ने कबूतर को अपने हाथों में उठा लिया और अनुरागवश माथे से लगा कर उसे चूमकर कहने लगी अगर आज तुम न आते तो मेरी मदद कौन करता तुम फ़रिश्ते हो ! ईश्वर हो !
कहकर उन्हें उड़ा दिया और वह कबूतर शांत भाव से लहराते हुए एक अनोखे अंदाज़ में ऐसे उड़ गया मानो कहता गया हो कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है वही सबका करता धर्ता है हम सब तो उसके बन्दे हैं चाहे हवा में उड़ने वाले हों ,पानी में रहने वाले हों या जमीन पर चलने और रेंगने वाले | उसे पता चल चुका था कि कबूतर ही सभी जानवरों में निस्वार्थ है और इस तरह नीरू ने घर पहुँचने-पहुँचते दो सीख भी ले ली थीं - पहली ये कि मुसीबत में कोई साथ देने वाला हो या न हो मशाल खुद ही जलानी पड़ती है बजाय डरने और घबड़ाने के खुद पर विश्वास करना पड़ता है ,रास्ता खुद ब खुद मिल ही जाता है | खुदा अपने बन्दों को कभी निराश नहीं करता दूसरी - बड़े बुजुर्गों की नसीहतें भी काम की होती हैं उन्हें भी हल्के में लेना बेफकूफी है |
||“समाप्त “||