Anokhi Dosti in Hindi Children Stories by Sonia Gupta books and stories PDF | अनोखी दोस्ती

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अनोखी दोस्ती

Sonia Gupta

sonia.4840@gmail.com

कहानी: अनोखी दोस्ती

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“पिंकी” अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थी ! बड़े लाड प्यार से उसका पालन पोषण किया उसके माता पिता ने ! कोई अपना भाई बहन न होने की वजह से “पिंकी” थोड़ी उदास सी रहती थी ! परन्तु उसके माँ बाप, उसको बाहर के किसी बच्चे से मेल मिलाप न बढाने देते ! बस वह सुबह स्कूल जाती और वहाँ से सीधे घर आ जाती ! घर में भीतर ही टेलीविजन देखती, कार्टून, कहानी इत्यादि !

एक रोज पिंकी जब अपने स्कूल गयी, तो किसी वजह से स्कूल में आधी छुट्टी हो गयी ! और सभी बच्चे घर लौटने लगे ! पिंकी की गाड़ी के ड्राईवर को आने में अभी थोडा समय था ! पिंकी स्कूल के पास बने बगीचे में बैठ गयी अपना बस्ता लेकर ! अचानक से एक आवाज आई, मानों कोई रो रहा हो ! नन्हीं सी पिंकी उठकर ईधर उधर देखने लगी, पर कोई नजर नहीं आया उसे ! थोड़े मिनट बाद फिर से आवाज पड़ी कान में ! फिर उठी वह, देखा तो पाया कि पास ही में दीवार के किनारे एक वृक्ष के नीचे छोटा सा एक हाथी का बच्चा पड़ा रो रहा था ! पहले तो पिंकी को थोडा भय लगा, पर फिर उसने हिम्मत कर उसके सर पर हाथ फेरा ! और अपनी बोतल में से थोड़ा पानी उसको पिलाया ! जैसे ही उस हाथी के बच्चे ने पानी पिया, वह मुस्कराने लगा और अपनी सूंड पिंकी के सर पर फैराने लगा ! मासूम सी खामोश रहने वाली पिंकी भी आज मंद सी मुस्करा उठी ! मानो उसको एक दोस्त मिल गया हो आज ! उसने उस हाथी के बच्चे का नाम “मिट्ठू” रख दिया ! और उसको पुकारा “मिट्ठू मेरा दोस्त” ! काफी देर “पिंकी” और उसका दोस्त “मिट्ठू” आपस में खेल खिलाई करते रहे ! फिर अचानक से हॉर्न की आवाज आई...और पिंकी, मिट्ठू को बाय कहकर चल पड़ी !

घर जाकर उसने किसी से कुछ नहीं बताया, डर के मारे ! और उस दिन पिंकी ने खूब अच्छे से खाना भी खाया, टीवी भी देखा, और सोयी भी ! उसके माँ बाप भी थोड़े हैरान थे ! अगले दिन सुबह होते ही पिंकी स्कूल जाने को बड़ी जल्दी करने लगी ! ड्राईवर आया, और गाड़ी में बिठाकर पिंकी को स्कूल छोड़ आया ! पिंकी को अपने दोस्त “मिट्ठू” की बहुत याद आ रही थी ! पर कैसे जाती उससे मिलने ? जैसे ही छुट्टी की घंटी बजी, पिंकी फटाफट बस्ता बंद कर चल पड़ी, पर, उसका ड्राईवर पहले ही इंतज़ार कर रहा था बाहर! सोचने लगी अब कैसे मिट्ठू को मिलकर आऊं ?पिंकी ने अपने ड्राईवर से कहा “ड्राईवर भैया मेरी पेंसिल कल उस पार्क में रह गयी, मैं ले आऊं “? पहले तो ड्राईवर हिचकिचाने लगा, फिर जैसे तैसे उसको भेज दिया और बोला “ ठीक है गुड़िया, पर जल्दी आना” ! पिंकी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई, और चल पड़ी वह !

उसी दीवार के पास, देखा पेड़ के नीचे, एक सूंड सी नजर आई; वाह मेरा दोस्त बैठा है ! पास गयी उसके, और दोनों ने बातें की ! परन्तु पिंकी को जाना था वापिस ! वह मिट्ठू को बोलकर चली गयी कि कल फिर आएगी !ऐसे ही करते कईं दिन बीत गये, और उन दोनों की दोस्ती गहरी होती गयी ! अजब सा बंधन; एक पशु और एक इंसान का, परन्तु अद्भुत थी दोनों कि मित्रता !

पिंकी जब भी स्कूल से लौटती, किसी न किसी बहाने से उसी पार्क में जाती, ड्राईवर को कुछ शक सा होने लगा ! और उसने घर जाकर उसके माँ बाप को बता दिया ! पिंकी की माँ ने पुछा, पर पिंकी ने कुछ न बताया और अपने कमरे में चली गयी ! अगले दिन अचानक छुट्टी के समय, पिंकी के पिता ड्राईवर के साथ लेने गये उसको, पर देखा तो पिंकी वहाँ नहीं पहुंची अभी, तो ड्राईवर ने उनको उसी पार्क का रास्ता दिखाया और ईशारा किया ! दोनों जब वहाँ पहुंचे तो पिंकी को वहाँ देख उसके पिता बहुत गुस्से में आए ! और कान पकड़कर पिंकी को वहाँ से लेकर गाड़ी में बिठाया ! और घर जाकर बहुत डांट लगाई ! पिंकी बहुत रोई उस दिन, उसके पिता ने बोला भला कोई जानवरों से भी ऐसे दोस्ती करता है ? पिंकी कभी कुछ नहीं बोलती थी, पर उस दिन बोली “ क्यूँ पापा, जानवर क्या जीव नहीं होते? जब आप मुझे मेरे जैसे बच्चों से ही दोस्ती नहीं करने देते, तो मैं कहाँ जाऊं ?” पिंकी के पिताजी को बहुत गुस्सा आया, और उन्होंने, उसपर हाथ भी उठा दिया उस दिन, और उसको बोला कि खबरदार अगर आज के बाद उस हाथी के बच्चे से मिली तो ! पिंकी बिचारी उदास, उस दिन कुछ नहीं खाया उसने, न कुछ देखा टीवी में, न ही सोयी अच्छी तरह !

इतने दिन हो गये पिंकी और उसके दोस्त मिट्ठू को मिले आपस में ! पिंकी को एक दोस्त का साथ मिला था, और मिट्ठू को भी एक ऐसी दोस्त मिली जो कि अपना खाना तक उसको खिला देती थी खुद भूखी रहकर ! दोनों दोस्त बहुत उदास से रहने लगे अब !

एक रोज, जब पिंकी स्कूल से वापिस आ रही थी, तो अचानक गाड़ी की ब्रेक फेल हो गयी, और गाड़ी सीधा उसी पार्क की ओर जाते रास्ते में एक पेड़ से टकराई ! और एक खड्डे में उसका टायर फंस गया ! ड्राईवर चिलाने लगा पर किसी ने कोई आवाज नहीं सुनी ! अचानक ही मिट्ठू वहीं पर टहल रहा था ! उसने जैसे ही देखा कि यह तो उसकी दोस्त पिंकी की गाड़ी है, वह परेशां हो उठा ! उसने कोशिश की टायर को बाहर निकालने की, पर पूरी तरह न निकल सका ! फिर, मिट्ठू भागा भागा जंगल की तरफ गया और अपने कुछ हाथी साथियों को लेकर आया ! उन सभी ने मिलकर गाड़ी का टायर खड्डे से निकाला और, ड्राईवर तथा पिंकी दोनों को गाड़ी से बाहर निकाला ! परमात्मा का शुक्र है कि ज्यादा चोट नहीं आई किसी को ! ड्राईवर ने तुरंत पिंकी के घर फोन किया और, सारी बात बताई !

पिंकी के माता पिता, दोनों भागे चले आए और अपनी बेटी को गले से लगाया ! उसके माता पिता के चेहरे पर पश्चाताप के निशान झलक रहे थे ! आज उनको यह ज्ञात हुआ, कि जानवर तो शायद इंसान से कहीं बेहतर होते हैं जो जान लेना नहीं देना जानते हैं ! उन्होंने, अपनी बेटी से माफ़ी मांगी और उससे कहा कि आज से मिट्ठू तेरा सबसे अच्छा दोस्त है, जितना चाहे तू उसे मिल और खेल ! साथ ही उन्होंने मिट्ठू के सर और सूंड पर भी हाथ फेरा और कान पकडकर माफ़ी मांगी, तथा शुक्रिया अदा किया उसका और उसके मित्रों का उनकी बेटी की जान बचाने हेतु !

अब पिंकी और मिट्ठू दोनों ख़ुशी ख़ुशी गले मिले ! पर पिंकी अचानक से उदास हो गयी ! उसके पिताजी ने कारण पूछा, तो कहने लगी, “ पापा एक बात कहूँ, आप डांटेंगे तो नहीं “ ! पापा बोले, “ हाँ बेटे बोल, नहीं डांट लगाता “ ! पिंकी बोली “ पापा, हम मिट्ठू को भी अपने साथ घर ले जाएं, ?” पहले तो वे चुप से थे, फिर हल्का सा मुस्कराकर बोले “ हाँ , जरुर क्यूँ नहीं “ !

पिंकी की ख़ुशी की सीमा न रही, और दोनों हंसी ख़ुशी उसके घर गये ! मिट्ठू भी मस्ती में झूमे जा रहा था ! अब पिंकी को शायद किसी दोस्त की कमी नहीं महसूस होती थी !

शिक्षा: इस कहानी से यह सीखने को मिलता है, कि किसी से मित्रता करने के लिए भावना की महत्त्ता ज्यादा होती है, बजाय इसके की सामने वाला शक्स है क्या!

दूसरी यह कि, इंसान को कभी भी किसी के लिए अपशब्द नहीं बोलने चाहियें !प्रभु की बनाई हर रचना इस जग में अद्भुत है ! हरेक जीव का अपना स्थान है, कौन कब किसके काम आये, कुछ नहीं मालुम !

तीसरी, एक अहम शिक्षा यह है, कि माँ बाप को अपने बच्चों की भावनाओं कि कद्र करनी चाहिए, अपनी हमउम्र के साथी दोस्त बनाने पर पाबंदियां नहीं लगानी चाहियें, तभी बच्चे दबाव में आकर गलत दिशा में चल पड़ते हैं !

डॉ सोनिया

सर्वाधिकार सुरक्षित !!

चित्र: स्वरचित

नाम: डॉ सोनिया गुप्ता

शिक्षा: दंत चिकित्सक (बी.डी.एस; ऍम.डी. एस)

प्रकाशित पुस्तकें: “जिंदगी गुलज़ार है”, “उम्मीद का दीया” (काव्य संग्रह)

सांझा काव्य संग्रह : “भारत की प्रतिभाशाली कवियत्रियाँ”, “ प्रेम काव्य सागर”, साहित्य सागर”, “अमलताश के शतदल”

अन्य रचनाएँ: देश, विदेश की अनेक पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख, कहानी, कविताएँ

सम्मान: नारी गौरव सम्मान , प्रेम सागर सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान (घोषित)

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