Kavita Verma
kvtverma27@gmail.com
जंगल की सैर
उस छोटे से गांव के आखरी छोर पर बने उस बड़े से मकान में बड़ी सारी तैयारियाँ चल रही थीं। घर की खास साफ सफाई जो रोज़ होती है आज कुछ खास हो रही थी। बाहर बगीचे में माली काका पेड़ों की कटाई छंटाई के साथ छोटे छोटे फूलों वाले पौधे रोपने की तैयारी में थे तो अंदर पलंग पर सुंदर फूलों वाली चादर बिछाई जा रही थी तो रसोई से आ रही पकवानों की महक पूरे वातावरण को महका रही थी। हो भी क्यों ना पूरे साल भर बाद मिनी बिटिया जो आ रही है। मिनी यानी गांव के चौधरी विश्वम्भर नाथ की पोती जो शहर में अपने माता पिता के साथ रहती है और हर साल छुट्टियों में एक महीने के लिए गांव आती है अपने दादा दादी से मिलने। नौ साल की मिनी दादा दादी की लाड़ली है जब तक वह गांव में रहती है घर के सब काम उसके हिसाब से होते है।
घर में होती तैयारियों को देख कर ब्रूनो के कान भी खड़े हो गए। वह घर के हर कमरे में घूम घूम कर सबको काम करते देख रहा था कभी रसोई की ओर मुंह कर पकवानों की खुशबू पहचान कर खुशी से उछलने लगता ये वही खुशबू है जो हर साल मिनी के आने पर रसोई से आती है। हर दस मिनिट में दौड़ कर बाहर जाता और गेट पर खड़े होकर दूर तक सड़क को देखता।
ब्रूनो इस घर में तब से है जब मिनी पैदा हुई थी। तब वह मिनी के बिस्तर के आसपास चक्कर लगाता रहता था। परिवार के लोगों के अलावा अगर कोई मिनी को गोद में उठाता तो खूब भौकता और अगले दोनों पंजे उठा कर उस पर चढ़ जाता। लोग घबरा कर मिनी को वापस बिस्तर पर लिटा देते तो शांत होकर उसे देखने लगता पर खूब सतर्क होकर कि कहीं कोई फिर से उसे ना छू ले।
दोपहर तक भागदौड़ करके वह बहुत थक गया था खाना खाकर वह बाहर दालान में ही सोया ताकि मिनी के आते ही वह सबसे पहले उससे मिले। दोपहर बाद जब ड्रायवर गाड़ी निकालने लगा आहट सुन वह उछल कर बाहर भागा। वह समझ गया दादाजी दादाजी मिनी को लेने जा रहे हैं वह दादाजी के आगे पीछे घूमने लगा। दादाजी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और मुस्कुराये "हाँ हाँ मैं मिनी को लेने जा रहा हूँ पर तुम यहीं रुको।" ब्रूनो मायूस हो कर दालान में बैठ गया और गाड़ी के पीछे उड़ते धूल के गुबार को देखता रहा।
करीब एक घंटे बाद ब्रूनो को जैसे ही गाड़ी की आहट मिली वह दौड़ कर सड़क के किनारे तक पहुंच गया और गाड़ी के साथ साथ दौड़ने लगा। मिनी उसकी खास दोस्त थी जिसके आने का वह भी पूरे साल इंतज़ार करता था। मिनी भी उसे देख खुशी से ब्रूनो ब्रूनो चिल्लाने लगी और गाड़ी से उतरते ही दौड़ कर ब्रूनो के गले लग गई। दादा दादी और मिनी के मम्मी पापा उनका प्यार और मिलने का अंदाज़ देख कर खूब हंसे। अंततः दादाजी ने आवाज़ दी " बस ब्रूनो मिनी को अंदर तो आने दो तब वह मिनी को छोड़ कर दूर हटा। मिनी दौड़ कर दादी से लिपट गई। दादी मिनी को निहारते उसकी बलैया लेते बोली "कितनी बड़ी हो गई है मिनी बिटिया बिल्कुल राजकुमारी लग रही है। मिनी के मम्मी पापा ने दादी के पैर छुए और सब अंदर चले गए।
सब बैठक में गपशप कर रहे थे मिनी जब भी कोई किस्सा सुनाती ब्रूनो खुशी से अपनी पूंछ हिलाने लगता मानो सब समझ रहा हो और उसे देख सब हंस पड़ते। थोड़ी देर बाद मिनी उठ कर बाहर आ गई ब्रूनो भी उसके साथ था दोनों देर तक टहलते रहे।
मिनी के मम्मी पापा इस बार ज्यादा दिन नहीं रुक पा रहे थे लेकिन मिनी की छुट्टियाँ वे उसे छोड़ कर वापस शहर चले गए। अब तो ब्रूनो और मिनी को एक दूसरे से बाते करने खेलने का समय ही समय था। दोनों कभी लॉन में खेलते तो कभी दूर तक एक चक्कर लगा आते। मिनी टी वी देखती या किताबें पढ़ती तब भी ब्रूनो उसी कमरे में बैठा रहता। कभी कभी टी वी पर किसी और डॉगी को देख कर चौकन्ना हो टी वी और मिनी के बीच खड़ा हो जाता और जोर जोर से भौकता। उसे डर लगता कहीं मिनी इस दूसरे डॉगी की दोस्त ना बन जाए। तब मिनी हँसती उसे समझती फिर भी जब उसका भौकना बंद नहीं होता तो चैनल बदल देती।
उस दिन मिनी एक जैसी दिनचर्या से उकता गई थी। गांव में कहीं घूमने जाने की जगह भी नहीं थी दादी घर के काम करते थक जाती और दोपहर में आराम करतीं थीं। सारी दोपहर बोर होने के बाद शाम को मिनी ब्रूनो के संग घूमने निकल गई। गांव में सभी एक दूसरे को जानते थे फिर चौधरी साब की पोती तो सबकी लाड़ली थी और ब्रूनो उसका बॉडी गार्ड।
घूमते घूमते वे दोनों काफी दूर आ गए वह एक तिराहा था जहां से एक रास्ता स्टेशन की ओर जाता था पर दूसरा अपेक्षा कृत सुनसान था। मिनी कभी उस रास्ते पर नहीं गई थी वह दो मिनिट ठिठक कर सोचती रही क्या करे ? नए रास्ते पर जाकर देखे आगे क्या है ? आज वह कुछ नया करना चाहती थी हर दिन से अलग। ब्रूनो तो है ही मेरे साथ फिर क्या डरना और वह उस रास्ते पर चल दी।
वह रास्ता जंगल की ओर जाता था। थोड़े आगे जाकर वह सड़क संकरी होकर पगडण्डी में बदल गई थी जिसके दोनों ओर सागवान बलूत के घने पेड़ थे। जमीन पर सूखे पत्तों का ढेर था। दूर से अलग अलग पक्षियों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। मिनी ने अभी तक जंगल सिर्फ फिल्मों में टी वी पर या ट्रेन से आते जाते ही देखे थे। आज सच में खुद को जंगल में पाकर वह अचंभित थी रोमांचित थी और उत्सुक थी उसे करीब से देखने के लिए। ब्रूनो अब और सतर्क था वह कभी मिनी के दायी ओर होता कभी बाईं ओर तो कभी आगे। घना जंगल शुरू हो गया था झाड़ियों में सरसराहट हुई तो मिनी ठिठक कर देखने लगी। एक खरगोश झाड़ियों के पीछे था वह मिनी को दिखाई नहीं दिया ब्रूनो रुक कर उस तरफ देखने लगा। कुछ ना पाकर मिनी आगे बढ़ गई वह अच्छे से जंगल देखना चाहती थी। अब ब्रूनो समझने लगा था आगे जाना ठीक नहीं है वह मिनी की स्कर्ट खींचने लगा। भौंक कर वह किसी मुसीबत को निमंत्रण नहीं देना चाहता था पर मिनी उसकी बात समझ ही नहीं रही थी। बस थोड़ा आगे और ब्रूनो फिर वापस चलेंगे।
सांझ घिरती जा रही थी पेड़ों के नीचे अंधेरा बिखरने लगा था पक्षियों की आवाज़ें धीमी पड़ने लगीं जंगल में नीरवता पसरने लगी जो अंधेरे से मिलकर वातावरण को डरावना बनाने लगीं तब मिनी को भान हुआ कि वह बहुत दूर आ गई है। एक बार तो वह घबरा गई वापस जाने का रास्ता अंधेरे में छुप सा गया था। मिनी का गला सूखने लगा उसे लगा प्यास के कारण अब उससे आगे बढ़ते नहीं बनेगा। उसने आँखें फाड़ कर आसपास देखना चाहा लेकिन वहाँ पानी का नामोनिशान नहीं था। वह एक पत्थर पर बैठ गई तो ब्रूनो फिर उसकी स्कर्ट खींचने लगा वह चाहता था वहाँ से जल्दी वापस लौटा जाए। अंततः मिनी को उठना ही पड़ा। थोड़ी दूर वह चली लेकिन प्यास के कारण और न चल पाई और वहीं बैठ गई।
दूर से पत्तों के चरमराने की आवाज़ें आने लगी तो वह डर कर एक बड़े पत्थर के पीछे छुप गई। ब्रूनो उसके सामने डट कर खड़ा हो गया। मिनी को लगा कोई बड़ा जंगली जानवर है पर उसमे उससे बचने के लिए भागने की शक्ति शेष नहीं थी। अब ब्रूनो ही उसका रखवाला था उसे उस पर भरोसा था फिर भी वह डरी हुई थी। आवाज़ें पास आती गई अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तभी ब्रूनो जोर जोर से भौकने लगा उसे उस आहट के साथ कोई पहचानी गंध मिल गई थी। दूर एक रोशनी दिखाई दी मिनी मिनी बेटा दादाजी की आवाज़ आई। मिनी की आंखों में आँसू आ गए उसने आवाज़ लगानी चाही पर आवाज़ नहीं निकली। ब्रूनो की आवाज़ सुन कर आठ दस लोग वहाँ आ पहुंचे। मिनी दादाजी से लिपट गई वह जोर जोर से रो रही थी पर कुछ बोल नहीं पा रही थी।
घर आकर मिनी ने पानी पिया मुंह हाथ धोया तब वह थोड़ी सामान्य हुई उसने अपने जंगल घूमने की पूरी कहानी दादाजी को सुनाई ब्रूनो ने कैसे उसका ख्याल रखा ये भी बताया।
दादाजी ने उससे पूछा "फिर तुम उसी रास्ते से वापस क्यों नहीं आई रुक क्यों गई ?"
"दादाजी मुझे जोर से प्यास लगी थी इतनी जोर से कि मुझसे चलते ही नहीं बन रहा था फिर अंधेरा हो गया तो में डर गई और आप लोगों के आने की आवाज़ सुन कर तो मुझे लगा कोई बड़ा जानवर आ रहा है वो मुझे खा जाएगा। " मिनी ने शर्माते हुए कहा दादा दादी जोर से हंस दिए तो मिनी झेंप गई।
"दादाजी जंगल में पानी नहीं है जंगल के जानवर अपनी प्यास कैसे बुझाते होंगे ? उनके लिए पानी का इंतज़ाम तो होना चाहिए ना ?'
मिनी की बात सुनकर दादाजी खुश भी हुए और हैरान भी। इतनी सी बच्ची और इतनी बड़ी सोच। कुछ सोच कर बोले जरूर होनी चाहिए "मैं कल ही वन अधिकारी से बात कर कुछ इंतज़ाम करता हूँ लेकिन फिर तुम कभी अकेले जंगल में मत जाना। "
अकेले कहाँ दादाजी ब्रूनो है ना मेरा बॉडी गार्ड और अब तो जंगल में पानी भी होगा खिलखिलाते हुए मिनी ब्रूनो से लिपट गई और वह शान से अपनी पूंछ हिलाने लगा।