Muniya in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | मुनिया

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मुनिया

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सुखिया भैया वोट इस बार भी हमारी पार्टी को ही देना, घर के बाहर से ही भानु प्रताप सिंह ने आवाज लगा कर कहा तो सुखिया तुरंत ही चारपाई से उठ कर दरवाजे पर आ गया और हाथ जोड़ कर बोला ठाकुर साहब प्रणाम, आप यहाँ दरवाजे पर काहे खड़े है अंदर आकर विराजिए ना, आप की पगधुली से हमार घर भी पवित्र हो जाय। ठाकुर भानु प्रताप की चार राशन की दुकाने थी और दो मिट्टी तेल के डिपो, जिससे उसको अच्छी ख़ासी कमाई हो जाती थी। अपने इलाके का राजा था भानु प्रताप, सभी लोग जानते थे, पुलिस और प्रशासन मे भी उसकी अच्छी साँठ गांठ थी, पैसे ले दे कर क्षेत्र वासियों के सभी तरह के काम करवा देता था, बोलता बड़ी विनम्रता से था परंतु किसी को उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं होती थी, अगर किसी ने भानु प्रताप के खिलाफ मुंह खोला तो उसको क्षेत्र से बाहर ही जाना पड़ता था, नहीं तो उसका वहाँ रहना दूभर हो जाता था। राजनेताओं का उसके सिर पर सदैव हाथ रहता था, लेकिन पार्टी का काम भी वह फ्री मे नहीं करता था, वोट डलवाने के लिए भी प्रति वोट पार्टी से अच्छा खासा धन वसूलता था और उसमे से ही थोड़ा बहुत लोगों को देकर पार्टी के लिए वोट डलवाता था, प्रत्येक चुनाव मे भानु को अच्छी ख़ासी रकम बच जाती थी जिसे वह जमीन, मकान या दुकान खरीदने मे लगाता रहता था। इस तरह भानु ने काफी संपत्ति बना ली थी एवं उसको किराए पर भी चढ़ा रखा था, किराए की आमदनी भी काफी थी इसलिए धीरे धीरे भानु प्रताप मे बुरी आदतें भी आ गयी थी, शराब पीना तो उसका रोज का शौक बन गया था।

आज पार्टी कार्यालय मे बैठक थी, सभी कार्यकर्ताओं को बुलाकर उनको प्रशिक्षण देना था, प्रशिक्षण भी क्या बस तरीके बताने थे कि कैसे अपनी पार्टी को वोट दिलवाने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई जाए। सभी राशन वालों, बिल्डरों, प्रॉपर्टी डीलरों की बैठक एक साथ हुई एवं नेताजी ने उनसे दो टूक बात कही कि अगर मैं हार गया तो तुम्हारे सारे अवैध धंधे चौपट करा दूंगा और हो सकता है तुममे से कुछ को जेल भी जाना पड़े। एक योजना के तहत सभी युवाओं को शिक्षा व रोजगार से वंचित किया गया था, समय समय पर उनसे पार्टी के छोटे मोटे काम करवा कर कुछ धन वेतन के रूप मे दे दिया जाता था अतः वे पार्टी से जुड़े हुए थे। सरकारी जमीन के बड़े भाग पर नेताजी ने झुग्गियाँ डलवा रखी थी, सभी झुग्गी वासियों का वोट भी बनवा रखा था और उनसे किराया भी वसूलता था जबकि उसमे ज़्यादातर बंगलादेशी और नेपाली रहते थे। नेताजी ने सभी दबंगों को लेकर झुग्गी क्षेत्र का दौरा किया, सभी हथियारों से लैस खौफनाक चहरे वाले जब झुग्गियों के बीच से गुजर रहे थे तो बच्चे औरतें डर कर दुबक गए। सभी चुप थे सिर्फ नेताजी बोल रहे थे, तुम लोगों की हर तरह से सेवा की जाएगी लेकिन वोट हमे ही मिलना चाहिए, जरा सोच कर देखो कि रात में जब तुम और तुम्हारे बच्चे गहरी नींद में सो रहे हो और झुग्गियों मे किसी कारणवश चारों तरफ से भयंकर आग लग जाए तो तुम और तुम्हारा परिवार यहीं राख में तब्दील हो जाए, अगर ऐसी स्थिति से तुम्हें, तुम्हारे परिवार को कोई बचा सकता है तो ये मेरे आदमी ही बचा सकते है जो दिन रात हर तरह से तुम्हारी सेवा करते हैं। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे सामने ऐसी परिस्थिति आए और यह तभी संभव है जब मैं और मेरी पार्टी सत्ता मे रहेगी, जिसके लिए तुम्हारा एक एक वोट मेरी पार्टी को मिलना चाहिए। झुग्गी वाले नेताजी की बात को भली भांति समझ गए और अब उनके पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था।

सुखिया मजदूरी करके अपना घर चला रहा था, एक झुग्गिनुमा घर किराए पर लेकर अपनी पत्नी व छोटी सी बेटी मुनिया के साथ रहता था, राशन और मिट्टी के तेल के लिए ठाकुर साहब की दुकान पर जाना पड़ता था अतः उनका सम्मान तो करना ही पड़ता था। सुखिया बोला ठाकुर साहब वोट अगर दिया तो आपकी पार्टी को ही देंगे, और अगर एक बार मजदूरी करने चले गए तो कहाँ फुर्सत मिलेगी वोट डालने की, हम तो रोज कमाने खाने वाले लोग है, एक दिन भी मजदूरी नहीं करेंगे तो खाएँगे कहाँ से। भानु प्रताप ने कहा कि तुम्हारा वोट हम फ्री मे तो नहीं लेंगे, भाई पैसे देंगे तुम्हारी मजदूरी के बराबर, समझ लेना कि एक दिन वोट डालने की मजदूरी कर ली। ये लो पाँच पाँच सौ के दो नोट, एक तुम्हारी वोट के लिए और एक तुम्हारी घरवाली की वोट का। मुनिया भी वहीं बैठ कर यह सब सुन रही थी, कहने लगी कि अंकल मेरा वोट नहीं लोगे मैं तो सिर्फ चॉक्लेट मे ही वोट दे दूँगी, मुनिया की इस बात पर सुखिया और भानु प्रताप ज़ोर से हंस पड़े और भानु कहने लगा कि तेरा वोट भी जरूर लेंगे, आज तो हमसे भूल हो गयी है, हम चॉक्लेट लाना भूल गए, हमे माफ करना बिटिया हम किसी और दिन आपको चॉक्लेट लाकर देंगे। भानु के पास इतना समय भी नहीं बचा था, सभी के घर जाकर उनको वोट के लिए पैसे भी देने थे जिससे पूरा भरोसा हो जाए कि वोट अपनी पार्टी को ही मिलेंगे।

चुनाव वाले दिन सभी को बुला कर वोट डलवा दिये एवं पार्टी को रिपोर्ट भी भेज दी, सभी को पूरी उम्मीद थी कि उनकी पार्टी का ही उम्मीदवार जीतेगा। तीन दिन बाद परिणाम घोषित हुआ तो भानु की पार्टी का उम्मीदवार जीत गया। पार्टी कार्यालय मे जश्न का माहौल था, दिल खोल कर शराब पिलाई गयी। भानु ने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली थी, उसके पैर लड़खड़ा रहे थे और कुछ भी भला बुरा समझने की सामर्थ्य उसमे नहीं बची थी तभी उसको सामने से मुनिया आती हुई दिखाई दी मुनिया को देख कर भानु के अंदर का राक्षस जाग गया, उसने एक चॉक्लेट खरीदी और मुनिया की तरफ बढ्ने लगा। भानु ने मुनिया के पास जाकर इधर-उधर देखा और तस्सली कर ली कि मुनिया अकेली ही है और कोई उसके साथ नहीं है, चॉक्लेट मुनिया के हाथ मे पकड़ाते हुए उसने कहा कि मुनिया तूने कहा था न कि तू तो चॉक्लेट के बदले मे ही अपना वोट दे देगी तो यह ले चॉक्लेट और चल आज तू अपना वोट दे दे। मुनिया भानु की यह बात सुन कर बहुत खुश हुई और पूछने लगी कि अंकल क्या सच मे ही आप मेरा वोट लोगे, मैं यह चॉक्लेट खा लूँ। भानु प्रताप के अंदर का राक्षस पूरी तरह जाग गया और उसने भानु के अंदर बची खुची थोड़ी सी इंसानियत को भी मार डाला था। वैसे तो उसके अंदर का इंसान तभी मर गया था जब उसने सारे काले धंधे, अवैध काम और चोर बाजारी शुरू कर दी थी लेकिन फिर भी लोग उस पर भरोसा करते थे क्योंकि वह ही सबको गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी तेल देता था जिससे उनके घरों में खाना बनता था और उनके बच्चे भूख से नहीं बिलखते थे, प्रत्येक चुनाव मे अपनी पार्टी की तरफ से लोगों मे अच्छा खासा पैसा भी बांटता था, यह बात अलग है कि वह अपनी जेबें भी खूब भरता था चाहे वह राशन हो या चुनाव पचास प्रतिशत तो अपना हिस्सा निकाल ही लेता था। उसने मुनिया को गोद मे उठाया और एक सुनसान खाली पड़े मकान मे ले गया। भानु ने मुनिया को वहाँ बैठाकर कहा कि तू अब अपनी चॉक्लेट खा ले मैं अभी आता हूँ एवं स्वयं चारों तरफ से दरवाजे खिड़कियाँ बंद करने लगा। मुनिया भानु के अंदर के शैतान से बेखबर चॉक्लेट खा रही थी तभी भानु सभी दरवाजे खिड़की बंद करके मुनिया के पास आ गया एवं मुनिया को अपनी गोद मे बिठाकर उसको बेतहाशा चूमने लगा। अब मुनिया को भानु से डर लगने लगा था एवं मुनिया रोने लगी और कहने लगी अंकल मुझे घर जाना है, मैं किसी और दिन वोट दे दूँगी। मुनिया उस शैतान के पंजो से अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन छुड़ा नहीं पायी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, भानु ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर मुनिया के मुंह मे ठूंस दिया जिससे उसकी रोने की आवाज निकलनी बंद हो गयी एवं मुनिया का ही नाड़ा निकाल कर उसके दोनों हाथ बांध दिये। भानु उस समय पूर्ण पिशाच बन चुका था और वह यह भी नहीं देख पा रहा था कि मुनिया कितनी छोटी बच्ची है जिसके साथ तू इतना जघन्य अपराध करने जा रहा है। इतने मे मुनिया बेहोश हो गयी लेकिन भानु ने उसको तब तक नहीं छोड़ा जब तक उसकी अपनी हवस पूरी नहीं हो गयी। इतना जघन्य अपराध करने के बाद भानु को थोड़ा होश आया और तुरंत ही वहाँ से भागने की सोचने लगा, मुनिया को बेहोश देख कर उसने समझ लिया कि वह तो मर गयी है। मुनिया के माँ बाप कुछ और लोगों को साथ लेकर मुनिया को ढूंढते हुए उसी खाली पड़े मकान की तरफ आ गए जहां से भानु प्रताप निकल कर भागने ही वाला था लेकिन वह लोगों को दरवाजे से निकलते ही मिल गया। लोगों ने भानु से मुनिया के बारे मे पूछा कि क्या आपने मुनिया को कहीं देखा है तो उसने साफ मना कर दिया लेकिन उन लोगों मे वह दुकानदार भी था जिससे भानु ने चॉक्लेट लेकर मुनिया को दी थी, तब दुकानदार बोला कि मुनिया को चॉक्लेट देकर अपनी गोद मे उठाकर तुम कहाँ ले गए थे तो भानु कहने लगा कि कंही नहीं मैंने तो उसे चॉक्लेट देकर और गोद मे उठा कर उसके घर के बाहर ही छोड़ दिया था तब सुखिया बोला ठाकुर साहब जब आपने मुनिया को वहाँ छोड़ दिया था तो आप यहाँ क्या कर रहे हैं इस खाली पड़े सुनसान उजाड़ घर में, और सुखिया टॉर्च लेकर जैसे ही अंदर गया उसे खून से लथपथ मुनिया अर्धनग्न हालत मे मिल गयी उसके हाथ बंधे थे एवं मुंह मे रुमाल ठूँसा था। सुखिया ने देखा कि मुनिया की साँसे चल रही हैं, तो तुरंत उसने उसके मुंह से रुमाल निकाला, हाथ खोले और अपनी चादर मे लपेट कर हस्पताल की तरफ भागा। एक लड़के ने अपनी मोटर साइकल निकाल कर उन्हे हस्पताल पहुंचाया। बाकी भीड़ ने भानु को मार मार कर अधमरा कर दिया, तब तक किसी ने पुलिस को भी फोन कर दिया था और पुलिस आ गयी थी, अगर पुलिस नहीं आती तो शायद लोग भानु को जान से भी मार देते और वंही हो जाता एक दरिंदे की दरिंदगी का इंसाफ।

भानु पर सभी आरोप साबित हो चुके थे और उसको इस जघन्य अपराध के लिए उम्र कैद या फांसी की सजा सुनाई जाने वाली थी, उससे पहले जज ने भानु से पूछा कि क्या तुम कुछ कहना चाहोगे तब भानु बोला की जज साहब हाँ मैंने बलात्कार किया है लेकिन क्या प्रतिदिन हमारी राजनीति का बलात्कार नहीं कर रहे ये नेता, क्या हमारे प्रजातन्त्र का बलात्कार नहीं हो रहा है क्या इस देश के मतदाताओं का बलात्कार नहीं हो रहा है जब कुछ पैसों का लालच देकर हम उनका बहुमूल्य वोट खरीद लेते हैं तो उनका बलात्कार नहीं होता। मैंने जघन्य अपराध किया है, जो भी सजा मुझे दोगे मैं स्वीकार करूंगा लेकिन जब तक इस तंत्र को नहीं सुधारोगे तो कोई और भानु यही अपराध करेगा और फिर कोई मुनिया उसकी हवस का शिकार बनेगी। आप जिसे प्रजातन्त्र कहते हैं यह प्रजातन्त्र नहीं है यह तो लठ्तंत्र है राजनीति दबंग नेताओं की रखैल बन कर रह गयी है। भानु के बोलने के बाद अदालत मे सन्नाटा छा गया और जज साहब भी अपने देश के प्रजातन्त्र की इस दुर्दशा पर सोचने को मजबूर हो गए लेकिन जज साहब ने भानु से एक ही बात कही कि समस्याएँ तो तब भी थी जब माननीय शहीदों ने बलिदान दिये इस तंत्र को सुधारने के लिए, मगर तुमने तो तंत्र को भ्रष्ट करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी। आगे से कोई भानु पैदा न हो इसलिए मैं तुम्हें फांसी कि सजा सुनता हूँ और इतना लिख कर जज साहब ने अपनी कलम तोड़ दी। आज मुन्नी भी अदालत में आई थी अब वह कुछ स्वस्थ लग रही थी लेकिन एक खौफ उसके चेहरे से साफ झलक रहा था जो शायद यही कह रहा था कि दबाव या लालच मे आकर वोट देने वालों को हमेशा इसी खौफ मे जीना पड़ेगा क्योंकि अच्छे लोग आगे नहीं आ पाएंगे और गुंडे राजनेता बनकर राज करेंगे।

वेद प्रकाश त्यागी

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