सावन अभी-अभी ही बाथरूम से नहांकर बाहर निकला था और ओफिस जाने के लिए रेडी हो रहा था। शर्ट पेन्ट पहन लिए थे और टाई को शर्ट के कोलर में डाल ही रहा था कि अचानक से मेघा सावन के पास आ जाती है और टाई हाथ में लेकर बांधने लगी।
"कितनी बार बोला है कि टाई तुम नहीं बांधोगे ये काम मेरा है और मुझे ही करने दो और ये माथे के गीले बाल भी नहीं पोंछे तुमने? कितनी बार बोला है कि शर्ट पहनने से पहले बाल पोंछा करो।"
"तुम्हारा ये कितनी बार बोला हुआ याद ही किसको रहता है? तुम जब बोलती हो तब तुम्हारी बातों पर नहीं तुम पे ध्यान होता है।" मेघा पास पडे रुमाल से सावन के गीले बाल पोंछने जाती है, लेकिन जब मेघा सावन के पास आती है तो सावन ने अपने माथे के बाल को झटकाया और बालों में अटका हुआ पानी साधना के चेहरे पे फवारे की तरह उडा। मेघा के चेहरे पे एक एक पानी की बुंद शबनम की तरह नजर आ रही थी।
"ये क्या था सावन? पागलो जैसी हरकत मत करो।" मेघा अपने चेहरे को साफ करने जा रही थी कि सावन ने उसे रोका।
"रुको..." सावन मेघा के खूबसूरत चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाता है और उनके माथे पे जहां पानी की बुंदे पडी थी वहां चुमता है।
"क्या कर रहे हो तुम?" मेघा ने सावन को दूर करते हुए कहा।
"प्यार कर रहा हुं अपनी बीवी से।"
"हा जानती हुं तुम्हारा प्यार पहले माथे को चुमोगे, फिर गालो को, फिर होंठों को, फिर कसके गले लगाओंगे और फिर...." मेघा बोलते-बोलते रुक गई।
"मेंने तो इतना कुछ सोचा ही नहीं था, अगप तुम्हारी इच्छा है तो मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है।"
"शर्म करो सुबह हुई है और इस वक्त भी तुम लग गए!"
"इसमें क्या है? प्यार को हर वक्त होता है, हर जगह होता है।"
"तुमसे बात करना ही फिजुल है। मैं नास्ता तैयार करती हुं तुम जल्द ही आ जाओ।"
सावन पूरी तरह रेडी होकर किचन में आता है और डाइनींग टेबल के पास आकर बैठता है। मेघा जट से सावन को नास्ता और चाय देती है फिर उनके पास बैठ जाती है। मेघा जब सारा काम कर रही थी तब सावन की नजरे मेघा पर ही थी और जब वो पास आकर बैठी तब भी वो उनसे नजरे हटा नहीं पाया था।
"कहां खो गए? नास्ता शुरू करो।" मेघा ने कहा।
"घर में इतने सारे नोकर है फिर भी तुम इतना सारा काम क्यों करती हो?" सावन के अचानक से पूछे प्रश्न से मेघा आश्चर्य में थी।
"क्योंकि ये काम तुमसे जुडा है। तुमसे जुडी हर चीज में मुझे मजा आता है, अच्छा लगता है।" मेघा की बात सुनकर सावन ने हलकी सी हंसी अपने चेहरे पे लाई और प्यार से मेघा के गाल पर अपना हाथ रखा।
नास्ता करने के बाद सावन ने अपना शुट हाथ में लिया और रोज की तरह मेघा ने उनकी ओफिस की बेग लाके दी और वो ओफिस जाने के लिए निकल पडा, लेकिन सावन के कदम दरवाजे की चौखट पे पडे ही नहीं थे कि मेघा ने जानबुझकर खांसी वाली आवाज निकाली। "उफ्फु...उफ्फु..."
सावन पीछे मुडता है। मेघा को देखता है, वो हंस रही थी। "तुम कुछ भूल रहे हो सावन!" मेघा ने अपने होंठ दांतो तले दबाए।
"नहीं तो... कुछ भी नहीं।" सावन ने कहा।
"गुडबाय कीस..." मेघा कुछ अलग ही अंदाज में कहती है। सावन हंसने लगता है और उनके नजदिक आता है।
"अभी जब मेंने माथे को चुमा था तो मेडम भडक गई थी। सुबह का बहाना बना रही थी तो फिर ये क्या है?"
" ये रुल्स है रोज का और रुल्स के मुताबिक हमे चलने चाहिए।" इतना कहते हुए मेघा सावन के नजदिक आ गई। सावन ने अपना रुल्स फोलो किया। दो होंठों का मिलन हुआ।
सावन के जाने के बाद मेघा अकेली हो जाती थी। घर में सावन और मेघा के सीवा कोई नहीं था। बहोत ही खूबसूरत और प्यारी थी मेघा और सावन भी मेघा के बराबर का दिखता था और होनहार बिझनेस मेन भी था। उनकी कंपनी में सातसो से ज्यादा लोग काम करते थे। अपने बलबूते पर खडा किया था उसने बिझनेस जिसपर मेघा को हमेशा से गर्व होता था।
दोनों खुश थे अपनी जिंदगी में। कोई भी परेशानी नहीं थी उनके बीच। दोनों बहोत प्यार करते एक दूसरे से और दोनों एक दूसरे की मन की बात समझते थे।
सावन के ओफिस जाने के बाद मेघा अपना सारा काम निपटाके अपने कमरे में जाती है। टी.वी ओन करती है, जिसमें रोज की बकवास सनसनी खेज खबरे और ब्रेकिंग न्युझ से परेशान होकर टी.वी बंद कर देती और मेगेझीन पढने लगती है। थोडी देर मेगेझीन पढने के बाद मेघा अपनी अलमारी खोलती है और उसमें से अपने कपडो के नीचे रखी एक डायरी को निकालती है। डायरी के पहले पेज पे बडे अक्षर में "तुम" लिखा था और उसके नीचे ब्रेकेट्स में "मन का एहसास" लिखा था।
मेघा रोज डायरी लिखती थी ये बात उसने सावन को भी नहीं बताई थी। जब भी घर में अकेला महसूस करती थी तब डायरी लिखने बैठ जाती थी, शायद उनके अकेलेपन को मिटाने का जरिया था , शायद शौक था या फिर शायद उनका प्यार था जो उसे लिखने पर मजबूर करता था। मेधा डायरी लिखना शुरू करती है।
"जानते हो? आज भी सावन के जाने के बाद मेंने तुमको महसूस किया, रोज की तरह। क्यों तुम हर बार मेरे आस-पास आ जाते ह? जब भी अकेली होती हुं, तुमको महसूस करती हुं। टी.वी देखते वक्त ऐसा लगता है कि तुम मेरे पास हाथो में हाथ डालकर बैठे हो। मेरी गोद को कोशन समझकर तुम बडे प्यार से लेटे हो। घर के आंगन में बैठती हुं, आंगन में रखे फूलो के पौंधो से खुशबू आती है मैं तुमको ही महसूस करती हुं, मैं आंखें मूंद लेती हुं। झूले में झूलते वक्त लगता है कि तुम झूला रहे हो।
तुम्हें याद करती हुं तो आंखों में चमक रहती है। दातों के बीच उंगलियां रहती है। बिना किसी वजह होंठों पे हलकी सी बहोत ही प्यारी मुस्कान रहती है। बालों की लट, साडी का पल्लु उंगलियों में उलझाती रहती हुं।
कभी कभी तुम पीछे से आकर मुझे पकड लेते हो। मेरे बदन में हाथ फेरने लगते हो। तुम अपनी गर्म सांस मेरे कानो के नीचे लाते हो। गर्म सांसो का एहसास होते ही बदन कांप उठता है। सच मानना ये लिखते वक्त भी हाथ कांप रहे है। तुम मुझे ही नहीं पर मेरी रुह को भी छू लेते हो। पता नहीं क्यों तुमको महसूस करना अच्छा लगता है। पूरा दिन तुम्हारे हैंगओवर में जीना अच्छा लगता है।
आखिर कबतक ये चलता रहेगा? क्या मेरा तुम्हें इस तरह से महसूस करना पूरी जिंदगी चलेगा? जो भी हो, जब तक मैं तुमको महसूस करुंगी, जबतक तुम्हारा एहसास होगा, तबतक मैं तुम्हारे बारे में लिखती रहुंगी।
अगर ये प्यार करने का कोई तरीका है तो मुझे पसंद है ये तरीका। ये तरीका मुझे जींदा रखता है। मेरे अकेलेपन को दूर करता है। मेंने सुना है कि प्यार करने का कोई तरीका नहीं होता। प्यार कैसे करना चाहिए ये भी कहीं नहीं लिखा। जब प्यार होता है तो सब अपने आप होता है। तरीका भी अपने आप आ जाता है। जीते है हम लेकिन दिल किसी और के लिए धडकने लगता है।
मेघा डायरी के पन्नो पे अपने शब्द उतार रही थी तभी घर का डोर बेल बजता है। मेघा तुरंत देखने जाती है कि कौन आया है। मेघा ने दरवाजा खोला और उनकी आंखें आश्चर्य से बडी हो गई।
"तुम?"
" हा मैं, क्यों शोक लगा ना?" मेघा के सामने सावन खडा था। वो अाश्चर्य में डुबी मेघा को देख रहा था। "मेंने सोचा आज तुम्हें सप्राइझ दु। हर रोज घर का कोई नोकर ओफिस में टिफीन दे जाता है और यहां तुम रोज मेरे बिना अकेली ही खाना खा लेती हो। आज तुम्हारे साथ खाने की इच्छा हुई। पता नहीं कैसे पर मुझे ऐसा लग रहा था कि तुम मुझे याद कर रही थी। क्या मेरा अंदाजा सही था?"
मेघा अपनी पलके बिछाए बिना सावन को सुन रही थी। उनकी आंखें नम हो गई सावन की बातें सुन कर। वो सावन को गले लगा लेती है।
"मुझे अच्छा लगा तुम्हारा सप्राइझ।"
सावन को खाना परोसने के बाद मेघा भी उनके साथ बैठ जाती है। पहला निवाला तो मेघा ने खुद अपने हाथो से सावन को खिलाया। दोनों खुश हो जाते है एक-दूसरे का साथ पाकर।
खाना खाने के बाद सावन तुरंत अपनी ओफिस चला जाता है और मेघा अपना काम निपटाके फिर से अपने कमरे में चली जाती है। कमरे में जाकर उनकी नजर डायरी पर पडती है। वो डायरी के पास पडी पेन को उठाती है और फिर से अपने प्यारे शब्दो को पन्नो में उतारने लगती है।
"देखा इसबार भी ऐसा हुआ सावन आया और तुम चले गए। जबतक सावन था तुम कहीं नहीं थे। और मुझे सावन का सप्राइझ भी बहोत अच्छा लगा। वो ऐसा ही है हमेशा से मुझे खुश करने के बहाने ढूंढ लेता है। पर तुम बुरा मत मानना। तुम भी बहोत अच्छे हो। वो सावन मेरा सबकुछ है जिसके साथ मुझे पूरी जिंदगी जीना है और तुम मेरे मन का सावन, मेरे मन का एहसास। जब सावन दूर होता है तब तुम ही तो मेरे पास होते हो, अपनी प्यार की बारीश से मुझे भिगोते हो, मुझे खुश रखते हो। एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोडते तुम। शायद ये सावन के प्यार का ही असर है कि मैं उनके एहसास से भी खुश होती हुं।
( यहां बात प्यार से दूर होने के बाद उनको महसूस करने की है। हर किसी को ये एहसास होता है। वो दूर होते हुए भी उनको हर पल अपने पास ही महसूस करता है। यही तो होता है कभी ना मिटने वाले प्यार का खुमार। वो पास हो तब भी हम प्यार करते है, दूर हो फिर भी प्यार करते है। प्यार को महसूस करना, उनका एहसास होना रूह को सुकून देता है )