Dr Kurian of AMUL in Hindi Biography by c P Hariharan books and stories PDF | डॉ.वर्गीस कुरियन

Featured Books
Categories
Share

डॉ.वर्गीस कुरियन

डॉ.वर्गीस कुरियन की जीवन चरीत्र

पहलाअध्याय

बचपन

डॉ. कुरियन वरगीस का जन्म सन २६ नवंबर १९२१ को केरल में कोजीकोड जिले की एक संपन्न ईसाई कुटुंब में हुआ था । उनका नाम का जड़ ग्रीक शब्द "किरियोस" में है, मतलब मास्टर, सामंत, शक्ति या अधिकार,जिसमें से शब्द किरियाकोस निकला, मतलब खुदा की, इसमें से साधारण नाम कुरियाकोस निकला, मतलब खुदा की ।

उनके पिता पुत्तन परककल कोचिन में एक सिविल सरजन थे । उनके माँ भी बहुत पढ़ी लिखी थी । वह पियानो भजाने में भी प्रवीण थी । कुरियन जी का अपना नाम उनके मामा राउ साहिब पी के वर्गीस से जुड़े हुए थे ।ईसाई परिवार का सदस्य था फिर भी बाद में वे एक नास्तिक बने।

जून १५ १९५३ को सूसन मौली पीटर से उनकी शादी हुई । निर्मला कुरियन उनके बेटी थी । सिध्दार्थ उनके पोता था ।

दूसरा अध्याय

शैक्षणिक करियर

उन्होंने १९४१ में भौतिक विज्ञानं में लोयोला कॉलेज चेन्नई से बी.एस.सी.की उपाधि प्राप्तः की। फिर गिंडी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिं से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की उपाधि १९४४ में प्राप्त की। उनको बी.इ में सातवीं रैंक मिला था। उनको पढ़ाई में बहुत शौक था।उन्होंने नेशनल इंपीरियल पशुपालन और डेरी रिसर्च इंस्टिट्यूट – बैंगलोर से डेरी इंजीनियरिंग में खास प्रशिक्षण लिया था।

उन्होंने १९४६ में टाटा तकनीकी संस्था - जमशेदपुर में इंजीनियरिंग में विशेष अध्ययन किया। एक संक्षिप्त अवधि केलिए उन्होंने टिस्को जमशेदपुर में काम भी की। बाद में १९४८ में सरकारी छात्रवृत्ति से यू एस की मिशिगन स्टेट विस्वविद्यालय से मास्टर ऑफ़ सयनस मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में विभेदन प्राप्तः की।

मिशिगन में भी दुग्ध इंजीनियरिंग की उप विषय लेकर में जानकारी ली।

वह क्रिकेट, बेडमिंटन, बॉक्सिंग, टेनिस आदि खेलखूद में अपनी कॉलेज को प्रधिनिध की ।

उनके मुताबिक सीखना हमेशा केलिए जारी रखना चाहिए ।

तीसरा अध्याय

पेशेवर करियर - प्रारंभिक संघर्ष

अपनी पढ़ाई पूरा करने के बाद वह भारत लौटे। उनकी करियर मैकेनिकल इंजीनियरिंग में शुरुआत हुई थी । बाद में वह दुग्ध इंजीनियरिंग में खिसक गया था । वे

गुजरात की कैरा जिले में आनंद की ओर रवाना हुए । वह १३ मई १९४९ में शुक्रवार को आणंद में पहुँच गया था। वह वहां सरकारी छात्रवृत्ति के बदले में डेरी डिवीज़न में पांच साल काम करने केलिए बाध्य था। वहां डॉ कुरियन को उसकी बंधन की अवधि की सेवा के लिए एक सरकारी क्रीमरी को सौंपा गया था।१९४९ मई में सरकारी रिसर्च क्रीमरी - आनंद में एक दूध पाउडर कारखाना में डेरी इंजीनियर की पद में नियुक्त किया गया।दूध और पशु से तो उनको सख्त नफरत था। बल्कि वह पेय पीता था, गाय की मांस खाता था। जब वह एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में एक धातु विज्ञान छात्रवृत्ति के लिए चला गया और पाश्चुरिसशन के बारे में एक चाल सवाल का जवाब दिया सरकार ने डेरी उद्योग में उनको धकेल दिया । ताने के तौर पर यह वही व्यक्ति था जो भारत में दूध उत्पादन में क्रांति लाया था।

गुजरात की आनंद जिला तो धूल से भरपूर था। मशीनें बार बार खराब हो रहा था। उन्होंने आनंद और वहां की ज़िन्दगी की तौर तरीके, खट्टे सफ़ेद पदार्थ

पसंद नहीं किया। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था की वह एक दुग्ध इंजीनियर बनेंगे। सरकारी छात्रवृत्ति की शर्तें पूरे करने हेतु वह क्रीमरी में काम करने केलिए मज़बूर हो गया था । उस समय अपने बंधन से छुटकारा पाना और आनंद से जल्द से जल्द निकलना ही उनका इरादा था।१९४९ के अंत में, जब उनको सरकारी क्रीमरी से अपनी नौकरी से रिहाई की आदेश मिली, वह पूरी तरह से मुंबई रवाना होने केलिए तैयार हो रहा था और अपनी सामान संभालने में ही उत्सुक था।श्री त्रिभुवनदास पटेल उस समय की कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (लोकप्रिय अमूल) के अध्यक्ष ने अपने दोस्त कुरियन जी को कुछ और समय के लिए आनंद में ही ठहरने और सहकारी समिति की डेरी उपकरणों को संभालने में उनकी मदद करने की अनुरोध की। कुरियन जी ने कुछ और दिनों के लिए वापस रहने का फैसला किया था। मगर वह वहाँ हमेशा के लिए रह गया। किसानों को पीड़ित देखकर उनका दिल नमक जैसे पिघल गया। चाहे तो लो चरस खाते है मगर गरीबों पर कोई तरस नहीं खाते। डॉ. कुरियन जी की मनोभावना बिलकुल ही अलग थी। वे उनकी हालात सुधारने केलिए प्रेरित हो गये।

सहकारी कैरा जिला दूध उत्पादाकों का संगटन बनाने में पटेल का अविश्रांत परिश्रम कामयाब हुआ। प्रतियोगिता पॉलसन दूग्ध से सख्त दबाव का सामना करना पड़ा। पटेल की प्रयासों में कुरियन जी ने साथ दिया।

आणंद में उनका मजबूर कार्यकाल भारतीय डेयरी उद्योग के भाग्य ही बदल डाला। उन्होंने नवेली डेयरी सहकारी समितियों की मदद करना शुरू कर दिया। वे नहीं जानते थे कि यह एक ऐतिहासिक मोड था।

उस समय, कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ एक निजी उपक्रम पॉलसन डेयरी के साथ एक लड़ाई लड़ रहा था। क्रीमर से तंग आकर उन्होंने के डी सीइ एम पि यू ल के अध्यक्ष श्री त्रिभुवनदास पटेल को एक प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने के लिए मदद की। यह अमूल के जन्म के लिए रास्ता दिया।

वहां एक पेस्तोंजी एदुलजी नाम के एक चतुर लेकिन चालाक व्यापारी किसानों को शोषण कर रहा था । वह जहरीली दूध बेचता था । त्रिभुवनदास उन किसानों की शोषण के खिलाफ कदम उड़ाया । उनका सांगठनिक प्रयास सराहनीय था । त्रिभुवनदास पटेल शोषण के खिलाफ किसानों को जुड़े रहे थे । कुरियन जी ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर त्रिभुवनदास को दुग्ध सहकारी आन्दोलन शुरू करने में साथ दिया ।

उस संस्था को कैरा जिला सहयोगी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड की नाम से पंजीकरण किया गया जो बाद में अमूल की नाम से प्रसिद्ध हुआ । कुरियन जी ने श्वेत आन्दोलन लागू करने हेतु कड़ी मेहनत की । उन्होंने प्रबंधकीय कौशल प्रसंस्करण लागू किया।

वह गुजरात की को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड जो अमूल ब्रांड के प्रबंध के शीर्ष संगटन था, उसका अध्यक्ष था।

श्वेत क्रांति से १९६६ में गुजरात में वर्गीज कुरियन का अमूल मोडल का प्रयोग जल्द ही बहुत बड़ा ऑपरेशन फ्लड जैसे खिलकर २३ राज्यों की १७० जिलों में फैल गया था और ९०००० ग्रामीण सहकारी समितियां भी बनाया गया था । यह भारत को एक आयातक से दुनिया की सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक और निर्यातक में बदल दिया।

पटेल ने कैरा जिले की आसपास रहनेवाले २०० दूध उत्पादकों को संगटन करके सरकारी संचालित बी एम एस को दूध प्रधान किया। कुरियन जी ने आधुनिक प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, शक्तिशाली विपणन और ब्रांडिंग रणनीति में अपनी विशेषज्ञता को लागू किया। साथ साथ उद्यम की सहकारी भावना को भी कायम रखा।

प्रतियोगियों उनको शक की नज़र से देखने लगे। क्या मूलवासी परिष्कृत दुग्ध उपकरणों को भी संभाल सकेंगे ? पश्चिमी शैली उत्पादकों को भी भैंस की दूध से विनिर्माण कर पायेंगे ? सहकारी किसानों के पनीर माखन से शहर वाले खुश हो जायेंगे?

अमूल टीम ने पहली बार भैंस की दूध से उच्च स्तर डेयरी उत्पादों की एक किस्म को प्रसंस्करण करके कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्वियों और प्रतिस्पर्धों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपणन द्वारा दुनिया को चकित कर दिया।

शीग्र ही अमूल,दूध की आभाव को निपट लिया। दुग्ध उत्पादन में भारत की वैश्विक हिस्सा १७ प्रतिशत बनाने में योगदान दिया। विदेशों में निर्यात करने लगा।

किसानों की आथिक स्थिति को सुधार दिया।

ऑपरेशन फ्लड कुरियन के नेतृत्व में तीन प्रमुख उद्देश्यों के साथ, २६ साल के लिए तीन चरणों में १९७०-८०, १९८१-८५ और १९८५-९६ लागू करवाया गया।

डॉ. कुरियन के प्रमुख उद्यम ऑपरेशन फ्लड, एक सफल बहुउद्देशीय कार्यक्रम था जो दूध की कमी से अधिशेष की बदलाव लाया। ऑपरेशन फ्लड लोकप्रिय श्वेत क्रांति की

रूप में जाना जाता था।

उनके नेतृत्व से अमूल, ईआरएमए, और एनडीडीबी जैसे ३० सहकारी संस्थाओं स्थापित

किया गया । उन्होंने भैंस के दूध से दूध पाउडर की उत्पादन प्रक्रिया में अमूल की मदद की

जो एनडीडीबी के संस्थापक-अध्यक्ष बनने की उनको मौका दिया।

आत्मनिर्भर ग्रामीण रोजगार को कायम रखना, दूध की उत्पादन में स्वयं पर्याप्त होना, पच्चीस साल की अंदर दुनिया की सब से बड़ा दूध उत्पादक होना अमूल की अहम लक्ष्य था।

शक्तिशाली डेयरी व्यापारियों और स्थानीय पंचायत और जिला राजनीतिज्ञों दूध

उत्पादन कार्यक्रम में रुकावट पैदा कर रहे थे।वे दूध की व्यापार को कब्ज़ा करने की धमकियाँ दे रहे थे।

डॉ. कुरियन के सहकारी उद्यम एक सरल लेकिन सम्मोहक तर्क पर बनाया गया था।

सभी दौर से समृद्धि लाने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपभोग अमूल की रणनीति थी।संसाधनों की प्रबंधन में जोर देना,न्यायसंगत प्रतिफल प्राप्त करने के लिए कोशिश करना, बिचौलियों को उन्मूलन करना, शोषण के खिलाफ लड़ना उनका लक्ष्य थे। शुरुआत में तो ये सब नामुंखिंन लगा। कई बार उनको धमकियां का भी सामना करना पड़ा। अपनी जान को हथेली में रखकर चलना पड़ा। इन सब लक्ष्यों को हासिल करने हेतु कुरियन जी ने नेतृत्व लिया।

अमूल पैटर्न ग्रामीण विकास का एक साधन के रूप में दुग्ध उत्पादन के लिए एक वैश्विक रोल मॉडल बन गया था। भारत में यह मॉडल, खाद्य, तेल, फल, सब्ज़ियाँ और नमक की तरह अन्य वस्तुओं की उत्पादन केलिए भी बढ़ा दिया गया।

जी सी एम एम एफ़, सब से बड़ा दूध उत्पादों का विपणन संगटन है। आज

Showing translation for आज

यह आन्दोलन भारत की २०० जिले के ७०००० गावों में दोहराया है।

उन्होंने जीसीएमएमएफ के माध्यम से अमूल राहत न्यास के गठन करके कुत्च क्षेत्र में २००१ में आए भूकंप से क्षतिग्रस्त स्कूलों की पुनरुद्धारण की।

अनुशासन,निष्पक्षता,गुणवत्ता, जज्बात,धर्म ,कर्तव्य सम्मान,सत्य आदि मूल मान्यताएं अमूल की कार्यसूची में थे । वह अपने पेशेवर जीवन, लाखों नम्र दूध उत्पातकों को सशक्त बनाने में समर्पण किया। उन्होंने मूलस्थर किसानों की मेहनत को अहम माना जिसमें ही सफलता निर्भर है।

भारत में समाज के पिछड़े वर्गों का शोषण हो रहा था। उनसे कई सालों से दुर्व्यवहार ही हुआ है। इसीलिये अब उनको मुआवजा देना ज़रूरी है।

उन्होंने वंचित लोगों केलिए,जितना हो सके, काम करना चाहा।

वह अमीर होने की बावजूद भी एक आम आदमी की तरह जीना चाहता था। यही उनका जीवन का दिव्य दर्शन था।

ग्रामीण प्रबंधन संस्था की अध्यक्ष होने की नाते, श्वेत क्रांति नियोग को हासिल करने केलिए, कुरियन जी ने एक उस्ताद की भूमिका निभाया।

श्वेत आन्दोलन के दौरान, जरूरी कार्यक्रम ऑपरेशन फ्लड को जारी किया गया। एनडीडीबी की “ऑपरेशन फ्लड १९७०” एक ऐसा कार्यक्रम था कि एक देशव्यापी दूध ग्रिड की स्थापना से दुनिया की सबसे बड़ी दुग्ध उत्पादक की रूप में तब्दील भारत की शुभारंभ हुआ।

डॉ. कुरियन ऑपरेशन फ्लड के पिता माना जाता था, श्वेत क्रांति की पिता करके भी संबोधित किया जाता था। वह भारत को दुनिया की सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाया । उनके प्रेरणादायक नेतृत्व में कई सारे संस्थाएं बनाये गये।

गुजरात सहयोगी विपणन महासंघ लिमिटेड, राष्ट्रीय डेयरी विकास मंडल, ऐसी

संस्थाओें उनमें शामिल है । देश के कई इलाकों में आनंद दुग्ध योजना की तरह अनेक दुग्ध संस्थायें स्थापित किया गया । उन्होंने दुनिया की सबसे बड़े दूग्ध विकास कार्यक्रम, ऑपरेशन फ्लड का नेतृत्व निभाया । गुजरात सहकारी दुग्ध क्षेत्र को दुनिया की नक़्शे और नज़रों में सितारे बना दिया । अपने जीवन को गुजरात दुग्ध पशु मालिकों की भलाई केलिए समर्पण किया। वे किसानों के नौकर थे । किसानों की सम्पन्नता बढ़ाने हेतु कुरियन जी ने बेहद कड़ी मेहनत की ।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) १९६५ से १९९८ तक के संस्थापक अध्यक्ष, गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (जीसीएमएमएफ) १९७३ से २००६ तक, ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (आईआरएमए) १९७९ से २००६ तक , अपने पेशेवर जीवन, सहकारी समितियों के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया।

उन्होंने सहकारी क्षेत्र की स्थानीय, क्षेत्रीय एकाधिकार को सजीव रखना चाहा और निजी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लोकतंत्रीय सहकारी दुग्ध क्षेत्र से दूर रखना चाहा। शुरू में विरोध कर सका तो भी बाद में उम्र की हिसाब से निराश्रित हो गया और धीरे-धीरे अपनी तर्क को खो दिया। वह जीसस और सीज़र की हालत को अनुस्मरण किया।

चौथा अध्याय

अमूल की पीठिका और प्रगति

अमूल की पंजीकरण सन् १९४६ में हुई थी । अमूल ने प्रति दिन २०००० लिटर्स दूध उत्पादन किया ।पहले तो, अमूल एक या दो लिटर्स दूध मुस्किल से उत्पादन कर कर रही थी ।

गुजरात में पहली सहकारी डेयरी संघ अपने २सदस्य ग्रामीण सहकारी डेयरी समितियों के साथ १९४६ में बनाई गई थी। सदस्य समितियों की संख्या अब १६१०० को वृद्धि हुई है । ३२ लाख सदस्यों दूध हर दिन दो बार सप्लाई करने के साथ, आज, एक अरब जीसीएमएमएफ, भारत की सबसे बड़ी एकीकृत डेयरी उत्पादों के विनिर्माण और विपणन संगठन जैसे उभरा है। एनडीडीबी ने डॉ कुरियन के प्रयासों द्वारा गठित अमूल मॉडल की प्रतिकृति तमाम भारत में सुनिश्चित की। इस प्रकार, एनडीडीबी ने भारत का दूध उत्पादन को काफी बढ़ाने में अहम भूमिका निभायी। भारत की दूध की खरीद २०११ में १२२ मिलियन मीट्रिक टन हासिल करने हेतु ६० के दशक में प्रति वर्ष २० लाख मीट्रिक टन से बढ़ता आया ।

उन्होंने रू ६०००० की पासच्युरिजिंग मशीन खरीदी। अन्य जिलों से किसानों उनका प्रशंसा करने के लिए आया था और उन्होंने उनकी मॉडल को नक़ल की। इनमें से कई किसानों भूमिहीन मजदूरों थे जिनका केवल संपत्ति उनकी गाय या भैंस था।

१९७० के बाद, ईईसी ने भारत को अपने अधिशेष दूध पाउडर और बटर ऑयल भेजना शुरू कर दिया जिसको

डॉ. कुरियन जी ने काबू में लाया।

डॉ.कुरियन ने दूध उत्पादन व संरक्षण की नयी तरीके हासिल की।

उन्होंने किसानों को प्रबुध्द किया । अमूल की नमूने और राज्यों में फैलाया जो उन राज्यों को भी समृद्धि ओर सम्पन्नता की ओर ले गया । प्रबंधन और प्रौद्योगिकी को किसानों पर सौपा। ग्रामीण लोगों को सशक्त बनाने में काबिल हुआ । दुग्ध उत्पाद की मानदंड निर्णय हेतु उन्होंने कई सारे संस्थाएँ स्थापित की ।

जी सी एम एम ऍफ़, आई आर एम ए, एन डी डी बी, अमूल उन संस्थाओं में से कुछ है। उन्होंने मूलस्थर पर प्रशिक्षण संस्थाएं भी स्थापित की जो अनपढ़ गवांर किसानों को पढ़कर उत्पादन करने हेतु काम आये ।वंचितों की आर्थिक एवं सामूहिक परिस्थिति को सुधारने केलिए प्रशिक्षण संस्थाएं लगे रहे ।

आज भारत में तेरह जिला सहकारी दूध उत्पादकों का संगटन, करीबन तीस लाख दूध उत्पादकों, १३५०० ग्रामीण समितियां है।

आज १७३ दुग्ध उत्पादकों की सहकारी संघों और १२२ महासंघों अमूल का एक हिस्सा बन गया हैं। अमूल की वार्षिक विकास दर २० प्रतिशत है। आज प्रति दिन करीबन १.२ करोड लिटर्स दूध की उत्पादन व वितरण अमूल संभालता है। हर दिन करीबन ८४ लाख लिटर्स दूध अमूल इकट्ठा करता है। अमूल के प्रति दिन मवेशी विनिर्माण क्षमता 35000 लाख टन है।

ऑपरेशन फ्लड भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के रूप में उभरा और डेयरी विकास के बड़े आयाम फैलाया। डॉ कुरियन भारत की निर्विवाद 'दूधवाला' था।

उन्होंने प्रत्येक आठ घंटे दुग्ध केलिए, परिवार केलिए और सोने केलिए निर्धारित की। यही उनका जीवन का नारा था ।

गुजरात में एक छोटी सी गाँव से कुरियन जी का ऑपरेशन फ्लड मॉडल शुरुआत हुआ था । आज दूध उत्पादक राज्यों जैसे बिहार, राजस्थान, और एम. पि. में ७२००० गावों को फायदा हुआ है ।

कुरियन जी को पहले आनंद में कोई दिलचस्पी नहीं था जो आज भारत की दूध

की राजधानी है। पर किसानों के साथ जो शोषण हो रहा था, वह उनसे बर्दास्त नहीं हो रहा था। १३ वां मई १९४९ को उन्होंने सरकारी क्रीमरी में रू ६०० प्रति माह तनखाह पर काम शुरू किया था।

वह समाजवाद के लिए अजनबी था।यह एक लोकतंत्र था जहां बिक्री, प्रसंस्करण और विपणन सब कुछ उत्पादकों खुद संभालते थे । ग्रामीण गरीबों की सशक्तिकरण उनका असली उद्देश्य था और उस उद्देश्य को

पूरा करने केलिए दूध केवल सबसे अच्छा उपलब्ध साधन थी । रोटी और स्वादिष्ट मक्खन हाथ में, भारत के शहरों पर होर्डिंग से सजीव हास्य लोगों के दिलों को जीत लिया ।

वह राष्ट्रीय राजनीति से परहेज रहा। दूध उत्पादों के अपने अमूल ब्रांड, “मोटा पोल्का डॉटेड अमूल गर्ल” के साथ देश के सबसे बड़ा खाद्य ब्रांड बन जाने की बावजूद भी वह छोटे, सुस्त आणंद में ही रहना पसंद किया । आणंद में वह राजा था और वैसे ही रहना चाहता था । उनका डेयरियों, सफाई, अनुशासन और कड़ी मेहनत के मूल्य, गरीब किसानों को सिखाया।

कैरा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड़ १४ वां दिसंबर १९४६ को स्थापित किया गया था जो बाद में अमूल की नाम से मशहूर हुआ।कोई ग्राम पंचायत, जमींदार, समझदार निगम उनको लंबे समय केलिए साथ नहीं दिया। सिर्फ कुछ ही लोक उनकी योजनाओं को सरकारी मंत्रियों को यकीन दिलाने की हिम्मत की।

शुरुआत में अमूल का नाम अमूल्या था, एक संस्कृत शब्द जिसका मतलब अनमोल। उस समय अमूल के सिर्फ दो सहकारी समितियां थी जो २४७ लिटर्स दूध का उत्पाधन कर रहे थे।आज अमूल की १५० लाख लिटर्स दूध की उत्पादक है और १,४४,२४६ सहकारी दुग्ध समितियां भी है।

कुरियन जी के दोस्त एच एम दलाया ने भैंस की दूध से गाढ़ा दूध और दूध पाउडर बनाने के तरीके अविष्कार किया जब कि तब तक यह चीज़ें सिर्फ गाय की दूध से ही बनाया जाता था। इस तरीके से भारत की सबसे पहला दूध पाउडर कारखाना स्थापित किया गया। पंडित जवाहरलाल जी ने इस कारखाने की उद्घाटन 31 अक्टूबर 1955 को की।

अमूल की प्रक्रिया से प्रभावित होकर भारत की उस समय की माननीय प्रधान मंत्री लाल भहादुर शास्त्री जी ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दौरान अमूल मॉडल को देश भर में दोहराने की आदेश दी। यह डॉ.कुरियन जी की नेतृत्व में देशिीय दुग्ध विकास मंडल स्तापित करने की सपने को साकार किया।

प्रारंभिक आर्थिक दबाव को सुलझने केलिए अमूल ने विस्व बैंकों से देन की प्रस्ताव रखी। १९६९ में जब विस्व बैंक की अध्यक्ष भारत में आये, डॉ कुरियन ने उन से देन की अनुरोध की। कुछ ही दिनों में कर्ज मंजूर हुआ। अमूल मॉडल देश भर में दोहरा लिया गया।

सहकारी दुग्ध आन्दोलन में जुड़े हुऐ किसानों की कथाएं चित्रित करने हेतु

डॉ.कुरियन ने पांच लाख किसानों से एक प्रतीक के रूप में दो दो रुपये इक्कठे किया। फिल्म मेकर श्याम बेनेगल ने "मंथन" नाम की एक फिल्म बनाया।

किसानों ने हौसला, तरकी और आनंद प्रधान करने केलिए डॉ. कुरियन जी को शुक्रिया आदा किया।

कुरियन जी ने आनंद की सफलता की कहानी को ग्रामीण संस्थागत विकास केलिए एक नमूना जैसे प्रस्तुत किया। उन्होंने एक उत्पाद को समाजिक और आर्थिक सुधार केलिए इस्तेमाल करने की तरीका वर्णन किया।

बहुत क़म लोक जानते है कि चारों तरफ से समीक्षा की दबाव में आकर उनको

जी सी एम एम ऍफ़ और आई आर एम ए के अध्यक्ष पद से राजीनामा देना पड़ा।

छोड़ते वक्त उन्होंने उत्पादक संगढन को पेशेवर प्रबंधकों की ज़रुरत पर जोर दिया।

उन्होंने पढ़े लिखे चतुर कुशल नौजवानों की सख्त आवशयक्ता को सूचित किया जो ग्रामीण परिवर्तन ला सके। नौजवानों की प्रबंधन शिक्षा और विकास उन्मुख पर जोर दिया।

वे श्वेत क्रांति की पिता ओर सामजिक उद्यमी थे। उन्होंने जड़ से विकास की बुनियाद डालने में मदद किया ।

लोकतंत्रीय उद्यम आयोजन करने की ज़िम्मेदारी किसानों को सौपने से ही मूलस्थर पर विकास हो सकता है, यही उनका दृढ विश्वास था।

एक सर्जन की बेटे की दृष्टिकोण से देखे जाये तो उनको दूध या दुग्ध उत्पादों में कोई दिलचस्पी नहीं था न ही कोई वास्ता था। लेकिन किस्मत ने उनको ऐसी मोड़ पर लाया कि दुग्ध इंजीनियरिंग और दुग्ध योजनाएं उनकी ज़िंदगी की एक बेहद अहम हिस्सा बन चुके थे।

उन्होंने देश की श्वेत आन्दोलन की घोषणा की। उनकी नमूने विदेशों में भी स्वीकार हो गया था । भारत को दुनिया की नंबर एक की दूध उत्पादक बनाने की साख कुरियन को ही है।

उनकी कार्यनीति बिलकुल ही अलग था कि नेस्ले जैसे निजी दुग्ध बहुराष्ट्रीय प्रतियोगि कंपनियां, खाड़ी में ही रह गयी । उन प्रतियोगियों ने अमूल की मॉडल को अनुकरण करने की कोशिश जारी रखी। उन्होंने अमूल की कार्यनीति को पढ़कर प्रयोग में लाने की कोशिश की। निजी दुग्ध संस्थाएं अमूल की प्रगति से घबरा गये थे। त्रिभुवनदास पटेल अमूल की संस्थापक अध्यक्ष थे। डॉ वर्गीज कुरियन १९५० में पदभार संभाल लिया था।१९५० में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादकों का संगटन लिमिटिड, दुग्ध क्षेत्र में, अपनी सख्त प्रतियोगिता दैत्य पॉलसन दूग्ध से जोरदार ज़बरदस्त मुंहतोड़ मुकाबला कर रहा था।

प्रतियोगियों के दबाव या धमकियों से, उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारा। अपने मूल अस्तित्व के लिए संघर्ष करता रहा। कुरियन जी ने कैरा दुग्ध संगटन की संघर्ष को एक ललकार की तरह लिया और अपनी सुरक्षित सरकारी पद से राजीनामा ले लिया।

सहकारी कैरा जिला दूध उत्पादाकों का संगटन बनाने में पटेल का अविश्रांत परिश्रम कामयाब हुआ। प्रतियोगिता पॉलसन दूग्ध से सख्त दबाव का सामना करना पड़ा। पटेल की प्रयासों में कुरियन जी ने उनके साथ देने की फैसला लिया।

१९४६ में स्थापित कैरा जिला सहकारी दूध उत्पादाकों का संगटन लिमिटेड जल्द से जल्द ही अमूल डेरी की नाम से प्रसिद्ध हो गया। भारत में श्वेत क्रांति लागू करने केलिए अमूल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। अमूल की श्वेत क्रांति ने भारत को दुनिया के नंबर एक की दूध उत्पादक बना दिया।

अमूल की सफलता को अड़ोस पड़ोस राज्यों ने भी दोहरा लिया। कुरियन जी का

काम बिलकुल ही परिवर्तनात्मक था कि उस समय की भारत की प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने १९६५ में अमूल मॉडल को और राज्यों में फ़ैलाने केलिए देशीय दुग्ध विकास मण्डल को स्थापित की। कुरियन जी को एन डी डी बी की अध्यक्ष नियुक्त किया गया। एक कृषि मंत्री ने उनको एन डी डी बी की अध्यक्ष पद से हटाने की कोशिश की मगर वह खुद हट गया। उन्होंने एन डी डी बी की ३३ साल अध्यक्ष पद निभाया।

सहकारी संस्था की सही प्रबंधन केलिए १९७३ में जी सी एम एम एफ स्थापित किया गया।

१९७९ में ग्रामीण प्रबंधन संस्था – आनंद, स्थापित किया गया जो तत्वविज्ञान और पेशेवर प्रबंधन पर आधारित था। अमूल की सफलता के पीछे कुरियन जी की

भूमिका अवर्णनीय है। श्वेत क्रांति भारत को उत्तेजित किया और अमूल को भारत की नंबर एक की खाद्य ब्रांड बना दिया।

अमूल ब्रांड विदेशी बाजार में भी लोकप्रिय बन गयी थी।

1९९८ में कुरियन जी ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कभी भी एनडीडीबी से कोई वेतन नहीं लिया क्योंकि वह हमेशा सरकार के बजाय किसानों के एक कर्मचारी होना चाहता था।

१९९८ में कुरियन जी ने एनडीडीबी के अध्यक्ष के नाते अमृता पटेल की आश्रित

की उम्मीदवारी के लिए मुश्किल से पैरवी की। लेकिन पटेल की योजना तो और कुछ थी।

इस प्रकार कुरियन जी से ही बनाए गए सृजन के खिलाफ उन्होंने बाजार में हिस्सा केलिए लड़ाई शुरू कर दिया।

एन डी डी बी और जी सी एम एम ऍफ़ ने अपने ब्रांड्स को क्रमश: मदर डेयरी और अमूल के खिलाफ पेश किया। कुरियन जी ने अपने अमूल मॉडल और किसानों से प्रतिस्पर्धा की खतरा महसूस की।

पटेल ने लोकतांत्रिक ग्रामीण सहकारी समितियों के बजाय दूध उत्पादकों की संस्थानों की नई अवधारणा के साथ प्रारंभ किया।

१९७३ में कुरियन जी की डेयरियों द्वारा उत्पादित उत्पादों को बेचने के लिए जीसीएमएमएफ स्थापित किया गया। करीब ५० साल बाद, जीसीएमएमएफ देश विदेशों में अमूल उत्पाद बेचने लगा। यह $ 2.5 अरब का सालाना कारोबार (२०११-१२) के साथ भारत की सबसे बड़ा खाद्य विपणन संगठन बना। २४ जिलों में ३१.८ लाख दुग्ध उत्पादक सदस्यों को मिलाकर १६११७ ग्रामीण दूध सहकारी समितियों और १७ सदस्य संघों से पीक अवधि में इसका दैनिक दूध की खरीद लगभग १३० लाख लीटर था।

आईआरएमए, स्विास एजेंसी विकास सहयोग, राज्य और केन्द्र सरकारों, भूतपूर्व भारतीय डेयरी निगम और एनडीडीबी के पहल से सहकारी समितियों एवं ग्रामीण विकास संगठनों

के लिए प्रबंधन शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और परामर्श की सहायता प्रदान करने के लिए आनंद में १९७९ में स्थापित किया गया था। डॉ कुरियन १९७९ में संस्थान के अध्यक्ष बन गया था।आईआरएमए डॉ कुरियन के डेयरी निगम काम में विश्वास के कारण स्थापित किया गया था जो उद्योग में क्रांति लाया।

आईआरएमए के स्थापक डॉ कुरियन उसकी "निरंकुश" शैली के बारे में आरोपों के साथ २००५ में विवाद में फंस गया था। आईआरएमए में उनके समीक्षकों उनके खिलाफ काम करने लगे। एक दीक्षांत समारोह के बाद, डॉ कुरियन ने संवाददाताओं से कहा कि एक सुंदर संस्था पर कब्जा करने की 'साजिश' रची जा रही थी।२००६ में कुरियन ने जीसीएमएमएफ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया। डॉ कुरियन ने बढ़ती असंतोष के कारण आईआरएमए के अध्यक्ष पद भी छोड़ दिया।

ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम का केंद्रीय मुद्दा उत्पादकों की सहकारी समितियों था।

डॉ कुरियन की, योजनाओं और संस्थायें लोगों को प्रगति की और ले गया।यही डॉ कुरियन की मुख्य योगदान थी।

उनके मुताबिक, इस देश की सबसे बड़ी संपत्ति, इसकी लोग ही है। लोगों की सभी दौर विकास के लिए सबसे अच्छा तरीका विकास के उपकरणों को उनके हाथ पर सौपना ही है। डॉ कुरियन की प्रणालियों और संस्थाएं, लोगों को अपने तरकी केलिए काम करने केलिए सक्षम बना दिया। उन्होंने उनके बड़े हितों की बढ़ावा में लोगों की शक्ति का दोहन करने केलिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

डॉ कुरियन भारत में डेयरी सहकारी आंदोलन की मार्गदर्शक था और देश के दुग्ध उत्पादकों के जीवन में सामाजिक और आर्थिक विकास लाया था। डॉ कुरियन हमेशा के लिए दूध उत्पादकों का एक सलाहकार और संरक्षक रहा।

कैरा जिले आनंद गुजरात के किसानों के प्रयासों के कारण, अमूल ब्रांड निर्विवाद प्रभाव मानते हुए उभरा।

पांचवी अध्याय

पुरस्कार और उपलब्धियों

डॉ. कुरियन की स्थायी व्यक्तित्व, उत्साह, अमर करिश्मे, आस्था, असाध्य को भी साध्य बना दिया । ये सारे गुण उनको कई पुरस्कारें मिलने में मदद की। कुरियन जी को दुग्ध क्षेत्र में उनका अविश्रांत मेहनत केलिए नौ गौरवपूर्ण पुरस्कारें दिया गया।

भारतीय सरकार ने पद्म श्री (१९६५) पद्म भूषण (१९६६) पद्म विभूषण (१९९९) (भारत रत्न के बाद देश में दूसरा सर्वोतम शीर्ष) सम्मान दिया था।

रमन मैग्सेसे पुरस्कार सामुदायिक नेतृत्व के वास्ते (१९६३) , कृषि रत्न पुरस्कार (१९८६), विश्व खाद्य पुरस्कार १९८९ ,कॉर्पोरेट उत्कृष्टता के लिए इकनोमिक टाइम्स पुरस्कार २००१ और बहुत सारे पुरस्करें उन्होंने प्राप्त की । सब से अच्छा पुरस्कार था जब उनको "मिल्क मान ऑफ़ इंडिया" उपाधि से सम्बोधित किया गया । उनके ५० साल की सर्विस में कुल मिलाकर उनको मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी और स्वीडिश कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय सहित दुनिया की कई प्रमुख संस्थाओं से १५ मानद उपाधियां से सम्मानित किया गया था।

उनके नया दृष्टिकोण, सतत प्रयासों को मानते हुए सन् १९६५ में मिशिगन स्टेट विस्वविद्यालय ने उनको सम्मानार्थ उपाधि प्रधान किया । कार्नेगी - वाटलर विश्व शांति पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति की वार्षिक पुरस्कार अमेरिका से मिली ।

उसके परियोजनाओं को उस दिन के प्रधानमंत्रियों की मजबूत समर्थन के कारण

डॉ.वर्गीज कुरियन नौकरशाही अव्यवस्था को संभालने में कामयाब रहे। लेकिन उनके अंतिम वर्षों "तानाशाही" और रस्साकशी के आरोपों से चिह्नित किया गया।

आणंद में उनका घर मामूली था। सबसे कीमती चीज एक स्वाक्षर वाला हिलेरी और तेनजिंग की एवरेस्ट पेंटिंग “जैसे कि एक और एवेरस्ट शिखर को जीत लिया हो” तरह दिखाई दे रहा था, बहुत बड़ा बहुत मुश्किल और बहुत श्वेत।

छठी अध्याय

उपसंहार

विरासत

ज़िन्दगी भर देश की सेवालगन ओर संघर्ष के बाद ९ वां सितंबर २०१२ को एक संक्षिप्त बीमारी के बाद डॉ. कुरियन, श्वेत क्रांति के जनक की निधन हुई । वह 91 वर्ष के थे। उन्होंने एक सार्थक ज़िन्दगी जिया।आर्थिक विकास केलिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में दूध को नये सिरे से परिभाषित करने की सिलसिले में वे दुनिया की दिल में हमेशा हमेशा केलिए ज़िन्दा रहेंगे ।

डॉ कुरियन ने हमेशा यही सपना देखा है कि "अमूल ब्रांड” को भारत भर में सभी दुग्ध उत्पादकों के साथ सम्बंधित किया जाय। उन्होंने यह भी चाहा था कि सही मायने में अमूल ब्रांड "भारत का स्वाद" हो जाय जब यह तमाम भारत में दूध उत्पादकों के साथ जुड़ जायेगी । हम उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यही डॉ कुरियन की असली श्रद्धांजलि होगी।

स्कॉटिश नाटककार कवि सर वाल्टर स्कॉट ने लिखा था कि “यह आखिरी नींद नहीं है बल्कि "आखिरी और अंतिम जागृति है”। पारित डॉ.वर्गीज कुरियन ने शायद इस चहक को सुन लिया होगा।

उनके परिवार में पत्नी, मौली कुरियन, बेटी निर्मला और पोता सिद्धार्थ बच गये है ।

डॉ.कुरियन जी की अमूल्य योगदान को सम्मान करने केलिए हर साल उनके

जन्म दिन पर २६ नवंबर को देशीय दूध दिन मनाया जाता है।

१९६४ से, अमूल की जंतर आंसू बहाते हुए दिखाई दे रहा है।

समाप्त